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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 6, 2016

सरकार या प्रदहन मंत्री की आलोचना ना तो देशद्रोह है और नाही मानहानि सुप्रीम कोर्ट

हार्दिक और कन्हैया---सत्यग्राही या देशद्रोही ??

बीते समय मे सरकार की आलोचना को जिस प्रकार "”राष्ट्र द्रोह "”अथवा "”देशद्रोह "” के रूप मे वाचाल नेताओ और तत्वो द्वारा प्रस्तुत किया जाता था , उसे शायद विराम तो शायद नहीं परंतु झटका ज़रूर लगा होगा सुप्रीम कोर्ट के ताज़े फैसले से | न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति यू सी ललित की खन्ड पीठ ने स्पष्ट किया की भारतीय दंड संहिता की धारा 124[] जो की देशद्रोह को परिभाषित करती है ,, उसके अनुसार शासन अथवा सरकार की आलोचना देशद्रोह तो बिलकुल नहीं है | प्रख्यात वकील प्रशांत भूसण द्वारा एक स्वयं सेवी संगठन कामन काज की याचिका की पैरवी करते हुए कहा की पाँच जजो की संविधान पीठ ने 1964 मे ही केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राजी के मामले मे स्पष्ट रूप से रेखांकित किया था की सरकार या उसके सदस्यो की आलोचना देशद्रोह नहीं है |

यद्यपि अपने फैसले को राज्यो की पुलिस को भेजे जाने की प्रार्थना को मंजूर नहीं किया | उनका कहना था की यदि किसी को भी परेशान करने की नीयत से इस आरोप मे गिरफ्तार किया जाता है तो वह हमारे पास आ सकता है | चूंकि इस मामले मे व्याख्या की मांग है अतः यह फैसला |

इस निर्णय की रोशनी मे गुजरात के पटेलों के आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और जवाहर लाल नेहरू विस्वविद्यालया के छात्र नेता कन्हैया को पुलिस प्रशासन द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124[] जो की देशद्रोह से संबन्धित है की गयी गिरफ्तारी और कारवाई पूरी तरह "””गलत और अवैधानिक "” सीध हो जाती है |
एक प्रकार से यह फैसला ऐसे समय मे आया है जब "”राष्ट्र"” के तथा कथित "”स्वयंभू रक्षक "” की पोल खोल देता है | वनही दिल्ली और गुजरात पुलिस -प्रशासन की "””दबंगी "” का खुलाषा करता है | इस फैसले यह स्पष्ट हो जाता है की "”गिरफ्तारी और निरूढ़ '' करने क्ले अधिकार का उपयोग राजनीतिक उद्देसय से किया गया है | दोनों ही मामले मे इन नेताओ ने गुजरात की सरकार और नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री की नीतियो की सार्वजनिक रूप से पोल खोली थी |

राष्ट्रद्रोह शब्द का इस्तेमाल बीते समय मे सत्तारूद पार्टी {केंद्र मे } के नेताओ द्वारा अपने आलोचको का मुंह बंद करने के लिए किया गया | भले ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यो को इस संबंध मे निर्देश नहीं दिये --परंतु प्रभावित - पीड़ित व्यक्ति अदालत से संरक्षण तो प्रापत तो कर ही सकता है