हाथरस बलात्कार -सुशांत - और अयोध्या कांड --सीबीआई जांच ?
28 साल बाद बाबरी मस्जिद ढहाने के प्रकरण पर न्यायिक जांच आयोग के एकमात्र सदस्य श्री यादव ने सभी नामजद 28 आरोपियों को "”बाइज्जत बारी "”कर दिया ! उन्होने अपने फैसले में कहा की सीबीआई आरोपो की पुष्टि अदालत में नहीं कर पायी ! उन्होने सबूत के तौर पर देश और विदेश के मीडिया की वीडियो रिकार्डिंग और छपी खबरों को "” सबूत " मानने से इंकार कर दिया ! कारण बताया की उन रिकॉर्डिंग की फोरेंसिक जांच नहीं कराई गयी थी | आयोग ने समाचार पत्रो में उस दिन के छपे वर्णन को भी अमान्य कर दिया , की उन्हे सबूत नहीं माना जा सकता | खैर सुप्रीम कोर्ट द्वरा अयोध्या के मामले में जिस प्रकार निर्णय हुआ – वह ऐतिहासिक और अद्भुत ही कहा जाएगा | एवं इस फैसले के बाद देश के प्रधान न्यायाधीश को सत्ताधारी पार्टी द्वरा जिस प्रकार राज्य सभा में भेजा गया , वह फैसले की निस्पक़्श्च्ता पर तो प्रश्न चिन्ह लगता ही हैं ! कुछ वर्ष पूर्व भी सताधारी पार्टी द्वरा तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के अवकाश ग्रहण करने के पश्चात केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था | तब भी सवाल उठे थे क्या प्रधान न्यायाधीश को किसी मुकदमे में "”किसी "” बड़े आदमी को बचाने के एवज़ में यह पद नवाजा गया हैं ? परंतु रक्तबीज के भांति संख्यासुर के बहुमत के आगे तंत्र की निस्पक़्श्च्ता धराशायी हो गयी |
सुशांत मामले में भी अब तो एम्स के डाक्टरों की टीम ने कह दिया की की "”यह ख़ुदकुशी "” का मामला हैं -हत्या का नहीं !
बात करते है यानहा सीबीआई की खोजबीन करने की "”प्रवीणता "” की जिसके कारण ही उत्तर परदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ को जनता और विपक्ष के दबाव के आगे ना केवल काँग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका वादरा को हाथरस में बलात्कार की पीड़िता के परिवार से मिलने के लिए मजबूरन राज़ी होना पड़ा , वरन पुलिस महानिदेशक और अतिरिक्त मुख्य सचिव को उस गाव में भी भेजना पड़ा | सत्ता के अहंकार के मद में वे सामान्य राजनेता की भांति व्यवहार करने की छमता भी खो चुकेपिता को ठाणे हैं | जिस मुख्य मंत्री के राज मे बीजेपी विधायक दलित कन्या से बलात्कार करे और उसके पिता को थाने में अधमरा किया जाये , और बाद में उस लड़की का एक्सिडेंट कराया जाये , उस राज्य में कानून की व्यसथा का क्या कहना ? फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सांसद तथा भगवाधारी स्वामी चिनमया नन्द द्वारा बलात्कार का आरोप लाग्ने पर उन्हे तो जमानत मिल गयी पर पीड़िता को जेल में रहना पड़ा | इन मामलो की जांच सीबीआई से नहीं हुई ?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जुस्टिस काटजू ने नीरव मोदी के मामले में एक बयान दिया था --जिसमें उन्होने कहा था की नीरव को मौजूदा सरकार के रहते सीबीआई से न्याया नहीं मिलेगा | क्योंकि सीबीआई की जांच में आरोपी को घंटो - घंटो बैठा कर पूछताछ का सिलसिला हफ़्तों तक चलता हैं | पर फिर भी सीबीआई को मुश्किल से 11 प्रतिशत मामलो में आरोपी को आरंभिक अदालत से सज़ा दिलाने में सफलता मिलती हैं | जबकि इवेडेंस अक्त में ऐसी कोई शक्ति जांच करने वलयी एजेंसी को नहीं हैं | उनके कहने का सार यह था की वे आरोपी से सबूत जुटाने का दबाव बनाते हैं | क्योंकि उनके पास स्वयं कोई सबूत नहीं होता | वे तो आरोपी से बयान लेकर दस्तखत करा कर उसे ही सबूत के तौर पर पेश कर देते हैं | जबकि पुलिस को दिये गए बयान की अदालत में कोई अहमियता नहीं होती हैं |
सुशांत केस :- अभिनेता की मौत को महाराष्ट्र पोलिस ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्या करना बताया था | बाद में बिहार में चुनाव के मद्दे नजर राजपूत मतो को साधने के लिए सत्ताधारी दल ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धाराओ का मज़ाक उड़ाते हुए पटना में पुलिस में सुशांत की मौत को हत्या बताते हुए एक प्राथमिकी दर्ज़ करा दी | जबकि यह नियम वीरुध था | जनहा अपराध घटित हुआ हैं वनही का थाना ही इस मामले में जांच कर सकता हैं | पर बिहार सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गयी | जनहा एकल पीठ के न्यायमूर्ति ने बिहार सरकार के आग्रह पर सीबीआई को जांच के लिए अधिकरत किया | जबकि नियमानुसार प्रदेश सरकार के आग्रह पर ही सीबीआई या केंद्रीय एजंसी जांच करती हैं | आखिर कार 25 -30 दिन के मीडिया ट्राइल के बाद एम्स के डाक्टरों ने रिपोर्ट दी की सुशांत ने "”ख़ुदकुशी "” ही की हैं !! अब संख्यसुर का बहुमत नरकोटिक्स विंग को फिल्मी दुनिया के नामचीन लोगो को घेरने में लगी हैं | बस सबको दफ्तर में बुला कर घंटो -घंटो पूछताछ के नाम पर परेशान किया जा रहा हैं | हालांकि नरकोटिक्स विभाग बीस दिन बाद भी किसी के पास से कोई ड्रग बरामद नहीं कर सका हैं | पते की बात यह हैं की आए थे सुशांत के हत्यारे की खोज में और करने लगे जांच की "”किस -किस ने ड्रग ली हैं "”” ! यह हैं सीबीआई की जांच |
अब आते हैं हाथरस बलात्कार और हत्या कांड पर , जिस मीडिया रिपोर्ट को अयोध्या मामले में जज साहब ने खारिज कर दिया था , वही आज उत्तर प्रदेश की शासन व्यसथा और पुलिस की कहानी दिखा रहा हैं | गृह सचिव द्वरा यह कहना की कोरोना के कारण और शांति व्यवस्था को देखते हुए - दिल्ली से हाथरस की सड़क पर पहले काँग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका को शांति भंग के आरोप में हिरासत में लिया था , और किसी को भी पीड़िता के गवन नहीं जाने दिया गया | वनही अफसर और मुख्य मंत्री "” जग हँसाई "” से परेशान हो कर राहुल को हाथरस आने का न्योता दिया !
वास्तव इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो न्यायमूर्तियों ने हाथरस की घटना का स्वतः संगयन लेकर इस मामले में सरकार को हाजिर होने का हुकुम दिया हैं | तब आदित्यनाथ की सरकार हिल गयी की अब तो अफसरो की कारवाई की जांच होगी ,की किसके आदेश से उन्होने घेरबंदी की और क्यू की ? मीडिया और नेताओ को जाने से किस कारण रोका गया ? तब उन्होने हाथरस जाने के प्रतिबंध को हटाया |
यद्यपि आदित्यनाथ मुख्य मंत्री की खास बात हैं की वे कभी भी अपने को नियमो के अधीन नहीं रखते हैं | वे उनका उपयोग अपने दलीय हिट के लिए करते हैं | रविवार को उन्होने एक बयान जारी करकहा की गहरी जांच के लिए सीबीआई की खोजबीन जरूरी हैं ! दूसरे बयान में उन्होने कहा की राज्य में जाति संघर्ष का षड्यंत्र किया जा रहा हैं ! उन्होने यह भी बताया की राज्य साइबर सेल ने इस मामले में एक प्राथमिकी भी दर्ज़ की हैं ! सवाल यह हैं की अब तक हिन्दू और मुसलमान करने वाले नेता अब किस हिन्दू ज़ाती पर अपना नजला उतारेंगे ? उधर मद्रास हाइ कोर्ट ने हाथरस कांड पर टिप्पणी करते हुए कहा की अभी तक भारत देवभूमि थी पर अब यह " दुष्कर्मियों "” की भूमि होती जा रही हैं | अब कितनी ही मोटी खाल का राज नेता हो आखिर हाइ कोर्ट से तो डरता हैं , तभी तो इस निज़ाम में न्यायपालिका की चुप्पी {सुप्रीम कोर्ट } आम नागरिकों की चिंता का विषय बन गया हैं | जिस तरह से दिल्ली दंगो में पुलिस की जांच और जे एनयू और जामिया के छत्रों पर बर्बर लाठी चार्ज की जांच में सुप्रीम कोर्ट का मौन चिंता का विषय हैं | भीमा कोरेगाओं में केन्द्रीय जांच एजेंसी एन आई ए की भी जांच और निर्दोष बुद्धिजीवियों को जेल में रख कर डराने का ही काम हैं |