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Oct 29, 2015

उच्चतम न्यायालय के फैसले सरकार के लिए दुविधा या सुविधा .......

उच्चतम न्यायालय के फैसले सरकार के लिए दुविधा या सुविधा .......
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोदी सरकार के संवैधानिक
संशोधन से जजो की नियुक्ति के लिए बनाई गयी व्यवस्था को "”ठुकरा "”कर जहा नरेंद्र मोदी और जेटली जी की प्रतिस्ठा को धक्का दिया | वनही शिक्षा संस्थानो मे आरक्षण के प्रश्न पर सर संघचालक मोहन भागवत के आवाहन को बल प्रदान किया है | उनके अनुसार आज़ादी के 68 साल बाद भी अनेकों विशेसाधिकार मे परिवर्तन नहीं होने पर चिंता जताई | उन्होने कहा की केंद्र और राज्य सरकारो को सुपर स्पैशलिटी कोर्स मे केवल मेरिट से ही भर्ती होनी चाहिए | उन्होने यह भी कहा की केंद्र को इस ओर जल्दी ही "”उचित कदम "” उठाने की नसीहत भी दी |

जस्टिस दीपक मिश्रा और
पी सी पंत के इस फैसले मे 27 साल पुराने फैसले का भी ज़िक्र किया गया , इतना ही नहीं अन्य कई मामलो का भी हवाला दिया | उनके अनुसार आंध्रा - तेलंगाना - और तमिलनाडू के सुपर स्पैशलिटी कोर्स मे आरक्षण की सुविधा को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला दे रहे थे | इन राज्यो ने इन कोर्सो मे भी जातिगत आरक्षण दिया था | जिस से की अनेकों सामान्य वर्ग के छात्र प्रभावित हुए थे , जिनके अंक आरक्षित वर्ग के छात्रो से कही अधिक थे | जिस कारण इन लोगो ने ''योग्यता'' को भर्ती का आधार बनाए जाने की मांग की थी | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षण के पुनरीक्षिण की संघ और उसके समर्थित संगठनो की मांग को बल मिलेगा |

अभी बिहार विधान सभा चुनावो के दो चरण बाक़ी है , जिनमे यह फैसला इस्तेमाल किया जा सकता है | इस निर्णय को आरक्षण समर्थक "”सवर्णों"”” द्वारा किया गया फैसला निरूपित कर के देश मे तूफान मचा सकते है | इस फैसले ने संघ की सोच और नीति को एक वैधानिक बल प्रदान किया है , जिसे राजनीतिक दल करने से बच रहे थे |
जिस समय भागवत ने यह आवाज उठाई --उस के बाद से मोदी सरकार ने सार्वजनिक रूप से देश के सामने ''''कहा था की आरक्षण को छुआ भी नहीं जाएगा "””, परंतु अब उनके लिए एक सुनहरा अवसर है है की ---अब तो कोर्ट ने भी कह दिया अब हमारे सामने उसके आदेश का पालन करने के अलावा कोई चारा नहीं है | इस प्रकार वे अदालती फैसले की आड़ मे अपने यानि ''संघ '''के "”एजेंडे '''को पूरा करने की पहल भी कर सकते है | विरोधियो को अदालती फैसले का "””असम्मान "”” का आरोप भी लगाया जा सकेगा |

प्रधान न्यायधीश एम एल दत्तू ने एक इंटरव्यू मे कहा था की सरकार को "”विवादित "”बयान"” देने वालों पर लगाम लगानी चाहिए | सरकार को चाहिए की वह शांति - व्यवस्था को देश मे बनाए रखे | जिस से की देश मे कानून -व्यवस्था का शासन बन सके | इस एक इंटरव्यू ने जहा मोदी सरकार के सांसदो और नेताओ के भड़काऊ बयानो ने "”उन छेत्रों "”की शांति और व्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है --वह सबको ज्ञात है | अफवाहों के कारण ही दादरी कांड हुआ | और उत्तर प्रदेश के अनेक नगरो मे सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे ---यह आग शांति के टापू मध्य प्रदेश के खरगाओं और आँय शहरो मे भी पहुँच गयी है |

अब इन घटनाओ को राजनैतिक धुर्विकारण का परिणाम माना जाए -अथवा धार्मिक नफरत का ,यह तो समय ही बताएगा | क्योंकि शिव सेना के पाकिस्तान विरोधी अभियान को कालिख पोतो और बंगलोर की श्रीराम सेना ने अपना निशाना उन लेखको के प्रति धरना -प्रदर्शन से लेकर धम्की देने का सिलसिला चालू है जिनहोने संघ की "”भावना "”के अनुरूप "”' अपने क्रातियों मे लिखा है | कालबुरगी की हत्या इसी असहमति का हिंसक परिणाम था | आंध्रा और महराष्ट्र मे लेखको की हत्या केवल इसलिए हुई चूंकि वे "”सवर्ण "”” सोच के विरोध लिखते थे |
बजरंग दल और बीजेपी के संसद संगीत सोम द्वारा दादरी मे गौमांस की अफवाह को ''भावना'' पर ठोकर बताया था | परंतु जब उनके द्वरा मांस निर्यात की फैक्टरी मे साझीदार होने के प्रमाण सामने आए तब उनके बयान बंद हो गए | इसी अगर इन नेताओ का "”पाखंड "””नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए ? योगी आदित्यनाथ द्वरा गंगा के प्रदूषण के लिए औद्योगिक कचरे के बजाय --'” बक़रईद"” पर हुई कुर्बानी को बताया | क्या एक दिन मे जो खून बहा वह साल भर शहर के नालो से गंगा मे गिरने वाले कचरे से "”ज्यादा"”है ??
मुंबई मे शिवसेना द्वरा पाकिस्तान गजल गायक के आयोजन को "””नहीं करने देने का "” अभियान "”उनकी सफलता भले ही हो --परंतु निश्चय ही फड्नविस सरकार के लिए "”चुनौती है "”| चूंकि उनकी सरकार ने इस आयोजन को करने की मंजूरी दी थी | अब सरकार का हुकुम अगर इस तरह एक "”भीड़ के सामने "””बौना पड़ जाता है तो उनके "”रुतबे "” का तो फ़ालूदा तो निकल ही गया है | परंतु शायद यह उनकी "””मजबूरी है "”” |


देश के अशांत वातावरण मे राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी ने तीन प्रसारण मे देश की बदती धार्मिक अष्हिणुता को एकता के लिए खतरा बताया | उन्होने इस दौरान हुई दादरी और अन्य कांडो से उपजी नफरत को भी गलत बताया | तीन बयानो के बाद प्रधान न्यायाधीश का इंटरव्यू भी सरकार के लिए सार्वजनिक रूप से "”सवाल "” उठता है | जिसका उचित परिमार्जन अभी तक तो कार्यो और वचनो से स्पष्ट नहीं हुआ है | इन परिस्थितियो मे सरकार के आगामी कदमो को देखना होगा | जो देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले होंगे

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