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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 9, 2020

भगवान के अपने देश में - कोरोना -अतिवर्षा से भू स्खलन -और बाढ और दुर्घ्त्नाओ से तबाही ?


भगवान के अपने देश में -कोरोना -अतिवर्षा  से भूस्ख्लन -और बाड़ और दुर्घटनाओ से तबाही ? 


केरल को भगवान का देश कहा जाता हैं , क्योंकि आज़ादी से पूर्व
यानहा के स्वामी भगवान पद्द्म्नाभ थे | त्रावणकोर और कोचीन के शासक उनके दीवान हुआ करते थे | राज्य का सम्पूर्ण शासन उनही के नाम से दीवान के नाम से करते थे | ऐसी परंपरा थी |कोई भी राजाज्ञा , त्रिवेन्द्रम स्थित स्वामी स्वामी पद्द्म्नाभ के मंदिर में रात्रि के समय पट बंद होने के पूर्व रख दी जाती थी | भोर में पट खोलने के बाद उस राजाज्ञा को ---भगवान की मंजूरी मान कर दीवान प्रजा में प्रसारित करते थे | अब यह सब कर्मकांड ---शासन को -धार्मिक मान्यता देता था | लोग शासन के फैसलो को
भगवान का फैसला मान कर स्वीकार कर लेते थे | इस कर्मकांड से प्रजा में शासन के फैसलो से तकलीफ भी होती थी तो उसे भी परमात्मा की इच्छा मानते थे ! इससे प्रजा में शासन के फैसलो से होने वाले कष्टो को , “”भाग्य अथवा प्रभु इच्छा "””के रूप में स्वीकार करती थी | आज भगवान का अपना देश महामारी -बाढ- भू स्खलन - चक्रवातों और दुर्घटनाओ से कराह रहा हैं , आखिर यानहा के लोगो से क्या अपराध हो गया की सुरम्य केरल -टूटे मकानो-- पानी में डूबे धान के खेतो --और सड़क तथा बिजली से महरूम हो गया है ????भू स्खलन से निकलती लाशों के द्राशय विचलित कर देते हैं |
जनश्रुति हैं एवं पौराणिक ग्रंथो के अनुसार केरल पर प्रह्लाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र दैत्य राज महाबली का राज था |उनके राज्य में प्रजा अत्यंत खुशहाल थी | महाबली महान दानी थे | उनके पास से मांगने वाला खाली हाथ नहीं जाता था |लोगो को अन्न की कमी नहीं थी , सभी अपनी परम्पराओ का पालन करते थे | उन्होने गुरु "”शुक्राचार्य "” की सलाह से अनेकों यज्ञ आदि करके स्वयं को इतना शक्तिशाली बना लिया था की देवराज इंद्र को अपना सिंहासन खतरे में लाग्ने लगा | तब उन्होने विष्णु जी से बाली से रक्षा का वचन मांगा | तब वे ऋषि काश्यप और अदिति के पुत्र बन कर वामन अवतार लिया | बाली अत्यंत दानवीर था | विष्णु ने बाली से तीन पग धरती मांगी , तब महाबली ने उनसे धरती नाप लेने का वचन दिया | तब विष्णु ने अपना त्रिविक्रम रूप दिखते हुए एक पग से धरती दूसरे से स्वर्ग और तीसरे के लिए जब उन्होने स्थान बताने को कहा ----तब महाबली ने अपना शीश आगे कर दिया |विष्णु ने उन्हे पाताल का राजा बना दिया | इस दिवस को मलयाली समुदाय बलिछलन कहता हैं | यह हर वर्ष 22 अगस्त से 31 अगस्त तक दस दिन का समारोह होता हैं | मलयाली समुदाय इस दिवस को "”तिरुयात्तम "” कहता हैं क्योंकि यह पर्व मलयाली कलेंडर के "”अट्टम "” माह मे आता हैं | इस पर्व की की इतनी मान्यता हैं की यदि किसी के पास साधन की कमी हैं तो उसे महाबली के स्वागत के लिए जमीन बेच कर भी स्वागत करने को कहा गया हैं | वामन अवतार का युग निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता , लेकिन हजारो साल से प्रजा की अपने राजा के प्रति श्रद्धा का यह अद्भुत उदाहरण हैं | महाबली का की मंदिर नहीं हैं {जनहा तक मेरी जानकारी हैं } परंतु उसके बावजूद भी केरल में सभी धर्म के लोग –चाहे वे सनातनी हो अथवा - ईसाई और मुस्लिम समुदाय के हो सभी महबली के स्वागत में सर्वस्व लगा देते हैं |



--राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पाती का प्रथम सिधान्त – दैविक सिधान्त ही हैं | जिसमें राजा को भगवान का प्रतिनिधि माना गया हैं |वैसे भी दक्षिण के लोग ज्यादा धरम भीरु होते हैं |यही कारण हैं की वनहा के मंदिरो की संपन्नता जग ज़ाहिर हैं | कहते हैं स्वामी पादयनाभ मंदिर के चार कोष्ठ में सोना - और रत्नो का भंडार हैं | सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति भेज कर मंदिर की संपाती की सूची बनाने का फैसला कुछ वर्ष दिया था | जिसके अनुसार 116 ट्रिलियन की अनुमानित स्वर्ण और विभिन्न रत्न इस मंदिर के गर्भ गृह में है | एक कोष्ठ को इसलिए नहीं खोला जा सका क्योंकि उसके द्वार पर शेसनाग की प्रतिकर्ति बनी हैं | ऐसी लोक मान्यता हैं की इसे वेदिक मंत्रो द्वरा ही खोला जा सकता हैं | यानहा यह बता देना उचित होगा की इन सज्जन ने मंदिर के गर्भ गृह को खुलवाने के लिए अर्ज़ी लगाई थी , उनकी असामयिक म्रत्यु हो गयी | शाही परिवार का भी कहना हैं की गर्भ गृह से छेडछाड किए जाने से बहुत भयानक विपदा आएगी | संयोग कहे अथवा भगवान का कोप की --गर्भ गृह खुलने के बाद से केरल -जिसे भगवान का देश कहा जाता हैं , प्रतिवर्ष आपदा --दुर्घटनाओ से जूझ रहा हैं | हाल ही में हुई विमान दुर्घटना भी एक हैं | कुछ वर्ष पूर्व भी इसी हवाई पट्टी पर ऐसी ही दुर्घटना हुई थी |
आज़ादी के पूर्व """भगवान के अपने देश"”” में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओ का जितना प्रसार था , उतना भारतीय गणराज्य के किसी आँय छेत्र में नहीं था | आज भी वनहा के लोग नब्बे प्रतिशत से अधिक शिक्षित हैं | कोविद 19 के प्रकोप में भी केरल ने इस आपदा का सफलता से मुकबा किया | यूएनओ ने भी इनके प्रबंधन की सराहना की थी | यानहा नागरिक जागरूकता और राजनीतिक चेतना भी भारत के आँय राज्यो से अधिक हैं | दुनिया के सभी भागो मलयाली नर्सो का एक इतिहास है | ब्रिटेन के शाही खानदान के आवास बकिंघम पैलेस में उनकी उपस्थिती इसका प्रमाण हैं | ब्रिटेन – अमेरिका और यूरोप तथा खाड़ी के देशो में यानहा के लोग काफी संख्या में हैं | इन लोगो द्वरा अपने परिजनो भेजे जाने वाला धन भारत के विदेशी मुद्रा के भंडार को काफी मदद देता हैं |
अब इसे स्वामी पद्मनाभ की कृपा कहे या महाराज बाली को अपनी प्रजा को आशीर्वाद की केरल आज अन्य राज्य की तुलना में काफी सम्पन्न हैं | यानहा की आबादी में अनेक समुदायो और धर्मो के लोग निवास करते हैं | परंतु यानहा धरम के आधार पर हिंसक झगड़े होने की घटनाए शून्य हैं | परंतु राजनाइटिक आधार पर हिंसक वरदते जरूर होती हैं | वे अधिकतर व्यक्तिगत कारणो दे होती हैं | मसलन वां पंथी और आरएसएस के लोगो के बीच |वैसे इस राज्य में राम का कोई पुरातन मंदिर नहीं हैं | यानहा के लोग विष्णु के रूपो की पुजा करते हैं |वे राम को मात्र एक अच्छे राजा के रूप में ही मान्यता देते हैं | क्योंकि उनके विश्वास के अनुसार राजा बाली आज भी सर्वश्रेष्ठ शासक हुए हैं | जिनहे विष्णु ने "”वामन अवतार"” में पाताल भेज दिया था | पोंगल का त्योहार हर समुदाय या धर्म का मानने वाला पूरी शिद्दत से मानता हैं | उनके स्वागत के लिए रंगोली बनाई जाती हैं | क्योंकि विष्णु ने बाली को एक दिन के लिए अपनी प्रजा से मिलने का वरदान दिया था , पोंगल वही दिन है !!!! भले ही राजाओ और महाराजाओ का युग समाप्त हो गया हो पर बाली आज भी मलयाली लोगो की स्म्रती में ज़िंदा हैं |
पूरे दक्षिण भारत में राम के मंदिर इक्का -दुक्का ही मिलेंगे ,और उनका कोई इतिहास नहीं हैं | जिस प्रकार की विष्णु -शिव अथवा कार्तिकेय अथवा विष्णु के अन्य रूपो के विग्रह के मंदिरो की भरमार हैं | चाहे तिरुपति हो या सबरीमाला अथवा मीनाक्षी मंदिर आदि | क्रष्ण के मंदिर जरूर उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर और त्रिपुरा में मिल जाएँगे | बीसवी सदी में स्वामी नारायण संप्रदाय ने गुजरात में इनके मंदिर बनयाए | आज वनह अभिवादन ही "”जय श्री कृष्ण "” बन गया हैं | जबकि मथुरा में लोग राधे -राधे कहते हैं | वनहा श्री जी हैं राजस्थान में मीराबाई के उपरांत एकलिंग का प्रभाव कुछ कम हुआ | वे राजपूत समाज के आराध्य हैं |
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नेपाल में राजशाही तक ----वनहा की प्रजा में मान्यता थी की --महाराजा के दर्शन से रोग - शोक दूर हो जाते हैं | परंतु "”समय "” ने उस राजशाही को ही समाप्त कर --वनहा की प्रजा को नागरिक में बादल दिया | जो अब अपनी सरकार खुद चुनते हैं |
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में स्वामी पद्मनाभ के त्रिवेन्द्रम स्थित मंदिर को - ट्रावंकोरे-कोचीन राजपरिवार की "”संपति
माना हैं '’| एवं राज्य सरकार को मंदिर प्रबंध से दूर कर दिया हैं | इतना सब कहने का तात्पर्य यह था की विगत तीन वर्षो से अतिवर्षा और बाढ से होने वाले भू स्खलन से होने वाली जन धन हानि को "” दैविक आपदा ही मानना पड़ेगा !”” भारतवर्ष की अधिकान्स वेदिक धर्मी सनातनी जनता , अपने जीवन में आने वाली आपदाओ को "”””विधाता का खेल "” कह कर सह लेती हैं !! जबकि वास्तव में वह कुछ "””मानवो "” की अन देखि अथवा कुछ लोगो का लालच ही इन आपदाओ का कारण होता हैं |
उत्तर -पूर्व के राज्यो में सिर्फ आसाम में ही बाढ का प्रकोप ज्यादा होता हैं -----हर साल होता हैं | ऐसा ही बिहार में भी दोहराया जाता रहा हैं | पीड़ितो को राहत के लिए अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं | परंतु समस्या हर साल ज्यू की त्यू बनी रहती हैं | हाँ नौकर शाही के लिए "” अवर्षा या सूखा और अति वर्षा या बाढ - एक सालाना पर्व की भांति हैं | प्रभावित जनता इन दुखो को परमात्मा की लीला बता कर संतोष कर लेता हैं | परंतु इस समस्या के निदान के लिए सरकारे कोई दीर्घकालिक योजनाए नहीं बनाती हैं |उनके लिए जनता या नागरिक एक बेबस भीड़ हैं -----जिसका चुनाव में राजनीतिक दल इस्तेमाल करते हैं | फिर पाँच साल के लिए उन्हे भूल जाते हैं |