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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 22, 2021

 

हैं | वैसे भी पुरानी कहावत हैं "”हिलले रोज़ी बहाने मौत "” जिसका अर्थ हैं की रोजी मिलने का कोई ना कोई मौका होता हैं , और जाने वाले के लिए कोई न कोई बहाना या कारण होता हैं | यही कोरोना के रोगियो की मौत के बारे में भी हैं , दिल्ली के बत्रा अस्पताल के डाक्टर ने चैनल को बताया की "”ऑक्सीज़न की कमी से दिल का धड़कना बंद हो जाता हैं – इसलिए वह हार्ट फेल से हुई मौत में गिना जाता हैं | जैसे कुपोषण से हुई मौतों को सरकार दस्त से हुई मौत बताती हैं | “” इसीलिए मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तथा गुजरात आदि की सरकारो ने अस्पतालो को निर्देश दिया था की की कोरोना मरीजो की मौत के सर्टिफिकेट में कोरोना को कारण नहीं लिखा जाये | अनेक अस्पतालो ने तो मौत का कारण का कालम ही खाली छोड़ दिया |

Jul 21, 2021

 

राजद्रोह कानूनों और काँग्रेस नेताओ की हत्या का इतिहास

देश में राजद्रोह के आरोप ब्रिटिश शासन काल में लगाए जाते थे क्यूंकी तब भारत एक साम्राज्य का हिस्सा था | देश के प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने सही कहा की राजद्रोह का कानून आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी और तिलक जैसे नेताओ पर लगा | आखिरी राजद्रोह का मुकदमा लाल किले में कर्नल ढिल्लन और सहगल तथा शाहनवाज़ के खिलाफ चला था | वे ब्रिटिश फौज छोड़ कर सुभाष चन्द्र बॉस की इंडियन नेशनल आर्मी में चले गए थे | जिनकी पैरवी में मदन मोहन मालवीय -जवाहर लाल नेहरू और कैलाश नाथ काटजू तथा बहुत से काँग्रेस के नेताओ ने काला कोट पहन कर की थी | उसके बाद आधा दर्जन नेताओ की राजनीतिक हत्या हुई पर "”””देसद्रोह "” कानून के अंतर्गत कारवाई नहीं हुई | पर आजकल प्रधान मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को "” धम्की के एक फोंन से ही "”राज़ द्रोह या देश द्रोह "” का कानून अमल में आ जाता हैं |

भीमा कोरेगाव्न और काकोरी से प्रेसर कुकर बम की बरामदगी में एक कामन बात हैं ----------दोनों के ही आरोपी क्रमश प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री की हत्या का "” का षड्यंत्र कर रहे थे ! अब पेगासास कांड या कहे भारत का वाटर गेट कांड से यह तो संकेत मिलता ही हैं की भारत सरकार की एजेंसिया लोगो के मोबाइल और कम्प्युटर की "”जासूसी करा रहा थी "” ! जिसका सबूत भीमा कोरेगाव्न केस में गिरफ्तार लोगो के खिलाफ लगाए गए आरोप हैं | यालगर परिषद भी नाम हैं इस कांड का ,जिसके आरोपी आरोपी उच्च शिक्षित है इस लिए उनके लैपटाप में सबूत बताए गए | जबकि काकोरी और लखनऊ में गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी मुस्लिम हैं | उन पर आरोप हैं की वे अल -कायदा जैसे अंतराष्ट्रीय आतंकी संगठन के सदस्य हैं | जिसने उन्हे प्रैशर कूकर बम बनाने की तकनीक के साथ प्रदेश के नेताओ की हत्या करने का निर्देश दिया था ! ऐसा उत्तर प्रदेश पुलिस के कानून एवं व्यसथा के महानिदेशक का दावा हैं |

अब उत्तर प्रदेश पुलिस की आतंक विरोधी दस्ते ने मौके से प्रेसर कुकर और गंधक तथा पोटाश आदि बरामद किया हैं | ये सभी विस्फोटक बनाने के काम आते हैं | हाँ छोटे -मोटे पटाखे भी इनहि सब से बनते हैं | “” अल कायदा "” जैसे संगठन जो आतंकी घटनाओ के लिए "”” सी फोर "” जैसे विस्फोटक का इस्तेमाल सीरिया और अफगानिस्तान में करते हैं -----वे अपने स्लीपर सेल उआ पुलिस की भाषा में कहे तो "” माँड्यूल "” को इतने घटिया और प्राचीन तरीके का इस्तेमाल करने की सलाह देंगे ! जम्मू काश्मीर में जनहा आतंकी घटनाओ का सबसे ज्यड़ा '’’प्रकोप'’’ है वनहा भी इस विधि का इस्तेमाल नहीं पाया गया ! सोचने और विचार करने की बात है |अब सच क्या हैं वह तो अदालत में ही तय होगा ----और यह भी निश्चित है की अदालत में इन मामलो की सुनवाई भी सालो ले सकती हैं , जैसा भीमा कोरे गाव्न में हो रहा हैं , की आरोपी हिरासत में ही फादर स्टेंन स्वामी की मेडिकल सुविधा के अभाव में मौत भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक दाग दे गया हैं | वह इसलिए की बिना अपराध सिद्ध हुए भी एक व्यक्ति को बंदी गृह में जान गवानी पड़ी !!!!!

मोदी सरकार की एक "””आदत है की अपनी हर असफलता के लिए 70 साल के कुशासन को दोष देना "”” जैसे उनका शासन तो सतयुग के राजा हरिश्चंद्र का राज हैं !

2- काँग्रेस नेताओ का जितना खून इस लोकतन्त्र के लिए बहा उसका भी तो हिसाब करो सत्तर साल में !


देश में राजनीतिक विरोधियो की हत्या का इतिहास तो राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को बिरका भवन से प्रारम्भ होता हैं | जब कट्टर हिंदुवादियों ने अपने "” पागलपन "” में एक महामानव की हत्या की ! यद्यपि वे सरकार में किसी किसम की भागीदारी नहीं कर रहे थे " बस वे हिन्दू - मुस्लिम और अन्य धर्मो को एक साथ रहने की बात कर रहे थे |

2-- देश में दूसरी राजनीतिक हत्या पंजाब के मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरो की 6 फरवरी 1965 को दिल्ली -चंडीगड राजमार्ग पर रसोई नमक ग्राम के पास हुई थी हत्यारे नेपाल भाग गए थे जिसे तत्कालीन डीआईजी अश्वनी कुमार की टीम ने नेपाल में जा कर गिरफ्तार किया | तब मुख्य मंत्री की हत्या के मामले में देशद्रोह या राजद्रोह की धाराये नहीं लगी थी !!!!

2 बी ---- दूसरी राज नैतिक हत्या तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्रा की भागलपुर में हुए विस्फोट में हुई थी | राजद्रोह का धारा इसमें भी नहीं लगी थी इसलिए यह मुकदमा 40 साल चला !!!

2 सी – देश की प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या उनके सिख अंगरक्षक द्वरा 31 अक्तूबर 1984 को उनके निवास पर कर दी गयी | ---तब भी उस मामले में राजद्रोह की धराए नहीं लगी | भारतीय दंड संहिता के तहत जांच और मुकदमा चला | और सज़ा हुई !

2 डी--- 22 मई 1991 को पूर्व प्रधाना मंत्री राजीव गांधी की चुनाव प्रचार के दौरान श्री लंका के लिट्टे नमक आतंकवादी संगठन की एक महिला द्वरा आतमघाती बम से उड़ा दिया गया | मुकदमा चला उनही आईपीसी की धाराओ में , उसकी अपराधी आज भी जेल की सज़ा काट रही हैं | यह गांधी परिवार की सदाशयता थी की राजीव गांधी की बेटी प्रियंका ने उससे जेल में मुलाक़ात की और सार्वजनिक बयान में कहा की "” हमने उसे उसके गुनाहो के लिए नाफ़ कर दिया हैं "””


2- - पंजाब में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को 31 अगस्त 1995 को बम से उड़ा दिया | उस अपराध के आरोपी आज भी जेल में हैं | जब मोदी सरकार द्वरा बेअंत सिंह के हत्यारो को जेल से रिहा करने की खबरे छपी तब उनके पोते गुरणित सिंह जो की सांसद हैं -उन्होने संसद में सवाल पुच्छा की क्या मोदी सरकार मुख्यमंत्री के हत्यारो को माफी देकर रिहा कर रही हैं ? तब गृह मंत्री ने अमित शाह ने इस बात का खंडन किया | इस कांड की भी जांच राज द्रोह या देशद्रोह के काले लनून के तहत नहीं हुई वरन भारतीय दंड संहिता के तहत ही हुई |

2-एफ - मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार में मंत्री लिखिराम कांवरे की बालाघाट में उनके गाव के निवास से नक्षसलियों ने अपहरण कर उनकी गला काट कर हत्या करदी | मुकदमें फिर भी वर्तमान विधि के अंतर्गत चले | और अपराधियो को सज़ा हुई |

2जी इन घटनाओ के बाद छतीसगड में काँग्रेस के समूहिक नेत्रत्व की जिस प्रकार हत्या की गयी उसकी मिसाल मिलना कठिन हैं | पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल तथा प्रदेश काँग्रेस अध्याकाश पटेल समेत 25 मई 2013 को सात लोगी को की समूहिक हत्या की घटना हुई | उस समय प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे रमन सिंह ! तब भी सिर्फ जांच हुई राजद्रोह का कानून नहीं लगे गया


!!! अंत में यही कहना हैं की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जिन प्रधान मंत्रियो पर आरोप लगा रहे हैं की उन्होने देश को बर्बाद किया – भ्रस्ताचर किया , वे भूल जाते हैं की उन्होने अपनी जान भी देश के लिए क़ुर्बान की | जबकि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथा को अपने प्राण का इतना भाय हैं की वे एक एसएमएस या मोबाइल काल पर अथवा यूपी पुलिस की तरह "”खुफिया "” सूचना पर कुकर बम की थ्योरी बता कर राज्य भर में मुस्लिमो को गिरफ्तार करते हैं !

मोदी सरकार के समय में सर्वाधिक राजद्रोह के और यूएयपीए तथा एनएसए आदि के तहत उन कानूनों में आरोपियों को गिरफ्तार करते हैं ---जिसमे जमानत का प्रविधान नहीं हैं | इस प्रकार 8 साल या दस साल तक आरोपी जेल में रहने के बाद "”बेदाग "” हो कर पर उम्र के सुनहरे साल खोकर जेल से बाहर आता हैं | उसकी बेगुनाही बेकार हो जाती हैं --क्यूंकी सरकारी कागजो में उस "”बेगुनाह "” के बिताए सालो की भरपाई की जिम्मेदारी "”””किसी की नहीं है --कानून के अनुसार !!! कितना अचरज हैं की सरकरे दुश्मनी निकलने अपने विरोधियो के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर रही हैं ---और कोई अदालत सरकार को जिम्मेदार या गुनहगार नहीं साबित कर पा रही है !
आखिर में तो वह सरकार हैं जिसका चेहरा कोई नहीं है !

















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Jul 14, 2021

 

आबादी अब समस्या हो गयी, मोदी जी समाधान -शक्ति नहीं

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर में या भारत में औद्योगिक संगठन को संभोधित करते हुए देश की आबादी को सदैव समाधान और शक्ति ही निरूपित किया | परंतु अब शायद उनको अपना रुख बदलने पर आरएसएस और योगी आदित्यनाथ ने मजबूर कर दिया ! मोदी जी के लिए यह ,बंगाल के चुनाव में पराजय के उपरांत , जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में उनकी नेत्रत्व परिवर्तन की मुहिम "”असफल " हुई उसी श्रंखला में यह तीसरी पराजय हैं !

भागवत उवाच :- कुछ समय पूर्व संघ सरसंचालक मोहन भागवत जी ने कट्टर वादी हिन्दुओ की मुसलमानो को देश से बाहर करने की धुन की भर्त्सना की थी ,उससे लगा था की वे समाज में सभी धर्मो और जातियो के बीच "””समरसता "” के समर्थक हैं | परंतु आबादी नियंत्रण के योगी आदित्यनाथ की मुहिम ---- कानून द्वरा आबादी पर नियंत्रण के प्रयास का समर्थन , चित्रकूट में संघ की बैठक में जिस प्रकार किया हैं | वह प्रधान मंत्री मोदी के विचारो को रद्द करती हैं ! उन्होने इतना ही नहीं दिल्ली हाइ कोर्ट के उस फैसले का समर्थन किया -जिसमें देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का सुझाव दिया गया था | पर सभी भारतीयो का डीएनए एक कहने वाले डॉ भागवत जी यह भूल गए की भारत ऐसे विशाल देश में भिन्न -भिन्न आस्थाओ और धर्मो और जातियो के लोगो में अनेक प्रकार की विभिन्न परंपराए हैं | जिनको वे लोग सदियो से अमल कर रहे थे | जिनको कानून द्वारा बंद नहीं कराया जा सकता | कानून द्वरा आबादी नियंत्रण के प्रयास को बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया हैं | आशा हैं देश के राज्यो में अनेक प्रदेशों में गैर भाजपाई सरकारो के मुख्य मंत्री भी केंद्र और बीजेपी की इस पहल का विरोध करे | दो बच्चो से अधिक के परिवार को सरकारी सुविधाओ से वंचित करना उन संतानों को "” अकारण दंड "” देना होगा जो अपने जनम के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं | “” चीन में ऐसा प्रयोग बीस साल पहले किया गया था , जिसका दुष्परिणाम अब आए हैं | फलस्वरूप चीन के वर्तमान कम्युनिस्ट शासन को इस कानून को खतम करना पड़ा ! क्या हम दूसरे की गलती से सबक नहीं ले सकते !

2;- समान नागरिक संहिता कितनी संभव है ? कामन सिविल कोड को भारत ऐसे देश में लागू करना असंभव नहीं तो अशांति और आशंतोष का कारण तो बनेगा | भारतवर्ष में वेदिक धरम में करमकांडो के लिए दो विधिया है जिनका पालन चारो वर्णो के लोग करते आ रहे हैं | सर्व प्रथम हमे यह जानना जरूरी हैं की , चार वर्ण की व्यव्स्था विंध्या पर्वत अथवा नर्मदा नदी के उत्तर में ही पायी जाती हैं | अर्थात ब्रामहन - छत्रिय-- वैश्य और शूद्र | सैकड़ो वर्षो में व्यवसाय के फलस्वरूप एक वर्ग और बना - पिछड़ा वर्ग | जिसकी आबादी देश में लगभग एक चौथाई या 25% है | इनका ज़िक्र हमारे धार्मिक साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं { कम से कम मई ऐसा पाता हूँ } जाट - गुज्जर आदि | मुगलो और अंग्रेज़ शासन काल में पेशे और पद के दायित्व के कारण भी कई जातियो का उद्भव हो गया |जैसे कुलकर्णी और पटेल | मूलतः ये लगान वसूली के पद थे ,जो बाद में वंशानुगत हो गए फिर वे सरनेम या कुलनाम हो गया | समान नागरिक संहिता का आधार यदि चार वर्ण की वेदिक व्यवस्था के अनुसार होगा ,अर्थात उत्तर भारत में प्रचलित "””मिताछरा "” विधि में प्रत्येक वर्ण के यज्ञोपवीत से लेकर अंतिम संस्कार के नियम बताए गए हैं | वेदीक धरम में जन्म से लेकर सोलह संस्कारो का वर्णन हैं | परंतु वह उल्लखित चार वर्णो के बारे में हैं |

जैसे सनातन धर्म के मानने वाले की अंतिम क्रिया दाह संस्कार हैं , परंतु विंध्या के नीचे ब्रांहण भी जमीन में समाधि दिये जाने की परंपरा हैं | उदाहरन के रूप में तामिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जय ललिता जी | वे कर्नाटक के ब्रांहण परिवार में जन्मी थी | कर्नाटक में अनेक संप्रदाय के सनातन धरम के लोगो को समाधि देने की परंपरा हैं | कट्टर वादी हिन्दू इस प्रथा को "”दफन "” करना बताते हुए म्र्तक की धार्मिक पहचान पर ही प्रश्न उठा सकते हैं |

दाह संस्कार करने वाले को आम तौर पर म्र्तक का "”वारिस "” स्वीकार करने की परंपरा हैं | परंतु निसंतान लोगो को "”पन्च अग्नि "” अर्थात पाँच लोगो द्वरा मुखाग्नि देना | अब उसका वारिस कौन होगा ? ऐसे अनेक सवाल हैं जो समान नागरिक संहिता लागू करने में आएंगे , न्यायालयों को अध्ययन कर के निर्णय देना होगा , यह कोई मशीनी प्रक्रिया नहीं हैं ,जो कुछ नियमो में बांध दी जाये | यह मानव समाज के एक तबके द्वरा सदियो से उनके "”कुल"” में मान्य परिपाटी का सवाल है | न्यायशास्त्र में कहा गया हैं की यदि कोई परंपरा या पर्पटी --कानून बनने से पूर्व की हैं तब उसे ही कानून की मानिता मिलेगी ,शर्त यह हैं की वह समाज और राज्य के लिए हानिकारक ना हो |



Jul 12, 2021

 

सत्तातंत्र की सच की शपथ और जमीनी हक़ीक़त का अंतर !

उत्तर प्रदेश के पंचायत के चुनावो ने योगी सरकार की गवर्नेंस की हक़ीक़त को देश की जनता के सामने ला दिया हैं ! ग्राम पंचायतों के सदस्यो से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष और फिर ब्लाक प्रमुखो के चुनाव में जिस प्रकार राज्य के नेत्रत्व और प्रशासनिक तंत्र ने कानून और निर्वाचन नियमो की ओर से आँख मूँद कर --सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों को येन - केन प्रकारेंन "”विजयी होने का प्रमाण पत्र "” जारी करने की कवायद की हैं , उसने लोकतन्त्र को ::एक तंत्र '’ में बदलने की बानगी दिखा दी हैं कि किस प्रकार तहसीलदार - अनुभागीय अधिकारी और जिला अधिकारी चुनावो द्वरा किसी भी गिरोह को सत्तासीन करा सकते है | इससे राजनीतिक दलो कि उपयोगिता और "””मतपत्र"” कि पवित्रता खतम हो जाती हैं |

वनही लोकतंत्र को प्रजातन्त्र और नागरिक के फैसले निरर्थक बन देते हैं | अभी तक केंद्रीय चुनाव आयोग संसदीय और विधान सभा में जिस प्रकार सरकार कि "यथा स्थिति "” बनाए रखने के आरोप राजनीतिक दलो द्वरा लगाए जाते रहे हैं , उनही कि पुनराव्रती उत्तर प्रदेश के राज्य चुनाव आयोग ने भी कि हैं ! हर सरकार का मंत्री सच और सदाशयता और निरपेक्षता कि शपथ लेता हैं | पर लगता हैं कि अब उत्तर प्रदेश में यह शपथ केवल सरकार के "हमराहियों "” के लिए हैं , राजनैतिक विपक्षियों के लिए नहीं हैं |

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने ब्लाक प्रमुखो के चुनाव में जिस प्रकार गैर भाजपाइ उम्मीदवारों को नामजदगी का पर्चा तक दाखिल नहीं करने दिया ---- उसने बिहार में मतदान केन्द्रो को बाहुबलियो और सत्ता का संरक्षण प्राप्त द्वरा लूटा जाता था ,उसकी याद दिला दी | एवं जिस प्रकार दलितो और पिछड़े वर्ग के मतदाताओ के वोट बिना उनके गए बटन दबा कर डाले जाते थे ---उसकी याद दिला दी ! कुछ लोगो का मानना है कि यह 2022 में हने वाले विधान सभा चुनावो का "”रिहर्सल "” हैं | अगर यह सच हैं कि बीजेपी नेत्रत्व ऐसा सोच – समझ कर कर रहा हैं ,तब एक बार फिर "”जंगल राज "” का उदय होगा | जो हमारे स्वतन्त्रता संग्राम एन वयस्क मताधिकार के मौलिक और संवैधानिक अधिकार को "”हड़प कर लेगा "” ? क्या आरएसएस ऐसी संस्था का यही उद्देश्य हैं कि देश में केवला उन लोगो को ही शासन और सरकार बनाने कि प्रक्रिया में भागी बनाया जाये ,जो उनके समर्थक हो ? अगर ऐसा हैं तब भारत को चीन या रूस ऐसे एकतंत्र कि देश बनने से रोका नहीं जा सकता ! होने को वनहा भी "”” चुनाव और मतदान कि प्रक्रिया होती हैं , पर चीन में चुनावो में केवल एक ही प्रत्याशी होता हैं , जिसे मतदाता {कम्युनिस्ट पार्टी } के सदस्य या तो समर्थन कर सकते हैं या विरोध ----बस इतनी ही आज़ादी वनहा हैं | क्या उत्तर प्रदेश में वही ढंग अपनाया जा रहा हैं ? जिस प्रकार पंचायत चुनावो में निर्विरोध लोग निर्वाचित हुए हैं वैसा तो आज़ादी के बाद के चुनावो में कभी नहीं हुआ ! देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के चुनाव में भी उनके खिलाफ प्रत्याशी खड़ा हुआ था | कोई भी राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध नहीं हुआ ! फिर ऐसी कौन सी लहर उत्तर प्रदेश में बहने लगी कि ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर ब्लाक प्रमुख और ज़िला पंचाट के अध्याछ बन गए ?? 1952 और 1957 के लोकसभा चुनावो में केवल तहरी - गडवाल संसदीय छेत्र से वनहा के महाराजा ही निर्विरोध चुने गए थे | क्यूंकी उत्तराखंड केदारनाथ मंदिर का संरक्षक माना जाता था | जो उन्हे दैवीय छवि ,जनमानस में देता था | बाकी कोई और उदाहरण नहीं हैं |

उत्तर प्रदेश कि आज़ादी के तुरंत बाद बनी विधान सभा में एक प्रख्यात समाजवादी नेता ने गोविंद वल्लभ पंत मंत्रिमंडल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बलते हुए कहा था कि "””” अध्यक्ष महोदय मुझे सदन में असत्य बोलने का अधिकार चाहिए , क्यूंकी सच तो वही माना जाएगा जो वक्ते हुकूमत कहेगी हम सच भी कहेंगे तो उसे तो सत्य मन नहीं जाएगा "” | लगता हैं उनके वचन आज आम आदमी के लिए हक़ीक़त बन गए हैं | इसीलिए तो सारे राज्य में पंचायत चुनावो में जिस प्रकार कि धांधली और अन्याय हुआ हैं और हिनशा हुई हैं -----उसके बाद मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ टीवी पर पत्रकारो से यह नहीं कहते कि "”” चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए हैं | जनता ने बीजेपी को भरपूर विजयी बनाया हैं "” जबकि उनही कि सरकार का पुलिस मोहकमा कहता हैं कि चुनावी हिंसा में 150 से ज्यादा लोगो के वीरुध मामले दर्ज़ किए गए हैं !

एक ओर बीजेपी हिन्दू और मुसलमानो में दरार डालने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने कि बात कह रही हैं | जिसमें दो से अधिक संतान वालो को नौकरी और सरकारी सुविधाओ से वंचित करने का प्रविधान किया जाएगा | वनही दूसरी ओर श्रीमति इन्दिरा गांधी के परिवार नियोजन के नारे "”” हम दो ,हमारे दो "” नारे कि खिल्ली उद्दाई ज्ञी थी | एक बात आरएसएस और बीजेपी को समझ लेनी होगी कि परिवार नियोजन के तहत आपातकाल में नसबंदी कार्यक्रम के कारण ही जनता ने कांग्रेस्स को सत्ता से बेदखल किया था | इनके साथ भी वैसा ही होगा अगर जनता इस फैसले और और चुनाव में डनडा और सरकरी तंत्र से मनमानी करने का परिणाम भी 1977 जैसा होगा | अगर समय रहते सरकार और सत्ता धारी दल ने अपने फैसलो में सुधार नहीं किया |

चीन में कानून बना कर केवल एक बच्चे कि अनुमति का कानून बना था , परिणाम यह हुआ कि अब बीस साल बाद उसे अपने फैसले पर ना केवल पुनर्विचार करना पड़ा , वरन जिन लोगो के दूसरी संतान को सरकार ने दूसरे मटा पिता को दे दिया था , वे आज अपने "”जनक और जननी "” कि खोज कर रहे हैं | जापान में स्वतः लोगो ने इतना नियंत्रण किया वनहा का युवा विवाह से ही विरत हो गया | औद्योगिक उन्नति के लिए वनहा के लोग अपने काम के प्रति बहुत गंभीर हैं | परिणाम स्वरूप दस -दस घंटे काम करते हैं | फलस्वरूप आज वनहा विवाह बहुत कम हो रहे हैं | केवल अमीर लोग ही विवाह और परिवार बना रहे हैं | इससे वनहा के बहुसंख्यक युवा और युवती पचास -साथ साल कि उम्र में एकाकी हो रहे हैं | एक कमरे में ही उनकी ज़िंदगी कटती हैं | फलस्वरूप व्रधों में आतम्हत्या कि घटनाए इतनी बड़ी कि सरकार को वनहा "”नागरिकों के एकाकीपन को दूर करने के लिए एक मंत्रालय बनान पड़ा | सिर्फ किसी धर्म को निशाना बना कर कानून बनाना अंततः देश और राष्ट्र को बहुत हानिकारक होगा |

Jul 10, 2021

 

सु की और नेवलनी की भांति क्या तेलटुंडे और अन्य भी ??

फादर स्टेंस्वामी की हिरासत में मौत के बाद अब यह सवाल उठने लगा हैं की क्या भीमा कोरे गाव के अन्य अभियुक्त भी हिरासत में ही जीवन काटेंगे ? यह सवाल इसलिए उठा रहा हैं क्यूंकी दिल्ली हाइ कोर्ट द्वारा दिल्ली के दंगो में एन आई ए द्वरा यू आ पी ए के तहत बंदी बनये गए जे एन यू के छात्रो को " जमानत दे दी गयी "” न्यायमूर्ति ने 250 पन्नो के फैसले में साफ किया की जिन अपराधो को क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के तहत मुकदमा चलाया जा सकता हैं । उनके लिए यह विशिस्त कानुन का उपयोग गलत हैं | लगता हैं राज्य नागरिक के मौलिक अधिकारो और उनकी सुरक्षा के बारे में अनदेखी की गयी हैं !

हालांकि दिल्ली पुलिस ने 15000 पेज की अपनी चार्ज शीट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के वीरुध अपील की , जिनहोने जमानत को तो बरकरार रखा ,परंतु यह कह दिया की इस फैसले {हाइ कोर्ट } को नजीर न बनाए | इसका अर्थ यह हुआ की यू अ पी ए के अंतर्गत बंदी बनाए गए लोगो को जमानत इस फैसले के आधार पर नहीं दी जाए ! सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ने फैसले पर टिप्पणी की 250 पेज के फैसले को पद कर ही इस पर अंतिम रॉय दी जा सकती हैं | अब देखना होगा की सुप्रीम कोर्ट प्रधान न्यायाधीश रमन्ना के विचार की "” रूल ऑफ ला हना चाइए नाकी रूल बाई ला , विचारो के अनुसार क्या राज्य के बनाए कानून नागरिकों के संवैधानिक अधिकारो की अवहेलना "”विधि " बनाकर करने की छुट सरकार को दी जाएगी ? यद्यपि नागरिकों के सरकार के वीरुध श्ंतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार को दबाया गया तब विधि के शासन की बजाय कानून द्वारा शासन ही होगा , जो लोकतन्त्र के लिए दुर्भाग्य पूर्ण होगा |

म्यांमार और रूस में नागरिक निरीह प्रजा बनकर रह गए

सैनिक शासन में और एकतंत्र जैसे रूस और चीन में "”नागरिकों को उतना ही अधिकार हैं जितना सरकार दे "” भले ही वनहा के संविधानों में नागरिक के अधिकार कितने ही लिखे हो | यूरोपीय देशो में ही {रूस -लिथुवानिया - यूक्रेन - तथा कुछ अन्य देशो को छोड़ कर } आज भी चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी है - राजनीतिक विचारधारा के आधार पर राजनीतिक दल हैं जो नागरिकों की आवाज सरकार के सामने उठाते हैं | परंतु अफ्रीका और लातीं अमेरिका के कुछ देशो में चुनावो में हिनशा और हत्या तथा सत्ता के दुरुपयोग की खबरे आती हैं | भले ही न मामलो पर सयुक्त राष्ट्र संघ में विचार हो परंतु नागरिक तो वनहा भी कष्ट भोगते हैं | उन सभी लोकतांत्रिक देशो में जनहा सत्ता परिवर्तन चुनावो के माधायम से होता हैं , वनहा पर राष्ट्रपति अथवा मंत्री गण शपथ तो लेते हैं की वे "”विधि द्वरा स्थापित राज्य की संप्रभुता को अक्षुण रखूँगा "” परंतु वे नागरिकों के अधिकारो की रक्षा की बात नहीं करते हैं !! ऐसा होता हैं |

उत्तर प्रदेश में पंचायतीराज के चुनाव में हिंसा :-

मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के राज में जिस प्रकार ज़िला अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में केवल सत्तारूद पार्टी के प्रत्याशियों को ही पुलिस और प्रशासन का संरक्षण मिला ,और वे अपना नामजदगी का पर्चा निर्वाचन अधिकारी के पास दाखिल कर पाये | दुसर दलो के उम्मीदवारों को और उनके प्रस्तावको को अदालत के परिसरो में प्रवेश ही नहीं करने दिया गया | प्र्त्यशियों के नामजदगी के पर्चे पुलिस द्वारा लेकर रख लिए गए | राज्यव्यापी चुनावो में हिंसा के द्राशयों में , जब लोग दूसरे दलो के लोगो को मार पीट रहे थे तब बंदूकधारी पुलिस एक मूक दर्शक की भांति खड़ी थी | लखीमपुर खीरी में नामजदगी के समय जब कुछ गुंडे एक राजनाइटिक महिला की धोती खिच रहे थे तब भी --पुलिस उपस्थित थी ! पर उसे बचाने का कोई उपाय नहीं किया | इस घटना का वीडियो जब लाखो लोगो के पास पहुँच गया तब राज्य सरकार ने छ पुलिस जनो को निलंबित किया | पारा कब तक यह निलंबन रहेगा यह भी एक सावला हैं , क्यूंकी जन आक्रोश को शांत करने के लिए किए गए इस फैसले से राज्य व्यापी हिनशा का प्रतीकार तो नहीं होता |

हालांकि इन चुनावो पर राज्य निर्वाचन आयोग की चुप्पी भी शंका को जनम देती हैं | भले ही समाजवादी पार्टी के नेता इन घटनाओ के लिए मुख्यमंत्री को दोषी बताए , पर होगा क्या ? क्या इन राज्य व्यापी चुनावो में जिस प्रकार सरकारी अमले और पुलिस की बदौलत बीजेपी ने विजय श्री हासिल की – क्या उसे लेकर कोई न्यायपालिका में अर्जी लगाएगा ? जिससे की अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनावो में ऐसी ही घटनाए ना दुहराई जाये ! अगर वक़्त रहते सरकार ने इन घटनाओ पर "”न्यायपूर्ण " कारवाई नहीं की , तब आशंतोष का लावा फूटेगा | जो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के लिए घातक होगा |

अगर हालत नहीं सुधरे और चुनावो में पारदर्शिता नहीं हुई सभी दलो को ईमानदारी से भाग नहीं लेने दिये गया और पुलिस के सहारे संवैधानिक अधिकारो का अप हरण होता रहा तब निश्चित ही यह पुलिस स्टेट बन जाएगी !



Jul 7, 2021

 

राजनीति लोगो को बांटती है - पर सतना में राजनीतिक मुहिम ----------------------------------------------------------------------------

गत 4 जुलाई को गाजियाबाद में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच में डॉ इफतिखार की पुस्तक विमोचन के अवसर पर आरएसएस प्रमुख डॉ भागवत ने जब कहा की सभी भारतीयो का डीएनए एक है चाहे वे हिन्दू हो अथवा मुस्लिम ,तब बीजेपी और उसके संगठनो द्वरा मुसलमानो के प्रति विष वमन पर रोक लग्ने की आशा जागी थी | उन्होने यह भी कहा था की वे यह विचार "” ना तो अपनी छवि के लिए कह रहे और ना ही इसका इस्तेमाल वोट के लिए कह रहे हैं "” तब लगा था की देश के सबसे बड़े सान्स्क्रतिक संगठन के मुखिया वास्तव में दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय सदभाव और एका के हामी और समर्थक हैं | परंतु तीन दिन बाद जब वे सतना ज़िले के चित्रकूट में नानाजी के राष्ट्रीय क्रशि विस्वविद्यालयवे में 10 जुलाई से अखिल भारत प्रांत प्रचारक की बैठक के लिए वे 6 जुलाई को पहुंचे , तब उनके बयान पर शंका होने लगी ! क्यूंकी यह बैठक 2022 में देश के पाँच राज्यो में होने वाले विधान सभा चुनावो में संघ की रूप रेखा तय होना हैं | संघ की इस सालाना बैठक बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है | क्यूंकी यह अपने सत्तर से ज्यादा आनुषंगिक संगठनो के अलावा बीजेपी की जमीनी पकड़ और उसके विरुद्ध अशन्तोष की खोज -खबर भी लेती हैं | वह मतदाताओ को बीजेपी के पक्ष में किए जाने वाले उपायो पर भी विचार मंथन करती हैं | संघ का बहुमुखी चेहरा अक्सर लोगो को भ्रम में डालता हैं | 1980 के लोकसभा चुनावो के पूर्व तत्कालीन जनता पार्टी अध्यछ चन्द्रशेखर ने संघ को अनेक मुखो वाले सर्प की संज्ञा दी थी | उनका कहाँ था की जनहा राजनीतिक पार्टियां अपने संगठन के साथ चुनाव लड़ती हैं | वनही जनसंघ जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में अवतरित हुई , उसको आरएसएस के सत्तर से अधिक इकाइयो के गैर राजनीतिक लोगो का साथ मिलता हैं| जो धरम से लेकर जाती या परंपरा के नाम पर मतदाता को प्रभावित करते हैं | गौर तलब हैं 1977 में जब उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव के नेत्रत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी , तब समाजवादी नेता राजनारायन ने "”” दोहरी सदस्यता "” का सवाल उठाया था | उन्होने जनसंघ के कोटे से बने विधायकों द्वरा अलग बैठक किए जाने पर आपति उठाई थी | उनके अनुसार आरएसएस का राजनीति से "”लेना -देना नहीं हैं " तब उससे जुड़े लोग जनता पार्टी के सदस्य हो कर "” अपने -आपनो की बात कैसे कर सकते हैं ?

यह इतिहास इसलिए लिखना जरूरी था की की संघ की आ'’राजनीतिक निर्लिप्तता "”” पहले भी विश्वसनीय नहीं रही हैं , इसलिए डॉ भागवत के कथन को भी पूरी तरह मान लेना संभव नहीं हैं | हमेशा चुनावो के पहले इसी प्रकार संघ अपने 44 प्रांतो में विभाजित देश के प्रमुखो से , अपने राजनीतिक संगठन की मदद के उपायो पर विचार हेतु विमर्श करता हैं | उत्तर प्रदेश समेत पाँच राज्यो में होने वाले विधान सभा चुनावो में यह तैयारी इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं ,क्यूंकी बंगाल में करोड़ो रुपये और हजारो बाहरी कार्यकर्ताओ तथा केंद्र की मशीनरी के अप्रत्यकश उपयोग तथा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की थियेतरीक्क और भीड़ जुटाओ प्रबंधन के बाव जूद भी बीजेपी दहाई में सिमट गयी | त्राणमूल में दल बदल कराने के बावजूद भी ममता बनेरजी की ताकत कम नहीं हुई | नरेंद्र मोदी के राजनीतिक यात्रा में पहले दिल्ली और अब बंगाल अब उनके लिए वाटर लू साबित हुआ हैं | संघ भी वनहा असफल रहा , लोगो का मूड पहचानने में |

जिससे देश में बीजेपी और मोदी की

अविजित छवि खंडित हो गयी हैं | जिस प्रकार संघ के जमीनी कार्यकर्ता या नेता "” अहंकार की भाषा और व्यवहार सार्वजनिक जीवन "”में करते हैं , वह भी लोगो को संघ और बीजेपी से विमुख कर रहा हैं | आम आदमी जो संघ की हिंदुवादी सोच का हामी हैं --------वह भी राम मंदिर के विवादो और अब मथुरा पर मंदिर बनाने के मांग को उचित नहीं मानता | वह शिक्षा ---स्वास्थ्य और व्यव्यसाय की चिंता करने लगा हैं | खास कर पहले लाक डाउन की त्रासदी और बाद में कोरोना काल में हुई मौतों पर केंद्र सरकार की और योगी सरकार की असफलता ने आबादी के बड़े भाग को प्रभावित किया हैं | उत्तर प्रदेश के सत्तर फीसदी गावों में कोरोना ने लाखो परिवारों दंश दिया हैं | जिस प्रकार लोग अपने परिजनो का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाये वह =उनमें एक धार्मिक अपराध बोध भरता हैं | और घाव पर नमक छिड़कने वाला काम हुआ हैं की जिन गाव वासियो के घर के लड़के कमाने के लिए मुंबई और दिल्ली गए थे , वे सब क़र्ज़दार हो कर लौटे हैं | क्यूंकी उनकी वापसी में भी बस और ट्रक वालो ने उनको खूब लूटा है |

इतना ही नहीं मुस्लिम आबादी को इन तकलीफ़ों के साथ पुलिस के अत्याचारो को भी भुगतना पड़ा हैं | इतना ही नहीं दलित वर्ग को भी बलात्कार और दबंगों के अत्याचार का खूब सामना करना पड़ा हैं | पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी से अलग नौजवानो का एक संगठन काम कर रहा हैं | जो मायावती से टूटा है | पर बीजेपी या संघ से दूर हैं

उत्तर प्रदेश में ब्रांहण और दलित आबादी का प्रतिशत क्र्म्सह 12 प्रतिशत और 22 प्रतिशत है | विगत चुनावो में ब्रांहनों ने बीजेपी का समर्थन किया था | परंतु योगी आदित्यनाथ के "” ठाकुरवाद "” ने उनको सरकार से विमुख होने पर मजबूर कर दिया हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा ब्रांहनों को संतुष्ट करने के लिए उन्होने अपने अवकाश प्रापत आईएएस अधिकारी को भेजा था की वे संभवतः उप मुख्यमंत्री बन कर योगी जी के ठाकुरवाद पर "”नकेल " कसेंगे | परंतु योगी के "”हठ "” ने मोदी जी को झुका दिया | जो आज की राजनीति में आश्चर्यजनक माना गया | की किसी मुख्य मंत्री ने उनके निर्देशों की अनदेखी की !

अब सतना की बैठक में भागवत जी को ब्रांहनों ---दलितो और मुसलमानो को रिझाने के प्रतान करने होंगे | वरना उत्तर प्रदेश में बीजेपी की गाड़ी पटरी से उतर सकती हैं |