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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2022

 जेल भरी है ,अपराधियो से नहीं -आरोपियों से कौन जिम्मेदार है ?

 

कानून का राज़ यानि की संविधान के अनुसार देश का राजकाज चलना चाहिए – पर आज हक़ीक़त  इसके विपरीत हैं |कुछ हद तक देश की जांच एजेंसिया जिम्मेदार हैं , जो  आरोप लगाने  के लिए कोई प्रारम्भिक पुख्ता  कारवाई नहीं करती है , बिना सबूतो के सिर्फ रपट लिख कर ही वे किसी को भी हथकड़ी डालकर , दुनिया के सामने अपराधी घोसीट कर देती हैं | मीडिया में भी जांच एजेंसियो द्वारा की गयी गिरफ्तारी की कारवाई  को ज़ोर – शोर द्वारा  अंजाम दिया जाता हैं |अब ऐसे व्यक्ति की सामाजिक इज्ज़त का तो फ़ालूदा उसे हिरासत में लिए जाने से ही हो जाता हैं , क्यूंकी अखबार और टीवी के लिए तो यह एक ‘’और आइटम होता है -परंतु जो कानून के जाल में फँसता है –उसकी इज्ज़त -और उसके परिवार जनो की पीड़ा को समाज के सदस्य नहीं समझ पाते हैं |

                        कानुनन  पुलिस हो या सीआईडी या फिर केंद्र की सीबीआई हो या एन आई ए हो  सभी की कारवाई का यही हाल हैं | इन भारी भरकम अमले और अफसरो के वज़न वाली  संसथाओ  का सफलता प्रतिशत इनके वजूद और करोड़ो रुपये के खर्चे को  को – नकारता हैं !

बॉक्स -------------------------------------------------------

 आजकल इन एजेंसियो में एक और “”हाथ जुड़ गया हैं – ई डी यानि की हिन्दी में प्रवर्तन निदेशालय ! आजकल  बड़े – बड़े नेताओ के लिए सरकार का यही हाथ  मुफीद साबित हो रहा हैं | आरोप लगाने भर के लिए ही ! वैसे इनके मुकदमे सालो चलते हैं | हालत यह हैं की अनेकों बार अदालतों ने इन्हे  आरोप पत्र दाखिल करने में विलंब और अपूर्णता के लिए फटकार भी लगाई हैं ---पर  हुक्मरानो के इशारो पर कारवाई  में  बस गिरफ्तारी ही होती हैं -विवेचना तो सालो चलती हैं | और अभी सुप्रीम कोर्ट की तीन जजो की पीठ ने इन्हे और जबर बना दिया हैं | जिसमें कहा गया हैं की ई डी  की “”बिना वजह बताए गिरफ्तारी  और बिना  प्राथमिकी  दायर किए बगैर कारवाई  कानून सम्मत हैं !!  एक ओर सुप्रीम कोर्ट  का यह फैसला हैं ---जिसके अनुसार  बिना कारण और -सबूत के गिरफ्तारी  नागरिक की आज़ादी का हनन हैं – और हर नागरिक को जमानत का अधिकार हैं | वनही बिना सबूत और प्राथमिकी के ढ़ोल -धमाके के साथ  गैर बीजेपी  नेताओ की गिरफ्तारी  हो रही हैं |

            

अब ऐसे में यह न्यायिक विरोधाभास  लोगो को सोचने पर मजबूर करता हैं --- की आम नागरिक की आज़ादी संविधान के अनुसार उचित है या ईडी की कारवाई !  यह  एक उदाहरण हैं  की  देश में “”विधि का राज् हैं या विधि द्वारा राज़ है ? “” सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज  जनहा संविधान को सर्वोच्च  मानते हुए  नागरिक की रक्षा के

पछधर हैं वनही उनके कुछ “”ब्रदर “” राज्य के कानून के अनुसार  शासन को महत्व दे रहे हैं | हाँ एक बात और इन जांच एजेंसियो की “”योगयता “” को इस तथ्य से भी नापा जा सकता हैं की की हर मामले में “” उनका कहना  होता हैं की आरोपी  जांच की कारवाई में सहयोग नहीं कर रहा हैं !! मतलब यह की आरोपी को चाहिए की वह जांच एजेंसियो को अपने खिलाफ  सबूत इन अधिकारियों को उपलब्ध कराये !!  जबकि देश के कानुन के अनुसार किसी भी आरोपी को स्वयं के खिलाफ  गवाही या सबूत देने के लिए कानुनन  नजबूर नहीं किया जा सकता !  ऐसे जांच अधिकारियों के लिए तो “”निर्देशानुसार “ आरोप लगाने के बाद आरोपी को ही खुद अपने वीरुध  सबूत मुहैया  करना चाहिए ! हैं न  मजे की बात |

--------------------------------------बॉक्स एन्ड्स ----------        अब इन हालातो में  केंद्र सरकार भी इन एजेंसियो के माध्यम से  विरोधी दलो के नेताओ को ही अपना निशाना  बना रही हैं | एक भी सत्तारूड दल का सदस्य अथवा किसी बड़े व्यापारी या उद्योगपति  के वीरुध  ना तो कोई छापा  पड़ा और ना ही कोई गिरफ्तारी हुई ! क्या बैंको से अरबों – खरबो का क़र्ज़ लेकर “”डिफाल्टर”” होने लायक कर्ज़ो के लिए कोई कारवाई सरकार नहीं कर सकती ?  एक ओर घर बनाने के लिए गए क़र्ज़  की बकाया वसूली के लिए तो अखबारो में एक -एक पेज़ की बैंक नोटिस  छपती हैं , वनही अरबों रुपये के क़र्ज़ की किशते  नहीं चुकाने वाले उद्योगपतियों  के कर्जे की सूचना भी सरकार “”ज़ाहिर “” नहीं होने देती ! आखिर यह हालत न्याय के सामने  सभी नागरिकों के बराबर होने  का खुला उल्लंघन ही तो हैं | अफसोस यह हैं की सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के इस रुख को कानून सम्मत बता देती हैं |  यह कैसा न्याय है – इसे तो “”मत्स्य न्याय “” ही कहा जा सकता हैं |

 

             हाल ही में में सुप्रीम कोर्ट द्वरा  जमानत और विचाराधीन  बंदियो को लेकर दिये गए फैसले राज्य सरकारो और ज़िला न्यायालयों  द्वारा लागू नहीं किए जा रहे हैं |  आंकड़ो के अनुसार देश की जेलो में कुल 4.84 लाख बंदी हैं ,जिनमें सजायाफ्ता कुल 1.12 लाख ही हैं  शेष 3.71 लाख  हवालाती या विचारधीन  बंदी हैं !  यह  स्थिति एक ओर अपराध की जांच एजेंसियो  की कार्यप्रणाली  पर सवाल उठती हैं वनही  ज़िला स्टार पर न्यायिक अधिकारियों  की छंमता और योग्यता पर भी प्रश्न चिन्ह लगाती हैं | सुप्रीम कोर्ट के तीन जजो की पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया की  जमानत हर नागरिक का अधिकार हैं , जब तक कोई विशेस तथ्य नहीं हो जमानत की मनाही अधीनस्थ अदालतों द्वरा नहीं किया जाना चाहिए | संविधान के अनुसार हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट “” कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड “” है , जिसका अर्थ हैं की अधीनस्थ अदालतों को उनके निर्देशों  का पालन करना ज़रूरी हैं | परंतु  ऐसा वास्तविकता में नहीं होता हैं | अन्यथा  भारत की जेलो में अपराधियो से अधिक “”विचारधीन क़ैदी “ नहीं होते !

         मजबूरी यह हैं की अगर निचली अदालतों में इस फैसले को  को वकील अपने मुवक्किल की जमानत के लिए कोट  करता हैं तब भी ,मजिस्ट्रेट और ज़िला अदालते  इस  निर्णय  की “””अनदेखी “” करती हैं | फलस्वरूप  जेलो में आरोपी सड़ता रहता हैं |  लोकसभा में दिये गए आंकड़ो के अनुसार 23 हज़ार  बंदी 3 साल से 8 साल से बंदी हैं , भले ही उन पर आरोपित अपराध की सज़ा  इससे कम या बराबर ही क्यू ना हो ! अब इसे नागरिक की आज़ादी का हनन नहीं कहा जाये तो क्या कहा जाए ?

                         देश के प्रधान न्यायाधीश  रमन्ना ने अनेक बार  इस मुद्दे को सार्वजनिक मंचो से कहा  है की  बिना दोष सिद्ध हुए किसी को भी निरूध  रखना  न्यायिक प्रक्रिया की बड़ी चूक हैं |  अभी हाल ही में मध्य प्रदेश हाइ कोर्ट ने  छिनदवाडा के एक  मामले में राज्य सरकार  को चार लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया हैं | तथ्यो के अनुसार  क़ैदी को सज़ा पूरी होने के बाद भी चार साल तक नहीं रिहा किया गया था | उसकी अर्ज़ी पर अदालत ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए शासन को क़ैदी को मुआवजा दिये जाने का आदेश दिया | तथ्य के अनुसार  ज़िला न्यायलय  द्वरा  उक्त क़ैदी का रिहाई वारंट  समय पर नहीं जारी किया था , इसलिए वह जेल से बाहर नहीं आ पाया | अब क्या उस अधिकारी के खिलाफ कोई दंडात्मक  कारवाई नहीं होनी चाहिए जिसकी भूल के कारण एक व्यक्ति को चार साल तक बिला वजह

Jul 26, 2022

 

 किसके  एक्सप्रेस वे   मजबूत ?और किसके  धंस गए ?

 

          प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे का उदघाटन किया – और सड़क  एक माह में ही धंस गयी ! 14000 करोड़ की इस योजना ने चित्रकूट से मेरठ को जोड़ा गया | परंतु मोदी जी के जलाल को सह नहीं पायी और प्रथवि में समा गयी ! वनही  बीएसपी की मायावती द्वरा  आगरा से नोईडा का यमुना एक्सप्रेस वे आज भी फर्राटे  से चल रहा हैं |  पूर्वञ्चल  एक्सप्रेस वे  जो समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के समय बना   और जिसका पहला उदघाटन मुलायम सिंह ने किया था ,और जिसका दुबारा उदघाटन  प्रधान मंत्री मोदी जी ने किया -वह भी इतना मजबूत हैं की मोदी जी के विमान को सुल्तानपुर में इसी एक्सप्रेस वे पर लैंड  कराया गया था |  यह घटनाए यह सोचने पर मजबूर करती हैं की “”कुछ “” तो गड़बड़ हैं , की बीएसपी और समाजवादी शासन काल में निर्मित  राजमार्ग परियोजनाए  “”ठीक -ठाक “” हैं जबकि  भगवाधारी  योगी जी के राज में बनी पूर्वञ्चल एक्सप्रेस वे “”महिना भर भी ठीक से नहीं चल पाया ?  यह  योगी जी के राज काज के तौर -तरीके पर तो उंगली ही नहीं  शंका उठती है  की “” कमीशन का खेल निर्माण कार्यो को भरपूर तरीके से चल रहा हैं “”  तभी तो इतनी बड़ी घटना के बाद भी सदका का निर्माण करने वाले ठेकेदार के खिलाफ कोई कड़ी कारवाई नहीं हुई ,क्यू ?

                                 वैसे योगी जी का  रेकार्ड रहा हैं की वे  निर्माण के बड़े ठेके अपनों को ही देते हैं ---- इसका उदाहरण  वाराणसी में  फ़्लाइ ओवर के निर्माण के समय भहरा के ज़मींदोज़  हो जाने को लोग अभी तक नहीं भूले हैं | जब इस दुर्घटना को लेकर मीडिया में सरकार से सवाल पूछे जाने लगे तब पता चला की  यू पी ब्रिज कार्पोरेशन  को अपने ठेकेदार का नाम और पता ही नहीं मालूम ? शंका हुई की जनता ने प्रदर्शन और विरोध किया , लोगो ने काम बंद करने की भी कोशिस की -परंतु यू पी की पुलिस और पी ए सी की लाठी ने जनता के विरोध और सरकार के भ्रस्ताचर को तोप दिया !

                     उत्तर प्रदेश सरकार  में इस बड़ी “”दुर्घटना “” को  दल के अंदर वन  अप मैनशिप  की लड़ाई से भी जोड़ा जा रहा हैं | क्यूंकी इस घटना को लेकर लोगबाग  मोदी जी के सड़क के उदघाटन की बात करते हैं , की देखो प्रधान मंत्री जी द्वरा फीता काटे जाने वाली परियोजना की हक़ीक़त क्या हैं !  लोग इस बात की चर्चा कम करते हैं की  इस राजमार्ग  के निर्माण की ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हैं | एवं वे ही सीधे तौर पर  जिम्मेदार भी हैं | यानहा यह भी बताना समीचीन होगा की   योगी जी ने इसी पूर्वञ्चल एक्सप्रेस वे के निर्माण में अखिलेश यादव की सरकार पर भ्रष्टाचार  के आरोप लगते हुए जांच भी शुरू करा दी थी |  परंतु उसी राजमार्ग पर मोदी जी के विमान को लैंड कराकर  -उन्होने अंजाने में ही सड़क की मजबूती  को सेर्टिफिकेट  भी दे दिया |  सोचो अगर बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे पर विमान को लैंड कराते तब क्या होता ?

                            वैसे सड़क और पुलो के निर्माण के मामले में  बीजेपी सरकारो का रेकॉर्ड  खराब ही रहा हैं | उधर उतराखंड  में आल वेदर रोड  की परियोजना में जितनी घटिया निर्माण हुआ ,उसकी भी जांच  -जिम्मेदार को खोजने की कम और बचाने की ज्यादा हुई हैं |  दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा  बनवाए गए  फ़्लाइ ओवर  आज भी मजबूती से खड़े हैं | वनही  गुजरात में जी हाँ -प्रधान मंत्री के प्रदेश में  सूरत के पास  एक पुल उदघाटन के पहले ही भहरा कर गिर गया !  ऐसा ही कुछ  बिहार में भी हुआ  जनहा बीजेपी नितीश सरकार में  भागीदार है – वनहा भी पुल  उदघाटन के पहले ही गिर गया |

       मध्य प्रदेश में भी  राजधानी से  कुछ ही किलोमीटर  के फासले पर पर पुल को जोड़ने वाली सड़क बरसात में धंस गयी | जिससे की जबलपुर – होशंगाबाद का यातायात बंद हो गया | इस घटना पर  सरकार ने जिस सरकारी एजेंसी  की ज़िम्मेदारी थी उसके दो अफसरो को निलंबित कर दिया , जबकि इस एजेंसी के अध्याकाश स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही हैं | काँग्रेस ने उनसे इस दुर्घटना की ज़िम्मेदारी लेने की मांग की हैं

 

                इस परिप्रेक्ष्य में अगर हम दिल्ली में मोदी जी के सपने के सेंट्रल विस्टा के निर्माण को देखेंगे तो शंका होती हैं की क्या देश  का मशहूर औद्युगिक घराना टाटा  भी कनही इस कलंक का भागी तो नहीं बन जाएगा | क्यूंकी  नयी संसद और नए प्रधान मंत्री आवास का निर्माण का ठेका  इसी संस्थान के पास हैं |

Jul 24, 2022

 

दलबदल से मतदाता  की रॉय को  धोखा दिया जाता है            

       महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार को गिराने के लिए की जिस प्रकार  की कवायद  हुई उसने पूरे राष्ट्र की उस भावना को धावस्त कर दिया की “जनता का विश्वास  छला गया हैं | क्यूंकी  द्वरा जिन लोगो ने पाला बदल किया  वह  उनकी कुर्सी की लालच को दिखाता हैं |  फिर विधान सभा  के स्पीकर की नोटिस को जिस प्रकार वर्तमान सरकार के स्पीकर द्वरा  निरस्त किया गया , वह विधान सभा में बहुमत के फेर बादल का ही नतीजा हैं |

परंतु एक सवाल यह भी हैं की जिन लोगो के मत से दल बदल  करने वाले लोगो ने सरकार  गठित की ---क्या उन्होने उन मतदाताओ के विश्वास को  धोखा नहीं दिया हैं ! पाकिस्तान  की पंजाब अससेंबली  में पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान की पार्टी  के  दिया दिया 20 सदस्यो ने  पाला बादल कर हमजा शरीफ  की मुस्लिम लीग  से हाथा मिला कर उनकी सरकार बनवा दी | परंतु वनहा के सुप्रीम कोर्ट ने उन 20 विधायकों को ‘’ अयोग्य “” करार दिया | फलस्वरूप  वनहा उपचुनाव करने पड़े !  परंतु हमारे देस  में दल बदल पर अदालते   मौन रहती हैं ! क्यू ? क्या दल बदल  मतदाता की पसंद  को धोखा नहीं हैं ?  आखिर  जन प्रतिनिधित्व  कानून  ,जिसके तहत विधान सभा और लोकसभा के चुनाव  सम्पन्न होते हैं --- उनका अर्थ यह नहीं होता क्या की जिस प्रतिनिधि को वे चुन रहे हैं ,वह एक राजनीतिक दल का उम्मीदवार हैं – वह अकेला लाखो मतदाताओ के वोट और समर्थन  को  “” अपनी मर्ज़ी से नहीं बादल सकता “” अगर उसे  अपनी निष्ठा बदलनी हैं तब उसे दुबारा अपने मतदाताओ में अपनी हैसियत  परखना चाहिए | यह कानूनी और नैतिक रूप से उचित हैं | तब किस आधार पर दल बदल  को अदालते  अनदेखा करती हैं

निर्वाचन आयोग और सर्वोच्च न्यायालय :-  महाराष्ट्र  में शिव सेना की सरकार को अपदस्थ करने के लिए जिस प्रकार संसदीय मर्यादा  का उल्लंघन किया गया ,और जिस प्रकार करोड़ो रुपये  खर्च करके  विधायकों  को गोवा और गौहाटी  के पाँच सितारा होटल में ठहराया गया -और जिस प्रकार  उनको लाने – और जाने के लिए “””हवाई जहाज “” का उपयोग किया गया  वह सर्व विदित हैं | परंतु  ना तो भारतीय जनता पार्टी ने और ना ही मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे  ने  इसका खुलासा किया की की दलबदल के विधायकों की खातिरदारी तथा उनके आने जाने का खर्च किसने  भुगतान किया ! ईडी  जो करोड़ो के घोटालो की जांच करती हैं  -जो चिदम्बरम और गांधी परिवार को  “”शक “” के कारण ही पूछताछ करती हैं , उसे यह “”कांड “” शायद  दिखाई नहीं पड़ता ! क्यूंकी  इसके लिए केंद्र सरकार के हाकिमों ने  जांच की इजाजत नहीं डी | वैसे बीजेपी  खुद को इस मामले से अपने को अलग रखने का रूपक  रच रही हैं | परंतु आम्जनों में  सभी को   वस्तुस्थिति  पता हैं | फिर क्यू नहीं कोई कारवाई  होती ?

                वैसे  दलबदल के लिए जिस प्रकार  पैसे और प्रभाव  का इस्तेमाल महाराष्ट्र में हुआ  वह लोकशाही के लिए चिंताजनक हैं |क्यूंकी यह  खुलेआम वोटर की मर्ज़ी का उल्लंघन हैं | क्यू नहीं पार्टी से अलग होने वाले विधायक और सांसद को  पुनः  अपने मतदाताओ का मन जान्ने  का प्रविधान होता हैं |

 

हालांकि मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने  के लिए जब ज्योतिरदितय सिंधिया के नेत्रत्व में काँग्रेस से बगावत हुई थी ---- तब जिन कोङ्ग्रेस्सी विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी , उन्होने  बीजेपी के बैनर तले उप चुनाव लड़ा था |एवं  एक महिला विधायक इमारती देवी को छोडकर शेष को उनके मतदाताओ ने पुनः अपना विश्वास व्यक्त किया था |  जिससे की मौजूदा नेत्रत्व शिवराज सिंह सरकार पर मर्यादाहिनता का आरोप नहीं लगाया जा सका |  क्यूंकी उन्होने इन विधायकों को जनता से निर्वाचित होने के बाद सदन में स्थान दिया |

                              क्या बीजेपी के  शीर्ष  नेताओ को महाराष्ट्र  में  में यह भरोसा नहीं हैं की वे शिवसेना के बागी विधायकों को  पुनः मतदाताओ का विश्वास  प्रापत करने में सफल होंगे ? शायद इसी बात को लेकर शंकित शिंदे और बीजेपी दोनों ही  शिवसेना के संगठन पर “””कानूनी कब्जा करना चाहते हैं |  वैसे अभी यह लड़ाई  चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के पाले में हैं | चुनाव आयोग ने जनहा शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट को संगठन  पर दावो को 8 अगस्त तक प्रस्तुत करने का निर्देश दिया हैं |  अब संगठन का अर्थ अगर  संसदीय और विधायक दल हैं तब शिंदे गुट का वर्चस्व  साफ हैं | परंतु यदि संगठन का अर्थ  तालुका और ज़िला स्टार पर सदस्य और पार्टी पदाधिकारी हैं तब  ठाकरे परिवार  का दबदबा  अभी वनहा हैं | केवल  ठाणे की शिवसेना इकाई ही अभी तक शिंदे के समर्थन में  खुलकर आई हैं , शेष तालुका और ज़िला इकाइयो ने ठाकरे को ही समर्थन दिया हैं |

                                         अब सुप्रीम कोर्ट भी इस विवाद को साधारण विवाद नहीं मान रही हैं | इसीलिए उसने इस मुद्दे को “”संविधान पीठ “” में भेजने की कवायद शुरू की हैं |  अब यह पीआरआरटीएच पाँच जजो की होगी अथवा उससे अधिक की यह भविष्य के गर्भ में हैं |  परंतु इतना तो साफ हैं की सर्वोच्च न्यायालय भी इस पूरे प्रकरण में   धन के और पद के प्रलोभन देखना चाहता  हैं और उस पर अपनी खरी – खरी रॉय रखना चाहता   हैं | इसीलिए उसने महाराष्ट्र  विधान सभा  के स्पीकर  को निर्देश दिया हैं की वे अभी ठाकरे गुट के विधायकों की अयोग्यता  के बारे में कोई निर्णय “”नहीं”” ले | अब सरकार भले ही बीजेपी और शिंदे की हो पर तलवार तो उनके सर पर लटक ही रही हैं |

                          जनप्रतिनिधियों  द्वरा  मतदाता की मर्ज़ी जाने बगैर  मनमानी करने का उदाहरण पड़ोसी राज्य श्री लंका में दिखाई पड़ा हैं | जनहा राष्ट्रपति गोटाबाया  को जनता के आक्रोश के आगे देश छोड़ कर भग्न पड़ा | कितनी दयनीय स्थिति हैं की की राष्ट्रपति को अपना राष्ट्र ही छोड़ कर भग्न पड़ा | अब उन्हे मालदीव और सिंगापूर की सरकारो ने “”राजनीतिक शरण “” देने से इंकार कर दिया हैं |  इसका स्पष्ट अर्थ हैं की आप तभी तक राजसिंहासन  पर हैं जब तक जनता चुप है या चाहती हैं | परंतु एक बार आप के कारनामो से जनता परिचित हो गयी तब  तब आप को भागने के सिवाय कोई चारा नहीं हैं |  यह सबक सभी नेताओ के लिए हैं |

Jul 21, 2022

 

रेवड़ियों की बात कौन करे -जिनहोने “”लाभार्थी “” तैयार किए !

 

       हाल में ही प्रधान मंत्री ने एक भाषण में कहा की  राज्य सरकारो  द्वारा  मुफ्त में वस्तुए और सुविधाए देने की  रेवड़िया बांटने की नीति से प्रशासन और वितीय अनुशासन  को नुकसान पाहुचता हैं | बात भी कुछ हद तक वाजिब हैं , परंतु जब केंद्र मुफ्त राशन और किसानो को नकद राशि दे तब गैर बीजेपी सरकारे क्या चुपचाप बैठी रहे ! वनहा के शासक दल भी क्या अपनी छवि के लिए कुछ ना करे ?  केंद्र सरकार तो हिमांचल प्रदेश में अपना वोट बैंक बनाने के लिए   वनहा की सिरमौर घाटी के बाशिंदों को “”जनजाति का दर्जा “” देने की जुगत कर रही हैं | संविधान में आरक्षण के लिए उस वर्ग के लोगो का सामाजिक और आर्थिक और शिक्षा के छेत्र में उसी इलाको के लोगो से पिछड़ा होने की शर्त हैं | अभी तक तो यही आरक्षण की कसौटी हुआ करती हैं | अब सरकार अपने बाहुबली बहुमत और अपने राष्ट्रपति  के बल पर इस आबादी को जन जाती का आरक्षण दे कर  अपना “”वोट बैंक “” बनाने की जुगत कर रही हैं | अब ऐसा कानुनन हो पाएगा यह तो आगे देखना होगा |  अभी तक किसी खास वर्ग या ,जाती अथवा  जनजाति को ही “”आरक्षण “” का लाभ प्रपट होता रहा हैं | आरक्षण पाये वर्ग या जनजाति का उल्लेख संविधान की की अनुसूची में किया जाता हैं |  गौर तलब हैं की हिमांचल में अगले साल विधान सभा चुनाव होने वाले हैं , और मौजूदा बीजेपी सरकार से लोग काफी नाखुस हैं | मुख्य मंत्री  जयराम ठाकुर से वनहा के सेब उत्पादक किसान और बागबान  नाराज हैं | क्यूंकी उनका सेब पाँच रुपये में खरीद कर  बड़ी बड़ी कंपनी  दिल्ली  में 50 से 70 रुपये  प्रति किलो बेच कर भारी मुनाफा  कमा रही हैं | जबकि उत्पादको की लागत भी नहीं निकल रही हैं | यानहा आप पार्टी ने पंजाब की तर्ज़ पर अपनी चुनावी  रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया आप पार्टी के मुखिया  दिल्ली के मुख्य मंत्री  अरविंद केजरीवाल  के वित्त मंत्री  को एनफोर्समेंट डिरेक्टोरेट  ने बंदी बने हुआ है  ---आरोप हैं की उन्होने अपने सम्बन्धियो और मित्रो के साथ मिल कर रुपये की “” लाण्डरिंग”  की है ! हालां कि अभी तक कोई चर्ग्शीत अदालत में नहीं दाखिल की गयी हैं | बस ईडी  अभी तक विज्ञप्तियों द्वरा खबरों की सुर्ख़ियो में मामले को ताज़ा बनये हुए हैं |  अब हिमांचल के चुनाव  बीजेपी और प्रधान मंत्री और उनके सहयोगी पार्टी अध्यछ  नड़ड़ा  जी के लिए “”प्रतिस्था से अधिक साख “” का सवाल बन गए हैं | शायद इसीलिए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधान सभा में  बयान दिया की अगस्त  तक दिल्ली के शिक्षा मंत्री  मनीष सिसौडिया  को भी केन्द्रीय जांच एजेंसी  अपने लपेटे में लेकर बंदी बना सकती हैं | क्यूंकी  हिमांचल  के मुख्य मंत्री के पुत्र मोदी सरकार में  सूचना मंत्री है तथा  पार्टी अधयक्ष भी हिमांचली  हैं | अब ऐसे में अगर बीजेपी वनहा  भी पंजाब और बंगाल जैसी हालत में चुनाव  परिणाम पाएगी तो साफ हैं की  आगामी लोक सभा चुनावो के लिए