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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 25, 2013

Kejriwal's Jantar- Mantar democracy or mobocracy

Kejriwal's Jantar- Mantar democracy or mobocracy 
                                 Aam Admi Party of Arvind Kejriwal has challenged Delhi state chief minister Sheila  Dixsit  for open debate on issue of Tariff hike of electricity and insecurity of women > He has suggested that she can choose the venue , which can be Ramlila ground or any  other open place . This statement is clear sign of Kejriwal that he is not speaking  NOW for the entire country , as he was claiming during the Anna Hazare movement . He has also demanded to Delhi C. M. that she should ensure that no one should get congress party ticket in  coming vidhan sabha election , who has any kind of criminal record ,also only one person be given party ticket from any family . 

                                        From his total attitude it seems that he has YET not learned the lesson of parliamentary democracy , and he wants that the  Open debate decide issues of governance . What he is demanding is the core of our democratic system --for which the representatives of state legislature and parliament are elected . This is done by VOTERS who have attainbed the age of 18 years , meaning they are able to decide their political preferences . But people like him or the one who have created a frenzy in the country on the issue of LOKPAL bill . Then Anna and his team which included kejriwal , Prashant bhusan and others ,now the retired Army Chief  has also joined  the band wagon . Their demand at that time was to have a Lokpal who should be appointed by body in which the government should not have any kind of say . Also proposed lokpal should have all the powers to question and prosecute any person---from Prime minister to peon . And during the pend ency of investigation that person should not remain on his post . Quite a demand of charter --which was not possible CONSTITUTIONALLY . after the three months media hype and anti government element support they evaporated  in the melle of crowd of common man not the AAM man what he claims .
                                                                                      Once again he is trying to garner the support of Media in general and dissatisfied people of the society  Because what he is demanding can be very tempting to  the people who does not understand the functioning of the state . It is not possible in democracy that any single person be given the authority to decide the future of millions and of the state .Even in the presidential form of democracy like U.S.A., there a debate is held between two party nominees to CLARIFY their stand on various issues . But that does not mean the matters are decided on the basis of DEBATE or Shastrarth.
                                     At best his whole drama is to attract media and provide them with headlines like chat vendors chat . Now it is becoming clear that this ex [axed] Income Tax official along with retired[or tired] army chief  is in fact  serving personal agenda and projecting himself as the champion of the democratic cause  .
 

                                

Jun 21, 2013

असहमति की या विपरीत धारा का चिंतन --गर्भपात ?

असहमति की  या विपरीत धारा का चिंतन --गर्भपात ?
                                                समुक्त राज्य अमेरिका को विसवा मे न केवल सर्वाधिक विकसित राष्ट्र माना जाता हैं , वरन व्यक्ति की स्वतन्त्रता  के मामले मे अगुआ माना जाता हैं | परंतु अभी कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए हैं , जिसने  वंहा के समाज के नैतिक और वैचारिक मूल्यो पर दुनिया की धारणा को गलत साबित किया हैं | एक मुद्दा हैं महिलाओ को गर्भपात के अधिकार का , दूसरा हैं व्यक्ति स्वतन्त्रता का | 
   
                                                                  आम तौर यह धारणा रही हैं की डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपुब्लिकन  पार्टी का अंतर किसको टैक्स करे और किस उदयोग को कितनी सहूलियत दे |  डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति बराक  ओबामा  ने उदरवादी रुख को उनके विपक्षी  दल अत्यंत नाराज़ हैं | साधारणतया  दोनों दल विवादित मुद्दो पर  बातचीत  कर के अथवा दोनों सदनो मे वाद- विवाद द्वारा मामले को सुलझा लेते थे | पर गर्भपात के मामले पर रुड़ीवादी रिपुब्लिकन  पार्टी  और  डेमोक्रेटिक प्रशासन न केवल आमने - सामने खड़े हैं वरन टकराव  की मुद्रा मे हैं |  प्रतिनिधि  सभा मे वंहा रिपुब्लिकन  पार्टी का बहुमत हैं , अतः उन्होने बीस माह से ज्यादा के गर्भ  के  गर्भपात  को गैर कानूनी बनाए जाने का विधेयक पारित कर के  सीनेट  को भेज दिया हैं | अब सीनेट मे डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत हैं , जनहा इस बिल  का गिरना निश्चित हैं | 

                                                      वैधानिक रूप से दोनों सदनो की असहमति का निपटारा   संयुक्त  अधिवेसन  मैं किया जाता हैं | वंहा फैसला बहुमत से किया जाता हैं , और संख्या मे प्रतिनिधि सभा के मत सीनेट से कनही अधिक हैं | परंतु राष्ट्रपति ओबामा ने इंगित किया हैं की वे इस बिल के पारित किए जाने के बावजूद ''वीटो ''के अधिकार का प्रयोग करेंगे | जिसका तात्पर्य हुआ की बिल पारित होने के बावजूद भी कानून नहीं बन सकेगा | 

                        सवाल  यहा  यह हैं की '' उदरवादी ''' अमेरिकी  समाज मे ऐसा कठमुल्ला विचार क्यों पनपा ? कैथॉलिक  धर्म मे गर्भपात  '''को पाप ''' माना हैं | अभी हाल ही मे  आयरलैड मे एक भारतीय महिला डॉक्टर  की मौत इस कारण हो गयी की उसके गर्भ को साफ नहीं किया गया परिणाम स्वरूप  भारत समेत अनेकों देशो ने  मेडिकल आधार पर माता की जान बचाने के लिए गर्भपात को ज़रूरी बताते हुए ''इसे धार्मिक  आस्था '' से अलग रखने की वकालत की |   ईरान -इराक और अनेक मुस्लिम देश मे भी यह  हालत हैं | जिसे बुरा ही माना जाता हैं | जबकि  अमेरिकी  महिला संगठनो ने  इसका विरोध किया हैं | वंहा  के मतदाताओ मे महिलाओ की संख्या काफी और निर्णायक हैं | कारण यह बताया जा रहा हैं की  दक्षिण  के राज्यो जैसे टेक्सास - कंसास आदि के निवासी कैथॉलिक हैं वे इस बिल के समर्थक हैं , इसीलिए उनके प्रतिनिधियों को इस कानून को लाना पड़ा | 

                      पर क्या बहुमत हमेशा सही होता हैं ? अथवा उसके सोच को मानना  अपरिहार्य  हैं ? 

Jun 12, 2013

बैंकिंग के ""महारथी "" भी काले रुपये को सफ़ेद करने के दोषी

 बैंकिंग के ""महारथी "" भी  काले रुपये  को सफ़ेद करने के दोषी  

                          रिजर्व बैंक ने  मनी  लौंडेरिंग  के आरोप मे देश के चार बहुत बड़े बैको यथा आई सी आई सी आई और एच  डी एफसी तथा एक्सिस  बैंक पर एक करोड़ से लेकर चार करोड़ रुपये का जुर्माना किया हैं | इन बैंको  के विरुद्ध तहलका  डॉट कॉम ने एक स्टिंग आपरेशन कर के यह साबित किया था ""ये सभी नामी बैंक "" काले धन को सफ़ेद करने और उन लोगो की पहचान को गुप्त रखने की हरकत कर रहे थे | 

                               तहलका के इस खुलासे के बाद जब मीडिया ने इन बैंको  के विरुद्ध कारवाई की मांग की तब ""इन बंकों ने किसी भी आपराधिक  कृत्य करने से न केवल इंकार किया था वरन रिजर्व बैंक द्वारा ""कारण बताओ "" नोटिस दिये जाने पर भी न तो उन अफसरो के नाम बताए जो इस गुनाह को  अंजाम दे रहे दे वरन ""अपने ग्राहक को जानो "" की कारवाई को अपने ढग से निपटा दिया | परंतु सरकार से दबाव आने पर  रिजर्व बैंक ने एक जांच समिति बनाई और उसे जांच का काम सौंपा | तब उसमे खुलासा हुआ की अपने चेयरपरसन के आदेश से ही इनके मैनेजर  लोगो से ""कैसा ""भी पैसा ला  कर जमा  कराने का आग्रह करते थे , बदले मे वादा करते थे की आय कर की सभी कारवाई  की  खाना पूरी  कर देंगे | बॉम्बे और दिल्ली की शाखाऔ के  प्रबन्धको  को ऐसा करते हुए कैमरे  मे क़ैद कर लिया था जिस की वजह से यह सभी बैंको की कलाई खुल गयी | 

                  गौर करने की बात हैं की निजी छेत्रों के इन बैंको ने  लोगो से धन जमा करने के लिए कई बार इनाम भी बटोरा हैं | अब खुलासा हो गया की कैसे यह स्थान इन बैंको ने हासिल किया था | 

आडवाणी --मोदी विवाद सुलझाते गुरुमूर्ती क्रिकेट के विवाद मे उलझे

 आडवाणी --मोदी विवाद  सुलझाते  गुरुमूर्ती क्रिकेट के विवाद मे उलझे 
                                 मोदी और आडवाणी की रस्साकशी  मे  बीच - बचाव करने आए राष्ट्रिय  स्वयं सेवक  संघ के "" थिंक टैक "" कहे जाने वाले  एस  गुरुमुरथी  , जो काफी समय से मीडिया और अखबारो से नदारद थे | परंतु  इस विवाद से सुर्ख़ियो मे आए   गुरुमुरथी ने क्रिकेट के आई पी एल  के विवाद मे कलम चलायी हैं | जिसमे उन्होने लिखा हैं की , इस खेल मे खिलाड़ियो  की नीलामी  की तुलना बेबीलोन मे होने वाली ""वधुओ "" की नीलामी से की हैं | वे भूल गए की वह युग  दो हज़ार  वर्ष पूर्व का था , आज के प्रजातन्त्र मे  किसी की भी नीलामी -उसके मर्ज़ी के बिना अनहि हो सकती |  इस विवाद की तुलना मे उन्होने ने  कोला कांड का ज़िक्र भी किया हैं , परंतु भूल गए की  भा ज पा  के तीन नेता  अरुण जेटली - अनुराग ठाकुर  और  पार्टी के नए चेहरे ""नरेंद्र मोदी "" भी  क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के गुजरात  इकाई  के  अधृयक्ष भी हैं !  अब इस बारे मे वे टिप्पणी करना  भूल गए | 

                    दरअसल  अपने अलावा  सबको गलत और भ्रष्ट  समझने वाले ""लोगो """ को सिर्फ उनही घटनाओ और बाटो को याद रखने की बीमारी होती हैं जो उनके तर्क को बल देती हो | साथ ही उन घटनाओ और तर्को को ""भूल जाने की बीमारी "" होती हैं | आई  पी एल  विवाद के बारे  मे उनके लिखना ऐसा ही तथ्य और तर्क हैं | इस विवाद के लिए केंद्र सरकार को  दोष देना ऐसी ही एक चाल हैं |  जिसे कोई  भी समझ नहीं पाएगा , सिर्फ उन लोगो के ""जो "" काँग्रेस मुक्त भारत की कल्पना कर रहे हैं | 

Jun 7, 2013

सोम और सोमरस का रहस्य

सोम  और सोमरस का रहस्य ?
                                            ऋग्वेद  से लेकर  अनेक उप  वेदो और  और यज्ञ के कर्मकांडो  के संदर्भ मे ''सोम''  एवं सोमरस का ''' वर्णन आया हैं | परंतु संभवतः वेदो मे लिखे संकेतो को पर्याप्त रूप से समझ न सक्ने के कारण इसे  अनेक रूपो मे   परिभाषित  किया गया हैं |ऋग्वेद  की रिचाओ मे  भी अनेकानेक स्थानो मे ""सोम"" की महिमा  गायी गयी हैं | उसे  बल - बुद्धि प्रदान करने वाला  कहा गया हैं | यज्ञ  मे   बलि देने के अवसर पर विशेस रूप से इसका वर्णन किया गया हैं | जंहा आवाहन  किए गए देवता को प्राषण्ण करने के लिए  यह उन्हे  आरपीत की जाती थी , वंही    ''होता''उदगता'' एवं यज्ञ मे लगे हुए सभी  ब्रांहणों द्वारा सेवन किए जाने का वर्णन हैं | 

ऋग्वेद  के प्रथम मण्डल के 15 वे  सूक्त मे  ऋषि मेघा तिथि  ने ग्यारह  देवताओ की अभ्यर्थना  करते हुए सोमरस  प्रस्तुत किए जाने वरनाना किया हैं | इसमे कह गया हैं की "" इंद्र सोमरस का पान करे और उनकी सतुष्टि से जो बुँदे  प्राप्त हो वे आराधक की मनोकामना पूरी करे । इस के आगे 22वे सूक्त मे भी ऐसी ही कामना की गयी हैं 

                     यज्ञ मे ॐ सोमाय नमः  संभवतः ईश्वर  की परिकल्पना थी , जिनको आहुती दी  जाती थी |  शास्त्रो के अनुसार  ''धर्म  मेघ  समाधि मे  प्राप्त  दैविक् अनुभूति  को भी ''सोम '' कहा गया हैं | यह समाधि  वेदो और शास्त्रो के गहन अध्ययन  और ''अषटागिक् योग दर्शन   के उपरांत ही योगी को प्राप्त होती थी |  जो सोमरस  का पान करता था | 
                                           वैसे कुछ पश्चिमी विद्वानो ने  सोमरस को  ''सोमलता '' के अर्क़ के रूप मे माना हैं | जिसका वानस्पतिक नाम संभवतः ईपीएचईडीआरए  इपेधर | इसे विज्ञान ने माना हैं की  यह एक बलवर्धक  औषधि  हैं  ,जो मानव के सभी अंगो की  छमता को    बढा| देता हैं | इसे पेट संबंधी  एवं श्वसन  संबंधी  बीमारियो मे  दवा  के रूप मे इस्तेमाल किया जाता हैं |  इन तथ्यो कए बावजूद  अभी यह बात आधिकारिक रूप से नहीं काही जा सकती की """सोम''' कौन सी वनस्पति हैं ? जैसे सिंधु घाटी  की सभयता की लिपि पर विद्वान एक मत नहीं हैं उसी प्रकार ''सोम'' पर भी अभी विवाद हैं 

Jun 5, 2013

वैदिक सभ्यता का आधार प्र कृति और पर्यावरण आरण्यक

   वैदिक  सभ्यता  का आधार  प्र कृति और  पर्यावरण 
                व्रहदारण्यक  उपनिषद  मे याज्ञवलृक्य ने   जंगलो  को  ज्ञान का   विशाल   वन  निरूपित किया हैं | उन्होने उपदेश दिया की मानव को प्रकृति  से सौहर्द्र  बना कर रखना चाहिए |   अथृरवेद  के तीसरे कांड के 30वे  सूक्त मे जो मंत्र हैं उसके देवता चंद्रमा हैं , इसी प्रकार सूक्त 24 मे के देवता वनस्पति को समर्पित हैं | बृहदकाररण्य  के सूक्त 1.5.2 मे स्पस्त उल्लेख किया गया हैं की खाद्य पदार्थ पृथ्वी  पर अपार हैं क्योंकि भोग करने वाला स्वयं ही भोज्य पदार्थ  का निर्माण करता हैं | यद्यपि यह बात सुक्षम रूप से समझने वाली हैं , क्योंकि  मानव और - पशुओ की विशृटा अर्थात माल से से अनेक छुदृ जीवो    का पेट भरता हैं जो कालांतर मे भोज्य पदार्थो के  उगाने //निर्माण मे सहायक होता हैं | 

                                                                   हमारे 108 उपनिषदों मे वन की महिमा अनेक स्थानो मे गायी  गयी हैं  | यानहा तक की मानव के लिए जिन  चार आश्रमो का वर्णन किया गया हैं उनमे  अंतिम दो के लिए व्यक्ति को वन की शरण लेनी पड़ती थी | वे थे वानप्रस्थ  और सन्यास | दोनों ही आश्रमो के लोगो से अपेक्षा    की गयी थी की वे अपना जीवन यापन  वन की सम्पदा से ही करेंगे , अतीव  कष्ट मे ही वे नगर मे जा कर भिक्षा  मांग सकते हैं | हमारे वैदिक वांज्ञमय मे अनेक चक्रवर्ती  सम्राटों ने भी वानप्रस्थ  और सन्यास आश्रम का पालन किया हैं | 

                        वस्तुतः वेदिक ज्ञान की गंगा का उद्भव और आविर्भाव  वनो से ही हुआ यथा  शौनक  ऋषि नैमिषारणय मे रहे हो  जनहा ऋषियों की महती सभा हुई | शायद ऐसा इसलिए भी हुआ हो की वन मे रहने और निस्तार के लिए पर्याप्त स्थान रहता था | आज जिस आता का घर- घर वचन किया जाता हैं  वह सत्यनारायान  की कथा  ही शौनक ऋषि ने सभी को सुनाई थी | 
                     अथर्ववेद  मे वनस्पति को जिस प्रकार ''देवता'' मान कर सूक्त लिखा गया , उसका तात्पर्य  हैं की हमारे ऋषि -मुनि  प्रकृति  से तदात्म्य बनाए रखने   पक्षधर थे , उनके अनुसार वनो और उसमे रहने वाले पशु -पक्षिपो और वनस्पतियों  से ही हमारा वातावरण  शुद्ध रहता हैं | इतना ही नहीं मानव सभ्यता  और प्रकृति  से संतुलन बना रहना ही सभ्यता के श्रेयसकर  हैं | आज हम देखते हैं की नदियो के किनारे तक आबादी की बसाहट हैं तालाबो और झीलों के किनारे भी अछूते नहीं हैं  जंहा तट बांधो पर मानव की दखलंदाजी हैं | फलस्वरूप जब कभी  पानी बदता हैं --तब तब मानव घटता  हैं | अपर संपाती की हानी के साथ ही जन हानी भी होती हैं | वनो का  आक्षादन घटने से हम महसूस करते हैं की  आस पास के इलाको  मे गर्मी का प्रकोप अधिक होता हैं | पर्वतो मे कंक्रीट  के भवनो और अन्य निर्माण से वंहा के वातावरण  मे काफी फर्क पड़ता हैं | टिहरी मे बांध बनाया गया तो गंगा और उसकी सहायक नदियो के जल श्रोतों  पर प्रभाव पड़ा | 
                 जिस पुण्य सलिला गंगा का जल सदा सर्वदा  शुद्ध रहता  था आज वही   रुड़की के आगे  फैले हुए प्रदूषण से  अपनी पवित्रता खोटी जा रही हैं | कानपुर - इलाहाबाद -बनारस -पटना आदि  बड़े  शहरो का  गंदा पानी और कूड़ा कर्कट  माँ गंगे ढ़ो रही हैं | जब -जब समाज और देश इन प्राकृतिक  साधनो के प्रति लापरवाह हो जाता  हैः तब दीर्घकाल मे उसे भरी कीमत चुकनी पड़ती हैं |                                                








                                                               वैदिक धर्म  का आधार  प्रकृति ही रहा हैं ,  ऋगवेद हो या  अथवा अन्य तीन वेद सभी मे वनस्पति और जल श्रोतों   नदी - नालो , पर्वत , उपत्यका  आदि की उपयोगिता एवं उनकी महत्ता मे ऋचाये गायी गयी हैं | आरण्यक  मे प्रकृति मे  व्याप्त चैतन्यता  और वनस्पतियों  के गुण और दोष  तथा उनके प्रयोग के बारे मे विस्तार से समझाया गया हैं | वस्तुतः  आयुर्वेद  ,जो की एक उपवेद हैं उसका    भी  आधार  पर्यावरण और वनस्पतियाँ हैं |  यह  पद्धती मानव की चिकित्सा के लिए  सम्पूर्ण हैं | इसलिए की  आयुर्वेद  मे सभी कुछ  वनस्पति एवं वातावरण आधारित हैं , कुछ भी  ऐसी  वस्तु का प्रयोग नहीं किया जाता  जो अपने  प्राकृतिक स्वरूप  मे न हो |  भले ही वह वनस्पति हो या धातु  हो अथवा  रत्न  हो | आयुर्वेद  मे लता -पते - जड़ - फल -कलियाँ एवं  यहा  तक की भिन्न - भिन्न स्थानो की मिट्टी अथवा पत्थर  के उपयोग के लिए उनके गुणो और दोषो का वणॅन समय - समय पर धन्वन्तरी - चरक  आदि जैसे विद्वानो  ने अपने अनुभवो  मे  सँजोया हैं | 
                                         आरण्यक मे मूल रूप से यह अवधारणा प्रतिपादित की गयी हैं  की प्रकृति  ने वनस्पतियों  को चेतनता  प्रदान  की हैं  , जिसे  जगदीश चन्द्र बोसे ने अपने  प्रयोगो से  सिदृध किया | फोटो स्येंथेसिस  की अवधारना    द्वारा  भी  उन्होने बताया की पेड़ - पौधो मे भी जीवन चक्र होता हैं | वे भी दुख और सुख की अनुभूति रखते हैं | यह तथ्य हमारे आरण्यकों मे और उपनिषदों मे  बताई गया  हैं , की इनमे जीवन होता हैं | चकित  करने  वाली बात हैं की जिस  सिधान्त को वैज्ञानिको ने अनेक  यंत्रो के सहारे  सिधृद किया ,उसी ज्ञान को हमारे   मनीषियो  ने  हजारो वर्ष पूर्व किस प्रकार  हासिल किया होगा ||

      एक कथा  है की सम्राट  बिंबसार को पेट मैं तकलीफ रहती थी काफी दवा की गयी परंतु  फायदा नहीं हुआ और दर्द बदस्तूर रहा | तब  वैद्यराज चरक को बुलाया गया उन्होने निदान के लिए  एक विधि बताई | उन्होने कहा की सम्राट प्रातः एक घड़े  मे मल त्याग करे | वैद्य के बताए हुए अनुसार ही  किया गया |  जब चरक ने घड़े का मुआइना किया तब उन्होने देखा की   मल पानी के ऊपर  तैर रहा था | उन्होने  बताया की सम्राट के पेट मे कृमि हैं | आज हम कृमि को  अमीबा  कहते हैं | इसको ही बक्टीरिया भी कहा जाता हैं |  आज भी डॉक्टर  अमोबियसिस  के लिए जांच कराते हैं , उनका भी मानना  हैं की प्रदूषित मल  का वजन कम होता हैं और इसलिए वह नीचे की ओर पानी मे नहीं जाता | यह तथ्य दो हज़ार वर्ष पूर्व जिस प्रकार  सामने आया वह हमारी वैदिक सभ्यता  के गहन अध्ययन एवं वस्तुओ को ध्यान से समझने की पदृति को ही सीध करता हैं | 
               वेदिक धर्म  मे पेड़ - पौधो और जीव - जन्तुओ मे जिस  ईश्वर के वास की अवधारणा  की गयी हैं वह वास्तव मे चेतना ही हैं | वस्तुतः  चेतना अर्थात महसूस करने की छमता ही   प्र कृति मे उस  '' सत्ता '' के विद्यमान होने का   सबूत  हैं जिसे  सब लोग  परमात्मा  अथवा  परम शक्ति  कहते हैं | पर्यावरण  अथवा वातावरण  से संतुलन  ही  मानव  के लिए उसके लक्ष्य --  धरम - अर्थ --काम --मोक्ष  का एकमात्र  रास्ता हैं | 

            आरण्यको  मे प्रकृति  के शासवत नियमो के बारे मे  ज्ञान हैं , जिसके द्वारा वैदिक सभ्यता ने वनस्पति   शास्त्र   और जीव विज्ञान तथा आयुर्वेद  के लिए  आवस्यक जानकारी सुलभ कराई | जिसके कारण ही  जीवन के विभिन्न छेत्रों मे इस जान करी को उपयोग मे लाया गया | एक बात का ख्याल  हमारे ऋषियों और मुनियो ने हमेशा रखा ,  उनके  अनुसार  मानव और पर्यावरण मे  स्वस्थ्य  संतुलन बहुत ज़रूरी हैं | अगर यह संतुलन बिगड़ा तब मानव  सभ्यता का विनाश हुआ |  नदी  का ख्याल उचित रूप से नहीं रखने  के कारण ही सिंधु  घाटी की सभ्यता का विनाश हुआ | दुनिया  मे कई  सभ्यताओ का आस्तित्व इसलिए समाप्त हो गया चूंकि उन्होने   प्र कृति  के नियमो की परवाह नहीं की | फलस्वरूप वे इतिहास के पन्नो मे दफन हो गए | 
                                                   विश्व  की सबसे पुरातन सभयताओ मे मिश्र की सभयता का भी शुमार किया जाता हैं , ,  अपर नील  और लोअर नील  नदियो के विशाल  जल राशि न केवल  खेती वरन नौका परिचालन के भी काम आती थी |  पिरामिडो  के देश मे  उस समय की सबसे  सशक्त  नौ सेना थी , यंहा तक की रोमन साम्राज्य की नौ सेना भी  उसकी भव्यता के आगे फीकी थी | परंतु सतत  युद्ध और बीमारियो ने उस सभयता को रेट के नीचे दफन कर दिया | कारण  प्रकृति  की अवहेलना | 
  
                       हमारे ंउपनीषदों  मे यही सीख दी गयी हैं की मानव की प्रगति को पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए , अन्यथा आज की ग्लोबल वार्मिंग ,   बाढ  और सूखा  और अब तो पेय जल का संकट सारे विश्व पर मंडरा रहा हैं | ऐसा नहीं की हमारी प्रकृति  के पास मानव की प्यास बुझाने के लिए  पर्याप्त जल नहीं हैं | परंतु औद्योगिक कारखानो  मे करोड़ो लोटर पानी का उपयोग कर उसे जानवर और वनस्पति के लिए जहरीला बनाने के बाद जब वह भूमि पर फैला दिया जाता हैं तब वह भी  अपना धरम खो देती हैं --बंजर हो जाती हैं न तो उसमे चारा उगता हैं नहीं कोई वनस्पति | 

                 पर्यावरण को शुद्ध और यथावत  बनाए रखने की ज़िम्मेदारी उन सभी की हैं जो उसके किनारे  बसते हैं हम अगर प्रकृति के साधनो का उपयोग और उपभोग करते हैं तो हमारा दायित्व हैं की उसे बनाए रखे | वरना सरस्वती नदी की भांति गंगा भी लुप्त हो सकती हैं | वैसे ही हमारे देश मे 100 से अधिक छोटी -छोटी  नदिया सुख गयी हैं अथवा वे नाला समान हो गयी हैं | 


                       

Jun 1, 2013

अब ठेका मजदूरो का भी ठेका मूल नियोक्ता का हैं

  अब ठेका  मजदूरो का भी ठेका मूल नियोक्ता का हैं
                                                     आज कल भले ही निजी संस्थान हो या सरकारी अथवा अर्ध सरकारी सभी एक रुपये मे तीन अठन्नी  भुनाने के फेर मे रहते हैं | इसी कारण स्कूल कॉलेज हो या फ़ैक्टरि अथवा मिल  सभी जगह नियोक्ता या आम शब्दो मे कहे तो मालिक  ''ठेके'' पर मजदूर रखने के मूड मे रहता हैं | इसका एक कारण होता हैं की यदि उसी काम के लिए किसी कामगार की भर्ती करे तो उसे वेतन - भत्ते के साथ सुविधाए भी देनी होती हैं | जो की उनके लिए काफी खर्चीला होता हैं | अतः वे  पतली गली से ''ठेके'' पर उस काम को कराते हैं , जिस से वह काम सस्ते मे निपट जाता हैं , साथ ही  अगर कोई दुर्घटना होती हैं तो वह फ़ैक्टरि  कानून से बचा रहता हैं | 

         यानि फायदा आप का और नुकसान  सामने वाले का | भारत सरकार की भी अनेक  संस्थानो मे जनहा विशाल पैमाने  पर उत्पादन किया जाता हैं  वंहा भी  मैनेजर  इसी प्रथा को  अपनाते हैं | इस प्रकार से  उनका तो काम सस्ते मे हो जाता हैं परंतु  श्रमिक नुकसान मे रहता हैं | ठेके के मजदूर  कुछ दिन या महीने तक  रहते हो और एक अवधि के बाद उन्हे स्थायी  कर दिया जाता हो तो भी बात समझ मे आती हैं , परंतु सालो - साल गुजर जाते हैं  और वह ''ठेके'' मे ही भर्ती होता हैं और उसी स्थिति मे वह ''मर '' भी जाता हैं \ प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार के विभाग हो अथवा  संस्थान हो  सभी जगह यह छूत की बीमारी लगी हैं | बात सिर्फ इतनी सी हैं की ''कम लागत मे अधिक लाभ '' हो | जबकि केंद्र या प्रदेश सरकारो के सैकड़ो कानून श्रमिकों की भली के लिए बने हैं परंतु उनको लागू करवाने वाली ''शाखा'' को इतना कमजोर बना के रखा गया हैं की वे सिर्फ किताबों मे बंद हो के रह गए हैं | 

                     परंतु जैसा की एक कहावत हैं की  सोलह साल बाद ''घूरे'' के भिऊ दिन बहुरते हैं , मतलब की उप्पेछित को भी न्याय मिलता हैं , सो बॉम्बे  हाइ कोर्ट ने अपने एक फैसले मे ''स्पष्ट कर दिया हैं की ठेके के मजदूर की ज़िम्मेदारी भी उस नियोक्ता की होगी जिसका काम वह करता हैं ,,न की उस ठेकेदार की जो उसे वंहा पर लाया हैं ,और काम करा रहा था | मामला यह था की महिंद्रा अँड महिंद्रा  के वाहनो को लाने ले जाने का काम कंपनी ने एक फ़र्म को दे रखा था , वाहनो के परिवहन मे एक ड्राईवर की दुर्घटना मे मौत  हो गयी | यूनाइटेड इंडिया  इन्स्योरेंस  ने ड्राईवर की मौत का हरजाना देने से यह कहते हुए मना कर दिया की वह कंपनी का कर्मी  नहीं था | इस पर अदालत ने फैसला दिया की बीमा की राशि देने की ज़िम्मेदारी  महिंद्रा अँड महिंद्रा की हैं | चूंकि वही  मूल नियोक्ता हैं , और मरने वाला उनके ही दायित्व को पूरा कर रहा था | यह ऐतिहासिक फैसला बीमा कंपनियो मे कितनी समझ देगा भविस्य की बात हैं