असहिष्णुता
तो रावण की लंका मे भी नहीं
थी फिर कैसे …
भारत
मे राम कथा अनेक भाषाओ मे और
अनेक प्रकार से लिखी और गायी
गयी है --वह
भी सदियो से ,,
लंका
रक्ष संसक्राति की राजधानी
थी ---स्वर्ण
की बनी हुई थी ऐसा कहा गया है
| वनहा
सभी सम्पन्न थे अपने मानदंड
से सुखी ही रहे होंगे |
रावण
का विष्णु से वैर जग ज़ाहिर था
| परंतु
उसके राजमहल के पड़ोस मे ही
उसका अनुज विभीसण का महल था
---जनहा
से आराधना और कीर्तन तथा आरती
की घंटी प्रतिदिन बजती थी |
रावण
शक्तिशाली सम्राट था --अगर
वह असहिष्णु होता तो अपने
अनुज को सागर मे फिकवाने मे
एक छण भी नहीं लगता ----
परंतु
उसने अंत समय तक ऐसा नहीं किया
| क्योंकि
वह असहिष्णु '''नहीं
था '''''|
इस
उदाहरण का अर्थ यह था की द्वापर
युग मे भी ''विषम
'''
विचारधाराए
अगल -
बगल
चलती थी |
शासक
अपने को ''प्रजा
''' पर
थोपता नहीं था |
असहिष्णुता
के वर्तमान माहौल मे कुछ
''अत्यंत
भ्क़त श्रेणी के लोगो को यह
नज़र ही नहीं आती है --उनके
अनुसार देश मे सर्वत्र '''शांति
'''विराजती
है "”|
जबकि
हक़ीक़त यह है की विचारो से लेकर
विश्वास के विरोध के मध्य
सत्तारूढ दल और सरकार मे बैठे
लोग "”केवल
अपने को स्वयंसिधा "””
मान
बैठे है |
संविधान
मे अभिव्यक्ति की आज़ादी का
अधिकार होने के बावजूद ,,और
उसे व्यक्त करने के प्रतिरोध
की कानूनी मान्यता होने के
बाद भी "””सरकार
और -देश
को एकाकार किया जा रहा है "”|
इसका
आभाष दो मामलो मे मिलता है |
गुजरात
मे पटेल समुदाय के आंदोलन के
प्रणेता हार्दिक पटेल के
विरुद्ध "””देशद्रोह
"””
की
धारा लगाई गयी |
दूसरा
मामला तीस्ता शीतलवाड के गैर
सरकारी संगठन द्वारा "”
अनावश्यक
व्यय '''
किए
जाने के मामले मे भी गुजरात
पुलिस द्वारा "”देशद्रोह"”
की
धराए लगाई गयी |
तीस्ता
के मामले की सुनवाई गुजरात
के बाहर बॉम्बे हाई कोर्ट मे
सुनवाई हुई |
अदालत
ने पुलिस के आरोपो को खारिज
करते हुए कहा "””
सरकार
का विरोध करना देशद्रोह नहीं
है "””
| अगर
हम विगत समय की घटना बाबरी
मस्जिद को ढहाने के मामले मे
किसी भी आरोपी के विरुद्ध ऐसी
धराए नहीं लगाई गयी थी |
जबकि
आडवाणी और उमा भारती तथा अन्य
नेताओ के "””आग
लगायू'''
भसनों
से तत्कालीन समय मे देश का
वातावरण काफी जहरीला हो चुका
था |
अनेक
स्थानो मे इस घटना के परणाम
स्वरूप हिन्दू -मुस्लिम
दंगे भी हुए |
सुप्रीम
कोर्ट मे तत्कालीन मुख्य
मंत्री और वर्तमान मे राजस्थान
के राज्यपाल कल्याण सिंह ने
तब एक ''हलफनामा
''' देकर
सरकार की ओर से मस्जिद की
सुरक्षा का वचन दिया था |
परंतु
वह भी झूठा सीध हुआ |
उस
मामले मे भी किसी के विरुद्ध
देशद्रोह की धराए नहीं लगाई
गयी |
अब
इन उदाहरणो के समक्ष अगर हम
हार्दिक पटेल और तीस्ता के
मामलो को परखे तो सरकारी तंत्र
की असहनशीलता साफ हो जाती है
| साहित्य
अकादमी के सम्मानों को वापस
करने वाले लेखको और साहित्यकारों
और फ़िल्मकारों के फैसले को
"”राजनीति
प्रेरित"””
बताना
, इसे
क्या कहा जा सकता है ??
उनका
विरोध तीन लेखको की हत्या के
मामले मे सरकार द्वारा "”मौन
धरण करने "”
से
था |
चूंकि
वे सभी कट्टरवादिता और कठमुल्लापन
के विरोध मे लिखते थे और बोलते
थे ,,इस
कारण उनकी आवाज़ को शांत कर
दिया गया |
केंद्रीय
सरकार को तब स्थिति की गंभीरता
समझ मे आई जब नारायणमूर्ति
और किरण शॉ जैसे उद्योगपतियों
ने भी तथा वैज्ञानिको ने भी
देश मे असहिष्णु
वातावरण
होने की आवाज़ बुलंद की |
ये
ऐसी आवाज़े थी जिनहे सत्तारूढ
दल के लोग नकार नहीं सकते थे
|
अंतराष्ट्रीय
बुकर पुरस्कार से सम्मानित
अरुंधति रॉय ने भी जब प्रपट
सम्मान को वापस करने की घोषणा
की तब गृह मंत्रालय को गंभीरता
समझ मे आई |
एक
महत्वपूर्ण कारण था की देश
की वित्तीय साख को नापने वाली
संस्था "””मूडीज़'
“” ने
भी अपनी रिपोर्ट मे देश के
अशांत वातावरण को "”प्रगति
और निवेश ''के
लिए घातक बताया |
इस
पर मोदी सरकार ने मूडीज़ से
अपना विरोध दर्ज़ कराया और
प्रतिउत्तर मे कहा की "”उनकी
रिपोर्ट धरातल से प्राप्त
तथ्यो पर आधारित है और उनकी
रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित
बताना बिलकुल गलत है "”
| चूंकि
मूडीज़ की साख अंतराष्ट्रीय
जगत मे एक विशेषज्ञ की है इसलिए
मोदी सरकार की चिंता बढ गयी
,, और
प्रधान मंत्री कार्यालय ने
असंतुष्ट लेखको और फ़िल्मकारों
तथा वैज्ञानिको एवं उद्योगपतियों
की शिकायत '''सुनने
के लिए '''
पहल
की | इस
सम्पूर्ण घटनाक्रम से वही
किस्सा याद आता है की अभियुक्त
को दस सेर प्याज़ खाने दस अशर्फी
जुर्माना देने और दस कोड़े खाने
की सज़ा दी गयी --परंतु
ज़िद्द और असमंजस मे उसको तीनों
सजाये भुगतनी पड़ी |
खैर
अगर इस पहल से सत्तारूद दल के
नेताओ और उनके समर्थक संगठनो
के स्वयंभू प्रवक्ताओ द्वारा
किसी को भी देश द्रोही या
राष्ट्रद्रोही का फतवा सुना
देना अथवा किसी को भी पाकिस्तान
भेज देने की धम्की देने का
सिलसिला बंद हो सकेगा ,ऐसी
उम्मीद तो करनी चाहिए |
परंतु
शंकाओ के साथ की "”
क्या
ऐसा हो सकेगा ?”””
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