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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 25, 2020

 

राज्यपालों और पुलिस की कारवाई से उभरता --मोदी सरकार का पाखंड !


गयी 24 दिसंबर को देश की राजधानी में तीन आंदोलन हुए , पर तीनों में पुलिस प्रशासन का व्यवहार ---शक्ल देख कर हुआ | एक ओर दिल्ली की सीमाओ पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान तथा पंजाब और हरियाणा के हजारो किसान के धरणे का 28 व दिन था | वनहा पुलिस अपनी कम संख्या को देख कर "”मूक दर्शक "” बनी रही | वनही किसानो की मांगो के समर्थन में देश भर से एक करोड़ हस्ताक्षर की याचिका देने जा रहे काँग्रेस कार्यकर्ताओ को ना केवल रोका , वरन उन्हे गिरफ्तार भी किया |क्योंकि शायद उन्हे अंदाज़ था की वे अपनी ताक़त से इन लोगो को काबू कर लेंगे | हुआ भी यही , केवल कोङ्गेस्स नेता राहुल गांधी और उनके दो अन्य साथियो को राष्ट्रपति भवन जाने दिया ! तीसरी घटना वनहा से कुह दूर पर बीजेपी सदस्यो द्वरा दिल्ली जल संस्थान पर किया जा रहा आंदोलन था | शायद उपरोक्त दोनों आंदोलनो के मुक़ाबले इन बीजेपी समर्थको की संख्या सबसे कम थी | परंतु इन मोदी - शाह समर्थको ने ना केवल सरकारी भवन के बाहर प्रदर्शन किया वरन तोड़ - फोड़ भी की | अध्यक्ष राघव चढ़ा को गलिया देते हुए कार्यालय के फाटक पर भी चढ गए | जनहा राष्ट्रपति को जन याचिका देने जा रहे लोगो गिरफ्तार किया गया ,जबकि उन्होने कोई हिंसात्मक कारवाई नहीं की थी | उसके मुक़ाबले दिल्ली जल संस्थान के कार्यालय पर प्रदर्शन कर तोड़ - फोड़ करने वाली भीड़ का कोई सदस्य गिरफ्तार नहीं हुआ | योगी आदित्यनाथ का इलाका होता तो बीजेपी वालो से नुकसान की भरपाई का नोटिस पहुँच जाता ! क्या वाकई ऐसा होता ? शायद नहीं , क्योंकि आंदोलनकारी तो उनही के बंदे -चेले हैं !

इसका उदाहरण हैं मुजफ्फरनगर के हिन्दू - मुस्लिम दंगे ! इन दंगो को भड़काने का आरोप तीन बीजेपी विधायकों - सुरेश राणा और संगीत सोम तथा कपिलदेव अगरवाल के खिलाफ अदालत की चार्जशीट में था | इनके अलावा "कट्टर हिंदुवादी महिला साध्वी प्राची पर भी था " | घटना के सात साल बाद जब प्रतीत होने लगा की इन बीजेपी रन बांकुरों की भूमिका के लिए अदालत कनही सज़ा ना दे दे , तब उत्तर प्रदेश सरकार ने इन महानुभावों के खिलाफ मुकदमें वापस लेने की अर्ज़ी लगा दी !!! हैं ना भगवा धारी योगी नामधारी मुख्य मंत्री का अज़ाब न्याय ? इस नर संहार की कहानी कुछ यूं हैं की सितंबर 2013 को जिले के नगला मंदौर गाव में हिन्दू जातियो की महा पंचायत या कनहे "”बड़ी खाप "” की बैठक हुई | उसमें तीनों बीजेपी विधायकों और साध्वी नामधारी प्राची ने मुयलमानों के खिलाफ लोगो भड़काया | यानहा तक कहा गया की मुसलमान इलाके में गाय काटते हैं | परिणाम स्वरूप एक भीड़ ने दर्जनो गावों में मुसलमानो की हत्या की और उनकी बहू बेटियो को बेइज़्ज़त किया | दो दिन तक चले इस नर संहार में 65 लोग मारे गए | लगभ्गा 40 हज़ार से ज्यादा लोग अपने घर छोड़ कर भागने पर मजबूर हो गए | इस मामले में पुलिस ने 510 मामले दर्ज़ किए | जिसमें सात साल बाद भी मात्र 175 मामलो में ही चार्ज शीट अदालत में दाखिल हो पायी !! अब सात साल बाद भी इस दंगे के अपराधियो को सज़ा अथवा पीड़ितो को न्याय मिलने की जगह सत्ता का इस्तेमाल कर आरोपियों को निर्दोष साबित करने की कोशिश हो रही हैं !!! योगी - मोदी एवं शाह का यह है न्याय या कनहे सरकारी पाखंड ? उधर बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने योगी सरकार के इस फैसले के मद्दे नज़र मांग की हैं की "”जब राजनीतिक विद्वेष से बीजेपी नेताओ के प्रति दायर मुकदमें सरकार वापस ले रही हैं , तब अन्य राजनीतिक दलो के नेताओ और कार्यकर्ताओ के वीरुध दायर मुकदमे भी वापस ल्ये जाने चाहिए "” | अब इस मांग से योगी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता | क्योंकि वे बीजेपी विध्यकों के खिलाफ मुकदमें सुशासन या न्याय के लिए वापस नहीं ले रहे हैं , वरन कट्टर वादी हिन्दू सोच के कारण ऐसा कर रहे हैं | जो भले ही न्याय ना हो परंतु भगवा धारी योगी जी के लिए "”””राजनीतिक रूप से सही लगता हैं !!!” |

अगर बंगाल में नड्डा और कैलाश विजय वर्गीय की गाड़ी पर एक पत्थर पड़ जाये ----- तो बंगाल सरकार का प्रशासन "”पंगु "” हैं , राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए , तब उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर तो योगी को बर्खास्त कर देना चाहिए | पर ऐसा न्याय होगा नहीं --क्योकि केंद्र सरकार का पाखंड उजागर हैं !


अब मोदी राज में राज्यपालों की भूमिका पर नज़र डाले तो पाएंगे की केंद्र सरकार के ये कारिंदे अपनी संवैधानिक मर्यादाओ को किनारे कर चुके हैं | इस कड़ी में पहला नाम मध्य प्रदेश के राज्यपाल स्वर्गीय लाल जी टंडन का हैं | जिनहोने तत्कालीन मुख्य मंत्री कमलनाथ के आग्रह के बावजूद की "”प्रदेश में कोरोना का खतरा हैं , ऐसे में विधान सभा का सत्र बुलाना उचित नहीं होगा | परंतु राज्यपाल ने उन्हे सप्ताह भर के अंदर विधान सभा बुला कर अपनी सरकार का बहुमत साबित करें | सत्र आहूत हुआ और कमलनाथ ने इस्तीफे की घोषणा की | उसके बाद शिव राज सिंह ने सरकार बनाई | दल बादल करने वाले काँग्रेस विध्यकों को इस्तीफा देना पड़ा | उप चुनाव हुए और बीजेपी को सदन में बहुमत हासिल हुआ |

वनही राजस्थान में जब मुख्य मंत्री अशोक गहलौट ने पाइलट के इस्तिफा देने के बाद , जब विधायकों को बीजेपी द्वरा दल बादल कराकर गहलौत सरकार को मध्य प्रदेश की तर्ज़ पर गिराना चाहते थे | तब गहलौत ने राज्यपाल कालराज मिश्रा को विधान सभा सत्र आहूत करने का आग्रह किया |जिससे की वे विधान सभा में अपनी सरकार का बहुमत साबित कर सके | तब राज्यपाल महोदय ने कोरोना संकट का तर्क देते हुए सत्र बुलाने से इंकार कर दिया | क्योंकि तब तक बीजेपी नेत्रत्व पर्याप्त संख्या में काँग्रेस विध्यकों को अपने पाले में लाने सफल नहीं हुआ था | दो बार मंत्रिमंडल के आग्रह को ठुकराने के बाद मुख्य मंत्री को राज भवन में धारणा देना पड़ा | मामला सुप्रीम कोर्ट गया जनहा यह फैसला हुआ की कोरों संबंधी नियमो का पालन करते हुए सत्र बुले जाए | मजबूर राज्यपाल कालराज मिश्रा को सत्र बुलाना पड़ा | यानि टंडन जी बीजेपी के लाभ के लिए विधान सभा आहूत की , जिससे की सरकार के बहुमत को पाखा जा सके | दूसरी ओर राजस्थान में राज्यपाल मुख्य मंत्री द्वरा बहुमत सिद्ध करने के लिए सदन बुलाना , चाहते थे तब राज्यपाल को कोरोना का भय था |

अब केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान विजयन सरकार द्वरा विधान सभा का सत्र आहूत करने की प्रार्थना ठुकरा चुके हैं | कारण --- राज्य सरकार केंद्र द्वरा लाये गए तीन क्र्शी कानूनों का विरोध करना चाहती हैं | परंतु राज्यपाल इसके लिए राजी नहीं | क्योंकि वे केंद्र के प्रतिनिधि जो हैं !! तीन राज्यपाल जो गैर बीजेपी सरकारो वाले राज्यो में नियुक्त ----उनमें से एक ने चुनी हुई सरकार को गिराने का बंदोबष्ट किया | दूसरे ने ऐसी ही असफल कोशिस की और तीसरे उन कानूनों का राज्य सरकार के विरोध का अवसर नहीं दे रहे है -------जिनके विरोध में देश के लाखो किसान आंदोलनरत हैं | राष्ट्रीय राजधानी इन किसानो द्वरा घेरी जा चुकी हैं | मोदी सरकार सात बार आंदोलनकारियों से बात कर चुकी हैं | बीजेपी ने इस आंदोलन पर अनेक आक्षेप लगाए हैं | संघ की ट्रोल टोली भी इन्हे राष्ट्र द्रोही - आतंकवादी - खालिस्तानी आदि अनेकों उपाधियों से नवाज़ चुकी हैं | परंतु छह माह का राशन पानी लेकर धरणे पर बैठे इन आंदलन करियों का कहना हैं की कानूनों के वापस होने तक वे यानही हैं , वे जाएंगे नहीं ! अब मोदी सरकार और उनके मंत्रियो के बयानो में बेचैनी और चिंता झलक रही हैं | केंद्र सरकार और बीजेपी सरकारो का पाखंड इन घटनाओ से उजागर हैं |||||||||