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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 20, 2023

 

 

 

बिग फाइव को हैसियत  बताते छोटे –छोटे लोग !

क्या अमेरिका वियतनाम और अफगानिस्तान  के बाद  गाज़ा में भी साख  खोयेगा ?

 

     यूक्रेन में रूस  और अफगानिस्तान में अमेरिका  ली ताक़त  को दुनिया  देख ही चुकी है !  अब इज़राइल  के जरिये  फिर अमेरिका  की साख  एक बार दांव  पर लगी है |  रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण के समय  दंभ पूर्वक कहा था की यह कुछ ही दिनो की बात है , जब  यूक्रेन पर हमारी सेनाए  काबिज होंगी |  पर आज साल भर होने को आया  हालत क्यू की त्यु है | अफगानिस्तान को  भी  “” सभ्य “ बनाने चले  अमेरिका को जिस हड़बड़ी  में  मुल्क को छोडना पड़ा वह दुनिया के सामने है | हवाई जहाज और अनेक फौजी सामान  छोड़ कर  सैनिको को लेकर  उड़ गए थे |

           मिश्र और सीरिया  के संयुक्त आक्रमण  को पराजित करने वाले  इज़राइल पर जिस औचक रूप से हमास ऐसे  संगठन ने  राकेटो और मिसाइल से हमला किया वह  उनकी खुफिया  तंत्र और सैन्य  ताकत को “ हेच “ तो बताता ही है |  अब इज़राइल  के साथ बाइडेन  और ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक  के सहयोग  का मतलब सिर्फ गाजा के फिलिस्तीनी शरणार्थियो  को मदद पाहुचने भर की हैं | इज़राइल  को अगर  अमेरिका और ब्रिटेन तथा  फ्रांस का समर्थन प्राप्त  है तो रूस और चीन  इज़राइल को  युद्ध बंद करने की सलाह दे रहे है | संयुक्त राष्ट्र संघ की गाजा को राहत सामग्री भेजे जाने की अपील बेअसर हो रही है | मिश्र की सीमा पर कई दिनो से राहत सामग्री { भोजन – मेडिकल समान और पानी }  ले कर खड़े बीसियों ट्रक  इज़राइल की ज़िद्द के आगे बेकार है | सुरक्षा परिषद  में  बंद कमरे में  अमेरिका ने रूस के युद्ध विराम के प्रस्ताव  को  वीटो कर दिया , जिस प्रकार रूस ने यूक्रेन में युद्ध विराम के अमेरिका के प्रस्ताव को वीटो किया था !

 

       यानि कुल हालात  इस बात को रेंखांकित करते है की जिस प्रकार हिटलर की ज़िद्द और अहंकार ने “” लीग ऑफ नेशन “ को   रद्द कर दिया था , और अंतराष्ट्रीय  स्टार पर शांति और व्यवस्था  बनाने का प्रथम प्रयास  असफल हुआ था | आज यूक्रेन और गाज़ा के  मसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ जिस बेबसी का शिकार है ----वह उसके अस्तित्व  को ही चुनौती दे रहा है |  आज यूरोपियन राष्ट्रो और अमेरिका तथा चीन समेत रूस को इस हालत के बारे में सोचना होगा , वरना जैसा की लिखा जा रहा है की “” बिना नख “” का राष्ट्रो का  हैड मास्टर है यूएनओ !

              हमास को आतंकवादी कहे या राश्त्र्वादी संगठन  यह भी एक बहस  चल पड़ी है | बरतनिया हुकूमत के अंतर्गत  दूसरे विश्व युद्ध के पहल  जीतने भी उनके उपनिवेश थे  उनमे आज़ादी के लिए हुए संघर्षों  में अधिकतर हिंसक ही थे | दक्षिण अफ्रीका जो आज चार विभजित राष्ट्रो  मे है | उसमे जनरल स्मट्स  की सरकार के वीरुध  अफ्रीकन  नौजवानो के संगठन ने “” माउ  माउ “ आंदोलन चलाया था | जिसमे नेल्सन मंडेला  भी थे और जोमो केन्याटा  भी थे |  इन्डोनेशिया  मे डच आधिपत्य के वीरुध सुकर्णो ने हथियारबंद संघराश  किया था |  भारत में महात्मा गांधी के नेत्रत्व मे विश्व में पहली बार  अहिंसक  आंदोलन के जरिये अपनी आज़ादी की लड़ाई  लड़ी और स्वतन्त्रता  हासिल की | परंतु इस संघर्ष में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द सेना की  लड़ाई का एक स्वर्णिम पन्ना भी है | बाम्बे में नौसेना  द्वरा  विद्रोह का बिगुल  और चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह बटुक दत्त की  शहादत  भी इसी संघराश का ही एक हिस्सा थे | परंतु  कमोबेश  आज़ादी का आंदोलन अहिंसक ही था , जिसने ब्रिटिश  शासन को भारत छोडने को मजबूर किया | परंतु  यह कहना ही होगा की ब्रिटिश  शासन में   जलियाँवाला बाग ऐसे कुछ अतिरेक घटनाओ के अलावा   उन्होने विधि का शासन  बनाए रखा | शोसन किसानो का  कारीगरों का हुआ , ब्रिटिश साम्राज्यवाद को मजबूत करने के लिए , मरीशस  और गयाना  को “” भेजे गए गिरमिटिया “” हिंदुस्तानी   भी उनके लालच के शिकार हुए |  अब इस परिप्रेक्ष्य में अपनी जमीन  और आबादी के लिए  लड़ाई लड़ रहे फिलिस्तीनीयों को आप क्या कहेंगे , यह आप पर निर्भर करता है !!!

1----     इज़राइल का अमानवीय चेहरा :-   शायद ही किसी ने ऐसा कहा होगा जैसा की इज़राइल के सेना के अधिकारी और प्रधान मंत्री नेत्न्यहु  कह रहे है की --- हम हमास  को नेस्तनाबूद कर देंगे !  जबकि  हिटलर ने भी यहूदी  नस्ल को नेसनाबूद करने की बात नहीं काही थी | अनेक यहूदी  वैज्ञानिक और धनिक लोग उसके साथ थे | यह सही है की उसने  प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के लिए यहूदी  लोगो को जिम्मेदार मानता  था |  उसके अनुसार  सेना को आपूर्तिमे  रद्दी सामान दे कर उन्होने जर्मनी की विजय छिन ली थी | एक ऐसा कारण था जो  काल्पनिक ही कहा जाएगा | क्यूंकी  सेना की आपूर्ति कुछ लोगो ने ही की होगी  समस्त यहूदी नस्ल तो नहीं  किया होगा | 

  शायद उसी तर्ज़ पर इज़राइल भी हमास के कांड के लिए समस्त फिलिस्तीनीयों  को जिम्मेदार  समझ कर उनसे बदला निकाल रहा हो |  अस्पताल पर राकेट से हमले की ज़िम्मेदारी भी अब वह कह रहा है की हमास के सहयोगी संगठन ने की है !!  परंतु समस्त अरब लीग  के सदस्य राष्ट्र  इस हमले के लिए इज़राइल को ही जिम्मेदार मानते है |

2—--- क्या अरब राष्ट्रो की नाराजगी को अमेरिका सहन करेगा ??

     जिस प्रकार  मिश्र और जॉर्डन ने  अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन  से मिलने से इंकार कर दिया और सऊदी शहजादे  ने अमेरिकी  विदेश मंत्री को कई घंटे  इंतज़ार कराया , उससे अमेरिका की “ साख”” तो मिट्टी मे मिल गयी है | जिससे मिलने के लिए  अनेक  राष्ट्रो के नेता  महीनो इंतज़ार करते है , उस राष्ट्रपति से मुलाक़ात से इंकार  और उसके विदेश मंत्री को मिलने के लिए ,साधारण आदमी की तरह इंतज़ार कराना  एक प्रकार से  “” नाराजगी “” का सख्त इज़हार ही है | इतेफाक से सऊदी  आमेरकी हथियारो का सबसे बड़ा खरीददार भी है |  जॉर्डन हमेशा से अमेरिका और यूरोपियन  राष्ट्रो का चहेता  रहा है | उसे अमेरिका सैन्य सामाग्री के अलावा  अन्य प्रकार की भी मदद देता है  | उसके बाद  ऐसी कूटनीतिक  नाराजगी   पहले नहीं देखि गयी है |  इससे से लगता है की फिलिस्तीनी  लोगो को  कुछ न्याया  मिलने की संभावना है भले ही दूर हो |