विरोध
ना अवरोध सिर्फ हुकूमत -मोदी
सरकार का फंडा
उत्तराखंड
मे राष्ट्रपति शासन लगाने की
मोदी सरकार के फैसले को जिस
प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने
रद्द किया --उस
से केंद्र सरकार के नेताओ मे
काफी नाराजगी है |
और
वित्त मंत्री अरुण जेटली तथा
गडकरी ने तो सदन मे यानहा तक
कह दिया की "””अब
सरकार के पास सिर्फ बजट बनाने
और टैक्स वसूलने भर का ही काम
बचा है "””
| गडकरी
ने तो एक बयान मे यानहा तक कह
दिया की जज इस्तीफा देकर चुनाव
लड़े और फिर मंत्री बनकर शासन
करे | जेटली
के बयान को इसलिए गंभीरता से
लेना चाहिए की वे खुद भी एडवोकेट
है और विगत दो वर्षो से वे
सर्वोच्च न्यायालय पर '''लगाम
'''लगाने
के लिए दो प्रयास सरकार के
स्तर पर कर चुके है |
सरकार
के गठन होते ही उन्होने जजो
की नियुक्ति की वर्तमान
प्रक्रिया को रद्द करने और
एक आयोग बनाने की कोशिस की थी
| इसके
प्रविधानों मे प्रधान न्यायधीश
एवं सुप्रीम कोर्ट का एक
वारिस्ठ जज तथा दो स्वतंत्र
व्यक्ति जो कानून के विधिवेत्ता
हो और कानून मंत्री |
इस
आयोग द्वारा ही जजो का चयन
किया जाने की व्यवस्था थी |
इस
मे साफ तौर पर सरकार अपनी मर्ज़ी
चलाना चाहती थी |
बहुमत
के आधार पर निर्णय होना था |
साफ
था की सरकार तीन मतो को नियंत्रित
कर ---जजो
को "””अपनी
मर्ज़ी पर चलना चाहती थी "””
सरकार
के इस प्रस्ताव को अदालत ने
खारिज कर दिया |तब
नाय फंडा लाया गया की कालेजियम
द्वारा सरकार को भेजे गए नामो
को "” राष्ट्रिय
हित"”” मे
अमान्य कर सकेगी |
इस
राष्ट्रिय हित के फंदे का जनम
"””भोपाल
मे हुए Judges
Retreat से
हुआ था |
राष्ट्रपति
प्रणव मुकर्जी ने जजो को संभोधित
भी किया था |
सबसे
"””अनुपयुक्त
"”” उपस्थिती
थी --सुरक्षा
सलाहकार अजित डोवाल की ?
एवं
उस से भी ज्यादा आपतिजनक था
उनके द्वारा बंद कमरे मे जजो
के साथ विचार -
विमर्श
| सवाल
है जिस व्यक्ति के वीरुध सुनवाई
किए जाने की संभावना हो -वह
कैसे सुप्रीम कोर्ट के जजो
से मुखातिब हो सकता है और किस
हैसियत से ?
विगत
दिनो "”राजनीतिक
"” विरोधियो
के खिलाफ "”राष्ट्र
द्रोह "”
के
आरोप लगा कर विरोध की आवाज को
चुप करने की गैर कानूनी कोशिस
देश भर मे हुई |
सबसे
चर्चित मामला जे एन यू मे
गिरफ्तार किए गए छात्र नेताओ
के खिलाफ मुक़दमे चालने का था
|कन्हैया
जिसमे मुख्य आरोपी था |
हम
देखते है की छात्रो के विरोध
और अदालत द्वारा मोदी सरकार
के फैसलो को "”
गलत
"” साबित
किए जाने से इनके मंत्रियो
मे काफी "”बेचैनी
"”” है
| क्योंकि
उन्हे लाग्ने लगा है की उनके
फैसले अगर "”कानून
की कसौटी "””
पर
खरे नहीं उतरे {{जो
की नहीं उतरेंगे क्योंकि वे
स्वार्थवश किए गए है }}}तो
सरकार और संगठन दोनों ही बदनाम
हो जाएंगे |
अब
सवाल यह उठता है की ऐसा करने
की ज़रूरत क्यो आन पड़ी ?
तो
वजह यह है की केंद्र को जिन
मुद्दो पर "”कमजोर
या गलत "”'
का
आरोप लगाते थे ---अब
उन मुश्किलों का सामना करना
पड रहा है |
जिस
धारा 370
की
बात और एक विधान एक निशान की
बात करते थे --काश्मीरी
ब्रांहनों के पुनर्वास मे
देरी के लिए डॉ मनमोहन सिंह
को दोष देते थे ---अब
उनही सवालो के घेरे मे खुद खड़े
है |
केंद्र
द्वारा कश्मीरियों को "”एक
साथ "”
बसाये
जाने के प्रस्ताव को उनके
सहयोगी दल की नेता मुख्य मंत्री
महबूबा मुफ़्ती ने ठुकरा दिया
है |
तो
ये थी विरोध -अवरोध
के कारण हुकूमत {{मनमरज़ी
की }
चलाने
मे नाकामयाबी |
जिसके
कारण जेटली कार्यपालिका को
संविधान मे "”सर्वोच्च
"””
बनाए
रखना चाहते है |
अब
उनसे कोई पूछे की सुप्रीम
कोर्ट का ''अधिकार
छेत्र"”
संविधान
के 32
अनुकछेद
मे वर्णित है |
तब
तकलीफ क्यो भाई ?
No comments:
Post a Comment