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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 26, 2015

असहिष्णुता पर संसद मे हुई चर्चा का अर्धसत्य --



                    असहिष्णुता पर लोकसभा मे हुई बहस मे काँग्रेस के हमले के जवाब मे ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह जी का सरकार की ओर से उत्तर  बताता कम है और छिपाता ज्यादा है |  जनहा सरकार ने  असहिष्णुता के आरोप के जवाब मे   भीमराव  अंबेडकर  का सहारा लिया ,,वही काँग्रेस अध्यक्ष  सोनिया गांधी ने  संघ और बीजेपी पर संयुक्त रूप से हमला किया |  सोनिया गांधी ने कहा की  आज संविधान के आदर्श  और सिद्धांत  खतरे मे है |  जिन लोगो का देश के संविधान निर्माण की प्रक्रिया से कोई योगदान नहीं रहा तथा जिन लोगो को  हमारे संविधान पर विश्वास नहीं है ---वे आज इस पर दावा जता  रहे है | उन्होने अंबेडकर का हवाला देते हुए उद्धरत किया की बाबा साहब ने कहा था की संविधान चाहे  कितना भी अच्छा हो ----अगर उसे अमल के लिए जिम्मेदार लोग  अगर ''खराब'''है तो  तो उसका अंतिम नतीजा भी खराब ही होगा |

                                                  सरकार की ओर से गृह मंत्री राज नाथ सिंह ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा की देश मे ""सेकुलर """\\{{धरम निरपेक्ष }} शब्द का सर्वाधिक ""दुरुपयोग हुआ है | उन्होने कहा की अंबेडकर ने  सोसलिस्ट और सेकुलर  शब्द संविधान मे नहीं रखे थे | देश मे एक मिथक है की डॉ अंबेडकर संविधान सभा के आद्यक्ष थे | कम से कम ऐसा  आभाष दिया जाता है | जो की तथ्यो से नितांत परे है | वास्तविकता है की संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद थे | जो बाद मे देश के राष्ट्रपति था अंबेडकर सभा की अनेक समितियों मे से एक के प्रारूप समिति के संयोजक थे | जिसका दायित्व  था की विभिन्न समितियों से मिले सुझावो को एक रूप देना |  देश उनके योगदान का क़र्ज़दार है और रहेगा |

                                                  राजनाथ सिंह जी ने कहा की अंबेडकर ने देश छोड़ने  का कभी नहीं सोचा था  पर वे यह बताना  ""भूल गए की  अंबेडकर ने   वेदिक धर्म त्याग कर नागपूर मे ही    अनुयायियों सहित बौद्ध धर्म  अंगीकार किया था | ऐसा क्यो हुआ था ?? क्या यह तत्कालीन समय के समाज मे पनप रही  असहिष्णुता का परिणाम ही था या नहीं ?? अन्यथा एक बैरिस्टर  को केवल अपनी ''जाति"" के कारण धर्म छोड़ना पड़ा ??

                                                  दूसरा उदाहरण  है प्रसिद्ध  चित्रकार  एम एफ हुसैन का -- जिनहे बॉम्बे मे शिवसेना  के """धमकियो के कारण """ देश छोड़कर दुबई  जा कर  बसना पड़ा |  दुख की बात यह है की  उनको   """दो गज़ ज़मीन  भी अपने मुल्क मे दफनाये जाने के लिए नसीब नहीं हुई """  क्या वे  भारतीय नहीं थे ? क्यो उन्हे  बहादुर शाह जफर के मानिंद   ""परदेश"" मे कब्र  मे सोना पड़ा |


                                                  इसलिए गृह मंत्री का यह कहना की देश मे  असहिष्णुता नहीं है ----हक़ीक़त है की  इस देश मे ""''जातीय और धर्म परक""" असहिष्णुता थी और वह अभी कुछ ज्यादा स्पीड से जारी है |इसका कारण  देश मे व्याप्त   अनुदार भावना है | जो सभी जातियो और धार्मिक समूहो मे मे व्याप्त है |  यह भी हक़ीक़त है की  देश के कुछ """नेताओ """के भासण     इस आग  को अंगारा बनाने का काम  बखूबी कर रहे है | अगर सत्तारूद दल के और उनके समर्थक  नेताओ के '''' आग लगाने वाले और  नफरत फैलाने वाले और   बात बात पर  पाकिस्तान भेजने की धम्की देने और जिसे चाहा  '''देशद्रोही --राष्ट्र द्रोही ''''' करार  कर देना --जारी रहेगा तब तक देश असहिष्णुता  से ''ग्रस्त रहेगा जैसे व्यक्ति  बीमार होता है ,,वैसे ही राष्ट्र  रोगी बना रहेगा |

                                           सेकुलर शब्द से एलर्जी  का कारण शायद तिरंगे और  संविधान के प्रति पूर्ण समर्पण मे कमी होना ही हो ----शायद ...........

परेश रावल की अभिनय वाह वाह और आमिर का अभिनय तो पातक कैसे हुआ ?

सहिष्णुता एक भावना है जो हमे सहनशील बनाता है ---जो अप्रिय स्थितियो अथवा वचन का तर्जपूर्ण और तथ्य पूर्ण विवेचना का विवेक प्रदान करता है | जिस से की हम किसी भी बहस या स्थान पर अपनी रॉय रह पाते है | शास्त्रार्थ इसी की परनीति है | जब हम सभी पहलुओ को जाने - पारखे बिना अपनी प्रतिकृया देते है तब हम -कनही ना कनही अधूरे होते है | आमिर खान के मामले मे भी कुछ भक्त गण केवल उनके मुसलमान होने और देश मे सहिष्णु वतरवारण के अभाव की बात काही थी | उन्होने जो कहा वह अनेक लोगो द्वारा भी व्यक्त किया जा रहा है | मिसाल के तौर पर लिखा गया की उन्होने 3000 करोड़ रुपये फिल्मों से कमाए है ---देवी देवताओ का मज़ाक पीके फिल्म मे उड़ाया है | अब दो तथ्य है की उन्होने पैसा कमाया सच क्या है वह तो इंकम तक्ष वाले जाने ---परंतु पीके फिल्म अकेले इतना बुईस्नेस्स नहीं कर सकी थी | दूसरा की उन्होने देवी -देवताओ का मज़ाक उड़ाया -----तब स्वाभाविक रूप से पीके से बेहतर पिक्चर थी ओएमजी अर्थात ओह माइ गाड़ जिसके मुख्य कलाकार थे परेश रावल जी | वे एक बेहतरीन कलाकार है | अब अगर देवी - देवताओ का मज़ाक उड़ाने पर """ आमिर देशद्रोही """' है तब परेश रावल क्यो नहीं ??/ क्या इसलिए की वे भारतीय जनता पार्टी के सांसद है इसलिए अथवा इसलिए की वे हिन्दू है ??? अर्थात भक्त हिन्दू द्वारा देवताओ का मज़ाक उड़ाने के अभिनय का बुरा नहीं मानते ----लेकिन अगर यही काम किसी आँय धर्म अर्थात मुसलमान द्वरा जैसे आमिर खान द्वारा किया गाय -----तब वह """पातक"""" हो गया || अब किस तर्क से यह संभव है वह जानने का अभिलाषी हूँ ?

Nov 15, 2015

आतंक के खिलाफ लामबंद होती दुनिया---और सम्मानित करते हम

आतंक के खिलाफ लामबंद होती दुनिया---और सम्मानित करते हम

पेरिस मे आई एस आई एस के बार्बर हमले के बाद जब दुनिया के अधिकतर देश इन चरमपंथियो की निंदा कर रहे थे| फ्रांस के राष्ट्रपति ओलंद इस कारवाई को युद्ध बता रहे थे उस समय बॉम्बे के समीप ठाणे उप नगर मे महाराणा प्रताप बटालियन के संगठन के बैनर तले राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को "”शहीद "”” बता कर उनको श्रंधाजली दी जा रही थी | इस आयोजन के पीछे हिन्दू महासभा का हाथ था | इससे कुछ दिन पूर्व पंजाब मे सरबत खालसा का आयोजन कर के पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे को भीड़ ने "””अकाल तख़त "””मुख्य जत्थेदार नियुक्त करने का प्रस्ताव पास किया |

श्रीमती गांधी के हत्यारो के परिजनो को कुश समय पूर्व अमरतसर मे सरोपा भेंट करके उनका सम्मान किया था ,,की उनके द्वरा संगत की मर्यादा की रक्षा के लिए "”शहीद "” हुए थे | मुंबई मे ताज होटल पर हुए हमले के षड्यंत्र मे क़स्साब को फांसी दिये जाने के खिलाफ तो कोई आवाज नहीं उठी | परंतु इसी मामले मे जब एक व्यक्ति को फांसी की सज़ा दी गयी तब भी एक वर्ग ने बहुत हो हल्ला मचाया था | उनका एतराज़ था की उसकी "””दया याचिका '' का निपटारा लाइन से पहले कर दिया गया जिस से की उसे प्राणदंड दिया जा सके |
इन घटनाओ को बताने का तात्पर्य यह है की एक ओर '''आतंक''' की घटनाओ पर देश - दुनिया एक हो रहे है और दूसरी ओर इन घ्राणित घटनाओ को अंजाम देने वालों को "””नायक"”” बना कर पेश किया जा रहा है | देश मे नक्सलवादी या माओवादी दलम द्वरा निर्दोष लोगो की हत्या किए जाने अथवा अपहरण किए जाने की घटनाओ को किस प्रकार सराहा जा सकता है ?? राजनीतिक विचारधारा की मुखालफत "”हिनशा "” द्वारा किए जाने मे मासूम और निर्दोष लोगो की हत्या को कैसे ''सही'' ठहराया जा सकता है ??

लेकिन वर्तमान हालत मे लग रहा है की की अब ऐसी घटनाए बाद सकती है , क्योंकि जब सारा विश्व इस इस्लामिक संगठन के विरुद्ध कारवाई करे तो यह संभव है की उसे किसी भी देश का समर्थन नहीं मिले | क्योंकि इस संगठन ने अभी तक लगभग आधे दर्जन इस्लामिक देशो मे अफरा -तफरी फैला रखी थी | अपने को '””खलीफा ए सुन्नत "”'कहने वाले बगदादी ने अभी तक तो '''सिर्फ मुसलमानो को ही मारा है और उनकी महिलाओ को बार्बर बलात्कार का शिकार बनाया है ''''|महिलाओ से बलात्कार के लिए ''' बोको -हरम “”” ही बदनाम था |परंतु मेक्सिकन महिला कार्ला का फोटो उजागर होने के बाद यह तथ्य सामने आया की उसके साथ इस संगठन के सदस्यो द्वारा 40 हज़ार बार बलात्कार किया गया | ऐसे नराधम हरकतों को कैसे ''धार्मिक निरूपित किया जा सकता है "”??? क्या सिर्फ इसलिए की वह एक ऐसे संगठन द्वारा किया जा रहा है,, इस्लामिक संगठन है ???


अब देखना होगा की क्या अमरीका और रूस संयुक्त कारवाई कर के सीरिया मे इनके ठिकानो को नेस्तनाबूद करेंगे अथवा अभी सिर्फ '''वार्ता का दौर चलेगा "?? अथवा इज़राइल के नामी संगठन ''मोसाद''' को पेरिस हमले के जिम्मेदार लोगो को ठिकाने लगाने के लिए कहा जा सकता है ? भले ही यहूदियो और मुसलमानो की शत्रुता जग ज़हीर हो --परंतु यह भी तथ्य है की ऐसे आतंकवादियो को किसी देश का नहीं वरन समस्त मानव सभ्यता का दुश्मन माना जाना चाहिए |  

Nov 6, 2015

असहिष्णुता तो रावण की लंका मे भी नहीं थी फिर कैसे …...........

असहिष्णुता तो रावण की लंका मे भी नहीं थी फिर कैसे …


भारत मे राम कथा अनेक भाषाओ मे और अनेक प्रकार से लिखी और गायी गयी है --वह भी सदियो से ,, लंका रक्ष संसक्राति की राजधानी थी ---स्वर्ण की बनी हुई थी ऐसा कहा गया है | वनहा सभी सम्पन्न थे अपने मानदंड से सुखी ही रहे होंगे | रावण का विष्णु से वैर जग ज़ाहिर था | परंतु उसके राजमहल के पड़ोस मे ही उसका अनुज विभीसण का महल था ---जनहा से आराधना और कीर्तन तथा आरती की घंटी प्रतिदिन बजती थी | रावण शक्तिशाली सम्राट था --अगर वह असहिष्णु होता तो अपने अनुज को सागर मे फिकवाने मे एक छण भी नहीं लगता ---- परंतु उसने अंत समय तक ऐसा नहीं किया | क्योंकि वह असहिष्णु '''नहीं था '''''| इस उदाहरण का अर्थ यह था की द्वापर युग मे भी ''विषम ''' विचारधाराए अगल - बगल चलती थी | शासक अपने को ''प्रजा ''' पर थोपता नहीं था |

असहिष्णुता के वर्तमान माहौल मे कुछ ''अत्यंत भ्क़त श्रेणी के लोगो को यह नज़र ही नहीं आती है --उनके अनुसार देश मे सर्वत्र '''शांति '''विराजती है "”| जबकि हक़ीक़त यह है की विचारो से लेकर विश्वास के विरोध के मध्य सत्तारूढ दल और सरकार मे बैठे लोग "”केवल अपने को स्वयंसिधा "”” मान बैठे है | संविधान मे अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार होने के बावजूद ,,और उसे व्यक्त करने के प्रतिरोध की कानूनी मान्यता होने के बाद भी "””सरकार और -देश को एकाकार किया जा रहा है "”| इसका आभाष दो मामलो मे मिलता है | गुजरात मे पटेल समुदाय के आंदोलन के प्रणेता हार्दिक पटेल के विरुद्ध "””देशद्रोह "”” की धारा लगाई गयी | दूसरा मामला तीस्ता शीतलवाड के गैर सरकारी संगठन द्वारा "” अनावश्यक व्यय ''' किए जाने के मामले मे भी गुजरात पुलिस द्वारा "”देशद्रोह"” की धराए लगाई गयी | तीस्ता के मामले की सुनवाई गुजरात के बाहर बॉम्बे हाई कोर्ट मे सुनवाई हुई | अदालत ने पुलिस के आरोपो को खारिज करते हुए कहा "”” सरकार का विरोध करना देशद्रोह नहीं है "”” | अगर हम विगत समय की घटना बाबरी मस्जिद को ढहाने के मामले मे किसी भी आरोपी के विरुद्ध ऐसी धराए नहीं लगाई गयी थी | जबकि आडवाणी और उमा भारती तथा अन्य नेताओ के "””आग लगायू''' भसनों से तत्कालीन समय मे देश का वातावरण काफी जहरीला हो चुका था | अनेक स्थानो मे इस घटना के परणाम स्वरूप हिन्दू -मुस्लिम दंगे भी हुए | सुप्रीम कोर्ट मे तत्कालीन मुख्य मंत्री और वर्तमान मे राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने तब एक ''हलफनामा ''' देकर सरकार की ओर से मस्जिद की सुरक्षा का वचन दिया था | परंतु वह भी झूठा सीध हुआ | उस मामले मे भी किसी के विरुद्ध देशद्रोह की धराए नहीं लगाई गयी |
अब इन उदाहरणो के समक्ष अगर हम हार्दिक पटेल और तीस्ता के मामलो को परखे तो सरकारी तंत्र की असहनशीलता साफ हो जाती है | साहित्य अकादमी के सम्मानों को वापस करने वाले लेखको और साहित्यकारों और फ़िल्मकारों के फैसले को "”राजनीति प्रेरित"”” बताना , इसे क्या कहा जा सकता है ?? उनका विरोध तीन लेखको की हत्या के मामले मे सरकार द्वारा "”मौन धरण करने "” से था | चूंकि वे सभी कट्टरवादिता और कठमुल्लापन के विरोध मे लिखते थे और बोलते थे ,,इस कारण उनकी आवाज़ को शांत कर दिया गया |
केंद्रीय सरकार को तब स्थिति की गंभीरता समझ मे आई जब नारायणमूर्ति और किरण शॉ जैसे उद्योगपतियों ने भी तथा वैज्ञानिको ने भी देश मे असहिष्णु
वातावरण होने की आवाज़ बुलंद की | ये ऐसी आवाज़े थी जिनहे सत्तारूढ दल के लोग नकार नहीं सकते थे | अंतराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित अरुंधति रॉय ने भी जब प्रपट सम्मान को वापस करने की घोषणा की तब गृह मंत्रालय को गंभीरता समझ मे आई | एक महत्वपूर्ण कारण था की देश की वित्तीय साख को नापने वाली संस्था "””मूडीज़' “” ने भी अपनी रिपोर्ट मे देश के अशांत वातावरण को "”प्रगति और निवेश ''के लिए घातक बताया | इस पर मोदी सरकार ने मूडीज़ से अपना विरोध दर्ज़ कराया और प्रतिउत्तर मे कहा की "”उनकी रिपोर्ट धरातल से प्राप्त तथ्यो पर आधारित है और उनकी रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित बताना बिलकुल गलत है "” | चूंकि मूडीज़ की साख अंतराष्ट्रीय जगत मे एक विशेषज्ञ की है इसलिए मोदी सरकार की चिंता बढ गयी ,, और प्रधान मंत्री कार्यालय ने असंतुष्ट लेखको और फ़िल्मकारों तथा वैज्ञानिको एवं उद्योगपतियों की शिकायत '''सुनने के लिए ''' पहल की | इस सम्पूर्ण घटनाक्रम से वही किस्सा याद आता है की अभियुक्त को दस सेर प्याज़ खाने दस अशर्फी जुर्माना देने और दस कोड़े खाने की सज़ा दी गयी --परंतु ज़िद्द और असमंजस मे उसको तीनों सजाये भुगतनी पड़ी | खैर अगर इस पहल से सत्तारूद दल के नेताओ और उनके समर्थक संगठनो के स्वयंभू प्रवक्ताओ द्वारा किसी को भी देश द्रोही या राष्ट्रद्रोही का फतवा सुना देना अथवा किसी को भी पाकिस्तान भेज देने की धम्की देने का सिलसिला बंद हो सकेगा ,ऐसी उम्मीद तो करनी चाहिए | परंतु शंकाओ के साथ की "” क्या ऐसा हो सकेगा ?”””