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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 23, 2016

पुण्य तो परमात्मा जाने नीट के लिए लाखो का आशिस पाएंगे शिवराज

पुण्य तो परमात्मा जाने पर NEET के लिए लाख आशीस पाएंगे शिवराज

सिंहस्थ के आयोजन के लिए तमाम महा मंडलेश्वंरोः और मठाधीशों अखाड़ो के महंतो ने मुख्य मंत्री को आयोजन मे उनके लिए और यात्रियो की सुविधा के लिए किए गए प्रबंधों के लिए उन्हे बहुत -बहुत आशीष प्रदान किया ,| लोकभावना के अनुसार इसके लिए मुख्य मंत्री को "”बहुत पुण्य की प्राप्ति "””'होगी | अब पाप और पुण्य का हिसाब तो धरमराज जाने ---परंतु प्रदेश के सारे निजी और और सरकारी मेडिकल कालेजो मे भर्ती के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाई गयी अखिल भारतीय एकल प्रतियोगिता {NEET] को ही एकमात्र पथ चुने जाने के लिए लाखो छात्रो और उनके अभिभावकों की आशीष अवश्य मिलेगी | और यह आशीस उनकी राजनीति का फलदायक बनाएगी |

दासियो सालो से जब से इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढाई के लिए निजी छेत्रों को संस्थान खोलने की छूट दी गयी थी | तब यह कल्पना कभी नहीं की गयी थी की इन्हे "””मुनाफे का धंधा "””' बना दिया जाएगा | उम्मीद यह की गयी थी जैसे पराधीन भारत मे बड़े - बड़े धन्ना सेठो ने आम और गरीब हिन्दुस्तानियो के अध्ययन के लिए लगभग हर ज़िलो मे कालेज स्थापित किए | जो आज भी अपने निर्माताओ की दान शीलता के कारण जाने जाते है |
आज के अनेक नेता -मंत्री -अफसर - ऐसे ही संस्थानो से पद कर निकले है | 1977 के उपरांत अनेक प्रदेशों मे राज नेताओ ने चुनाव मे पराजित होने के बाद भी समाज मे अपनी "”उपयोगिता "” बनाए रखने के लिए शिक्षा के छेत्र मे कदम रक्खा | परंतु यह किसी "”सद्कार्य "” का श्री गणेश नहीं था ----वरन यह एक सेवा को व्यापार बनाने का काम था | दक्षिण के अनेक राज्यो मे तो इन पराजित पुरोधाओ ने अकादमिक - और मेडिकल के अलावा नर्सिंग तथा बी एड और अनेक पाठ्यक्रम के लिए संस्थान खोल दिये | मज़े की बात यह है की इन सभी संस्थाओ के मालिक - मुख्तार एक ही परिवार के सदस्य होते है | जो इन संस्थानो को "””अपनी जागीर "”” समझ कर इनका दोहन करना ही अपना परम कर्तव्य समझते है |

विगत चालीस सालो से चल रहे इस इस "”व्यापार"” का भंडाफोड़ तब हुआ जब चेन्नई के एक निजी मेडिकल कालेज के अधिकारी का आडियो रेकॉर्ड किया गया था जिसमे MBBS मे दाखिले के लिए भाव - ताव कर रहे थे | उसकी जांच मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से कराई गयी | उस सनस्थान के विरुद्ध कारवाई की मांग जनता और मीडिया द्वारा की गयी थी | परंतु काउंसिल ने मात्र संबन्धित अधिकारी के विरुद्ध ही कारवाई की अनुषंशा की | पुलिस प्रशासन ने भी मामला दर्ज़ कर उसे ठंडे बस्ते मे डाल दिया |

सूचना के अधिकार के आने के बाद जब इन '' निजी कालेजो "””” भर्ती के बारे जब - जब प्रश्न किए गए | तब तब यही उत्तर शासन की ओर से आया की ये निजी संस्थाए है-- अतः ये इस कानून के अधीन नहीं है | बात ठीक थी ,परंतु सभी प्र्देशों मे चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास सभी मेडिकल कालेगो की नकेल रहती है , यदि वे ईमानदारी और पारदर्शिता बरतते तब व्यापम ऐसा घोटाला संभव नहीं होता | क्योंकि इन निजी मेडिकल कालेजो के "”कर्ता- धरताओ"”” ने चपरासी से लेकर अफसर तथा मंत्रियो ---विधायक और सांसदो तक को इस '''गंदे खेल '''' मे उलझा दिया | फिर एक बार जब गला तर और ज़ेब भारी हो गयी तब साहस भी दुस्साहस मे बदल गया | फिर तो कहने --सुनने और लिखने का कोई असर नहीं रहा | आंखो का पानी मर गया | बाजरवाद की आँधी मे "””सब कुछ संभव "””” कर दिया गया | बस मोल ठीक होना चाहिए था | इस सबका परिणाम यह हुआ की किसान की ज़मीन बिकने लगी माँ -बहनो के जेवर गिरवी रखे जाने लगे | परंतु शिक्षा को व्यापार बनाने वाले लोगो का संगठन ---एक “”गिरोह””” के रूप मे काम करने लगा | इसी कारण "”सुप्रीम कोर्ट "””ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के लिए लिखा की "”वे अपने दायित्वों के निर्वहन मे बुरी तरह फेल हुए "”””| सच है एमसीआई की जांच "”” सरकारी मेडिकल कालेज की कमिया उजगार करना और निजी मेडिकल कालेजो को ओके करना रह गया | भले ही निजी मेडिकल कालेजो मे "”” मरीज और डाक्टर तक फर्जी रूप से एमसीआई की जांच के समय प्रस्तुत कर दिये जाते है | वनही सरकारी मेडिकल कालेजो मे रोगियो की भरमार और डाक्टरों की आनुपातिक कमी से सुविधाए भी बिखर जाती है | इस प्रकार वास्तविकता और प्रहसन के मंच को एक तराजू से तौल दिया जाता था |

इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की "”” शिक्षा के छेत्र को व्यापार बनाने नहीं दिया जा सकता | जो बिना --लाभ हानि के इन संस्थाओ को चला सकते है ,, वे ही इस छेत्र मे आए "”” इस कथन से सर्वोच्च अदालत की मंशा स्पष्ट हो जाती है

May 18, 2016

स्वामी और जेटली रघुराज रमन के स्थान पर पनगरिया चाहते है

राजनीति के FRANKSTEIN सुबरमानियम स्वामी का अचानक रघुराज रमन को को हटाने की मांग करना - और वह इसलिए की "”””उनका मन भारतीय नहीं है "””” | यह कला तो स्वामी के ही पास है की वे मन को भी पढ लेते है -अब यह गुण उनही भगवा वस्त्र धारियो के दावे के समान है लगता है जो विश्व की गर्मी को {पर्यावरण } को शांत करने के लिए क्लास रूम ग्लोब पर पानी छिड़क कर सब कुछ ठीक हो जाने का दावा करते है | कुछ वैसे ही सुबरमानियम कर रहे है | यू तो वित्त मंत्री अरुण जेटली बयान तो यही दे रहे है की किसी के कहने से राजन को नहीं हटे जाएगा ,, परंतु एक छोटी चिड़िया बताती है की वास्तव मे यह सब वास्तविकता के पूर्व की भूमिका है | एवं सेप्टेम्बर मे केंद्र सरकार अपनी साख के और मंहगाई के आंकड़े के साथ ही देश के आयात – निर्यात की ऐसी तस्वीर देश के सामने पेश करना चाहता है जो बहुत "””सुनहरी होगी "””” जबकि हक़ीक़त इसके विपरीत है |

विगत कुछ समय मे रघुराज रमन ने सार्वजनिक बैंको को अपनी उगाही बड़ाने का निर्देश दिया था | जिसके परिणाम स्वरूप विजय माल्या और सूरत के एक कंपनी की 6000 करोड़ की देनदारी सबके सामने आई | दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने रिज़र्वे बैंक से देश के उन 500 द्योगपतियों के नामकी सूची प्रस्तुत करने को कहा था की जिनपर 1000 करोड़ से ज्यादा का बकाया हो | अब इस लिस्ट मे वे सभी धन्ना सेठो के नाम है जिनहोने लोकसभा चुनावो के समय मोदी जी को उपक्रट किया था | सरकार को डर सता रहा है की एक बार सूची सार्वजनिक हो गयी तो मोदी सरकार की साख पर बट्टा लग जाएगा |

क्योंकि राजन ने एक बयान मे कहा था की मई स्थितियो को देख पा रहा हूँ ---वे इतनी आशाप्रद अथवा सुनहरी नहीं है | अब इस बयान ने जेटली जी की जान निकाल दी | क्योंकी लोकसभा चुनावो के दौरान किए गए वादे और दिखाये गए सब्ज़ बाग --- की तुलना मे तो स्थिति बिलकुल विपरीत है | दूसरा बैंको मे नकदी की कमी को भी लेकर वे चिंतित है | शेयर मार्केट भी सत्ता धारी दल के होश उड़ाए हुए है ---क्योंकि लाख जतन करने के बाद भी विदेशो से निवेश नहीं आ रहा है | प्रधान मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री भी "”सहमति पत्र "”” पर हस्ताक्षर अभियान मे लगे हुए है | परंतु कोई भी पूंजी लगाने को तैयार नहीं हो रहा है |


इस वित्तीय वास्तविकता को "”सरकार "”” जनता जनार्दन के सामने नहीं लाना चाहती है | इसलिए सुबरमानियम को इस मामले मे भौकने को कहा गया | फिर जेटली जी को उनके बयान पर एक '' भोला सा बयान '''देने को कहा गया | दूसरा उन्होने स्थिति स्पष्ट करते हुए रेकॉर्ड के आधार पर फैसला लिए जाने की बात दुहराई |



यह तो हुई रघुराम राजन को सटकाने का प्लॉट | इस से भी ज्यादा हानिकारक कदम जेटली रिजेर्व बैंक अधिनियम मे संशोधन | अभी तक वित्त मंत्रालय सिर्फ मौद्रिक स्थिति पर ---बंकों की स्थिति पर उनसे सलाह मशविरा करता था |परंतु अंतिम फैसला गवर्नर और उनके सहयोगी मिल कर लेते थे | यह नहीं कहा जाता था की "””””सरकार ऐसा चाहती है "” क्योंकि बैंको का काम काज लोगो के विश्वास पर टीका है -----वह भी रोज बा रोज ,,पाँच साल मे एक बार जताया गया भरोसा नहीं |क्योंकि अगर अन्य बैंको की तरह इस '''बैंको के बैंक '''' के साथ खिलवाड़ किया तो देश के विनाश के कगार पर पहुँच जाने का खतरा होगा

May 13, 2016

क्यो खफ्फा खफ्फा से है अरुण जेटली सुप्रीम कोर्ट से

क्यो खफ्फा खफ्फा  से है अरुण जेटली सुप्रीम कोर्ट से ?

लोकसभा मे न्यायपालिका द्वरा सरकार के कामो मे हस्तक्षेप के आरोप से वित्त मंत्री ने अपनी पीड़ा और छोभ को सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर दिया | मज़े की बात यह है की जेटली का वजूद ही सुप्रीम कोर्ट मे उनकी वकालत है | करोड़ो रुपये की सालाना आय और ठाठ -बाट सब कुछ उसी की बदौलत है | तब इस स्थ्ति मे अदालत को कठघरे मे खड़े करने का यह तरोका क्यो ?

इसके दो - तीन कारण है | पहला तो है उत्तराखंड मे राष्ट्रपति शासन के केंद्र के फैसले को जिस प्रकार सार्वजनिक रूप से दलीय लाभ का फैसला निरूपित किया ,,वह उन्हे शूल सा चुभ रहा है | क्योंकि मंत्रिमंडल मे उन्होने ही इस प्रस्ताव को रख कर पारित कराया ,फिर खुद ही फाइल लेकर राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी से दस्तखत कराये | इस प्रकार ना केवल उन्होने अपने कानूनी ज्ञान को एक असंवैधानिक कारी के लिए इस्तेमाल किया वरन देश के मुखिया को भी लज्जित कराया |

दूसरा मामला सूखे की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहे जाने से उद्भूत हुई की "”राज्य ने अपने कलयंकारी स्वरूप को तिलांजलि दे दी है "”” कोर्ट ने केंद्र से इस बाबत अविलंब एक कोश बनाने का ''निर्देश'''दिया है | वित्त मंत्री का कहना है की बजट पारित हो चुका है ऐसे मे अब सरकार क्या करे ? काफी मासूम सवाल है --परंतु प्राकरतीक आपदाए वित्तीय कलेंडर के अनुसार नहीं होती है | दूसरा प्रधान मंत्री जब कनही जाते है तब उस प्रदेश को करोड़ो -अरबों रुपये की सहता घोसीत करते है ---तब क्या वह पूर्व अनुमानित होती है ?बाढ और सूखा प्रक्रतिक आपदा है और वह अचानक तो नहीं वरन मनुष्य की अवहेलना से होती है |

तीसरा उनका दुख है की जीएसटी कराधान कानून पर अगर राज्य और -केंद्र मे मतभेद हुआ तो सुप्रीम कोर्ट उस मामले मे केंद्र के वीरुध फैसला दे सकती है | अचरज होता है की इतना बड़ा वकील संवैधानिक उपचार के मूलधीकर को "”बाधित "” करने की वकालत कर रहा है | सुप्रीम कोर्ट मूलतः अपीलीय अदालत है | परंतु उसका प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार है [1] राज्य और दूसरे राज्य के मध्य के विवाद {2] एक राज्य और केंद्र के मध्य के विवाद [3] राज्यो के समूह तथा दूसरे राज्यो के बीच के विवाद | अब इस अधिकार को जेटली जी भार और अड़ंगा बता रहे है |


अंत मे जो अरुण जेटली आज न्यायपालिका को तकलीफ देह बता रहे है उन्होने ने ही काँग्रेस के सलमान खुर्शीद द्वारा अदालतों द्वारा गैर ज़रूरी दखलंदाज़ी किए जाने के बयान पर 14 मार्च 2014 को अपने फेस्बूक की पोस्ट मे लिखा था की इन संवैधानिक सस्थाओ मसलन अदालत - निर्वाचन आयोग की निश्पक्षता पर सवालिया निशान नहीं लगाए जाने चाहिए | वे खुद आज अपने लिखे को '''भूल गए है "” या फिर विपक्ष मे और सत्ता मे रहकर '''बोल बदल जाते है ''''

राजनीति की रूडाली बनाम ---सुब्रामानियम स्वामी

राजनीति की रूदाली बनाम सुब्रामानियम  स्वामी

अंधड़ मे उडी लकड़ी के समान -भारतीय राजनीति मे 1977 मे जनसंघ के अदना सिपाही बनकर भारतवर्ष आए सुबरमानियम स्वामी तब से अब तक एक दर्जन से ज्यादा राजनीतिक पहचान बना चुके है | हावर्ड मे अध्यापक रहे स्वामी को आज उनके "”कारनामो "” के कारण विश्व की कोई भी विश्व विद्यालय अपने यानहा "”अतिथि प्रवक्ता"” बनाने को तैयार नहीं है |

कारण उनके ''उल - जलूल बोल ही है "” | हालांकि नेहरू -गांधी परिवार से उनका विरोध --किसी वैचारिक प्रतिबद्धतता के कारण नहीं है | क्योंकि मोरार जी भाई की सरकार मे मंत्री नहीं बनाए जाने पर वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ आग उगलने लगे थे | बाद मे मुंबई मे भारतीय जनता पार्टी के निर्माण मे जब उन्हे मनचाही जगह नहीं मिली तो उन्होने विघटित जनता पार्टी को पुनः मूषको भाव के अंदाज़ मे जीवित कर दिया |

इस पार्टी के उपाध्यक्ष नामी -गिरामी शौकीन और अय्याश सरी विजय माल्या थे | जिनको लेकर वे सारे देश मे घूमते थे | कहा जाता है की यू बी ग्रुप और माल्या ही इनके देशी और विदेशी दौरो का इंतेजाम करते थे | फिलहाल जब उन्होने नरेंद्र मोदी सरकार की कई नीतियो और फैसलो की आलोचना की तब उन्हे राज्य सभा मे "”मनोनीत"” सदस्य बना दिया गया | हबकी मनोनयन की श्रेणी के लिए उनके पास विशेषता नहीं है |पर सत्तारूद पार्टी ने इस राजनीतिक रुदाली को चुप रखने के लिए उन्हे यानहा पहुंचा दिया ,, और राज्य सभा मे सरकार की ओर से काँग्रेस नेत्रत्व पर हमला करने का काम सौप दिया ||

राजनेताओ पर हमला तो उनका समझ मे आता है --परंतु रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को शिकागो भेजे जाने के बयान से उनकी नीयत पर शक गहरा जाता है | उनके अनुसार राजन देश मे बदती मंहगाई पर रोक नहीं लगा पाये | अब उन्हे कौन याद दिलाये सौ दिन मे मंहगाई दायाँ को नियंत्रित करने का वादा नरेंद्र मोदी ने लोक सभा चुनावो मे किया था रघुराम राजन ने नहीं | विश्वस्त सूत्रो के अनुसार माल्या से क़र्ज़ वसूली के लिए राष्ट्रिय बैंकों पर दबाव बनये जाने से वे काफी नाराज़ है | क्योंकि अब उनका रातिब बंद हो गया है \ दूसरा वित्त मंत्री अरुण जेटली भी राजन की बेबाक बयानी से बहुत परेशान है | उन्हे लगता है की देश का केन्द्रीय बैंक उनके मंत्रालय के अधीन है और वनहा भी उनका "”हुकुम"” चलना चाहिए | जबकि रिज़र्व बैंक का प्रशासन लोकसभा के अधिनियमित कानून के अनुसार चलता है | जिसके कारण मंत्री की "”सिफ़ारिशे "” वनहा नहीं चल सकती | बैंक मे अध्पक्ष और प्रबंध निदेशक की नियुक्ति मे वित्त मंत्रालय का दख़ल तो रहता है ,,परंतु उन्हे काम रिज़र्व बैंक के कायदे कानून से करना पड़ता है |


बस यही तकलीफ वित्त मंत्री और स्वामी की है की वे अपने चहेते पूंजीपतियों को कर्जे नहीं दिला पा रहे है | फिलहाल उन्हे उपक्रत करने का काम बीजेपी की राज्य सरकारे कर रही है

विरोध ना अवरोध सिर्फ हुकूमत --मोदी सरकार का फंडा

विरोध ना अवरोध सिर्फ हुकूमत -मोदी सरकार का फंडा
उत्तराखंड मे राष्ट्रपति शासन लगाने की मोदी सरकार के फैसले को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया --उस से केंद्र सरकार के नेताओ मे काफी नाराजगी है | और वित्त मंत्री अरुण जेटली तथा गडकरी ने तो सदन मे यानहा तक कह दिया की "””अब सरकार के पास सिर्फ बजट बनाने और टैक्स वसूलने भर का ही काम बचा है "”” | गडकरी ने तो एक बयान मे यानहा तक कह दिया की जज इस्तीफा देकर चुनाव लड़े और फिर मंत्री बनकर शासन करे | जेटली के बयान को इसलिए गंभीरता से लेना चाहिए की वे खुद भी एडवोकेट है और विगत दो वर्षो से वे सर्वोच्च न्यायालय पर '''लगाम '''लगाने के लिए दो प्रयास सरकार के स्तर पर कर चुके है |

सरकार के गठन होते ही उन्होने जजो की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया को रद्द करने और एक आयोग बनाने की कोशिस की थी | इसके प्रविधानों मे प्रधान न्यायधीश एवं सुप्रीम कोर्ट का एक वारिस्ठ जज तथा दो स्वतंत्र व्यक्ति जो कानून के विधिवेत्ता हो और कानून मंत्री | इस आयोग द्वारा ही जजो का चयन किया जाने की व्यवस्था थी | इस मे साफ तौर पर सरकार अपनी मर्ज़ी चलाना चाहती थी | बहुमत के आधार पर निर्णय होना था | साफ था की सरकार तीन मतो को नियंत्रित कर ---जजो को "””अपनी मर्ज़ी पर चलना चाहती थी "””
सरकार के इस प्रस्ताव को अदालत ने खारिज कर दिया |तब नाय फंडा लाया गया की कालेजियम द्वारा सरकार को भेजे गए नामो को "” राष्ट्रिय हित"”” मे अमान्य कर सकेगी | इस राष्ट्रिय हित के फंदे का जनम "””भोपाल मे हुए Judges Retreat से हुआ था | राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी ने जजो को संभोधित भी किया था | सबसे "””अनुपयुक्त "”” उपस्थिती थी --सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की ? एवं उस से भी ज्यादा आपतिजनक था उनके द्वारा बंद कमरे मे जजो के साथ विचार - विमर्श | सवाल है जिस व्यक्ति के वीरुध सुनवाई किए जाने की संभावना हो -वह कैसे सुप्रीम कोर्ट के जजो से मुखातिब हो सकता है और किस हैसियत से ?
विगत दिनो "”राजनीतिक "” विरोधियो के खिलाफ "”राष्ट्र द्रोह "” के आरोप लगा कर विरोध की आवाज को चुप करने की गैर कानूनी कोशिस देश भर मे हुई | सबसे चर्चित मामला जे एन यू मे गिरफ्तार किए गए छात्र नेताओ के खिलाफ मुक़दमे चालने का था |कन्हैया जिसमे मुख्य आरोपी था |

हम देखते है की छात्रो के विरोध और अदालत द्वारा मोदी सरकार के फैसलो को "” गलत "” साबित किए जाने से इनके मंत्रियो मे काफी "”बेचैनी "”” है | क्योंकि उन्हे लाग्ने लगा है की उनके फैसले अगर "”कानून की कसौटी "”” पर खरे नहीं उतरे {{जो की नहीं उतरेंगे क्योंकि वे स्वार्थवश किए गए है }}}तो सरकार और संगठन दोनों ही बदनाम हो जाएंगे |
अब सवाल यह उठता है की ऐसा करने की ज़रूरत क्यो आन पड़ी ? तो वजह यह है की केंद्र को जिन मुद्दो पर "”कमजोर या गलत "”' का आरोप लगाते थे ---अब उन मुश्किलों का सामना करना पड रहा है | जिस धारा 370 की बात और एक विधान एक निशान की बात करते थे --काश्मीरी ब्रांहनों के पुनर्वास मे देरी के लिए डॉ मनमोहन सिंह को दोष देते थे ---अब उनही सवालो के घेरे मे खुद खड़े है | केंद्र द्वारा कश्मीरियों को "”एक साथ "” बसाये जाने के प्रस्ताव को उनके सहयोगी दल की नेता मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ठुकरा दिया है |


तो ये थी विरोध -अवरोध के कारण हुकूमत {{मनमरज़ी की } चलाने मे नाकामयाबी | जिसके कारण जेटली कार्यपालिका को संविधान मे "”सर्वोच्च "”” बनाए रखना चाहते है | अब उनसे कोई पूछे की सुप्रीम कोर्ट का ''अधिकार छेत्र"” संविधान के 32 अनुकछेद मे वर्णित है | तब तकलीफ क्यो भाई ?  

May 12, 2016

जयललिता का नया पैंतरा ---मेडिकल मे दाखिला बिना टेस्ट के !

विधान सभा चुनावो की पूर्व संध्या पर तमिलनाडु की मुख्य मंत्री सुजयललिता का नया पैंतरा ---मेडिकल मे दाखिला बिना टेस्ट के !
श्री जे जयललिता ने राज्य मे बिना टेस्ट के मेडिकल कालेज मे दाखिला देने का वादा किया है | विधान सभा चुनावो के पूर्व यह उनका सबसे ताज़ातरीन वादा है | यह तब उन्होने कहा -जब की सुप्रीम कोर्ट ने सारे देश के लिए "”नीट"” यानि एकल परीक्षा करने का निर्देश दिया है | इस हेतु परीक्षा की तारीख भी निश्चित कर दी है | क्या इसे मतदाताओ को लुभाने के लिए रिश्वत के रूप मे नहीं लिया जाना चाहिए ??


मोहतरमा जयललिता को बयान देने से पहले सोचना चाहिए था की – कोई भी मेडिकल संस्थान एमबीबीएस की डिग्री तब तक नहीं दे सकता ---जब तक की उसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से अधिमान्यता प्रापत नहीं हो | उनके इस कदम से तामिलनाडु के मेडिकल कालेजो के डाक्टरों को केवल उनही के रहया मे नौकरी मिलेगी और वे सिर्फ अपने ही प्रदेश मे प्रैक्टिस कर सकेंगे | अब इसे जयललिता का तमिलनाडू के लोगो दिया गया "”वरदान कहे या श्राप ? “

नीट पर सर्वदलीय बैठक --- मेडिकल सीट मे उगाही की कोशिश

नीट पर सर्वदलीय बैठक --- मेडिकल सीट मे उगाही की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से की सारे देश मे मेडिकल मे दाखिले के लिए "”एक परीक्षा"” के फैसले से जनहा छात्र और अभिभावक खुश है वही --- प्राइवेट मेडिकल कालेजो के "”मालिक "का धंधा बंद हो जाने से इन धन्नासेठों मे आखिरी कोशिस चली है | उनकी कोशिस मे केंद्र सरकार के लोग भी शामिल लग रहे है | इसका संकेत केंद्र द्वारा द्वारा इस एकल परीक्षा को विभिन्न प्रांतीय भाषाओ मे कराये जाने का सुझाव दिया है | वास्तव मे यह सुझाव कर्नाटक - तमिलनाडु और आंध्रा तथा महाराष्ट्र के निजी मेडिकल कालेजो और प्राइवेट यूनिवरसिटि की ओर से दिया गया है | जिस से उनकी घ्राणित मंशा झलकती है |

सवाल यह है की अभी तक इन प्रदेशों मे अभी तक कमोबेश अङ्ग्रेज़ी मे ही परीक्षा होती थी | क्योंकि मेडिकल की पढाई की किताबे अङ्ग्रेज़ी मे ही है | दूसरा यह की इस सीट बेचने के धंधे मे कितने राजनेता लिप्त है ---यह इस तथ्य से उजागर होता है की इस मामले मे केंद्र मे सत्तासीन पार्टी की ओर से "”सर्वदलीय"” बैठक बुलाने की पहल का प्रयास किया जा रहा है |

वास्तव मे निजी मेडिकल कालेजो वालो पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच का "”फंडा"” डालकर कर ,उनके गोरख धंधे को सार्वजनिक रूप से उजागर करके शिक्षा को व्यापार और एमबीबीएस और पीजी की सीटो की नीलामी पर नकेल लगा दी है | जिस से यह सभी "”मालिक "” फड़फड़ा रहे है | क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की पहल से एक साल मे एमबीबीएस की सीट को 40 से 50 लाख रुपये मे बेचने का कुचक्र खतम हो जाएगा | फलस्वरूप विजय माल्या की ही भांति इन लोगो की शान - -शौकत भी खतम हो जाएगी |


एक अपुष्ट सूत्र के अनुसार इन निजी मेडिकला कालेजो ने इस अदालती आदेश को रोकने के लिए 1000 करोड़ रुपये एकत्र किए है | जिसे बीड़ा उठाने वाले को दिया जाएगा | हालांकि प्रधान मंत्री मोदी ने ऐसी एक पहल को ठुकरा दिया है | लेकिन अब देखते है की आगे क्या होता है

May 11, 2016

फिरंगियो और इस्लाम मे पंडित और ब्रांहण !

फिरंगियो और इस्लाम मे पंडित और ब्रांहण !

शीर्षक पदकर  आम लोगो के मन यह धारणा ज़रूर आएगी की वेदिक धर्म के इन शब्दो का ईसाई और इस्लाम धर्म मे क्या स्थान होगा ? परंतु अङ्ग्रेज़ी भाषा मे PUNDIT TATHAA BRAMHIN का उपयोग कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड डिकसनरी मे बाकायदा हुआ है | अमेरिका मे बोस्टन शहर शिक्षा और प्रबंधन के लिए विशिष्ट स्थान रखता है | डिकसनरी मे BOSTENIYAN BRAMHIN का अर्थ खास प्रकार के "”सफल लोगो "” के लिए इस्तेमाल किया जाता है ---जिनहे हम "”आभिजात्य"” वर्ग कहते है | यह उसी प्रकार है जैसे भारत के संदर्भ मे ज़ाती व्यसथा है | जिसमे सामाजिक रूप से ब्रांहण !– छत्रीय- वैश्य एवं शूद्र | पश्चिम की दुनिया मे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है | परंतु इन शब्दो को भाषा मेव समेटने से लगता है की वे भी "”” विशिष्ट"” पहचान के लिए खास संज्ञा की खोज मे थे |

आज कल देश मे जाति प्रथा पर राजनीतिक रूप से कई ओर से प्रहार किए जा रहे है | वस्तुतः इसकी शुरुआत 1932मे तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी मे "द्रविड़ कडगम''' नामक आंदोलन की शुरुआत रामा स्वामी नायकर नामक सज्जन ने की थी | जो बाद मे ब्रांहण वाद का सशक्त विरोधी बना | जो बाद मे द्रविड़ मुनेन्त्र कडगम और मौजूदा समय मे अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम बना | तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जे जयललिता इसी पार्टी की नेता है | जबकि डीएमके के नेता के करुणानिधि है |

लेकिन एक ओर जंहा जाति के प्रति इतना आक्रोश है -वनही इस्लाम मे एक ऐसा "तबका "” है जिसे हुसैनी ब्रांहण "”” के नाम से जाना जाता है | अब सवाल यह है की मध्य काल मे यानि की लगभग 14 सौ साल पूर्व जब इस्लाम धर्म अवतरित हो रहा था तब ऐसा क्या हुआ की भारतवर्ष से इराक़ मे युद्ध करने ब्रांहण गए ? ऐतिहासिक तथ्यो के अनुसार कर्बला की लड़ाई मे यजीद के विरुद्ध इमाम अली की मदद के लिए चन्द्रगुप्त नामक राजा ने दत्त ब्रांहण के नेत्रत्व मे सेना भेजी थी | परंतु इन लोगो के पहुचने के पूर्व ही इमाम हुसैन यजीद के हाथो मारे जा चुके थे | इस स्थिति मे राजा की आज्ञा को पूरा करने मे असमर्थ भूरे दत्त ने अपने साथ आए लोगो को वापस जाने की आज्ञा दी | परंतु स्वयं अपने कुछ चुनिन्दा साथियो के साथ कुफा नगर मे रह गए यद्यपि इन लोगो ने धरम परिवर्तन नहीं किया परंतु “हुसैन “” के प्रति आदर भाव के कारण इन्हे हुसैनी ब्रामहण कहा गया | इनके रहने के इलाके को भी “”डेरा -- हिंदिया “”' कहा गया | कहते है की अजमेर शरीफ मे मोइनूद्दीन चिश्ती की मज़ार की सम्हाल भी इनहि लोगो द्वारा की गयी
|

इन लोगो के बारे मे एक कहावत इराक मे कही जाती है "””वाह दत्त सुल्तान , हिन्दू का धर्म मुसलमान का ईमान , आधा हिन्दू आधा मुसलमान "” एक ओर धार्मिक असहिष्णुता अपनी चरम पर है दूसरी ओर सदियो पूर्व दोनों धर्मो मे ऐसा भी एका था | जब एक मुसलमान की गुहार पर हिन्दू राजा सेना भेज देता था | और उन सैनिको की स्वामिभक्ति की --- फतेह या विजय नहीं मिली तो स्वयं को देश निकाला दे दिया | भले ही उनकी नसलों को इसका खामियाजा ! भुगतना पड़ा हो

पर्यावरण -प्रदूषण और कटते पेड़ो के बाद कितने स्मार्ट होंगे नगर

पर्यावरण -प्रदूषण और कटते पेड़ो के बाद कितने स्मार्ट होंगे नगर ?

केंद्र सरकार ने देश की "”चुनिन्दा शहरो ::: को स्मार्ट बनाने की योजना बनायी, पहले तो स्वाक्षता अभियान की भांति लगा की यह भी एक अच्छे उद्देस्य की कमजोर शुरुआत ही साबित होगी | क्योंकि स्वक्षता अभूयन मे भी मे सिवाय मंत्रियो और अधिकारियों के "”फोटो सेशन "” के बाद कुछ विशेष हासिल नहीं हुआ | हालत यह हो गयी की जनहा हफ्ते मे नगर निगम सफाई करावा देता था --हर दूसरे दिन कूड़ा उठ जाता था । वह भी रुक सा गया | क्योंकि सारा अमला तो "'अभियान "” मे भागीदारई जताने वाले फोटो खिंचाओ आंदोलन मे लगे विधायकों -मंत्रियो और अधिकारियों के लिए सफाई करने की ज़िम्मेदारी वहाँ कर रहे थे | आखिर इन "”महान "”' स्वछ्ता अभियान के पुरोधाओ की झाड़ू के तले सिर्फ मुरझाए हुए फूल पत्तीही आने की शर्त जो थी | आप याद करो की किसी भी फोटो मे अगर आपको वास्तव के "”कुड्डा कचरा ''' जैसा कुछ भी दिखाई पड़ा हो ??

अब ऐसे मे स्मार्ट सिटी का नारा आ गया --लोगो ने सोचा की कुछ तो नागरिक सुविधाए ठीक होंगी | परंतु जहा "चुने गए 19 भावी स्मार्ट सिटी '' मे सीवर - सड़क और सफाई की ओर प्राथमिकता से योजना बनायी ,, वनही प्रदेश की राजधानी का "””भाग्य"” कहे दुर्भाग्य कहे की नागरिक सुविधाओ को छोड़ कर बिल्डिंग बनाने का काम के लिए बसे - बसाये शिवाजी नगर और उसके आस पास की 350 {तीन सौ पचास } एकड़ जमीन पर बने 1800 शासकीय आवास और लगभग छह सौ निजी आवासो को धराशायी करने की योजना पर उसी ताबड़तोड़ गति से काम होने लगा जैसा की मेट्रो की योजना पर हो रहा है |

सवाल यह है की अगर भोपाल को स्मार्ट रूप देना है तो उसके लिए "” लोगो को घर से बेघर '''करना और विकाश के नाम पर हरीतिमा का विनाश करना जरूरी है "”?? सरकार और उसके बड़े बाबुओ की नज़र मे इस इलाके रहने वाले तुच्छ कर्मचारी हो ,, परंतु इन आवासो मे इनहोने "घर "”बसाया है | पेड़ - पौधे लगाए है | इनलोगों ने मोहकमा -- जंगलात यानि वन विभाग की भांति यूकीलीप्तुस और सुबबूल के सजावटी पेड़ नहीं लगाये | वरना उन्होने घर समझ कर इन भूजल को सोखकर भूगर्भ का वॉटर लेवेल कम करने वाली प्रजाति के पेड़ नहीं लगाए | वरन उपासना के पवित्र पेड़ जैसे पीपल और बरगद लगाए | जो एक पीढी निकल जाने के बाद ही छाया देते है | घरो मे फलदार पेड़ लगाए जैसे आम -जामुन - सीताफल और सेहत के लिए नीम के हजारो पेड़ इस इलाके मे आज पनप रहे है | न्यू मार्केट से लिंक रोड नंबर एक से एमपी मगर की ओर जाने के समय इस इलाके की हरीतिमा का पर्यावरण पर प्रभाव को "”महसूस "” किया जा सकता है ---आम नागरिक द्वरा | एसी कार मे चलने वाले उन बाबुओ को जिनहोने लोगो को उजड़ने की यह योजना बनायी और उन धन्ना सेठो को तापमान का यह अंतर नहीं महसूस होगा | क्योंकि उन्होने तो एक बार फिर से आम नागरिक को ठगने का यह तरीका अपनाया है |

स्मार्ट सिटि का विरोध जनता - जनार्दन नहीं कर रहे है ---वस्तुतः स्थान के चयन को लेकर नागरिक बेचैन है | क्योंकि उनकी योजना के अनुरूप इस इलके के लगभग तीस हज़ार से अधिक पेड़ काटेंगे | मेरे इस कथन को शासकीय सूत्रो द्वारा खंडन किया जा सकता है | परंतु वे आज तारीख तक यह नहीं बता पा रहे की किस सड़क पर कितने पेड़ -किस प्रजाति के लगे है ? यह तो वे बता ही नहीं पाएंगे की ये कितने पुराने है और कितनी मोटाई है इसके तनो की ?? वैसे पेड़ गिनने का नाटक शुरू तो हुआ है |देखे क्या बताते है |


ऐसा नहीं की शर मे स्मार्ट सिटि के लिए शासकीय खाली ज़मीन नहीं है ?? भेल के पास 350 एकड़ खाली ज़मीन है | जिस पर स्मार्ट शहर का निर्माण किया जा सकता है | न्यू मार्केट मे लगभग 200 एकड़ भूमि पर बने सरकारी आवासो को कई बरस पूर्व ही तोड़ा जा चुका है | पुन्र्घंत्विकरण {Redensification } की आस मे आज भी यह इलाका इंतज़ार कर रहा है अपने गुलजार डीनो की वापसी का | पर लगता है की जिस कंपनी को स्मार्ट सिटि देने का "”” निश्चय या निरण्य "”” लिया जाना है उसकी ज़िद्द है की शिवाजी नगर को उजाड़ो --- जैसे रोमन सम्राट नीरो ने नए रोम के निर्माण के लिए पुराने बसे नगर मे आग लगवा दी थी | और प्रचार किया गया की यह सब काम सम्राट के विरोधियो द्वारा किया गया है | अब भी समय है की हुक्मरान नीरो न बने वरना उसके अंजाम को पहुंचेंगे ऐसा तो इतिहास बताता है