नर्मदा सागर बाँध के खंडवा स्थित घोगर गाँव में सत्याग्रहियों द्वारा जल मैं बैठ कर आन्दोलन करना , उचित हैं की नहीं ,यह एक बहस का विषय हैं .। क्योंकि 10 सितम्बर को अगर मध्य प्रदेश सरकार ने सत्याग्रहियों को "" जमीन के बदले जमीन "" देने की मांग को मंज़ूर कर लिया हैं । आज के ही दिन तमिलनाडु के कुदाम्कुनल आणविक बिजलीघर मै इधन भरे जाने के विरुद्ध लगभग हज़ार लोगो ने प्रदर्शन कर के आक्रोश व्यक्त किया । आब दोनों घटनाओ को मिला कर देखे तो समझ में आयगा की विद्युत् उत्पादन केन्द्रों के विरुद्ध इन आंदोलनों के मध्य कोई रिश्ता हें क्या ? शायद लोगो को मंज़ूर न हो पर हो सकता यह सत्य हो ।
अगर हम बीते कुछ वर्षो में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हुई घटनाओ पर नज़र डाले तो पायेंगे की अनेक गैर सरकारी संस्थाएं विकाशशील देशो में पर्यावरण --और प्रकृति संरक्षण के नाम पर सिंचाई के लिए बनने वाले बाँध या विद्युत् गृह के विरोध मैं झंडा उठा लेते हैं । यह केवल एशिया के देशो में ही होता हैं ,यूरोप के देशो में नहीं । हालाँकि बड़ी विद्युत् योजनाये और बाँध का निर्माण विकसित में अधिक हुआ हैं। अगर ये योजनाये न होती तो न तो इन देशो के खेतो में मन चाहा पानी नहीं मिलता और नहीं इनके कारखानों मैं तीनो शिफ्टो में बिजली मिलती । पर इन्ही देशो की बड़ी कंपनिया जब अरबो रुपये के टेंडर निकलते हैं --बाँध या विद्युत् ग्रहों के निर्माण के इन टेंडर में असफल होने पर इन्ही कंपनियों के इशारे पर ये एन जी ओ पर्यावरण या प्रदूषित विकास के नाम पर जन आन्दोलन खड़ा करते हें । हाँ अगर गलती से कोई दुर्घटना हो गयी तब तो इन ''खुदाई खिदमतगारो "" को मानो मुंह मांगी मुराद मिल जाती हैं , भोपाल गैस त्रासदी के मामलें मैं इन संस्थाओ ने कई बार ऐसी स्थिति कर दी की सर्कार और समाज के लोग भी असमंजस में पड़ गये थे ।परन्तु इन स्वयंभू नेताओ को तो अपनी नेतागिरी चमकने की फिकर ज्यादा थी , जैसे हमारे नेताओ को सच या झूठ अथवा सही गलत से ज्यादा परवाह होती हैं ""अपने वोट बैंक की '' उसी तरह इन नेताओ को भी अपनी नेतागिरी की ज्यादा परवाह थी बजाय इसके की वे गैस पीडितो का भला करें "" ।कुछ ऐसा ही इस बार हो रहा हैं ।आखिर क्यों विद्युत् गृहों के निर्माण में बाधा डाली जा रही ,,जब की देश को 50 हज़ार मेगावाट बिजली की जरूरत हैं ? शायद फिर भी कुछ लोग कह सकते हैं की जिन को जमीं से बेदखल किया गया ,उन के पूर्ण पुनर्वास की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की हैं । पर इस पन बिजली योजना का लाभ तो सारे प्रदेश को मिलेगा ,तो फिर पुनर्वास की जिम्मेदारी भी सारे प्रदेश की हैं ।अब इस बात का क्या जवाब हैं की जिन लोगो ने आज इन के ""मसीहा "" बन कर आन्दोलन चला रखा हैं ,उन लोगो ने ""मुआवजा ""वितरण के समय क्यों नहीं इन मुद्दों को उठाया ? अब जमीन के बदले जमीन तो शायद मिल भी जाए तो वासी ही मिलेगी जैसी की यंहा के कुछ लोगो को गुजरात में जा कर बसना पड़ा । शायद यही इन आंदोलनकारियो के साथ भी हो सकता हैं ।तब इस आन्दोलन के नेता क्या कहेंगे या क्या करेंगे ? यह भविष्य में देखने की बात होगी ।