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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 15, 2012

MS SUBBULAKSHMI : KANAKADHARA STOTRAM

आरोप और उनकी जांच कौन करें ?

                               आजकल मौसम हैं आरोपों का और   उनकी जांच की मांग का , पर इसमें एक दिक्कत यह हैं की --जांच कौन करें ? क्योंकि  पुलिस और जांच की दीगर  संस्थाओ को ''जन नेता '' पहली फुर्सत में अविश्वास के योग्य बताते हैं ।चाहे  सी बी आई  हो या कोई और संसथान उनके लिए सब सर्कार के ''पिठू ' हैं , लिहाजा उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता । फिर जब जांच सर्कार के किसी मंत्री की हो या उस से जुडे आदमी की हो तब तो उनकी बात सुनने में बड़ी तर्क सांगत लगती हैं ।भले ही विवेचना करने पर ऊपर की यह धरना गलत साबित हो ।अब  बात करें अदालती जांच की , तो उस जांच की भी रिपोर्ट  पुलिस को ही सौपी जाती हैं । क्योंकि हमारी न्याय व्ययस्था  में अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने का दायितव  उन्हें ही सौंपा गया हैं ।सजा दिलाने के लिए मुक़दमा चलाया जाना जरूरी हैं , जंहा सबूतों के आधार पर ही कारवाई  की जाती हैं ।पर आजकल इन ''जन नेताओ ''को  जल्दी फैसला देने वाली व्यस्था की दर्कार  रहती हैं ।आम आदमी का रहनुमा हनी वाले भूल जाते हैं की अगर रोज -बा -रोज भी सुनवाई हो तो भी वक़्त तो लगेगा ।पर वे तो मुद्दे के गरम रहने तक ही फैसला चाहते हैं क्योंकि  वे अपने मुद्दे को ज्यादा वक़्त तक नहीं गरमा सकते ,क्योंकि मीडिया एक ही बात को पब्लिक को कितने दिनों तक ''पेश ''करती रहेगी ।अक्सर  देखा गया हैं की मीडिया में आये मुद्दे अदालती  कसौटी पर बिखर जाते हैं ।वह इन वतन के रहनुमाओ के लिए लाभ दायक नहीं होता ।इसी लिए वे आईसी व्यस्था चाहते हैं जिसमें उनके द्वारा चाहे गए वक़्त के भीतर ही मामले का फैसला हों ।अब इस के लिए तो कोई नया प्रावधान संविधान में करना होगा ।क्योंकि वर्त्तमान व्यावस्था में तो संभव नहीं , इसलिए विचार करना होगा की क्या किया जाए ? यह लेख इसी लिए हैं ।

                                               सभी दल और अदालतों के जज भी इस तथ्य को मानते हैं की हमारे यंहा लंबित मुक़दमों की संख्या लाखो में हैं , जिला से लेकर उच्च न्यायलय और सुप्रीम  कोर्ट में भी यह संख्या लाखो में हैं , फिर इसका हल क्या हैं ? चाहे सर्कार कांग्रेस के नेतृत्व वाली हो या भा जा प् के नेतृत्व वाली हो सभी बस कहते रहते हैं की  न्यायादिशो  की संख्या में  बढोतरी होनी चाहिए , कोई मजबूत कदम इस और नहीं उठाया जाता ।आखिर क्यों ।क्या सरकारों के पास संसाधनों की कमी हैं अथवा  उच्च और उच्चतम  अदालतों के लिए योय लोग नहीं मिलते , क्योंकि बहैसियत वकील उनकी आमदनी जो एक माह में होती हैं वह इन अदालतों के जज साहबान को साल भर की वेतन -भत्ते के रूप में मिलती हैं ।एक दिन की पैरवी के लिए दस लाख रुपये लेने वाले कानून मंत्री  तो बनते हैं पर अदालतों में बैठना उन्हे तौहीन लगता हैं ।आपसी बातचीत में  ये लोग अक्सर कहते सुनी जाते हैं की दो दिन की प्रक्टिस  में ''इनके''दो माह की तनख्वाह निकल आती हैं ।सभी डालो में ऐसे नेता हैं जो इस श्रेणी में आते हैं पर बयां देने के अलावा और कुछ नहीं करते ।यंहा तक जिस सदन के वे सदस्य हैं उसमें भी वे इस मामले में कोई सार्थक कदम नहीं उठाते हैं ।
                           अब इस स्थिति में  जिस से की फैसला जल्दी आये जांच और फैसले की ''इंस्टेंट ''मांग तो बेकार ही होनी हैं , मजे की बात यह हैं की मीडिया भी इस हालत से बाखबर हैं पर खबर को चटपटा बनाने के लिए त्वरित जांच और फैसले की मांग को वह भी हवा देता हैं , जिस से की टी ऑर पी  बढे ।इसी लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खबरों में सिवाय बार -बार के दुहराव के कोई नयी बात नहीं होती हैं ।इनके यंहा एक वाक्य हैं जो न्यूज़ रूम में बोला जाता हैं ''आज इस मुद्दे को खेल जाओ '' मतलब यह की लोगो को सूचित करने के बजे ''मजे ''लेने के लिए खबर ''बनायीं ''जाती हैं ।इसलिए लगता हैं की इनके संवादाताओ को समाचार एकत्र करने के बजाय कुछ ''खोद '' निकालने की जिम्मेदारी दे गयी हो ।अतः इन्हे अगर खबर बनाने वाले इंजिनियर कहा जाए तो  कम न होगा  क्योंकि आखिर ''स्टिंग' या डंक ओपरेसन भी तो खोदने जैसा ही तो काम हैं ! 

                                 अब दो सवाल हैं की जांच कौन करें ?जिस से की फैसला जल्दी आये ? साथ मैं यह भी सवाल हैं की क्या इलेक्ट्रोनिक  मीडिया का कोई ''स्वयं सिद्ध ''नियम भी हैं की एक खबर कितने देर तक चलायी जाए या  पक्ष -विपक्ष को बराबर का समय दिया जाए की नहीं ? यूँ तो मीडिया सरकार और उसमें बैठे लोगो के लिए ''विवेकाधिकार '' की सुविधा समाप्त की पैरवी करता हैं तो क्या आपने काम में भी वह इस अधिकार को छोड़ेगा ?उम्मीद तो कम हैं क्योंकि यह मुद्दा बड़ी जल्दी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मन जायेगा , इस से यह भी सिद्ध होता हैं की मीडिया खुद के लिए '' स्पेशल  नियम चाहता हैं ।क्या यह वाजिब होगा ?आखिर मीडिया द्वारा लगाये गए आरोपों की जांच के लिए भी तो कोई एजेंसी हो। तभी तो आम लोगो को लगेगा की न्याय हुआ हैं ।