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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 18, 2025

 

यादों के झरोखे से :-

हम पहले बता चुके हैं की आजादी के बाद किस तरह देश में उद्योग और खेती के विकास के लिए आवश्यक पूंजी का अभाव था| कुछ लोग इस देश में हैं जो इतिहास के पन्नों में विभिन्न राजाओ के काल को स्वर्णिम बताया कर --- वर्तमान की तुलना करते हैं ! अब उनका सारा ज्ञान इतिहास की किताबों का हैं | जब उनके तर्क को समर्थन के लिए इतिहास में तथ्य मिल जाते हैं ,तब गाने लगते हैं "””जनहा जनहा डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा वो भारत देश हैं मेरा "” | अब चंद बरदाई के "” चार बां स चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ,तय ऊपर सुल्तान हैं मत चुकयो चौहान "” अब जिस तिथि और स्थान मे मुहम्मद गोरी को मारे जाने का प्रथविराज रासो मे जिक्र है वह इतिहास की तारीखों से नहीं मेल खाता हैं ! अब जन प्रचलित "”आल्हा "” में जिस आल्हा और उदल का जिक्र हैं --- उनकी लड़ाइयों का इतिहास में जिक्र नहीं मिलता हैं | लेकिन गावों में तो वे नौजवानों के आइडियल हैं | लेकिन वे इतिहास के पन्नों में नहीं हैं | अब काल्पनिक नायकों से इतिहास की हकीकत नहीं हुआ करती | कुछ ऐसे ही वे नव रईस थे जो नेहरू द्वरा मूल उद्योगों को सार्वजनिक छेत्र में रखे जाने से असहमत थे | उनसे पूछ लिया की स्टील - खनिज और पानी तथा हवाई जहाज के निर्माण के लिए पूंजी कान्हा से लाते ? उन्होंने कहा देश के उद्योगपति लगा सकते थे ! अब उन्हे कौन बताए की 1960 और 2020 मे बहुत अंतर हैं | तब टेक्सटाइल मिले बॉम्बे -कानपुर और कलकत्ता तथा कोयंबटूर मे ही थी | स्टील का बस एक कारखाना टाटा का जमशेदपुर मे था | रेलवे के एंजिन बनाए का कारखाना चितरंजन मे ही था | तब ट्रेन गिनी चुनी हुआ करती थी , पर दुर्घटनहीं ही होती थी | पंडित नेहरू के समय में एक रेल दुर्घटना हुई जिसमे जन -धन की हानि हुई थी , तब सरकार में सत्ता जिम्मेदारी निभाती थी | तब लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे , उन्होंने नेहरू के मना करने के बावजूद मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया | अब तो रोज दुर्घटनाए होती हैं , और मंत्री को तो छोड़ो किसी अधिकारी का भी इस्तीफा नहीं होता | खैर बात छठे दशक ( 1960) की कर रहे थे तब सोना भी ढाई सौ से तीन सौ रुपये हुआ करता था | लेकिन सरकार के पास इतना पैसा नहीं था की वह स्टील और बिजली के बड़े कारखाने लगाए | तब पहला स्टील कारखाना आज के भिलाई में रूस की मदद से और बंगाल में दुर्गापुर ब्रिटेन की सहायता से तथा राऊरकेला कारखाना अमेरिका की सहायता से बना | यह तत्कालीन सरकार के नेत्रतव की दूरदर्शिता थी की आज खनिज तेल और बड़े -बड़े उद्योगों के छेत्र मे देशी सेठ कारखाने लगा रहे हैं | परंतु सार्वजनिक छेत्र की पूंजी तब सुलभ हुई जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने बैंक का राष्ट्रीयकरण किया | तब सरकार को भी सार्वजनिक छेत्र में हिंदुस्तान ऐरीनौटिक्स और इंडियन ऑइल जैसे नवरतन उद्योग लगे | आगे फिर कुछ ........