शीर्षक
:-
स्वामी
विवेकानन्द ने शिकागो मे
अद्वैत को ही मानवजाति के
कल्याण का एकमात्र साधन बताया
---आज
उनके नाम पर इस्लाम के अनुयायियों
को हिकारत से देखने का काम संघ
क्यो कर रहा है |
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राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता
ने लिखा है की मुस्लिम ब्रदरहूड़
विवेकानंद का विश्व बंधुत्व
नहीं है !!!
लगता
है की शिकागो की धर्म संसद के
भाषण को पूरी तरह से आत्मसात
नहीं किया है !!
इतना
ही नहीं अगर वे स्वामी जी
द्वारा अपने मित्र सर्फ़राज
को 19
जून
1898 मे
अल्मोड़ा से लिखे पत्र का तो
बिलकुल अवलोकन नहीं किया है
!!! जिसमे
स्वामी जी ने स्पष्ट किया की
अद्वैत ही शांतिपूर्ण विश्व
के निर्माण की कुंजी है !!!
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता
श्री मनमोहन वैद्य ने अपने
आलेख मे लिखा है की मुस्लिम
ब्रदर हूड़ विवेकानंद का विश्व
बंधुत्व नहीं है |
उन्होने
राहुल गांधी द्वरा संघ को
ब्रदर हूड़ की तर्ज़ पर '’हिन्दू
"
कट्टर
संगठन बताया |
तथ्य
के आधार पर अगर इस्लाम के मानने
वालो का एक कट्टर संगठन है
------तब
संघ भी वेदिक धरम के मानने
वालो को उनकी आस्था के आधार
पर एक करने का प्रयास करता है
|
उन्होने
दावा किया है की "””संघ
"””
भारत
की परंपरागत अध्यातम आधारित
सर्वांगीण और एकात्म जीवन
द्रष्टि केय आधार पर सम्पूर्ण
समाज को "”एक
सूत्र "”
मे
जोड़ने का कार्य कर रहा है |
इसकी
तुलना जेहादी मुस्लिम ब्रदर
हूड़ से करना भारतीयो और देश
की महान संसक्राति का घोर
अपमान है "”””
!!!!
विवेकानंद
को उचित तरीके से परिभाषित
नहीं करके संघ ने एक स्थापित
और सर्वमान्य विचारक की भावनाओ
और विचारो को दूषित रूप मे
प्रस्तुत कर के अपने '’’’सामाजिक
संगठन के मुखौटे '’’
को
उजागर किया है |
वनही
उन्होने स्वामी के अद्वैत
सिधान्त को भी अमानी किया है
|
स्वामी
ने 10
जून
1898 मे
अल्मोड़ा प्रवास के दौरान अपने
मित्र सर्फरज को जो पत्र लिखा
है ---वह
वैद्य जी के कथन को सर्वथा अमन
करता है |
उनके
शब्दो मे :_--
धर्म
और विचार मे अद्वैत ही अंतिम
शब्द है |
केवल
इसी ड्राष्टिकोण से सभी धर्मो
और सम्प्रदायो को प्रेम से
देखा जा सकता है |
भविष्य
मे सब मानवीय समाज का यही एका
धरम होगा |
आगे
उन्होने कहा की वेदान्त के
सिधान्त कितने ही विलक्षण और
उदार हो परंतु व्यावहारिक
इस्लाम की सहता के बिना मनुष्य
जाती के महान समूह के लिए
मूल्यहीन साबित होंगे |
हम
मनुष्य जाति को उस स्थान पर
पाहुचन चाहते है जनहा ना वेद
हो नाही कुरान हो और नाही बाइबिल
हो -परंतु
वेद -कुरान
और बाइबिल के समनव्य से ही ऐसा
संभव है |
आगे
उन्होने लिखा है की मनुष्य
जाति को को यह शिक्षा देनी
होगी की ------सब
धरम उस "”एक"”
धर्म
के भिन्न -
भिन्न
रूप है |
इसलिए
प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोनुकूल
इन धर्मो से अपना मार्ग चुन
सकेगा "””
अब
इस पत्र से यह साफ है की वे
इस्लाम अथवा जिसे हिन्दू संघ
मुस्लिम समाज या धर्म कहता
– वह विश्व बंधुत्व मे बाधक
नहीं है |
राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ ने वेदिक धर्म
की सनातनी अनुयायियों को "””
हिन्दू
"”
की
संज्ञा दे दी है --जो
नितांत अनुचित ही है |
वनही
इस्लाम धर्म के अनुयायियो को
'’मुसलमान
;; संज्ञा
भी गलत है |
इस्लाम
मे अरब भी है तुर्क भी है क़ज़ाक
भी है उज़्बेक भी है ---इन्हे
मुस्लिम नहीं कहा जा सकता ,
क्योंकि
इनकी राष्ट्रियता इनके छेत्र
की पहचान है |
भले
ही उनका धर्म एक हो |
क्या
हम ईसाई बहुसंख्यक देश अमेरिका
या ब्रिटेन के नागरिकों को
ईसाई कहेंगे ??
नहीं
क्योंकि उनकी राष्ट्रियता
और '’’नस्ल"”
अलग
है |
जिस
प्रकार ईरान और इराक के मुसलमानो
की पहचान अलग है |
वैद्य
जी ने लिखा है "””
संघ
भारत की परंपरागत अध्यातम
आधारित सर्वांगीड और एकातम
जीवन्द्र्ष्टि के आधार सम्पूर्ण
समाज को एक सूत्र मे जोड़ने का
कार्य करता है !!
“”” ईस
बयान मे परंपरागत
अध्यातम "””
का
अगर हम विवेचना करे ,
तो
वेदिक धर्म {{
हिन्दू
नहीं }}
मे
विभिन्न मतो का समावेश है |
वैसे
तो बहुत संप्रदाय है --परंतु
प्रमुख रूप से तीन है "””
शाक्त
,अर्थात
शक्ति या देवी भक्त दूसरा मत
शैव यानि शिव या लिंग की उपासना
करने वाले और वैष्णव जो विष्णु
और उनके अवतार अयोध्या के राम
और मथुरा के क्रष्ण के उपासक
है |
अब
ऋग्वेद के दसवे मण्डल के दसवे
अध्याय मे 125
सूक्त
की ऋचाए मे इनके स्वरूप का
वर्णन है -इनकी
शक्ति का वर्णन है |
दूसरी
है गायत्री जिंका वर्णन तीसरे
मण्डल के 62
सूक्त
की 3044
ऋचा
है जिसमे उनकी शक्ति और महिमा
काही गयी है |
वेदो
मे रुद्र का वर्णन है जिसे
कालांतर मे शिव कहा गया |
शिव
का प्रतीक "””लिंग
"”
है
| अब
वैष्णव संप्रदाय जिसमे अवतारो
की महिमा है इसमे बहुत से
संप्रदाय है ,
जैसे
मथुरा के क्रष्ण के अनुयायाई
का सबसे बड़ा संप्रदाय राधस्वामी
है जो आगरा और पंजाब के मालवा
इलाके मे है |
दसरथ
पुत्र राम और पत्नी सीता के
उपासक किसी एक संगठन मे आबद्ध
नहीं है |
परंतु
इन अवतारो के मंदिर बहुत है
| शैव
संप्रदाय मे उत्तर भारत से
लेकर विंध्य के नीचे अनेक
संगठन है |
हाल
ही मे पत्रकार गौरी लंकेश
जिनकी ध्रमान्ध लोगो ने हत्या
कर दी ---वे
भी वीर शैव संप्रदाय की थी |
अब
दक्षिण मे शैव के अनेक मठ है
जो अपनी -अपनी
अलग पहचान रखते है |
संग
कुछ अति उत्साही लोगो ने गौरी
लंकेश को ईसाई निरूपित किया
---चूंकि
उनका दाह संस्कार नहीं हुआ
था !
तमिलनाडू
की मुखी मंत्री जय ललिता और
डीएमके नेता करुणानिधि दोनों
को ही दफनाया गया !!
अन
इस कारण उन्हे क्या ईसाई मान
लिया जाये !!
द्रविड़
क्ड्गम के संस्थापक रामस्वामी
नायकर ने 1930
मे
वेदिक धर्म मे ब्रांहणों के
वर्चसव के वीरुध हल्ला बोला
था |
उन्होने
गैर ब्रांहण तमिल लोगो संगठित
किया था |
उन्होने
सार्वजनिक रूप से वेदो -पुराण
और सनातन धर्म की अन्य पुस्तकों
की सार्वजनिक होली जलायी थी
| अंग्रेज़
सरकार ने उन्हे बंदी भी बनाया
| परंतु
दक्षिण के आलीशान मंदिरो से
लगी संपातियों का लाभ सिर्फ
कुछ ब्रामहन परिवारों के हित
के लिए था |
वे
लोग गैर ब्रांहनों से अत्यंत
अपमानजनक व्यवहार करते थे ,
जिसे
कुपित होकर डीएमके सदस्यो को
मंदिर का बहिसकार का निर्देश
दिया गया था |
आज
भी बहुत से डीएमके के सदस्य
मंदिर नहीं जाते |
तो
क्या वे सनातनी परंपरा मे नहीं
रह गए ??
हमारे
वेदो मे तो चारवाक ऋषि को भी
स्थान दिया गया है ---जो
पूरी तरह से भोगवाद के प्रणेता
थे |
जिनके
अनुसार शरीर ही सबकुछ है और
इसका सुख ही परम धर्म है |
जिस
वेदिक धरम मे समाज के सभी लोगो
की आस्थाओ और विश्वास को समेट
कर एक सूत्र मे बांधे रहता है
---- अगर
विवेकनद का विश्व्बंधुत्व
का वह विश्वास नहीं है – है
तो
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ का धर्म आधारित
नफरत का संदेश तो विवेकानंद
के नाम का दुरुपयोग है |
जिस
प्रकार अपने को संघ “”एक सामाजिक
संगठन “” बताता रहा है ,
वह
असत्य विगत कुछ समय से सामने
आ गया है |
जिस
प्रकार वैद्य जी ने आलेख का
शुभरम्भ काँग्रेस के अध्यक्ष
राहुल गांधी के उस वक्तव्य
का हवाला देकर उन वामपंथियो
और छुद्र राजनीतिक स्वार्थो
के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ का विरोध कर रहे लोगो की
आलोचना की ,उससे
ही उनके राजनीतिक पाखंड का
पर्दा फ़ाश हो गया ----की
ये सामाजिक संगठन नहीं राजनीतिक
पार्टी तो नहीं लेकिन आउटफिट
है |
जो
अधूरे सामाजिक मूल्यो और
अधकचरे राष्ट्रवाद और हिन्दू
एकता को लेकर यह संगठन नगरत
का एजेंडा देश मे आगे बड़ा रहा
है |
जिन
स्वामी विवेकानंद ने भारत
मे सभी धर्मो के आगमन का स्वागत
का वर्णन किया ---था
उस देश मे उनका नाम लेकर तथकथित
हिन्दू और मुसलमान मे नफरत
का जहर बोने वाली ताकते ॥,,
आदिगुरु
शंकरा चार्य की समस्त भारत
की आबादी को एक सूत्र मे बाधने
के प्रयासो को असफल करने के
इरादे भगवती सफल नहीं होने
देगी |
जिस
प्रकार देवासूर संग्राम मे
भी सत और असत के मध्य संघराश
चल रहा था ---वैसा
ही इस समय मे भी होगा |
इस
देश की समष्टि बनी रहेगी |