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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 8, 2016

कन्हैया को श्रवण कुमार की नसीहत देने का निहितार्थ भारतीय जनता पार्टी के सांसद आर के सिन्हा जो संघ के प्रवक्ता के रूप मे टीवी चैनलो मे देखे जाते है ----उन्होने आज अपने एक लेख मे कन्हैया को उसके माता - पिता की गरीबी का ध्यान दिलाते हुए उसे श्रवण कुमार बनाने की सलाह दी है | आम भारतीय को इस सलाह मे कुछ भी असहज नहीं लगेगा | परंतु थोड़ा विचार करने से इस कथन के पीछे की मंशा समझ मे आती है | उन्होने श्रवण कुमार को पौराणिक कथा निरूपित किया है -जो सत्य नहीं है | क्योंकि बाल्मीकी लिखित रामायण अथवा तुलसीदास रचित रामचरित मानस मे इसका उल्लेख हुआ है | और दोनों ही ग्रंथ पुराण की श्रेणी मे नहीं स्वीकार किए गए है | अब सिन्हा जी के कथन की मीमांशा करे तो पाएंगे की श्रवण की कथा का सार ----- अंधे माता- पिता को तीर्थाटन कराते समय अयोध्या नरेश दशरथ के हाथो उसकी हत्या हो जाती है और उसके माता - पिता इस घटना के कारण प्राण त्याग देते है | अर्थात श्रवण कुमार का जीवन उसके जनक और जननी की सेवा मे ही अंत हो गया | समाज और राष्ट्र के लिए उसने ना तो कोई योग दान किया नाही सत्ता का विरोध | सिन्हा जी भी यही चाहते है की देश के छात्र केवल "””अपने भविष्य '''की चिंता करे | वे अपने परिवार को सुख और धनोपार्जन करे | समाज और देश की चिंता करने के लिए तो "” राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ "””है | उसकी चिंता दूसरे ना करे | वनही कन्हैया ने कंस की सत्ता को चुनौती दी ,और गोवर्धन उठा कर समाज की अंध श्रद्धा को दूर करने का प्रयास किया | क्रष्ण की कथा मे रुक्मणी स्वयंबर से लेकर स्म्यंतक मणि की कथाओ मे नारी की स्वतन्त्रता और असुरो द्वारा हरण की गयी महिलाओ से समूहिक विवाह कर के उन्हे आश्रय दिया | गीता का उपदेश भी समाज और राष्ट्र को ''अधर्म - धर्म "” का भेद बताता है | सिन्हा जी के लेख से लगता है की वे और उनकी विचारधारा वाले यह मानते है की देश -राष्ट्र और समाज के लिए क्या उचित है क्या अनुचित इसका निरण्य करने की बुद्धि और शक्ति केवल और केवल उनही मे है | देश के युवा को उसके मुस्तकबिल और परिवार के सोच तक ही सीमित रख कर वे देश के सोच और विचार का ठेका खुद लेना चाहते है | कन्हैया ने जे एन यू संस्थान से सरकार की सत्ता के दुरुपयोग का जिस ढोंग और पाखंड को उजागर किया है उस से सत्ताशिन चिंतित हो गए है | क्योंकि शिक्षा संस्थान ही बदलाव के श्रोत रहे है | तक्षशिला और नालंदा के छात्र जीविकोपार्जन की विद्या के साथ ही देश और समाज की समस्याओ से रूबरू रहते थे | इतना ही नहीं अवसर पड़ने पर सत्ता के अत्याचार और सामाजिक कुरीतियो के वीरुध संगर्ष भी करते थे | सोश्ल मीडिया मे "””भक्तो"”” द्वारा कुछ वीडियो क्लिप भी डाले गए जिसमे यही कहा गया की सस्ता हॉस्टल और नाम मात्र फीस देकर वनहा के विद्यारथियों को देश और सत्ता तथा राजनीतिक विचार धारा मे नहीं पड़ना चाहिए | उन्हे कैरियर और पैकेज की ओर ध्यान देना चाहिए | आखिर वे देश के कर दाताओ के पैसे पर "”पल "”रहे है | इस के अलावा वे यह भी दिखा रहे है की चैनलो ने क्यो कन्हैया के भासण को दिखाया जो 50 मिनट का था | ध्यान देने योग्य बात है की चैनलो ने इस दौरान के ''विज्ञापन राशि '''' को भी खोया है | फिर उसके द्वारा दिये गए साक्षात्कार को भी दिखाया गया वह भी प्राइम टाइम पर | सत्ता से जुड़े लोगो का विश्वास है की इतना प्रचार पाने का अधिकार तो केवल "”” हमलोगो"”” का ही है | किसी अन्य का नहीं | उच्च न्यायालय की न्यायाधीश ने भी अपने आदेश मे लिखा की "”” हम स्वतन्त्रता का स्वाद इसलिए ले पा रहे है -चूंकि देश की सीमा पर सैनिक पहरा दे रहे है | “” उनका कथन सही है | परंतु अगर केवल उनका कथन ही सही है ,तब हर देश मे सेना का शासन होना चाहिए | जबकि जिन देशो मे सेना का शासन है वहा '''नागरिक अधिकारो और मानव अधिकारो ''' का सबसे ज्यादा हनन होता है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है की सनिक से ज्यादा ''साहसी''' व्यापारी होता है ,,जो हानि का जोखिम ले कर भी व्यापार करता है | संभवतः विद्वान जज ने समाज के एक ही पक्ष को अधिक महत्व देकर देश के भविष्य को मात्र नौकरी और वेतन ताक़ ही सीमित रखना चाहा है | कहलिए मान लेते है की कैंपस मे राजनीति नहीं होनी चाहिए --- तो इसकी शुभारंभ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भंग कर के की जा सकती है | क्योंकि तब सभी पार्टियो के छात्र संगठनो से भी यही उम्मीद की जा सकती है | परंतु यह पाखंड तो नहीं चलेगा की "””देश और राष्ट्र "”” के नाम पर राजनीति करने का एकाधिकार सिर्फ हमारा है | राष्ट्र भक्ति की शिक्षा के नाम पर राजीव गांधी के हत्यारो को छोड़ना और पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह के हत्यारो को छोड़ने के लिए अकाली दल -जो की बीजेपी का भागीदार है द्वारा दबाव डालना | इन्दिरा गांधी के हत्यारो को शहीद का दर्जा अकाल तख़त द्वारा दिया जाना --और उनके परिवार जानो को नौकरी तथा '''सिरोपा''' भेंट किया जाना --- कान्हा की राष्ट्र या देश भक्ति है ??? क्या इसे हत्या की राजनीति नहीं माना जाये ?? संगठन द्वारा ऐसे प्रयासो को बड़वा देने का ही कारण है की उनके पदाधिकारी कन्हैया की जीभ काटने और सर काटने की ''सुपारी'' देते है | खुद नहीं कर सकते ,इतने साहसी है | इसी संदर्भ मे अफजल गुरु का भी मसला है | कश्मीर मे मोदी जी की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार मे साझीदार है | महबूबा मुफ़्ती ने सरे आम अफजल को फासी दिये जाने की भत्सना की थी | घाटी मे आज भी पाकिस्तान --मेरी जान के नारे लगाए जा रहे है कुलगाम मे 6मार्च को ही हिजबूल संगठन के आतंकवादी दाऊद के सेना द्वारा मारे जाने पर उस इलाके मे हरताल भी हुई बाज़ार भी बंद रहे | अब इसे रस्त्रद्रोह मानेंगे या महबूबा के साथ हाथ मिलाएंगे ?? लिखने का आशय है की भारत मे बहुलता है भाषा की - सम्प्रदायो की - पहनावों की विश्वास की और खान पान की | केरल -आसाम और घाटी मे गाय का मांस लोग खाते है | उत्तर प्रदेश बिहार मे ऐसा करना गैर कानूनी है | ऐसा सदियो से रहा है और रहना भी चाहिए यदि हम एकता चाहते है |

कन्हैया को श्रवण कुमार की नसीहत देने का निहितार्थ

भारतीय जनता पार्टी के सांसद आर के सिन्हा जो संघ के प्रवक्ता के रूप मे टीवी चैनलो मे देखे जाते है ----उन्होने आज अपने एक लेख मे कन्हैया को उसके माता - पिता की गरीबी का ध्यान दिलाते हुए उसे श्रवण कुमार बनाने की सलाह दी है | आम भारतीय को इस सलाह मे कुछ भी असहज नहीं लगेगा | परंतु थोड़ा विचार करने से इस कथन के पीछे की मंशा समझ मे आती है | उन्होने श्रवण कुमार को पौराणिक कथा निरूपित किया है -जो सत्य नहीं है | क्योंकि बाल्मीकी लिखित रामायण अथवा तुलसीदास रचित रामचरित मानस मे इसका उल्लेख हुआ है | और दोनों ही ग्रंथ पुराण की श्रेणी मे नहीं स्वीकार किए गए है |

अब सिन्हा जी के कथन की मीमांशा करे तो पाएंगे की श्रवण की कथा का सार ----- अंधे माता- पिता को तीर्थाटन कराते समय अयोध्या नरेश दशरथ के हाथो उसकी हत्या हो जाती है और उसके माता - पिता इस घटना के कारण प्राण त्याग देते है | अर्थात श्रवण कुमार का जीवन उसके जनक और जननी की सेवा मे ही अंत हो गया | समाज और राष्ट्र के लिए उसने ना तो कोई योग दान किया नाही सत्ता का विरोध | सिन्हा जी भी यही चाहते है की देश के छात्र केवल "””अपने भविष्य '''की चिंता करे | वे अपने परिवार को सुख और धनोपार्जन करे | समाज और देश की चिंता करने के लिए तो "” राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ "””है | उसकी चिंता दूसरे ना करे | वनही कन्हैया ने कंस की सत्ता को चुनौती दी ,और गोवर्धन उठा कर समाज की अंध श्रद्धा को दूर करने का प्रयास किया |

क्रष्ण की कथा मे रुक्मणी स्वयंबर से लेकर स्म्यंतक मणि की कथाओ मे नारी की स्वतन्त्रता और असुरो द्वारा हरण की गयी महिलाओ से समूहिक विवाह कर के उन्हे आश्रय दिया | गीता का उपदेश भी समाज और राष्ट्र को ''अधर्म - धर्म "” का भेद बताता है | सिन्हा जी के लेख से लगता है की वे और उनकी विचारधारा वाले यह मानते है की देश -राष्ट्र और समाज के लिए क्या उचित है क्या अनुचित इसका निरण्य करने की बुद्धि और शक्ति केवल और केवल उनही मे है | देश के युवा को उसके मुस्तकबिल और परिवार के सोच तक ही सीमित रख कर वे देश के सोच और विचार का ठेका खुद लेना चाहते है |
कन्हैया ने जे एन यू संस्थान से सरकार की सत्ता के दुरुपयोग का जिस ढोंग और पाखंड को उजागर किया है उस से सत्ताशिन चिंतित हो गए है | क्योंकि शिक्षा संस्थान ही बदलाव के श्रोत रहे है | तक्षशिला और नालंदा के छात्र जीविकोपार्जन की विद्या के साथ ही देश और समाज की समस्याओ से रूबरू रहते थे | इतना ही नहीं अवसर पड़ने पर सत्ता के अत्याचार और सामाजिक कुरीतियो के वीरुध संगर्ष भी करते थे | सोश्ल मीडिया मे "””भक्तो"”” द्वारा कुछ वीडियो क्लिप भी डाले गए जिसमे यही कहा गया की सस्ता हॉस्टल और नाम मात्र फीस देकर वनहा के विद्यारथियों को देश और सत्ता तथा राजनीतिक विचार धारा मे नहीं पड़ना चाहिए | उन्हे कैरियर और पैकेज की ओर ध्यान देना चाहिए | आखिर वे देश के कर दाताओ के पैसे पर "”पल "”रहे है | इस के अलावा वे यह भी दिखा रहे है की चैनलो ने क्यो कन्हैया के भासण को दिखाया जो 50 मिनट का था | ध्यान देने योग्य बात है की चैनलो ने इस दौरान के ''विज्ञापन राशि '''' को भी खोया है | फिर उसके द्वारा दिये गए साक्षात्कार को भी दिखाया गया वह भी प्राइम टाइम पर | सत्ता से जुड़े लोगो का विश्वास है की इतना प्रचार पाने का अधिकार तो केवल "”” हमलोगो"”” का ही है | किसी अन्य का नहीं |

उच्च न्यायालय की न्यायाधीश ने भी अपने आदेश मे लिखा की "”” हम स्वतन्त्रता का स्वाद इसलिए ले पा रहे है -चूंकि देश की सीमा पर सैनिक पहरा दे रहे है | “” उनका कथन सही है | परंतु अगर केवल उनका कथन ही सही है ,तब हर देश मे सेना का शासन होना चाहिए | जबकि जिन देशो मे सेना का शासन है वहा '''नागरिक अधिकारो और मानव अधिकारो ''' का सबसे ज्यादा हनन होता है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है की सनिक से ज्यादा ''साहसी''' व्यापारी होता है ,,जो हानि का जोखिम ले कर भी व्यापार करता है |



संभवतः विद्वान जज ने समाज के एक ही पक्ष को

अधिक महत्व देकर देश के भविष्य को मात्र नौकरी और वेतन ताक़ ही सीमित रखना चाहा है | कहलिए मान लेते है की कैंपस मे राजनीति नहीं होनी चाहिए --- तो इसकी शुभारंभ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भंग कर के की जा सकती है | क्योंकि तब सभी पार्टियो के छात्र संगठनो से भी यही उम्मीद की जा सकती है | परंतु यह पाखंड तो नहीं चलेगा की "””देश और राष्ट्र "”” के नाम पर राजनीति करने का एकाधिकार सिर्फ हमारा है |


राष्ट्र भक्ति की शिक्षा के नाम पर राजीव गांधी के हत्यारो को छोड़ना और पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह के हत्यारो को छोड़ने के लिए अकाली दल -जो की बीजेपी का भागीदार है द्वारा दबाव डालना | इन्दिरा गांधी के हत्यारो को शहीद का दर्जा अकाल तख़त द्वारा दिया जाना --और उनके परिवार जानो को नौकरी तथा '''सिरोपा''' भेंट किया जाना --- कान्हा की राष्ट्र या देश भक्ति है ??? क्या इसे हत्या की राजनीति नहीं माना जाये ?? संगठन द्वारा ऐसे प्रयासो को बड़वा देने का ही कारण है की उनके पदाधिकारी कन्हैया की जीभ काटने और सर काटने की ''सुपारी'' देते है | खुद नहीं कर सकते ,इतने साहसी है | इसी संदर्भ मे अफजल गुरु का भी मसला है | कश्मीर मे मोदी जी की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार मे साझीदार है | महबूबा मुफ़्ती ने सरे आम अफजल को फासी दिये जाने की भत्सना की थी | घाटी मे आज भी पाकिस्तान --मेरी जान के नारे लगाए जा रहे है कुलगाम मे 6मार्च को ही हिजबूल संगठन के आतंकवादी दाऊद के सेना द्वारा मारे जाने पर उस इलाके मे हरताल भी हुई बाज़ार भी बंद रहे | अब इसे रस्त्रद्रोह मानेंगे या महबूबा के साथ हाथ मिलाएंगे ?? लिखने का आशय है की भारत मे बहुलता है भाषा की - सम्प्रदायो की - पहनावों की विश्वास की और खान पान की | केरल -आसाम और घाटी मे गाय का मांस लोग खाते है | उत्तर प्रदेश बिहार मे ऐसा करना गैर कानूनी है | ऐसा सदियो से रहा है और रहना भी चाहिए यदि हम एकता चाहते है |