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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 15, 2019


मोदी सरकार क्यूँ
देश मैं लोकतन्त्र के ढांचे को ---कुलीन तंत्र मैं बदल रही हैं ?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ,अपनी दूसरी पारी मैं दो ऐसे फैसले किए हैं ,जिनसे संविधान और परंपरा की भावना को चोट पहुंचाई हैं | पहला निर्णय जिसने "”सरकार और शासन के भेद को ही मिटा कर अखिल भारतीय सेवाओ मैं केन्द्रीय लोक सेवा आयोग द्वरा चयनित अधिकारियों को ---आने वाले समय मैं राजनीतिक मास्टर की पसंद के कारपोरेट जगत के उद्योगपतियों की कंपनी के वफादार नौकरो को सरकार मैं संयुक्त सचिव और उप सचिव पद पर भर्ती करने का फैसला किया हैं "” | सरकार को अभी तक कुछ ऐसे पदो पर भी नागरिकों को पदस्थ करने का अधिकार रहा हैं ---- जिन पर अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती हैं | उदाहरण के तौर पर भारतीय विदेश सेवा के अफसरो को ही विदेश मैं राजदूत अथवा हाइ कमिशनर नियुक्त किया जाता हैं | विगत मैं इन पदो पर गैर अधिकारियों की भी नियुक्तीय हुई हैं | चूंकि विदेश मंत्रालय के निर्देशों से ही दूतावासो का काम किया जाता हैं , इसलिए इस मामले मैं कोई दिक़्क़त नहीं हुई |
पहला फैसला था की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल - और प्रधान मंत्री कार्यालय मैं प्रधान सचिव न्रपेन्द्र मिश्रा और निजी सचिव ए के मिश्रा को "” कैबिनेट मंत्री का दरजा देना "” ! डोवाल को मंत्रिमंडल मैं भाग लेने की पात्रता उनके पद से है ही ----फिर यह कैबिनेट मंत्री पद का दर्जा क्यू ? शायद राष्ट्रीय समारोहो मैं उनके बैठने का स्थान को "”ऊंचा उठाना था "” क्योंकि ऑर्डर ऑफ प्रीसिडेंस के अनुसार वे एक अधिकारी ही हैं , सरकार का भाग नहीं | इसलिए ही तीनों नौकरशाहों को मंत्रिपद की बराबरी दी गयी |

दूसरा फैसला हैं की केंद्रीय मंत्रालयों मैं अब कारपोरेट जगत से संयुक्त सचिव और उप सचिव पद सीधी भर्ती हो सकेगी | केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वरा ऐसी व्यसथा निकट भविष्य मैं किए जाने की बात हैं | यह व्यवस्था निर्वाचित सरकार और स्थायी नौकशाही की व्हाइट हाल सिस्टम के बिलकुल उलट हैं | हमने अपनी लोकतान्त्रिक परिपाटी ब्रिटेन के संसदीय लोकतन्त्र से ली हैं | यू तो ब्रिटेन राजतंत्र हैं | परंतु वास्तविक और कानूनी रूप से वह गणतन्त्र हैं | वनहा दिन प्रतिदिन का राज काज चलाने के लिए स्थायी नौकरशाही हैं | जो मंत्रिमंडल के फैसलो को लागू करती हैं | इस नौकरशाही के भर्ती के और नौकरी की सेवा शर्ते निश्चित हैं | अब वनहा सरकार अफसरो को बादल तो सकती हैं -----पर बाहर से किसी को उनके पदो पर नहीं ला सकती | सरकार अपनी सहायता के लिए "”” सलाहकार "” नियुक्त कर सकती हैं , पर वे मंत्री को सलाह दे सकते हैं , पर ना तो कोई उनके अधीन कोई होता हैं नाही वे किसी की चरित्र पंजिका लिख सकते हैं !!
भारत मै जनता द्वरा चुनी गए प्रतिनिधियों से गठित सरकार ही देश के संविधान और संसद के प्रति जवाबदेह होती हैं | शासन उस संगठित और नियमित नौकरशाही का संगठन होता हैं , जिसका काम सरकार की नीतियो को लागू करना और सरकार के ऐसे फैसलो पर ईमानदार रॉय देना जो संविधान अथवा किसी कानून की अवहेलना कर रहे हो -उसके प्रति सरकार को सचेत करना | इसीलिए अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियों को मंत्री की टीप पर अपना मत -भले ही वह सरकार के मत से विपरित् हो फाइल पर नोट करने का अधिकार दिया है | नियमतः मंत्री सचिव या संयुक्त सचिव के अभिमत से असहमत हो सकता हैं | परंतु तब उसे कारणो सहित फाइल पर लिखना होगा | जिसके लिए वह खुद जिम्मेदार होगा | तब अधिकारी मंत्री के नोट के अनुसार आदेश जारी करेगा , भले ही वह ऐसा मन - मसोस कर करना पड़े | यही लोकतंत्र हैं |

परंतु केन्द्रीय सचिवालय मैं "” सरकार "” की नीतियो को संविधान और नियमो के अधीन पालन करने की ज़िम्मेदारी भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा आयोग द्वरा चयनित अधिकारी ही करते रहे हैं | परंतु नरेंद्र मोदी सरकार ने इसको बादल कर अपनी उस सोच को उजगार कर दिया हैं , जो संविधान के उपबंधो का मज़ाक उड़ाता हैं ! आइये इस निर्णय का बारीक परीक्षण करे | आयोग से चयनित अधिकारियों को चहाए वे प्र्शसनिक सेवा के हो अथवा पुलिस या फिर वन या अन्य सेवाओ के अधिकारी हो ----उन्हे भारतीय अपराध संहिता के अंतर्गत अपने किए गए कार्यो और फैसलो के लिए संरक्षण मिला हुआ हैं | क्या औद्योगिक घराने के मालिक के "”हितो "” के वफादार इन लोगो को भी यही संरक्षण नहीं मिलेगा ? जबकि उनकी वफादारी अपने मालिको के लाभ के प्रति होगी , भले ही फिर उन्हे संविधान मैं नागरिकों के अधिकारो अथवा राज्य के हितो के खिलाफ करी करना हो ! क्योंकि उन्हे यह तो पता ही हैं की उन्हे किसके निर्देशों का पालन "”ईमानदारी "” से करना हैं ? यह तो स्पष्ट हैं की कारपोरेट कल्चर से आए इन वफ़ादारों को संविधान और केंद्रीय कानूनों का पर्याप्त ज्ञान नहीं ही होगा | क्योंकि उस ज्ञान ने उन्हे वनहा नहीं पाहुचाया हैं -जनहा पर वे काम कर रहे हैं | वनहा पर तो उन्हे यह सिखाया गया हैं की "”किस प्रकार अपने प्रोजेक्ट को लाभकारी बनाने के लिए देश के कानूनों मैं छिद्रो को खोज कर उससे अपने मालिक के लिए लाभ जुटाना हैं !
मिश्रित अर्थव्यसथा मैं स्थापित सार्वजनिक उद्योगो को देश की व्यवस्था मैं मदद के लिए लगाया गया था | विगत की सरकारो की लापरवाही से इनके कामकाज से उन परिणामो की पूर्ति नहीं हुई --जिन कारणो से से इनकी स्थापना की गयी थी | आजकल इन इकाइयो के सामने निजी छेत्रों मैं स्थापित कंपनियो से मुक़ाबले का मामला हैं | आम तौर जब सार्वजनिक उपक्रमो को "”घाटे का सौदा बता कर "” इन्हे बंद करने और बेचने की पहल सरकार द्वरा की जाती हैं , तब सड़क पर चलते हुए अथवा पान और चाय के ठेलो पर भक्त लोग इन्हे "”सफ़ेद हाथी "” बताते हुए इन्हे खतम करने की पैरवी करते हैं | खीर इस पर बहस बाद मैं |
मोदी जी की इस पहल मैं राष्ट्र पति प्रणाली मैं संसद के चुने जन प्रतिनिधियों की जिस प्रकार अनदेखी की जा सकती हैं , वैसा ही उनके इस फैसले मैं देखा जा सकता हैं | वनहा राष्ट्रपति अधिकारियों की नियुक्ति अपनी "””मर्ज़ी "” से करता हैं | यद्यपि वनहा भी एक स्तर तक स्थायी नौकरशाही होती हैं | परंतु उसके प्रमुख की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वरा की जाती हैं | कुछ कुछ मोदी जी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की भांति "”संविधान और संसद से स्वतंत्र हो कर निरंकुश सरकार चलाने की पहल कर रहे हैं "” | परंतु ठेके पर रखे गए इन निजी छेत्रों के वाइस प्रेसिडेंट आदि से देश का कितना भला होगा यह तो भविष्य बताएगा | परंतु एक बात निश्चित हैं की सरकार का यह फैसला सिर्फ और सिर्फ उन उद्योगपतियों को लाभ पाहुचने वाला होगा -जो सत्ता के करीबी हैं | अन्यथा क्या वजह होगी की एक आईएएस से चार गुना वेतन पाने वाला "”एक्ज्कयूटिव "” चौथाई वेतन पर सरकार की सेवा करने आए ??? आज कल के सफल छात्र प्रतियोगी परीक्षाओ मैं नहीं वरन कारपोरेट जगत के लाखो के पैकेज की ओर जाते हैं | आज कल अखिल भारतीय सेवाओ के अफसर भी अपने बच्चो को कारपोरेट जगत की नौकरी के लिए प्रेरित करते हैं | तब ऐसे मैं यह प्रयोग कैसे सफल होगा