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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 3, 2023

 

 | सुप्रीम कोर्ट के फैसले

चुनाव आयोग को शेषन जैसा शेर मिलने की उम्मीद , अदानी के बहाने स्टाक मार्केट और सरकारी सौदो की जांच !

 

                संवैधानिक पीठ द्वरा चुनाव आयोग को सक्षम- तथा सरकार  से स्वतंत्र बनाने का प्रयास – निश्चय ही नरेंद्र मोदी और उनके साथियो को  बेहद नागवार  लगा होगा , खासकर  लोकसभा और नौ विधान सभा चुनावो  के ठीक पहले |

 

      परंतु अब उनकी भी हालत वैसी ही है , जैसी अडाणी मामले में  विपक्ष  की मांग को नामंज़ूर करके उनकी सरकार ने संसद में  खुशी और –संतोष जाहीर किया था , अबकी बार विपक्षी दलो को ताली बजाने का मौका आठ  साल बाद मिला हैं !  विभिन्न राज्यो में हुए चुनावो  में –आयोग की कारवाई और फैसलो को लेकर सभी विपक्षी दल  चुनाव आयुक्तों के फैसले से  असंतुष्ट  रहे थे | हाल का शिवसेना का मामला एक उदाहरण ही –जिसमें  मुख्य चुनाव आयुक्त ने ना केवल  नाम और चुनाव चिन्ह ही शिंदे गुट को आवंटित किया --- वरन उसकी संपाती और कोश को भी  शिंदे गुट को द्दिए जाने  का हुकुम दिया ! अब दल की समपट्टी और कोश  का मामला दीवानी की अदालत का छेत्रधिकर है –चुनाव आयोग का नहीं ! परंतु वो कहते हैं ना की मोदी है तो सब मुमकिन  हैं ,  परंतु साधारण जागरूक  नागरिक जो कानून की सीमाओ को जानते हिन ,उन्हे यह फैसला , ऐसा लगा की चुनाव आयोग ने किसी संतुष्ट  करने के लिए अपने अधिकारो से बाहर जाकर फैसला किया | दलो में दो फाड़ , कोई पहली बार नहीं हुआ है ---काँग्रेस का दो फाड़ इन्दिरा गांधी के जमाने में हुआ था | उन्हे मूल पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह तथा कोश सभी कुछ नहीं मिला था | वे तब प्रधान मंत्री थी ! तब शिव सेना के शिंदे जी तो सिर्फ मुख्य मंत्री है और वह भी बीजेपी की मदद  से ! तब तो इन्दिरा गांधी को काँग्रेस के विद्रोही सांसदो ने बहुमत दिया था !  तब भी उनको  कांग्रेस {आई } की पहचान  ही मिली थी | यानहा तो  बहुमत ही बाहरी पार्टी के एमएलए लोगो से बना |

          एक  टीवी चैनल  की बहस में  पूर्व अट्टार्नी जनरल  मुकुल रोहतगी ने संविधान पीठ  के फैसले को  सरकार के अहीकर छेत्र में दखलंदाज़ी बताया | उन्होने कहा की जब पिछले 70 सालो से  आयोग को संवैधानिक स्थिति , नहीं मिली , क्यूंकी कानून नहीं बनाया गया | जबकि संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका के साथ मजबूत  लोकतन्त्र केय लिए  - निसपक्ष चुनाव आयोग की अवधारणा  की थी |  समिधान पीठ के मुखिया जुस्टिस जोसेफ  ने कहा की सत्ता को निरंतर अपने हाथो मे रखने की धारणा लोकतन्त्र के लिए खतरा हैं |  काँग्रेस नेता राहुल गांधी हो या ममता बैनर्जी  हो  या तेलंगाना के चंरशेखर हो सभी चुनावों के दरम्यान बीजेपी को  प्रचार में “” विशिस्ट सुविधा दिये जाने की शिकायत करते थे ---या केन्द्रीय सुरक्षा बालो द्वारा  बीजेपी के लोगो की गाड़ियो की जांच नहीं करते थे –वनही  अन्य दलो को गाड़ियो को जांच के नाम पर घंटो रोके रखते थे |

       अभी हाल का मामला है हिमञ्चल के विधन सभा के चुनवो की घोसना  तब तक रोके रखी गयाई –जब तक मोदी जी की जन सभाए और राइल्ली  सम्पन्न नहीं हो गयी |  इसी प्रकार का मामला है  चुनाव आयुक्त लवाशा का , जिनहोने नरेंद्र मोई और अमित शाह –के वीरुध आयोग में की गयी शिकायत  पर तथ्यो के आधार पर  दोनों नेताओ को “क्लीन चिट” देनी से इंकार कर दिया | जब उन्होने आयोग के फैसले को सार्वजनिक करने की मांग की तब  मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐसा करने से इंकार कर दिया ! इतना ही नहीं जब लवाशा ने आशंतुष्ट होकर आयोग से इस्तीफा दे दिया , तब उनके ऊपर ईडी द्वरा दबिश दी गयी –उनकी पत्नी के एन जी ओ  को लेकर ! यह थी सच बोलने की कीमत |

               पूर्व अट्टार्नी  जनरल रोहतगी जी ने कहा की  चुनाव आयोग की नियुक्तियों के लिए कालेजियम  का प्रावधान  , कार्यपालिका के छेत्र में दखलंदाज़ी है ---जो संविधान की तीनों निकायो {विधायिका –कार्यपालिका और न्यायपालिका }  के कार्य का विभजन करता हैं | मेरी जानकारी के अनुसार मोदी सरकार के पहले पाँच सालो में सीबीआई  के राजनेताओ पर छापे को लेकर तत्कालीन प्रधान न्यायधीश ने इसके निर्देशक पद की नियुक्ति के लिए  कालेजियम बनाया था --- मध्य प्रदेश के डीजी  शुक्ल जी , इसी कालेजियम की सहमति से सीबीआई डाइरेक्टर बने थे |

        एक घटना याद आती है पिछले लोकसभा चुनावो की थी शायद  कर्नाटक  में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  के दौरे के समय  एक चुनाव पर्यवेक्षक  ,जो  की आईएएस  थे और  मुस्लिम थे !  उन्होने उनके विमान की तलाशी  लेने की कोशिस की ---जो उनका अधिकार था | परंतु प्रधान मंत्री के लोगो ने प्रधान चुनाव आयुक्त को  खबर भेजी ---- परिणाम स्वरूप  प्रधान चुनाव आयुक्त का संदेश  उस अफसर  के पास आया की वे  तलाशी लेने की कोशिस ना करे  और उन्हे तुरंत उनके  दावीत्वों से मुक्त कर दिया  |

 

  चुनाव के दौरान  गैर बीजेपी दलो  के वाहनो और घरो पर छापा मारना  और  परेशान करऐसी बरमदगी नहीं हुई !ना  , कई बार कर्नाटक हो या बंगाल आंध्र या तेलंगाना  में गैर बीजेपी दलो के वाहनो से  लाखो रुपये की बरमदगी  की खबरे आती रही -----पर कभी भी बीजेपी के वाहनो से  ऐसी बरमदगी नहीं हुई | जबकि बीजेपी द्वरा  मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को या  महाराष्ट्र की ठाकरे  की सरकार को गिराने में  कितना पैसा खर्च हुआ होगा ,यह किसी का भी कोई अनुमान हो सकता हैं |  फिर चुनावो में इस पैसे का इस्तेमाल नहीं हुआ हो –ऐसा संभव नहीं !