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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 9, 2023

 

सनातन धरम कितना सनातन

 सनातन धर्म  में समानता  और समन्वय का अभाव !

 

   सनातन  धर्म को लेकर देश में इस समय  दो  विचार चल रहे है – एक सत्ता धारी दल  का प्रचार , जिसमे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियो से कहा है की  इसका ठोस  जवाब देना चाहिये ! यह  स्पष्ट करता है की वे देश को  किस डीहा में ले जाना चाहते है – संविधान  के धर्म निरपेक्ष  स्वरूप को  खतम करने की यह नीति , साफ साफ रूप से  अल्पसंख्यक  धर्मो  के प्रति  उनके गैर बराबरी  रुख  को साफ करती है !  केंद्र  के प्रमुख  द्वरा  यह बयान  अत्यंत  ही खतरनाक है , जो देश में   सर्व धर्म सम भाव  को खतम करने का प्रयास है | यह कितना बड़ा पाखंड  है की जी 20 के सम्मेलन में   विश्व ऑर्डर की बात करने वाले नेता  का यह यह  दोहरा रईवया  अत्यंत चिंता  का सबब है !  यह साफ तौर पर  मणिपुर में ईसाई धर्मावलम्बी कुकी और  नूह में  इस्लाम माने वालो के प्रति  सत्ता के गैर समान व्यवहार को साफ करता है |  केवल इस्लामिक राज्यो में  इस प्रकार का गैर बराबरी  के नियम और कानून ही है , जिनकी  गोर आलोचना  आरएसएस और उनके आनुसंगिक संगठनो  द्वरा हमेश से किया जाता रहा है |  अब क्या वही संकीर्ण  मानसिकता  हमारे देश भारतवर्ष  में भी  थोपने की कोशिस  की जा रही है ! 

                    भारतवर्ष के प्रथम  उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री सरदार पटेल  ने  आज़ादी के तुरंत बाद आरएसएस और हिन्दू महासभा  द्वरा   हिन्दू राष्ट्र की मांग को खारिज करते उए कहा  था की देशके [तत्कालीन जनसंख्या ] 11 करोड़ मुसलमानो को  की हम अनदेखी नहीं कर सकते |  इस बयान को  खारिज करने के प्रयास में  हिन्दू समर्थित तत्वो द्वरा    विभिन्न धर्मो के पर्सनल  कानुनो को  देश के बहुसंख्यकों के प्रति अन्याय बताने का प्रचार  सोसल  मीडिया  पर खूब फैलाया जा रहा है | संतोष की बात है की --- केवल मोदी भक्तो के अलावा आम जनता में इस कुप्रचार को कोई महत्व  नहीं मिल रहा है |   सरदार पटेल की स्तुति करने वाले  प्रधान मंत्री  मोदी  उनकी बहुत बड़ी मूर्ति तो लगवा सकते है ---परंतु  उनकी  सलाह को  पूरी तरह से  अनदेखा  कर रहे है |

       उनका बयान  ,जो डीएमके  के उदयनिधि के कथन  के प्रतिकृया के रूप मे आया है --- वह देश के नेता का नहीं ---वरन एक राजनीतिक दल  के अगुआ  का है जिसे शासन  से कोई मतलब नहीं है ---- उसे तो सिर्फ बहुसंख्यक  के वोट  के लिए सस्ती   लोकप्रियता  का  पैंतरा  ही चाहिए !  हमे दक्षिण के राज्यो की सामाजिकता  को समझना  होगा --- की आखिर क्यू  वनहा की बहुसंख्यक  जनता

[ब्रांहणों को छोड़कर ]  क्यू सनातन धरम  का विरोध कर रही है , इसके मूल में क्या कारण है ?  दक्षिण के सभी राज्यो में   विजयनगर सामराज्य  और उसके बाद के राज्यो के काल में – ब्रांहणों  का मंदिर पर वर्चस्व रहा है |  राजा भी उनके  प्रभाव में रहे है | तेनाली राम  के किस्से  यह साबित करते है  की किस प्रकार  वनहा के ब्रांहनों  ने कर्मकांड  को इतना खर्चीला  बना दिया था की ---आम आदमी के लिए  देव उपासना  संभव नहीं रह गयाई थी !  केरल में तो नंबुदरी ब्रांहनों  ने गैर जाती की महिलाओ के साथ सामाजिक  रूप से  अत्यंत अपमानजनक स्थिति में रखने का नियम बना दिया था |  इस नियम के अनुसार त्रिव्ङ्कुर  कोचीन राज्य में  गैर ब्रांहनों  की महिलाओ को अपनि छाती  सार्वजनिक स्थानो पर खुली रखनी पड़ती थी !  इस अनाचार  का निर्मूलन  एक इडवा जाती की महिला की आहुती से बंद हुई | बतया जाता है की  इस इडवा जाती की महिला ने  सार्वजनिक स्थल  पर अपने  छती को कपड़े से ढाँक  रखा था | जिसके दंड स्वरूप  नंबुदरी  ब्रांहनों  ने उससे   जुर्माना  देने को कहा – जब उसने प्रतिरोध किया तब उसे राजा  के कोप का भय  उन ब्रांहनों ने दिया | फलस्वरूप  वह स्त्री घर के अंदर गयी  और अपने दोनों स्तनो को हंसिया से काटा कर  उन ब्रांहनों से कहा की वे अपना जुर्माना ले जाये –इतना कहने के बाद वह गिर गयी और उसकी म्रत्यु  हो गयी | इस घटना  ने सारे राज्य  मे  खलबली मचा दी | जब राजा  को  जनता के आक्रोश का पता चला  तब उसने यह प्रथा  बंद करने का आदेश दिया | परंतु उन ब्रांहनों  ने विरोध किया –क्यूंकी इससे से उनकी हैसियत  खतम हो रही थी !!  ---- ऐसा अत्याचार इस देश में ना तो मुगलो ने किया ना ही अंग्रेज़ो ने किया – यह सनातन धरम  के  पुरोडा ब्रांहनों  के  अत्याचार की मिसाल बन गया !

    अब ऐसी  धार्मिक  कुप्रथाओ  के  विरोध में ही  वासवराज  और  रामास्वामी  नायकर ने द्रविड़ कडगम आंदोलन चलाया बीसवी सदी  के आरंभ से इस आंदोलन  में सनातन धरम  के ब्रामहनवाद  का विरोध किया |  इस आंदोलन में गैर ब्रांहनों  की भागीदारी  रही है | जो दक्षिण के मदरसा राज्य केरल और  कर्नाटक   तक में रहा |  आंदोलन की धुरी  सनातन धर्म के कर्मकांड और अवतारवाद  तथा  मंदिरो के बहिसकार  थी |  कडगम समर्थक  मंदिर नहीं जाते ,वे नायकर  की मूर्ति  को पूजते है | जिस प्रकार  महाराष्ट्र और  उतारप्रदेश में बाबा साहब अंबेडकर को पूजते है | उन्होने भी सनातन धरम  की गैर बराबरी  का विर्ध किया था | अंत में उन्होने  बौद्ध धर्म स्वीकार किया था , जिसमे गैर बराबरी  का स्थान नहीं है |

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         डीएमके मंत्री उदयनिधि के बयान की सनातन धरम को   एक बीमारी  की तरह समूल नष्ट करना होगा ----- को लेकर  अनेक भगवा धारियो  ने  बहुत तरह के शाप  उनको दिये है , अब यह और बात है की  उनका असर नहीं दिखयी दे रहा है |   इस कड़ी में दो उदाहरणो  का उल्लेख बहुत जरूरी है , पहला  राम भद्राचर्या जिनहोने  कहा की ऐसा कहने वालो का नाश हो जाएगा !! दूसरा अयोध्या  जनहा  मोदी सरकार मर्यादा पुरषोतम  राम का मंदिर बनवा रही है –वनहा के एक  भगवा धारी   साधु जो खुद को संत लिखते और कहलाते है  -- उन्होने उदयनिधि  का सर काट कर लाने वाले को दस करोड़ र्पए का इनाम देने की घोषणा की है |  अब उत्तर प्रदेश  के योगी के राज्य में हुई ये घोसनाए  भगवधारी  मुख्य मंत्री  तो मौन स्वीकरती ही देंगे | वरना दस करोड़ का इनाम  की घोसना  सर काट कर लाने पर  “” घ्राणा के अपराध “ में आता है , परंतु भगवा वस्त्र  उनकी कानून से रक्षा करेगा | क्यूंकी अभी तक किसी  भी भगवा धारी  को  नफरत फैलाने वाले  भाषणो के अपराध में गिरफ्तार नहीं किया गया है --- भले ही उन्होने  गला काटने और हथियार उठाने की सार्वजनिक  ललकार दी हो !

      अब  भ्द्राचार्य जी के कथन की परीक्षा करते है –उन्होने कहा की सनातन धरम  को कोई अभी तक खतम नहीं कर सका है |  इनको बताना जरूरी है की  सनातन धरम की  जन्मना  जाती व्यसथा  और छूयाछुट  के कारण ही  बौद्ध धर्म और जैन धरम   आए | चूंकि सनातन धरम में  मानव की मानव  से बराबरी  नहीं है , वह जाति के आधार पर तय होती है |  तथा  यज्ञ और दिन प्रति दिन के कर्मकांड  की व्यसथा में धन  की बहुत आवश्यकता  होती है | समाज के निचले तबके जिनमे  श्रमिक वर्ग  और सैनिक  भी आते थे  वे अपने को इन आयोजनो से अलग पाते थे |   इससे समाज में “” गैर बराबरी “””  बहुत ज्यादा  हो गयी थी |  जिसको लेकर  राजसत्ता  नही चिंतित थी | परंतु  ब्रामहन अपने को वेदपाठी  होने का अधिकार  बता कर अन्य जातियो को अपने से नीचे  मानते थे |

         राज सिंहासनों  को भी वे अनेक प्रकार  के  पापो से  डराकर  रखते थे | सम्राट भी ऐसे राज पुरोहितो  को नमन करते थे |  ऐसी ही परिस्थिति में  बौद्ध  धरम का और जैन धरम  का आविर्भाव हुआ |  सनातन धरम  को राज धर्म के रूप में  इतिहास में तो किसी सम्राट ने नहीं मान्यता दी | परंतु  पुराणो कि कथाओ  में  अनेक किस्से है |  आज के इन भगवा धारियो  को यह मालूम होना  चाहिये  की अशोक महान  ने ना केवल बौद्ध धर्म अंगीकार किया वरन उसे राज्य का आश्रय भी दिया | इतना ही नहीं उसने अपने पूत और पुत्री को  बौद्ध धरम के प्रचार के लिए  श्री लंका भेजा था |  इतिहास में  किसी ने भी सनातन धर्म  के लिए  ऐसा योगदान  नहीं किया |

                  क्या   आज के साधु और स्वयं  घोसीत “”संत””  जगद्गुरू  आदि की  इन घटनाओ को नकार सकते है |  हाँ कंबोडिया  लाओस आदि में  थायलैंड  में सनातन धरम  के मंदिर है , परंतु  उनके बारे में कोई  इतिहास  का प्रमाण नहीं है | हाँ  कोई ना कोई तो गया होगा | जैसे बौद्ध धरम  भी इनहि देशो में राज धरम भी बना  | थायलैंड में तो राजा तक को बौद्ध धरम के अनुसार ही चलना होता है |

     अब  आते है की वर्तमान में हम जिस सनातन धरम  को पाते है , वह  आदिगुरु  शंकराचार्य   के समय  से  आया है | उन्होने  अपने गुरु गोविंदपद से नर्मदा  के तीर  पर दीक्षा  लेकर  भारत भ्रमण किया था | इसी के दौरान उन्होने  बौद्ध धरम  के आचार्यो  से शास्त्रार्थ  करके सनातन को वर्तमान रूप दिया |  तब  सनातन का  पराभव  तो सदियो तक रहा |  और बौद्ध तथा जैन धरम  जिनमे मूर्ति पुजा  का निसेध था कर्मकांड की मनाही थी ---आज  उनही मैं  गोममटगिरी  की विशाल मूर्ति की पूजा की जाती है | कर्मकांड भी है | और तो और धार्मिक अनुस्ठानों के लिए भक्तो मे होड  होती है – धर्म स्थलो के निर्मांन  के लिए बोली लगती है | अब जिस धरम  का उद्भव  मूर्ति पूजा के निषेध  से हुआ वनही यह हो रहा है | समय है |

       ऐसी ही स्थिति में  दक्षिण में  रामस्वमी नायकर और वासवराज  आए , और उन्होने उपासना से कर्मकांडो  की अधिकता को खतम किया |  सहज भाव से भजन  जैसे कबीर सूरदास ने किया कुछ उसी प्रकार  किया | मंदिर और मूर्ति के बहिसकार  के साथ उन्होने जन्म और म्र्त्यु के समय होने वाले कर्मकांडो को भी नकार  दिया |   वे अपने स्वजनो का दाह संस्कार नहीं करते –वरन  समाधि देते है |

 यह ब्रामहन से कडगम  आंदोलन में जुड़ी  तामिलनाडु की मुकयमन्त्री  जय ललिता   के उदाहरण से समझा जा सकता है |  म्र्त्यु के बाद उनकी वस्तुओ को बाँट दिया गया  | और उनको  काफिन  में रखकर  समाधि दे दी गयी | अब इसे हिंदुवादी  कहंगे की वह गैर हिन्दू थी ---उन्होने ब्रामहन परिवार में जन्म लिया था – उन्होने कभी धरम परिवर्तन नहीं किया था , हाँ वे कडगम आंदोलन की अगुवा बनी थी | अब यह सामाजिक परिवर्तन ही है | जैसे आज बौद्ध और जैन  मूर्ति  को मानने लगे है – और इस बदलाव को सभी ने स्वीकार किया है | उसी प्रकार  कडगम आंदोलन एक सामाजीक – धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन है | बस इतना  ही है की इसमे कोई धर्म गुरु नहीं होता | कर्नाटक  में भी इस परंपरा को मानने वाले लोग है | पत्रकार गौरी लंकेश जिनकी हत्या   हिन्दू वादी सेना के लोगो द्वरा की गयी ---- उनको  भी समाधि दी गयी थी | वैसे वे भी हिन्दू थी सनातनी थी | परंतु कर्मकांड और कट्टरता  की विरोधी थी | यह जवाब है भागवा धारी स्वयंभू संतो को |