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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 10, 2015

धर्म - जाति और इलाके को लेकर संघर्ष क्या उचित है ??

 धर्म –जाति और इलाके को लेकर संघर्ष क्या उचित है ??

        जननी – जनक  और जनम भूमि तथा वर्ण यानि गोरे – काले आदि होना ,, किसी भी धर्म के  अनुसार मानव के अधीन नहीं है |  एवं इन्ही से  मानव को  उसकी जाति  और धर्म भी प्राप्त होते है |   यह सर्व विदित  सत्य है | परंतु फिर भी दुनिया मे  जीतने भी  संघरष हो रहे है  उनके मूल मे  यही दो तथ्य –धर्म –जाति  ही युद्ध के लिए सन्नध कर देते है |  इलाकाई  लड़ाई तो हम अरब  के छेत्र मे देख  रहे है | यमन – सीरिया  और –सूडान  इसके उदाहरण  है |  शिया – सुन्नी  का झगड़ा  भी इसी आधार पर हो रहा है | बिहार और उत्तर प्रदेश  मे तथा  दक्षिण मे  भी जातियो को लेकर संघर्ष  इसी कारण हो रहे है | जबकि अटल सत्य यह है की  इनमे से कोई भी आधार  चुनने  का विकलप  मनुष्य को नहीं है –ना ही वह इस हक़ीक़त को बदल  सकता है |
                   क्या  इस हक़ीक़त  को कोई भी चुनौती दे सकता है ?? अगर नहीं तब फिर उस तथ्य को लेकर बिना ‘’जाने या पहचाने’’’ शत्रुता  क्यो ? क्या यह कुछ “”लोगो “”” की महत्वाकांछा का जरिया तो नहीं है ?   इतने धर्म गुरु क्या  इन सवालो का जवाब देने मे सक्षम है क्या ??
                   आज  समाज मे इस तथ्य को लेकर  अनेक  –जातियो के ना केवल संगठन बने है वरन  उनके ‘’धर्मगुरु “”” भी बन गए है | वैसे देखे तो  विभिन्न धर्मो  मे व्यक्ति को धार्मिक  रूप से प्रवेश के लिए  अनुष्ठान  करना होता है |  जैसे  इस्लाम मे “”सुन्नत “” होना और ईसाई धर्म मे बपतिस्मा  होना  और यहूदी धर्म मे भी मिसवाह  पड़ा जाता है |  इसका तात्पर्य  यह है की  जो जन्मा है  उसका कोई धर्म नहीं होता है | यद्यपि वेदिक धर्म मे  जन्म लेते ही मनुष्य को  उसकी जाति और धर्म मे प्रवेश  मिल जाता है |फिर  चाहे वह गोरे रंग का हो या काला हो या सावला हो | यद्यपि यही सत्य अन्य धर्मो मे भी लागू होता है |
                      गुलामी की प्रथा वैसे तो सभ्यताओ  की सबसे बड़ी असभ्यता थी | परंतु  यह सैकड़ो या हजारो वर्षो तक  जारी रही |  18 वी  सदी से इस प्रथा को यूरोप  मे बंद करने की कोशिस हुई | यद्यपि एशिया  मे उस से पहले इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की सफल कोशिस हुई |  अमरीकी राष्ट्रपति  अब्राहम लिंकन  ने इस मुद्दे पर तो विभाजित देश को बचाने के लिए सालो तक युद्ध किया \ एवं गुलामी के समर्थक दक्षिणी  राज्यो को  पराजित किया | लेकिन  दासों को मुक्त किए जाने के बाद भी इन राज्यो के लोगो के मन मे जो नफरत  ‘’कालो’’ के मन  थी वह आज भी  ‘’रंगभेद’’ के दंगो मे उभरती है | अमरीका के कानून मे   स्कूलो – कालेजो मे अस्पतालो मे जो ‘’चमड़ी के रंग ‘’’ के आधार पर  अलगाववाद  किया जा रहा था  -- उसको  पादरी मार्टिन लूथर किंग जूनियर  के “”लाँग मार्च “” के बाद ही  खतम किया जा सका | जब काले और –गोरे  साथ – साथ पढने और बैठने का अधिकार मिला || और यह सब 20वी सदी मे हुआ |
             यह उस देश क्मे हुआ जो मानव अधिकारो की दुंदुभि सारी दुनिया मे बजाता आ रहा है | जबकि सभी को मालूम है की कोई भी मनुष्य “””एप्लिकेशन दे कर अपने माता-पिता और जनम भूमि “”””का चुनाव करने का विकल्प नहीं रखता है | फिर भी झगड़े जारी है | यही सत्य है जैसे यह की  बेईमानी से कमाए  धन से ना तो स्वास्थ्य –नाही सुख  प्राप्त कर सकता है |फिर भी भाई – भाई मे झगड़ा होता है | कितने हंसी की बात है |