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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 13, 2016

राजनीति की रूडाली बनाम ---सुब्रामानियम स्वामी

राजनीति की रूदाली बनाम सुब्रामानियम  स्वामी

अंधड़ मे उडी लकड़ी के समान -भारतीय राजनीति मे 1977 मे जनसंघ के अदना सिपाही बनकर भारतवर्ष आए सुबरमानियम स्वामी तब से अब तक एक दर्जन से ज्यादा राजनीतिक पहचान बना चुके है | हावर्ड मे अध्यापक रहे स्वामी को आज उनके "”कारनामो "” के कारण विश्व की कोई भी विश्व विद्यालय अपने यानहा "”अतिथि प्रवक्ता"” बनाने को तैयार नहीं है |

कारण उनके ''उल - जलूल बोल ही है "” | हालांकि नेहरू -गांधी परिवार से उनका विरोध --किसी वैचारिक प्रतिबद्धतता के कारण नहीं है | क्योंकि मोरार जी भाई की सरकार मे मंत्री नहीं बनाए जाने पर वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ आग उगलने लगे थे | बाद मे मुंबई मे भारतीय जनता पार्टी के निर्माण मे जब उन्हे मनचाही जगह नहीं मिली तो उन्होने विघटित जनता पार्टी को पुनः मूषको भाव के अंदाज़ मे जीवित कर दिया |

इस पार्टी के उपाध्यक्ष नामी -गिरामी शौकीन और अय्याश सरी विजय माल्या थे | जिनको लेकर वे सारे देश मे घूमते थे | कहा जाता है की यू बी ग्रुप और माल्या ही इनके देशी और विदेशी दौरो का इंतेजाम करते थे | फिलहाल जब उन्होने नरेंद्र मोदी सरकार की कई नीतियो और फैसलो की आलोचना की तब उन्हे राज्य सभा मे "”मनोनीत"” सदस्य बना दिया गया | हबकी मनोनयन की श्रेणी के लिए उनके पास विशेषता नहीं है |पर सत्तारूद पार्टी ने इस राजनीतिक रुदाली को चुप रखने के लिए उन्हे यानहा पहुंचा दिया ,, और राज्य सभा मे सरकार की ओर से काँग्रेस नेत्रत्व पर हमला करने का काम सौप दिया ||

राजनेताओ पर हमला तो उनका समझ मे आता है --परंतु रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को शिकागो भेजे जाने के बयान से उनकी नीयत पर शक गहरा जाता है | उनके अनुसार राजन देश मे बदती मंहगाई पर रोक नहीं लगा पाये | अब उन्हे कौन याद दिलाये सौ दिन मे मंहगाई दायाँ को नियंत्रित करने का वादा नरेंद्र मोदी ने लोक सभा चुनावो मे किया था रघुराम राजन ने नहीं | विश्वस्त सूत्रो के अनुसार माल्या से क़र्ज़ वसूली के लिए राष्ट्रिय बैंकों पर दबाव बनये जाने से वे काफी नाराज़ है | क्योंकि अब उनका रातिब बंद हो गया है \ दूसरा वित्त मंत्री अरुण जेटली भी राजन की बेबाक बयानी से बहुत परेशान है | उन्हे लगता है की देश का केन्द्रीय बैंक उनके मंत्रालय के अधीन है और वनहा भी उनका "”हुकुम"” चलना चाहिए | जबकि रिज़र्व बैंक का प्रशासन लोकसभा के अधिनियमित कानून के अनुसार चलता है | जिसके कारण मंत्री की "”सिफ़ारिशे "” वनहा नहीं चल सकती | बैंक मे अध्पक्ष और प्रबंध निदेशक की नियुक्ति मे वित्त मंत्रालय का दख़ल तो रहता है ,,परंतु उन्हे काम रिज़र्व बैंक के कायदे कानून से करना पड़ता है |


बस यही तकलीफ वित्त मंत्री और स्वामी की है की वे अपने चहेते पूंजीपतियों को कर्जे नहीं दिला पा रहे है | फिलहाल उन्हे उपक्रत करने का काम बीजेपी की राज्य सरकारे कर रही है

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