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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 8, 2020


ना तेरे लिए सड़क हैं ना रेल की पटरी वापस आने के लिए - मौत ही है !

औरंगाबाद में 14 घर लौटने वाले मजदूरो की मौत -यह साबित करती हैं की हमारे देश के "”हुकमरान "” अर्थ व्यवस्था और उत्पादन में "”श्रम"” शक्ति का इतना ख्याल रखते हैं ! सिवाय मुआवजा घोसीत के देने के को ही अपने कर्तव्यओ की इति श्री समझ लेते हैं | अगर इस दुर्घटना का मूल कारण जाने तो सरकारो की निर्ममता और लापरवाही साफ झलकती हैं | महराष्ट्र के नासिक से रेल की पटरी के सहारे चल कर उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले मजदूरो के पलायन को "”सुगम "” बनाने के बजाय इन निरीह लोगो पर खाकी वर्दी सिर्फ डंडे बरसाती हैं ---और कहती हैं की अपने - अपने घर जाओ ! कौन सा घर और कैसा घर ? वह खोली या दस फूट बी दस फूट का कमरा जिसमें आठ -आठ आदमी रहे वह उनका घर ! और जनहा खाने और पानी का बंदोबस्त नहीं उसको घर बताती है सरकार ! इन लाखो पद यात्री मजदूरो के पास खाने का ना तो समान हैं और नाही कुछ खरीदने का पैसा | क्योंकि मार्च में तालाबंदी होने के बाद इनके मालिको ने भी इनसे मुंह मोड लिया था | मजदूरो के अनुसार बीस - पच्चीस फीसदी मजदूरी का भुगतान करके इन्हे वापस लौटने की सलाह भ दी थी | परंतु सरकार के हुकुम से इन्हे अपने अपने कमरे में बैठना ही इनी मजबूरी थी | मुंबई - पुणे - जालना नासिक के इन मजदूरो के सामने दो ही रास्ते थे ---बिना खाये - पिये कमरो में मर जाये अथवा अपना सामान उठा कर अपने घर पर जाकर आफ्नो के बीच ज़िंदगी गुजारे ! अधिकतर मजूरों ने घर की ओर निकाल जाने का रास्ता चुना | पर रास्ते में इन मजदूरो की भीड़ को पुलिस की लाठी की मार मिली ! सड्को पर जगह - जगह पर बैठी पुलिस इन्हे "” अपने अफसरो के हुकुम के अनुसार "” खदेड़ती थी की अपने घरो में वापस जाओ ! जब इन लोगो ने खाने और पानी के अभाव की बात उनसे काही --तब भी हुकुम की गुलाम पुलिस का जवाब था "” हम कुछ नहीं जानते बस तुम वापस लौट जाओ ! अब इन लगो के सामने एक ही रास्ता बचा था की की अपनी मंजिल के लिए वे उसी रेल की लाइन के सहारे पैदल पैदल चले -----जिसकी पटरियो पर चलने वाली रेल पर बैठ कर वे इन महानगरो की अर्थ व्यवस्था बनाने आए थे और बनाया भी ! शुरू में पुलिस और और इन मजबूर मजदूरो की लुकाछिपी चलती रही , खाकी को देखा कर वे लोग इधर - उधर हो जाते और उनके डंडे खाने से बच जाते | परंतु कुछ श्रमिक ट्रेन के चलने के बाद -इंका धीरज भी जवाब देने लगा | जिनके पास कुछ पैसा बचा था वे ट्रेन में जाने के लिए अपना नाम लिखवाने की लाइन में लगे | परंतु एक तो फार्म अङ्ग्रेज़ी में दूसरा किसी डाक्टर से कोरोना नेगेटिव का मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाना ,इन लोगो के लिए मुसीबत बन गया | दूसरी समस्या यह भी आई की "”अपने इलाके के बीस से तीस मजदूरो के नाम देना "”” ! लेकिन असली समस्या तो थी पंजीकरण करने वाले सिर्फ 150 लोगो को प्रतिदिन पंजीकरण करते थे | जबकि भीड़ हजारो की थी -----पुलिस और सरकारी कारिंदे खुद देख रहे थे इस भीड़ को | परंतु फार्म वालो को टोकन दे देते थे की दूसरे दिन लाइन में आना फार्म ले लेंगे ! लेकिन ऐसा होता नहीं था | टीवी चैनलो में मजदूरो ने कहा की टोकन के बाद भी सुबह चार बजे से लाइन में लाग्ने के बाद उस अकेले काउंटर पर दस बजे बंद कर दिया जाता था !!
इस समस्या का निदान करने के लिए ना तो पुलिस और नाही उन कारिंदो को इनकी हालत पर दया आई , वे तो हुकुम के गुलाम की तरह बस नियत संख्या में फार्म बटोर कर अपनी दुकान बंद कर देते ? सवाल यह हैं की जो भी अफसर इस काम को देख रहा था --क्या उसे इस समस्या का हल नहीं निकालना था ? अरे भाई काउंटर ज्यड़ा खोल दीजिये आदमी बड़ा दीजिये जिससे की सुबह चार बजे से लाइन में लगे आदमी का काम हो जाये ?लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ | जबकि श्रमिक ट्रेन में कुछ भाग्यशाली जगह पाकर अपने मुकाम पर पहुँच गए | जिनकी तादाद सैकड़ो में थी ,पर दासियो हज़ार मजदूर पणजी कारण और मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए दो तीन हज़ार रिश्वत में खर्च करने के बजाय पैदल निकले | कुछ लोगो को ट्रक और टैंकर मिल गए जिनहोने दया दिखा कर 3000 रुपये लेकर इनको पाहुचने का वाद किया | पर यह संख्या भी हज़ार -पाँच सौ से ज्यादा नहीं निकली | बचे दासियो हजार मजदूर जो बिलकुल भूखे -नंगे थे उनकी लाचारी थी की वे पैदल ही घर तक का राशता तय करे | पर ऐसे लोगो को राज मार्ग और पुलिस से बच - बच कर निकलना था | इसलिए जंगलो और अंजान राशतों पर स्थानीय लोगो से पूछ कर चलते गए | जनहा रेल की पटरी मिली तो उसी के सहारे चलने लगे | पर यानहा भी आरपीएफ़ के जवान उन्हे भागते थे | वैसे देश की खाकी वर्दी लेने - दे कर मामला सुलझाने वाली हैं , परंतु इन लूटे पिटे लोगो से उन्हे कुछ मिलने की उम्मीद नहीं थी |
पुलिस कारवाई का नमूना तब देखने को मिला जब एक चैनल के पत्रकार को जो रेल की पटरी पर जा रहे लोगो के दुख दर्द को प्रसारित कर रहा था , तब असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर ने उस रिपोर्टर की विडिओग्राफी को आपतिजनक बताया , उसने कहा आप गलत कर रहे ---आप इन लोगो का मन तोड़ रहे हैं ,इन्हे कहे की ये अपने घरो में जा कर रहे !!! हम तो अपने अफसरो का हुकुम बाजा रहे हैं , हम तो इन्हे भगाएँगे !! क्या हुकुम बजाना हैं ! शायद इनहोने अपनी नौकरी में गिरहकटों को ही पकड़ा होगा !!! उन्हे देखने के बाद वनहा खाना बाँट रहे लोगो को भी उन्होने धमकाया -----खुद तो आदमियो को कुछ सुख दे नहीं सकते -जो भोजन बाँट रहा था उसे भीभगा दिया ,वाह रे वाह महाराष्ट्र पुलिस -इस बात पर कोई कैसे जय महाराष्ट्र का नर लगा सकता हैं !
अब बात करते हैं उत्तर परदेश -बिहार और छतीसगढ़ सरकारो की हेल्प लाइन फोन नंबरो की , इन सरकारो ने इन नंबरो पर आने वाली शिकायतों का कोई "”लेखा जोखा "” नहीं रखा हैं , इसलिए इन अफसरो का जवाब तो "”कोरा होना ही हैं | जबकि मजदूरो से जब पूछा गया की उन लोगो ने अपनी व्यथा अपने प्रदेश की सरकारो को बताई ----तब उनका जवाब था की , अधिकतर तो फोन एंगेज रहता हैं और आदर घंटी बाजी तब उसे उठाया नहीं जाता | महराष्ट्र की इंचार्ज आयुक्त स्तर की अधिकारी दीपाली रस्तोगी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नामित किया हैं | परंतु वे पत्रकारो के भी फोन का जवाब नहीं देती ! अब इससे हाल पता चलता हैं | दिल्ली में बैठे तीन अधिकारी रेजेडेंट आयुक्त की ज़िम्मेदारी समहलते हैं ---लेकिन उन्होने इन मजदूरो को लाने के लिए संबन्धित सरकारो से कोई पहल नहीं की | वैसे इंका काम प्रमुख रूप से मुख्य मंत्री या मंत्रियो की मुलाक़ात फिक्स करना होता हैं | परंतु इस समय तो कोई दिल्ली जा भी नहीं रहा हैं | तब भी इन्हे प्रदेश के मजदूरो की परवाह नहीं | यही
हाल उत्तर परदेश और बिहार के अफसरो का भी हैं - एयर कंडीशंड कमरो में चाय पीकर साथी अफसरो की पोस्टिंग के बारे में जानना ही इंका शगल रहता हैं |
अब उत्तर प्रदेश क योगी सरकार द्वरा अपने राज्य के ही मजदूरो से भेद भाव का हैं | पंजीकरण करने वाले अधिकारी का कहना था की उत्तर प्रदेश के सिर्फ तीन ज़िलो -अमेठी - गोन्डा और गोरखपुर के ही मजदुओ का श्रमिक ट्रेन में जाने के लिए पंजीयन किया जाये ! आखिर ऐसा क्यू ? जवाब हैं अमेठी केंद्रीय मंत्री स्म्र्ति ईरानी का और गोरखपुर योगी जी का खुद छ्त्र हैं ! ऐसी विपदा की घड़ी में भी अपने - पराए और वोट बैंक इस राजनीति को धिक्कार हैं | इसलिय की वह बीजेपी का छेत्र हैं ?
इन पैदल चलने वालो ने शायद पदयात्रा का विश्व रेकॉर्ड बना दिया हैं | जितना लोग आज महराष्ट्र और गुजरात -हरियाणा से पलायन कर रहे है -उतने लोगो ने तो देश के विभाजन के समय भी पैदल यात्रा नहीं की होगी | और चलते -चलते राष्ट्रीय स्वायसेवक संघ के नेता गिरिजेश कुमार का एक बयान छ्पा है -जिसमें उन्होने मेरठ के अपने संगठन के पदाधिकारी द्वरा ज़कात का पैसा से गरीबो को गेंहू बांटने की तारीफ की , साथ ही उन्होने कहा की मुसलमानो को चाहिए की वे रमज़ान के माह में ज़कात की धनराशि प्राइम मिनिस्टर केयर फंड में दान करे !! इस हिंदुवादी नेता को यह नहीं मालूम की ज़कात की राशि मजलूम - बेसहारा मर्द और औरतों को दी जाती हैं ------ भरे पेट वालो को नहीं दी जाती | वैसे कुवैत और खड़ी के देशो में ज़कात की राशि लेने वाले नहीं मिलते -वनहा अगर गिरजेश कुमार अपील करेंगे तो फायदे में रहेंगे !!!