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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 25, 2019


एक सरकार ऐसी -जो दूसरे के अनकिए की जवाबदेह !!

पंद्रहवि मध्य प्रदेश विधान सभा के चार दिनी सूक्ष्म सत्र ने कई मायनों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं | पहला तो यह की कहने को को तो यह चार दिन का था परंतु काम - काज सिर्फ दो दिन ही हुआ | पहला दिन पुलवामा और दिव्ङ्गतों को श्र्स्द्धांजली दे कर स्थगित हो गया | तो दूसरे दिन शिवाजी और संत रविदास जयंती के कारण अवकाश रहा ! लेकिन बचे दो दिन में सरकार ने जून 2019 तक के लिए 89 हज़ार करोड़ रुपये का लेखानुदान पारित कराया | वनही प्रदर्शंकारी किसानो पर मंदसौर में हुए गोली कांड – सिंहस्थ आयोजन हुए भयंकर भ्रष्टाचर तथा नर्मदा नदी के किनारे हुए अभूतपूर्व संख्या में पौधरोपण में हुई अनियमितताओ के मामले पर विपक्ष में रही काँग्रेस पार्टी और काँग्रेस सरकार के रुख मे 180 डिग्री का मोड आ गया हैं !! इसका कारण सरकार नामक संस्था की निरन्तरता हैं | इसे विरासत में मिले क़र्ज़ या दुर्भाग्य ही कहा जा सकता हैं |

अंतिम दो दिन में सम्पन्न हुए प्रश्न काल में सरकार को इन मुद्दो पर वनही जवाब देने पड़े ----जिनको लेकर उन्होने विधान सभा चुनावो में प्रदर्शन किए थे ! तत्कालीन शिवराज सरकार पर प्रश्न खड़े किए थे ---- भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे – किसानो के साथ पुलिस की बर्बरता का भी आरोप लगाया था | इत्फाक से यह तीनों संवेदनशील मुद्दो पर --जिन मंत्रियो ने जवाब दिया वे सत्ताधारी पार्टी के तीन गुटो के हैं | ज्योतिरादित्य सिघिया खेमे के वन मंत्री उमंग सिंगार – जिनहोने पौधरोपण मे शिवराज सरकार के दावे को पुख्ता किया – वनही मंदसौर मामले में ग्रहमन्त्री बाला बच्चन ने मंदसौर गोलीकांड पर हुई कारवाई को उचित बताया - और सिंहस्थ मामले में जयवर्धन सिंह { दिग्विजय सिंह के पुत्र } विवाद के घेरे में आए | मीडिया से शुरू हुए इस विवाद में घी का काम उमंग सिंघर का बयान कम कर गया --जब उन्होने दिग्विजय सिंह पर बिना उत्तर पढे प्रतिकृया देने और आलोचना में पक्षपात का आरोप भी जड़ दिया !! उन्होने सहयोगी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के उस बयान पर की "” दिग्विजय सिंह बड़े हैं -मंत्रियो को उनसे सीखना चाहिए | इस पर परिवहन विभाग के अवकाश प्रापत उप आयुक्त उमंग सिंगार ने कहा की मैं पंद्रह साल से विधायक हु --- हालांकि वे ताज़े - ताज़े पहली बार मंत्री बने हैं ! एवं यह सर्वविदित तथ्य हैं की --- शिवराज सरकार की लाख कोशिसों के बाद भी उनके नर्मदा किनारे पौधरोपन के कार्यक्रम को गिन्नीस बूक ऑफ रेकॉर्ड में जगह नहीं मिली --क्योकी वन विभाग द्वरा {सरकारी दावा } एक दिन में छह करोड़ पौधे लगाने का कोई पुख्ता सबूत सरकार नहीं दे पायी ? परन्तु वन मंत्री ने विधान सभा में उनके दावे का समर्थन किया !!! अब यह तो वही बात हुई की जब हम सरकार में नहीं थे तब यह दावा झूठ था ---अब हम सरकार में है तब यह कहे की "” सही थे "” |








Feb 24, 2019


पुलवामा के जवाब में जुबानी आक्रमण के माहौल से बदला मिलेगा ?

15 फरवरी को काश्मीर में सीआरपीएफ़ के जवानो को ले जा रही बसो पर एक आत्म घाती हमलावर द्वारा विस्फोटको से भरी कार को भिड़ा कर 40 जवानो को शहीद करने की घटना के बाद देश में रोष स्वाभाविक था | क्योंकि यह एक कायरना हरकत थी | पिछले नौ दिनो में मीडिया में सैनिको के अंतिम यात्रा और ----रोष प्रदर्शन तथा – जंगजू भासण की बाढ आ गयी हैं |
जनहा देश के विभिन्न भागो के सीमा सुरक्षा बल के सैनिको के शव ले जाये गए ---वनहा गम -शोक और छोभ ही छाया रहा | अमर रहे के नारो के मध्य बदल लेकर रहेंगे – और कनही कनही तो खून का बदला खून तक के नारे लगे | परंतु जिन पूर्व सैनिको ने अपने सपूतो को इस दुर्घटना में खोया वे अपने दूसरे बेटे को भी देश की सुरक्षा में देने की बात कहते रहे | राष्ट्र सर ऐसे रण बांकुरों की कुर्बानी पर नत मस्तक हैं | देश की सभी राजनीतिक दलोने भी सरकार के साथ खड़े दिखाई दिये | लेकिन राजस्थान के टोंक में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का भासण--'’इस बार सबका हिसाब होगा और {{बराबर }} पूरा हिसाब होगा "” यह कथन मशहूर फिल्म शोले में गब्बर सिंह की याद दिलाता हैं | अब किसका हिसाब होगा ? पाकिस्तान का या देश के उन लोगो का जो उनके कहने और करने पर सवाल करते हैं ? जिस प्रकार बीजेपी की आज की पहचान मोदी को बना दिया गया हैं | और राष्ट्र और देश का पर्याय सरकार को बनाने की कोशिस हो रही हैं वह चिंताजनक हैं |

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड {डक } ट्रम्प के बयान "” भारत कुछ बहुत बड़ा करने वाला हैं "” के बाद तो भावुक देशवासियों को लगने लगा की अमेरिका हमारी लड़ाई में मदद करेगा ! इसका मतलब यह हुआ की "”अगर हमारी कोई तैयारी भी हैं - जो देश को नहीं पता है ----वह भी दुनिया के इस दारोगा को मालूम हैं ! जबकि ट्रम्प अमेरिकी सैनिको को वापस बुला रहे है | चाहे वह अफगानिस्तान हो या सीरिया हो अथवा नाटो देशो में तैनाती हो | इस समय तो वे चीन से अपनी व्यापारिक लड़ाई लड़ रहे हैं |

मोदी जी और ट्रम्प के बयान के बाद "”बदला लेने की कारवाई "” अब उरी के आपरेशन की भांति गोपनीय और अचानक नहीं रह पाएगी {जैसा की संबन्धित फिल्म में दिखाया गया हैं }| अचानक किए गए हमले से आधी सफलता स्वयंसिद्ध होती हैं | परंतु विगत नौ दिनो से शांति मार्च और प्रदर्शन तो सारे देश में सभी समुदायो और इलाको के लोगो ने निकाल कर सरकार के समर्थन में खड़े होने का सबूत दिया हैं | परंतु पुलवामा के एक सप्ताह बाद जब काँग्रेस ने प्रधान मंत्री के घटना के समय उत्तराखंड में जिम कार्बेट पार्क में फोटो शूट किए जाने का खुलाषा किया ---तब जरूर लगा की इतनी बड़ी घटना की सूचना उन्हे तुरंत क्यो नहीं मिली ? तब आधिकारिक [प्रधान मंत्री कार्यालय } सूत्रो ने जिम कार्बेट में फोन नेटवर्क नहीं मिलने की बात की ! जिसके कारण उन्हे नब्बे मिनट बाद दुर्घटना की जानकारी मिल पायी ! यह है हमार संचार तंत्र , वैसे अखबारो की खबर के अनुसार और काश्मीर के राज्यपाल के सलहकार के अनुसार भी शासन को यह खुफिया जानकारी मिली थी की ---की आतंकवादी कोई बड़ा हमला करने वाले हैं | परंतु आशंका के अलावा कोई "”निश्चित समय या स्थान "” का उल्लेख नहीं था ! फलस्वरूप कोई प्रभावी कारवाई नहीं की जा सकी | यह हैं हमले की अचानक कारवाई का असर ----मुट्ठी भर आतंकवादी ,भले ही वे पाकिस्तान द्वरा पोषित हों भारत की सीमा के अंदर इतनी बड़ी कारवाई कर जाते हैं !! और हम सिर्फ भड़काऊ और जंगजू बयान देकर चुनावी मिट्टी को देश भक्ति के नाम पर खोद रहे हैं !!

नवभारत टाइम्स में हमारे साथी रहे वेद प्रताप वेदिक ने तो अपने कालम में इसे भारत -पाक : दिखावटी दंगल तक लिख दिया हैं | वे राश्त्र्वादी और देशभक्त पत्रकार माने जाते रहे हैं | मोदी जी ने उन्हे जैश ए मोहम्मद के नेता मसूद अजहर से बात करने को भेजा था ! उनके अनुसार नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधान मंत्री इमरान खान -दोनों अपने नागरिकों को "”यह बताने पर आड़े हुए हैं की वे आतंक वाद को खतम कर देंगे !!! पाक का पानी रोक देने की गडकरी की घोसना की वे कहते है की हमारे पास इतनी क्षमता हो की बांध बना सके! !!
उनके इस आलेख के बाद अमरतसर के निकट बाघा बार्डर पर प्रतिदिन होने वाली कवायद जिसमें भारत का सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान की ओर से वनहा का पाक रेन्जर्स की चालीस मिनट चलने वाली रोमांचक परेड की याद दिला देता हैं | जिसमे दोनों ओर से पुरुष और महिला सैनिक तुरेदार पगड़ी पहने -माथे तक अपने कदम उठाते और --दोनों ओर से एक दूसरे को अपनी मसल्स दिखाने का रोमांचक प्रदर्शन करते हैं | बीच -बीच में दोनों ओर के परेड को संचालित करने वाले अफसर दर्शको से "”एक दूसरे को हूट करने का इशारा करते हैं " और सीढीयो पर बैठे सैकड़ो दर्शक -------जवाबी हूटिंग प्रतियोगिता करते हैं | हालांकि बाद में लाउड स्पीकर इस पूरी ड्रिल को "” फ्रेंडली कवायद "” बताती हैं | तब समझ में आता है की यह जंगी तेवर सिर्फ अपने - अपने देश के नागरिकों को "” स्वयं को सुप्रीम दिखाने की झांकी भर हैं "” कुछ ऐसा ही शायद यानहा भी हो रहा हैं ----पर पूरे देश के स्तर पर !



इसके बरक्स हमारे साथी जयराम शुक्ल अपने आलेख में लिखते हैं की ज़िंदा रहना हैं तो मरना सीखो ! भाई ज़िंदा रहने के लिए तो कोशिस की जाती है -----मरने में तो कुछ छण ही लगते हैं | गीता मे क्रष्ण का संदर्भ देते हुए कहते है की "”कापुरुष मत बनो ! जयराम ने इसे हिजड़ा बताया है | खैर वे भूल गए की यह रणभूमि मे हुआ था {{ऐतिहासिकता प्र्मणित नहीं हैं } यानहा तो अभी रणभूमि भारत ही बना हुआ हैं !! क्रष्ण भी अंत तक शांति के लिए प्रयासरत थे | इसके लिए उन्हे दुर्योधन से अपमान मिला !! हम तो शांति वार्ता से दूर ---- बहिसकार की भाषा बोल रहे हैं | फलहारी सेंधा नमक से लेकर सूखे मेवे पाकिस्तान से ही यानहा आते हैं | अफगानिस्तान से लगे प्ख़्तूनिस्तान से मेवे भी
बाघा बार्डर से ही ट्रको में आते हैं | सीमेंट - सरिया - रेडीमेड वस्त्र का आयात हम करते हैं | अभी गुरुनानक की जन्म भूमि करतारपुर साहेब के गुरुद्वारे मे जाने के लिए पाकिस्तान ने '’’कारीडोर '’ देने का फैसला किया | लेकिन हम पाकिस्तान से अजमेर में ख्वाजा की दरगाह पर आने वाले जायरिनों को वीसा नहीं देने का फैसला किया हैं !!! हमे अपने गिरेबान में भी झाकना पड़ेगा |
अमेरिका के मौजूदा शासन का गोरे लोगो के प्रति मोह वनहा हुई अनेकों घटनाओ से पता चलता हैं | राष्ट्रपति ट्रम्प ने "”दास प्रथा "” के उन्मूलन करने वाले लिंकन के विरोधियो को बढावा दिया | उन्होने नीग्रो लोगो के लिए असम्मान जनक टिप्पणिया सार्वजनिक रूप से की | क्या इस कट्टर पंथी को लोकतन्त्र मे जगह दी जा सकती हैं ? जैसा की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके राजनीतिक मानस पुत्र भारतीय जनता पार्टी तथा अन्य संगठन --जिस प्रकार "” हिन्दी फोबिया "” से ग्रस्त है उसके अनुसार को उनसे सहमत नहीं वह "” भारतीय नहीं "”” हालांकि वे देश को भारत ना कह कर अक्सर हिंदुस्तान का संबोधन देते हैं | देश के समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करने की कोशिस वैसी ही हैं ----जैसी की ट्रम्प की "” काकेशियन "” मूल की | गैर सनातन धर्मी { उसमें भी वैष्णव }} और संघ समर्थित को ही देश का असली हकदार मानना | ट्रम्प अमेरिका के मूल निवासी "”रेड इंडियनों "” को असभ्य -मानते है ; अन्य प्र्वसियों को भी वे "”दख़लन्दाज़ "” ही कहते हैं | जबकि दुनिया जानती है की – अमेरिका यूरोप और अफ्रीका महाद्व्पो से आए लोगो से बसा हैं | इसी प्रकार भारत में भी विभिन्न धरम के लोग रहते हैं ---मूल रूप से वे यानही के हैं | मुहम्मद गोरी और बाबर के साथ तो मात्र कुछ तुर्की कुछ अफगान ही आए थे | आज देश के सभी मुसलमान उनके वंशज नहीं हैं | वे बंगाली हैं -मलयाली हैं - आसामिया हैं और पंजाबी भी हैं | और पाकिस्तान में भी सभी सुन्नी मुसलमान या पठान नहीं हैं | वनहा भी सिंधी और सीमा प्रांत में बसे सिख बसते हैं | हमारी लड़ाई क़ौमों की नहीं हो --वरन पड़ोसी देश की सरकार से हो | देश में चुनावी माहौल हैं ऐसे में धार्मिक उन्माद लोकतान्त्रिक चुनाव की प्रणाली को बर्बाद कर सकता हैं | आज विश्व में देशो पर आक्रमण बहुत खतरनाक विकल्प हैं | अमेरिका और उत्तर कोरिया को देखे | अथवा अमेरिका और ईरान विवाद को देखे --सब कुछ ज़बानी जमा खर्चा ही हैं | फौजी हमला भयानक हो सकता हैं | खासकर जब की दोनों राष्ट्र आण्विक हथियारो से सज्जित हो |

Feb 13, 2019


देश के सबसे बड़े धन पति पुत्र की अरबों की शादी में व्यस्त
छोटा भाई दिवालिया होने की कगार पर -अदालत में घूम रहा हैं

जी हाँ यह कहानी हैं अंबानी परिवार की – मुकेश अंबानी अपने पुत्र आकाश के विवाह का प्रथम निमन्त्र्न पत्र 12 फरवरी को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में देवता के चरणों में समर्पित कर रहे थे, |उसी समय उनके छोटे भाई अनिल अंबानी एरिक्ससन कंपनी को 550 करोड़ की देनदारी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पालन करने में विफल रहने पर ---अदालत की अवमानना झेल रहे थे ! विधि का विधान शायद इसी को कहते हैं -एक बाप के दो लड़के किस्मत ज़ुदा ज़ुदा | इन बड़े पैसे वालो में आदमी की हैसियत उसके पैसो से या उसकी राजनीतिक ताकत से नापी जाती है | इसीलिए विगत जून माह में मुकेश अंबानी की पुत्री ईशा का विवाह जब पिरामल परिवार में हुआ ----तब भी अनिल उनकी पत्नी टीना मुनीम और दोनों लड़को का इस इस समारोह में कनही आता पता तक नहीं था | वही आकाश की मंगनी समारोह के भव्य आयोजन --जिसमैं बालीवूड के बड़े सितारो को तो डांस करत्ने के अनेक वीडियो सोश्ल मीडिया में आते |परंतु उनमें परिवार के छोटे भाई का कोई अतापता नहीं था !! उम्मीद की जा रही हैं की अनिल के दोनों लड़के आकाश की बेचलर्स पार्टी -जो 23 --25 फरवरी तक स्विट्ज़रलैंड में होने वाली हैं ,उसमें शामिल नहीं किया जाये | तब 9 मार्च के विवाह के भव्य समारोह का निमंत्रण भी मिला होगा या नहीं --कहा नहीं जा सकता | इन पारिवारिक आयोजनो में घर की सबसे बड़ी महिला धीरु भाई अंबानी की विधवा कोकिला बेन का चुप रहना भी सवालिया निशान लगाता हैं |

ये वही अनिल अंबानी हैं जिनके लिए कहा जाता हैं की सरकार ने राफाईल विमानो की खरीद के लिए – मान्य कारोबारी नियमो को शिथिल कर इनकी कंपनी रिलायंस नेवल को भारत में विमान के कल -पुर्जे बनाने और विमान के हिस्सो को असेंबल करने का ठेका ड्साल्ट अविएशन ने किया था | जिसको लेकर काँग्रेस सहित विपक्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा रहा हैं| | कुछ लोगो का मानना हैः की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से घनिष्टता के बावजूद मुकेश अंबानी विपक्ष के निशाने से बचना चाहते है | क्योंकि उनकी टेलीकॉम और ऑइल के गोदावरी बेल्ट में तेल निकालने के मामले में मोदी के बाद की सरकार कोई कानूनी कारवाई करना नहीं शुरू कर दें | क्योकि तब उन्हे भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पद सकता हैं <जैसे अभी उन्हे छोटे भाई कर रहे हैं |

हालांकि गुजरात के कई हीरा व्यापारी जो मुकेश अंबानी के "”समधी मोहता "”” के पासंग भी नहीं होंगे | परंतु उनमें से अनेकों ने परिवार के मांगलिक अवसरो पर अपने कर्मचारियों को मकान और कार देकर अपनी खुशिया बांटी हैं | परंतु शायद मुकेश अंबानी बॉलीवूड और होलीवूड के सिने जगत के लोगो की भांति "”चमकदार -धमकदार आयोजन से अपनी स्थिति {जिसके बारे में लोगो की धारणा है }को जताना चाहते होंगे | लेकिन यह सब कुछ उन लोगो के लिए -उन लोगो में -उनही लोगो द्वारा किया जाने वाला हँगामा होगा ---जो धन के वैभव के ऐसे प्रदर्शन के आदी हैं | रिलायंस समूह के कर्मचारी तो बस किस्से ही सुनेंगे |आम हिन्दुस्तानी बीते समय के राजे - रजवाड़ो की शादियो के वैभव प्रदर्शन से तुलना करेगा | वह इसी में खुश होकर संतुष्ट हो लेगा | कभी कभी तो उस उस निराकार शक्ति के न्याय पर छोभ भी होता है -----इतनी असमानता पर | वर - वधू के कल्याण की सभी कामना करेंगे यह हमारी आरी वेदिक सभ्यता और संस्कार हैं | परंतु मुकेश अंबानी जरूर अपने अनुज के लिए अमर सिंह नहीं बन रहे हैं |

कम से कम धीरुभाई अंबानी द्वरा स्थापित औद्योगिक साम्राज्य के ‘’’आधा हिस्से ‘’ पर दिवालिया होने की कारवाई जनहा अनिल अंबानी को ज़मीन पर ला देगी , वनही मुकेश को लोग यही एहसास दिलाते रहेंगे की वे एक असफल अनुज के अग्रज हैं | साहू जैन ऊद्द्योग समूह में -तथा बिरला समूह जेके समूह में भी विरासत के विभाजन के बाद --कोई एक ही परिवार के नाम को रोशन कर पाया | बजाज हो गोदरेज हो वनहा भी यही कहानी है |



यूं तो देश के जाने - माने पारंपरिक घराने टाटा -बिरला या मफ़्त्लल -रूईया -जेके ग्रुप आदि जो ब्रिटिश काल से चले आ रहे थे , और जो औद्योगिक एकाधिकार कानून के तहत आते थे ------उनका पराभव बीनस्वी सदी के अंत तक हो चुका था | केवल टाटा समूह ही एक मात्र इसका अपवाद हैं | शायद इसका कारण है की इस ग्रुप की औद्यगिक इकाइयां एक ट्रस्ट द्वरा नियंत्रित होती हैं | हालांकि इस ट्रस्ट में केंद्र सरकार का भी दखल हैं | उनकी ओर से एक व्यक्ति बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर में होता हैं | इस ग्रुप की सांझी विरासत ही इसकी ताकत हैं | इस समूह के मुखिया वैभव प्रदर्शन की बीमारी से बहुत दूर हैं | सादगी भरा जीवन और सहज लाइफ स्टाइल सेठ -सेठीयों -चेटटियारो से अलग करती हैं | राजनीति से भी इस समूह की दूरी स्पष्ट हैं | नवल टाटा द्वरा चुनाव लड़ने के कारण उन्हे समूह की मुखियागिरी से वंचित कर दिया गया | कहते है की इनके यानहा अफसरो को रिश्वत खिलाने की मनाही हैं | अब देश की भ्रष्ट अफसरशाही और राजनीतिक तंत्र में कैसे ज़िंदा हैं ,यह खोज का विषय हो सकता हैं | अनेक ऐसे उद्यमो में ,जनहा शासकीय अनुमति लेना टेड़ी खीर है ,वनहा कैसे काम चलता होगा | टाटा डोकोमो का पराभव इसी तथ्य का उदाहरण हैं | टाटा समूह में वे खुद अरबपति नहीं होते ---भले ही वे अरबों की संपति या उद्योग का नियंत्रण करें | कहते हैं एक बार किसी ने अंबानी के वैभव पूर्ण व्ययहार और टाटा हाउस की सादगी में अंतर का कारण जानना चाहा - क्योंकि टाटा हाउस अंबानी से संपाती और औद्योगिक इकाइयो के मामले में कम नहीं है --- फिर क्यो टाटा के डाइरेक्टर अपनी कार भी खुद ही चलते हैं - निजी समय में | दूसरी ओर मुकेश अंबानी के साथ उनके अधिनास्थों की फौज चलती हैं | वे महंगी से महंगी गाड़ी में चलते हैं ? तब रत्न टाटा ने कहा था की अंबानी व्यापारी है और हम उद्योगपति हैं | कहने का मतलब था की उद्योग की हैसियत उसके उत्पादो से होती हैं | एवं व्यापार में वस्तु का जोरदार प्रचार ही उसे ग्राहको तक पंहुचता है | वस्तु की गुणवतता का इसमें कोई हाथ नहीं होता |




Feb 12, 2019


अभिव्यक्ति पर देशद्रोह जब लगता है तब भारत का संविधान रोता हैं और खान्-पान पर भीड़ जब हत्या करती है तब संविधान की हत्या होती हैं !!

देश में विगत चार वर्षो से समाज को धर्मो के नाम पर विभाजित करने की संन्गठित प्रयासो से सरकार के विरोध को देशद्रोह की संज्ञा पुलिस द्वरा की गयी है – वह वास्तव में अभिव्यक्ति पर हमला है | राजस्थान - उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जिस प्रकार गाय की हत्या की नाम पर गौ रक्षको ने मुसलमानो से मारपीट कर उनकी हत्या की है – उसे सुप्रीम कोर्ट के न्ययाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इनहि शब्दो में व्यक्त किया हैं | अभी दो दिन पूर्व न्यायाधीश सीकरी ने भी मीडिया द्वरा मामलो का ट्राइल किए जाने पर छोभ व्यक्त किया है | उन्होने कहा की प्राथमिक अदालत के फैसले पर अपील में संशोधन किए जाने अथवा उसे निरष्ट किए जाने  जजो पर व्यक्तिगत जीवन पर आछेप किए जाते हैं | भेद या एक वर्ग एक खाश निर्णय नहीं होने पर हम लोगो की निष्ठा पर प्रश्न खड़े करते है | संभवतः मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उनके विश्व हिन्दू परिषद द्वरा जिस प्रकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन के आदेश को निरस्त किया ----तब पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लोगो ने मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेप्फ़ के वीरुध कोङ्ग्रेस्सी मानसिकता होने का आरोप लगाया था| जैसे न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन को निरष्ट करने का कोई यह पहला मामला था | ज्ञात हो एनटी रामाराव की सरकार को हटाने के लिए तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने यह किया था \ तब भी अदालत ने उस आदेश को निष्प्रभावी करार दिया था | फलस्वरूप तत्कालीन राज्यपाल रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा था | तब तो किसी ने न्यायालय के फैसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिस नहीं की थी ---- यह प्रथा विगत चार वर्षो में ही उपजी है – मोदी सरकार या संघ के किसी आदमी {{ संघ में सदस्यता नहीं शिष्यता होती हैं }} पर कानून की कारवाई की जाती है तब केंद्रीय सरकार तक हिल जाती हैं | केरल के कुन्नूर में आपसी लड़ाई में एक स्वयंसेवक की हत्या हुई --कहा जाता है की वह सीपीएम के एक कार्यकर्ता की हाती के मामले में अभियुक्त था | तब केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वनहा के राज्यपाल और मुख्य मंत्री से जवाब तलब किया था | इतनी फुर्ती उन्होने बुलंदशहर में विश्व हिन्दू परिषद की भीड़ द्वरा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या में नहीं दिखाई -जबकि यह उनके गृह राज्य का मामला था !! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चुनावी मूड में गैर बीजेपी राज्यो मे कानून -व्यसथा को "”अराजकता ही बताते हैं "” | वे भूल जाते है की उनका पद सारे देश के राज्यो के लिए समान है | वे सिर्फ अपनी सरकार के निर्णयो को {{ भले ही वे अतिरंजित रूप में प्रस्तुत किए गए हों }} ही विगत 60 वर्षो में स्वर्णिम काल बताते घूमते हैं
बाम्बे हाई कोर्ट के जुस्टिस देसाई मेमोरियल भाषण माला में बोलते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ की व्यथा मुंबई के कार्टूनिस्ट को प्रधान मंत्री का कार्टून बनाने पर देशद्रोह का अभियुक्त बनाने और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के तीन छात्रो कनहिया कुमार - अनिरवन तथा उमर पर देश द्रोह का मुकदमा चलये जाने से संभवतः उपजी होगी | हालांकि बाद में पहले मामले में मुकदमा वापस लेना पड़ा | जे एन यू के मामले में तीन वर्ष पूर्व हुई तीनों की गिरफ्तारी में पुलिस नब्बे दिन में चार्ज शीट नहीं दाखिल कर पायी इसलिए इन तीनों को उच्च न्यायालय से जमानत मिल गयी | अब तीन साल बाद जब अदालत में चार्ज शीट दायर करने पटियाला कोर्ट पहुंची तब जज ने इस आरोप में सरकार की आवश्यक अनुमति के बारे में पूछा -----तब पता चला की पूरा केस बिना सरकार की मंजूरी के {{ किसी ऊपर वाले के निर्देश पर }} ही अंजाम दिया गया हैं !

स्त्री - पुरुष समानता का हवाला देते हुए उन्होने कहा की सबरीमाला में सिर्फ एक वर्ग की महिलाओ के प्रवेश पर निषेध क्यो ? धार्मिक अधिकार तो दोनों के बराबर हैं | अगर किसी महिला को उसके अधिकारो से वंचित किया जाता हैं -तो यह संविधान के अनुछेद 14 15 का उल्लंघन हैं | यानहा यह याद रखने की बात है की सुप्रीम कोर्ट द्वरा सभी आयु की महिलाओ को सबरीमाला में प्रवेश दिये जाने के फैसले का कुछ दक्षिण पंथी संगठनो और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था की "” अदालतों को भी धार्मिक रिवाजो में दखलंदाज़ी नहीं करनी चाहिए | क्योंकि यह करोड़ो लोगो की मानीता सरकार के मधी का सवाल हैं "”” | अब सबरीमाला देवस्थानम द्वरा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्वीकार करने पर अमित शाह क्या बोलेंगे ???
कर्नाटक में और महाराष्ट्र में कलबूरगी और गौरी लंकेश की की हत्या के पीछे गोवा की सनातन संस्था का हाथ होने के शक पर भी जशटिश चंदचूड ने कहा की समजाइक कुरीतियो के खिलाफ आवाज उठाने वालो और लिखने वालो की आवाज को दबा देना ---संविधान का अपमान है | बदलते समय में हमारे मूल्यो मे बदलाव आएगा | जो सामाजिक और सान्स्क्रतिक स्तर पर होगा |

मोदी और बंगाल सरकार के मध्य चल रही रस्साकशी में सीबीआई की कारस्तानी का जवाब वनहा की पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के फैसलो से मिल रहा है :-

1:- जिस सारदा चित फंड घोटाले में पूछताछ के लिए कलकत्ता पुलिस कमिसनर राजीव कुमार और कुनाल घोष से तीन दिनो से शिलांग में सवाल -जवाब किए जा रहे हैं | उसमें सीबीआई ने दो लोगो मोहता और एमपी सिंह को हिरसत में लिया हुआ हैं | सिंह की 240 करोड़ की संपाती को भी कुर्क कर लिया हैं | हालांकि अभी ऐसे कोई आदेश अदालत से नहीं हुए हैं | इसी मामले में पूर्व आईपीएस अफसर भारती घोष ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी की उन्हे दुश्मनी के कारण ममता सरकार फंसा रही है | इसलिए न्याय हिट में इस मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट खुद करे | उनकी इस प्रार्थना को प्रधान न्यायधीश गोगोई की बेंच ने ठुकरा दिया | भारती ने सप्ताह भर पूर्व ही भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता दिल्ली में ली थी |

2:--बाम्बे हाइ कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की याचिका को खारिज कर दिया है | गौरतलब है की वे मालेगाव बम कांड में मुखी आरोपी हैं | मोदी सरकार ने उन पर इतने गंभीर आपराधिक मुकदमें के बावजूद उन्हे सेना मे वापस भेज दिया था | उन्होने अदालत से प्रार्थन की थी की पुलिस द्वरा उनके वीरुध दर्ज़ एफ आई आर को निरष्त कर दें | जिस पर अदालत ने कोई राहत नहीं दी | और उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करने पर भी रोक लगा दी|

3:- त्रन्मूल काँग्रेस के सांसद रहे मुकुल रॉय , जो सारदा चित फंड घोटाले में एक अभियुक्त है -और जी वर्तमाना में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी है | उनसे सीबीआई द्वरा पूछताछ नहीं किए जाने पर कई बार सवाल उठाए गए | परंतु सीबीआई ने इसे रूटीन बताया | लेकिन वनही बंगला पुलिस ने अब उन्हे त्राणमूल विधायक बिस्वास की हत्या में अभियुक्त बनाया हैं ! अब सीबीआई की गिरफ्त से तो भाजपा में जाने से बचे थे ---पर बंगाल पुलिस से कैसे बचेंगे ??

4:- भारतीय जनता पार्टी को कलकत्ता हाइ कोर्ट ने ममता सरकार के आदेश के वीरुध याचिका पर नसीहत देते हुए कहा है ---सरकार ने छत्रों की परीक्षा के कारण फरवरी से मार्च के माह में लाउड स्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है | जो बच्चो के जीवन के लिए महत्व पूर्ण है | उन्होने बीजेपी की इस दलील को नामंज़ूर कर दिया की इस प्रतिबंध से लोकसभा चुनावो पर बहुत असर पड़ेगा | अदालत ने कहा की चुनाव प्रचार से ज्यादा महत्वपूर्ण परीक्षाए है " और बीजेपी को एक और पराजय का सामना करना पड़ा |


संभवतः मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उनके विश्व हिन्दू परिषद द्वरा जिस प्रकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन के आदेश को निरस्त किया ----तब पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लोगो ने मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेप्फ़ के वीरुध कोङ्ग्रेस्सी मानसिकता होने का आरोप लगाया था| जैसे न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन को निरष्ट करने का कोई यह पहला मामला था | ज्ञात हो एनटी रामाराव की सरकार को हटाने के लिए तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने यह किया था \ तब भी अदालत ने उस आदेश को निष्प्रभावी करार दिया था | फलस्वरूप तत्कालीन राज्यपाल रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा था | तब तो किसी ने न्यायालय के फैसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिस नहीं की थी ---- यह प्रथा विगत चार वर्षो में ही उपजी है – मोदी सरकार या संघ के किसी आदमी {{ संघ में सदस्यता नहीं शिष्यता होती हैं }} पर कानून की कारवाई की जाती है तब केंद्रीय सरकार तक हिल जाती हैं | केरल के कुन्नूर में आपसी लड़ाई में एक स्वयंसेवक की हत्या हुई --कहा जाता है की वह सीपीएम के एक कार्यकर्ता की हाती के मामले में अभियुक्त था | तब केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वनहा के राज्यपाल और मुख्य मंत्री से जवाब तलब किया था | इतनी फुर्ती उन्होने बुलंदशहर में विश्व हिन्दू परिषद की भीड़ द्वरा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या में नहीं दिखाई -जबकि यह उनके गृह राज्य का मामला था !! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चुनावी मूड में गैर बीजेपी राज्यो मे कानून -व्यसथा को "”अराजकता ही बताते हैं "” | वे भूल जाते है की उनका पद सारे देश के राज्यो के लिए समान है | वे सिर्फ अपनी सरकार के निर्णयो को {{ भले ही वे अतिरंजित रूप में प्रस्तुत किए गए हों }} ही विगत 60 वर्षो में स्वर्णिम काल बताते घूमते हैं |
उनके इस प्रयास को और उनकी यात्राओ को [[जो बताई जाती हैं --सरकारी , भले ही उनमें चुनाव प्रचार हो }} कितना उचित माना जाये --यह प्रश्न पाठको पर छोडता हूँ |