सोम और सोमरस का रहस्य ?
ऋग्वेद से लेकर अनेक उप वेदो और और यज्ञ के कर्मकांडो के संदर्भ मे ''सोम'' एवं सोमरस का ''' वर्णन आया हैं | परंतु संभवतः वेदो मे लिखे संकेतो को पर्याप्त रूप से समझ न सक्ने के कारण इसे अनेक रूपो मे परिभाषित किया गया हैं |ऋग्वेद की रिचाओ मे भी अनेकानेक स्थानो मे ""सोम"" की महिमा गायी गयी हैं | उसे बल - बुद्धि प्रदान करने वाला कहा गया हैं | यज्ञ मे बलि देने के अवसर पर विशेस रूप से इसका वर्णन किया गया हैं | जंहा आवाहन किए गए देवता को प्राषण्ण करने के लिए यह उन्हे आरपीत की जाती थी , वंही ''होता''उदगता'' एवं यज्ञ मे लगे हुए सभी ब्रांहणों द्वारा सेवन किए जाने का वर्णन हैं |
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 15 वे सूक्त मे ऋषि मेघा तिथि ने ग्यारह देवताओ की अभ्यर्थना करते हुए सोमरस प्रस्तुत किए जाने वरनाना किया हैं | इसमे कह गया हैं की "" इंद्र सोमरस का पान करे और उनकी सतुष्टि से जो बुँदे प्राप्त हो वे आराधक की मनोकामना पूरी करे । इस के आगे 22वे सूक्त मे भी ऐसी ही कामना की गयी हैं
यज्ञ मे ॐ सोमाय नमः संभवतः ईश्वर की परिकल्पना थी , जिनको आहुती दी जाती थी | शास्त्रो के अनुसार ''धर्म मेघ समाधि मे प्राप्त दैविक् अनुभूति को भी ''सोम '' कहा गया हैं | यह समाधि वेदो और शास्त्रो के गहन अध्ययन और ''अषटागिक् योग दर्शन के उपरांत ही योगी को प्राप्त होती थी | जो सोमरस का पान करता था |
वैसे कुछ पश्चिमी विद्वानो ने सोमरस को ''सोमलता '' के अर्क़ के रूप मे माना हैं | जिसका वानस्पतिक नाम संभवतः ईपीएचईडीआरए इपेधर | इसे विज्ञान ने माना हैं की यह एक बलवर्धक औषधि हैं ,जो मानव के सभी अंगो की छमता को बढा| देता हैं | इसे पेट संबंधी एवं श्वसन संबंधी बीमारियो मे दवा के रूप मे इस्तेमाल किया जाता हैं | इन तथ्यो कए बावजूद अभी यह बात आधिकारिक रूप से नहीं काही जा सकती की """सोम''' कौन सी वनस्पति हैं ? जैसे सिंधु घाटी की सभयता की लिपि पर विद्वान एक मत नहीं हैं उसी प्रकार ''सोम'' पर भी अभी विवाद हैं
ऋग्वेद से लेकर अनेक उप वेदो और और यज्ञ के कर्मकांडो के संदर्भ मे ''सोम'' एवं सोमरस का ''' वर्णन आया हैं | परंतु संभवतः वेदो मे लिखे संकेतो को पर्याप्त रूप से समझ न सक्ने के कारण इसे अनेक रूपो मे परिभाषित किया गया हैं |ऋग्वेद की रिचाओ मे भी अनेकानेक स्थानो मे ""सोम"" की महिमा गायी गयी हैं | उसे बल - बुद्धि प्रदान करने वाला कहा गया हैं | यज्ञ मे बलि देने के अवसर पर विशेस रूप से इसका वर्णन किया गया हैं | जंहा आवाहन किए गए देवता को प्राषण्ण करने के लिए यह उन्हे आरपीत की जाती थी , वंही ''होता''उदगता'' एवं यज्ञ मे लगे हुए सभी ब्रांहणों द्वारा सेवन किए जाने का वर्णन हैं |
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 15 वे सूक्त मे ऋषि मेघा तिथि ने ग्यारह देवताओ की अभ्यर्थना करते हुए सोमरस प्रस्तुत किए जाने वरनाना किया हैं | इसमे कह गया हैं की "" इंद्र सोमरस का पान करे और उनकी सतुष्टि से जो बुँदे प्राप्त हो वे आराधक की मनोकामना पूरी करे । इस के आगे 22वे सूक्त मे भी ऐसी ही कामना की गयी हैं
यज्ञ मे ॐ सोमाय नमः संभवतः ईश्वर की परिकल्पना थी , जिनको आहुती दी जाती थी | शास्त्रो के अनुसार ''धर्म मेघ समाधि मे प्राप्त दैविक् अनुभूति को भी ''सोम '' कहा गया हैं | यह समाधि वेदो और शास्त्रो के गहन अध्ययन और ''अषटागिक् योग दर्शन के उपरांत ही योगी को प्राप्त होती थी | जो सोमरस का पान करता था |
वैसे कुछ पश्चिमी विद्वानो ने सोमरस को ''सोमलता '' के अर्क़ के रूप मे माना हैं | जिसका वानस्पतिक नाम संभवतः ईपीएचईडीआरए इपेधर | इसे विज्ञान ने माना हैं की यह एक बलवर्धक औषधि हैं ,जो मानव के सभी अंगो की छमता को बढा| देता हैं | इसे पेट संबंधी एवं श्वसन संबंधी बीमारियो मे दवा के रूप मे इस्तेमाल किया जाता हैं | इन तथ्यो कए बावजूद अभी यह बात आधिकारिक रूप से नहीं काही जा सकती की """सोम''' कौन सी वनस्पति हैं ? जैसे सिंधु घाटी की सभयता की लिपि पर विद्वान एक मत नहीं हैं उसी प्रकार ''सोम'' पर भी अभी विवाद हैं
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