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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 21, 2018


शीर्षक ---- संघ का धर्म परिवर्तन विरोध और राम मंदिर का मोह बरकरार

संघ के बहू प्रचारित तीन दिनी "विश्व संवाद '’ मे सरसंघचालक मोहन भागवत जी का ही प्रवचन होता रहा है | उन्होने हर उन तथ्यो और आशंकाओ का खंडन करने का भरपूर प्रयास किया , जिनको लेकर सार्वजनिक जीवन मे उनकी आलोचना होती रही है | मसलन इस्लाम के अनुयायियों को कहा की वे वे संघ को समझने के लिए '’’’संघ मे आए ? परंतु संघ की शाखाओ तथा बैठको मे उबके द्वारा 1925 से ही बंद है ? दूसरा उन्होने बड़ी चतुराई से "””हिन्दुत्व "” को भारत की आत्मा बताने का प्रयास किया ! उनके अनुसार मुसलमान नहीं रहेगा तो भारत भी नहीं रहेगा !!!

उन्होने सार्वजनिक रूप से "” गुरु जी अर्थात श्री गोलवलकर जी की मशहूर पुस्तक "” Bunch of Thoughts “” से किनारा करने की कोशिस की ! अभी तक यह पुस्तक ही संघ की विचार धारा का आधार हुआ करती थी | इस किताब मे मुस्लिम और ईसाइयो को राष्ट्र विरोधी बताया गया था | उन्होने गोलवलकर जी के विचारो को तत्कालीन समय और परिस्थ्ती मे लिखा हुआ बताया ! अर्थात वे सर्व कालिक सती नहीं थी ? उनके स्थान पर भागवत जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार को स्थापित करने की कोशिस की ! इस प्रयास को विगत नब्बे वर्षो मे संघ के नेताओ द्वरा सबसे बड़ा "” अबाउट टर्न "” माना जा रहा है | अपने प्रवचन मे उन्होने डॉ साहब की स्वतन्त्रता प्रियता की बचपन की घटनाओ का ज़िक्र किया --जिनके बारे मे सिर्फ उनही के लोगो को मालूम है |


उन्होने ना केवल सभी धर्मो के प्रति "”””समभाव"” के ड्राष्टिकोण की बात कही वरन डॉ हेडगेवार और उनके समकालीन वाम पंथी मित्र का भी जिक्र किया !

तीन दिन के संवाद {{प्रवचन}} मे जो भी बाते काही वे वास्तविकता के धरातल पर बिलकुल बेमानी है , मसलन वे गाय की पवित्रता की बात करते है ----परंतु गौ रक्षको द्वरा की जा रही हिशा और मोब लिंचिंग की आलोचना मे एक शब्द भी नहीं कहा ! उन्होने जनसंख्या नियंत्रण का समर्थन किया - जबकि उन्हे मालूम है की यह मुद्दा मुसलमानो को चुभता है | नरम दिखने की कोशिस करते हुई उन्होने कट्टर्ता की तों को छोड़ा नहीं ----जब वे कहते है की "” जो देश के लिए सही होगा वही किया जाएगा ! अब लोकतन्त्र मे देश के लिए सही क्या है --यह एक पंजीयन हीं और लोकतान्त्रिक निर्वाचन को ध्त्ता बताती हुई संघ की कार्य प्रणाली सर्व विदित है | दूसरी बात जो उन्होने कही की -----संघ सरकार अथवा अन्य संगठनो पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं रखता !!! अब इस वक्तव्य पर कौन भरोसा कर सकता है ! राम माधव --राम लाल आदि अनेक नेताओ को संघ ने ही मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी की सहायता के लिए भेजा गया है !!

अब उन्होने जनहा कहा की वे काँग्रेस के विरोधी नहीं है - इतना ही नहीं उन्होने अटल जी की भाषा बोलते हुए कहा की "” 60 वर्षो मे देश का बहुत विकास हुआ है !! जबकि संघ और बीजेपी समर्थक यानहा तक की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक पंडित जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी तथा राजीव गांधी को देश की उन्नति का खलनायक बताते हुए ऊनहे भ्रष्ट और नाकाबिल निरूपित करते रहते है !!! देश की सभ्यता मे मौजूद विभिन्न मत और --तौर तरीको तथा खान पान को लेकर संघ के "”” आनुषंगिक संगठन "” के नेताओ और कार्यकर्ताओ द्वरा जिस प्रकार विष वमन किया जाता है ---- ऐसे बयान बाजी को कभी रोकने की कोई भी कोशिस नहीं की गयी | केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यो द्वरा जब -जब देश मे विभिन्न समुदायो मे नफरत फैलाने की हिंसक कोशिसों को कभी "””आधिकारिक स्तर पर नियंत्रित करने की कोशिस नहीं की गयाई |

सबसे आपतिजनक उनका बयान था जो उन्होने कहा की "”” हम राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान तो करते है परंतु भगवा ध्वज हमार गुरु है !!!! क्या देश मे राष्ट्रीय ध्वज से भी ज्यादा कोई सम्मानजनक झण्डा है !!! जिस झंडे को विश्व मे भारत की पहचान माना जाता है ----उससे भी ज्यादा कोई सम्मानिन्य है ???

मोहन भागवत संघ के इतिहास मे इसलिए जाने जाएँगे की --उन्होने अब अपनी संस्था को भी "”” प्रचार के लिए तैयार कर दिया "”” | अभी तक यह मानिता थी की संघ के नेता "”प्रचार से दूर रहते थे , परंतु भागवत जी के इस प्रवचन से यह साफ हो गया की अब इस प्रकार के आयोजन प्रदेश की की राजधानियों और प्रमुख नगरो मे आयोजित किए जाएगे ! इस का कारण शायद यह है की मोदी सरकार के कार्यकाल मे बीजेपी के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी बहुत से सवाल खड़े किए गए थे | जो उनके '’’समर्थक समूहो '’’ मे काफी शंका उत्पन्न कर रहे थे | अब भागवत जी के भासन को उनके समर्थक रामायण - गीता की भांति बांचेंगे | तथा वाद - विवाद मे इसे तर्क का बना पहनने की कोशिस करेंगे ! पर आरोपो को निराधार करती हुई घटनाए और उनके नेताओ के बयान कितना संघ का बचाव कर पाएंगे ---देखना होगा |
कहावत है की काठ की हाड़ी एक बार ही छड़ती है --- संघ की यह कोशिस उसे झूठा बनाने की कोशिस करने कोशिस है | विधानसभ के चुनावो की पूर्व संध्या पर भारतीय जनता पार्टी के पछ मे माहौल बनाने का प्रयास कहा जाएगा | राम मंदिर के संदर्भ मे संघ के आनुषंगिक संगठन के मुखिया इंद्रेश कुमार ने अभी एका बयान मे कहा की -----अगर राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि दे दी जाए -तब दंगे नहीं होंगे ??? इस बयान को क्या माना जाए की --अगर सर्वोच्च न्यायालय ने उसके सामने लंबित मामले मे संघ और बीजेपी ले मन माफिक फैसला नहीं दिया ----तब क्या इंद्रेश कुमार के तरीके से भागवत जी की कामना को पूरा किया जाएगा ????



Sep 14, 2018


शीर्षक :- स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो मे अद्वैत को ही मानवजाति के कल्याण का एकमात्र साधन बताया ---आज उनके नाम पर इस्लाम के अनुयायियों को हिकारत से देखने का काम संघ क्यो कर रहा है |

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता ने लिखा है की मुस्लिम ब्रदरहूड़ विवेकानंद का विश्व बंधुत्व नहीं है !!! लगता है की शिकागो की धर्म संसद के भाषण को पूरी तरह से आत्मसात नहीं किया है !! इतना ही नहीं अगर वे स्वामी जी द्वारा अपने मित्र सर्फ़राज को 19 जून 1898 मे अल्मोड़ा से लिखे पत्र का तो बिलकुल अवलोकन नहीं किया है !!! जिसमे स्वामी जी ने स्पष्ट किया की अद्वैत ही शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण की कुंजी है !!!



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता श्री मनमोहन वैद्य ने अपने आलेख मे लिखा है की मुस्लिम ब्रदर हूड़ विवेकानंद का विश्व बंधुत्व नहीं है | उन्होने राहुल गांधी द्वरा संघ को ब्रदर हूड़ की तर्ज़ पर '’हिन्दू " कट्टर संगठन बताया | तथ्य के आधार पर अगर इस्लाम के मानने वालो का एक कट्टर संगठन है ------तब संघ भी वेदिक धरम के मानने वालो को उनकी आस्था के आधार पर एक करने का प्रयास करता है | उन्होने दावा किया है की "””संघ "”” भारत की परंपरागत अध्यातम आधारित सर्वांगीण और एकात्म जीवन द्रष्टि केय आधार पर सम्पूर्ण समाज को "”एक सूत्र "” मे जोड़ने का कार्य कर रहा है | इसकी तुलना जेहादी मुस्लिम ब्रदर हूड़ से करना भारतीयो और देश की महान संसक्राति का घोर अपमान है "””” !!!!
विवेकानंद को उचित तरीके से परिभाषित नहीं करके संघ ने एक स्थापित और सर्वमान्य विचारक की भावनाओ और विचारो को दूषित रूप मे प्रस्तुत कर के अपने '’’’सामाजिक संगठन के मुखौटे '’’ को उजागर किया है | वनही उन्होने स्वामी के अद्वैत सिधान्त को भी अमानी किया है |
स्वामी ने 10 जून 1898 मे अल्मोड़ा प्रवास के दौरान अपने मित्र सर्फरज को जो पत्र लिखा है ---वह वैद्य जी के कथन को सर्वथा अमन करता है |
उनके शब्दो मे :_-- धर्म और विचार मे अद्वैत ही अंतिम शब्द है | केवल इसी ड्राष्टिकोण से सभी धर्मो और सम्प्रदायो को प्रेम से देखा जा सकता है | भविष्य मे सब मानवीय समाज का यही एका धरम होगा | आगे उन्होने कहा की वेदान्त के सिधान्त कितने ही विलक्षण और उदार हो परंतु व्यावहारिक इस्लाम की सहता के बिना मनुष्य जाती के महान समूह के लिए मूल्यहीन साबित होंगे | हम मनुष्य जाति को उस स्थान पर पाहुचन चाहते है जनहा ना वेद हो नाही कुरान हो और नाही बाइबिल हो -परंतु वेद -कुरान और बाइबिल के समनव्य से ही ऐसा संभव है | आगे उन्होने लिखा है की मनुष्य जाति को को यह शिक्षा देनी होगी की ------सब धरम उस "”एक"” धर्म के भिन्न - भिन्न रूप है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोनुकूल इन धर्मो से अपना मार्ग चुन सकेगा "””


अब इस पत्र से यह साफ है की वे इस्लाम अथवा जिसे हिन्दू संघ मुस्लिम समाज या धर्म कहता – वह विश्व बंधुत्व मे बाधक नहीं है | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने वेदिक धर्म की सनातनी अनुयायियों को "”” हिन्दू "” की संज्ञा दे दी है --जो नितांत अनुचित ही है | वनही इस्लाम धर्म के अनुयायियो को '’मुसलमान ;; संज्ञा भी गलत है | इस्लाम मे अरब भी है तुर्क भी है क़ज़ाक भी है उज़्बेक भी है ---इन्हे मुस्लिम नहीं कहा जा सकता , क्योंकि इनकी राष्ट्रियता इनके छेत्र की पहचान है | भले ही उनका धर्म एक हो | क्या हम ईसाई बहुसंख्यक देश अमेरिका या ब्रिटेन के नागरिकों को ईसाई कहेंगे ?? नहीं क्योंकि उनकी राष्ट्रियता और '’’नस्ल"” अलग है | जिस प्रकार ईरान और इराक के मुसलमानो की पहचान अलग है |
वैद्य जी ने लिखा है "”” संघ भारत की परंपरागत अध्यातम आधारित सर्वांगीड और एकातम जीवन्द्र्ष्टि के आधार सम्पूर्ण समाज को एक सूत्र मे जोड़ने का कार्य करता है !! “”” ईस बयान मे परंपरागत अध्यातम "”” का अगर हम विवेचना करे , तो वेदिक धर्म {{ हिन्दू नहीं }} मे विभिन्न मतो का समावेश है | वैसे तो बहुत संप्रदाय है --परंतु प्रमुख रूप से तीन है "”” शाक्त ,अर्थात शक्ति या देवी भक्त दूसरा मत शैव यानि शिव या लिंग की उपासना करने वाले और वैष्णव जो विष्णु और उनके अवतार अयोध्या के राम और मथुरा के क्रष्ण के उपासक है | अब ऋग्वेद के दसवे मण्डल के दसवे अध्याय मे 125 सूक्त की ऋचाए मे इनके स्वरूप का वर्णन है -इनकी शक्ति का वर्णन है | दूसरी है गायत्री जिंका वर्णन तीसरे मण्डल के 62 सूक्त की 3044 ऋचा है जिसमे उनकी शक्ति और महिमा काही गयी है | वेदो मे रुद्र का वर्णन है जिसे कालांतर मे शिव कहा गया | शिव का प्रतीक "””लिंग "” है | अब वैष्णव संप्रदाय जिसमे अवतारो की महिमा है इसमे बहुत से संप्रदाय है , जैसे मथुरा के क्रष्ण के अनुयायाई का सबसे बड़ा संप्रदाय राधस्वामी है जो आगरा और पंजाब के मालवा इलाके मे है | दसरथ पुत्र राम और पत्नी सीता के उपासक किसी एक संगठन मे आबद्ध नहीं है | परंतु इन अवतारो के मंदिर बहुत है | शैव संप्रदाय मे उत्तर भारत से लेकर विंध्य के नीचे अनेक संगठन है | हाल ही मे पत्रकार गौरी लंकेश जिनकी ध्रमान्ध लोगो ने हत्या कर दी ---वे भी वीर शैव संप्रदाय की थी |

अब दक्षिण मे शैव के अनेक मठ है जो अपनी -अपनी अलग पहचान रखते है | संग कुछ अति उत्साही लोगो ने गौरी लंकेश को ईसाई निरूपित किया ---चूंकि उनका दाह संस्कार नहीं हुआ था ! तमिलनाडू की मुखी मंत्री जय ललिता और डीएमके नेता करुणानिधि दोनों को ही दफनाया गया !! अन इस कारण उन्हे क्या ईसाई मान लिया जाये !! द्रविड़ क्ड्गम के संस्थापक रामस्वामी नायकर ने 1930 मे वेदिक धर्म मे ब्रांहणों के वर्चसव के वीरुध हल्ला बोला था | उन्होने गैर ब्रांहण तमिल लोगो संगठित किया था | उन्होने सार्वजनिक रूप से वेदो -पुराण और सनातन धर्म की अन्य पुस्तकों की सार्वजनिक होली जलायी थी | अंग्रेज़ सरकार ने उन्हे बंदी भी बनाया | परंतु दक्षिण के आलीशान मंदिरो से लगी संपातियों का लाभ सिर्फ कुछ ब्रामहन परिवारों के हित के लिए था | वे लोग गैर ब्रांहनों से अत्यंत अपमानजनक व्यवहार करते थे , जिसे कुपित होकर डीएमके सदस्यो को मंदिर का बहिसकार का निर्देश दिया गया था | आज भी बहुत से डीएमके के सदस्य मंदिर नहीं जाते | तो क्या वे सनातनी परंपरा मे नहीं रह गए ?? हमारे वेदो मे तो चारवाक ऋषि को भी स्थान दिया गया है ---जो पूरी तरह से भोगवाद के प्रणेता थे | जिनके अनुसार शरीर ही सबकुछ है और इसका सुख ही परम धर्म है |
जिस वेदिक धरम मे समाज के सभी लोगो की आस्थाओ और विश्वास को समेट कर एक सूत्र मे बांधे रहता है ---- अगर विवेकनद का विश्व्बंधुत्व का वह विश्वास नहीं है – है तो
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का धर्म आधारित नफरत का संदेश तो विवेकानंद के नाम का दुरुपयोग है |

जिस प्रकार अपने को संघ “”एक सामाजिक संगठन “” बताता रहा है , वह असत्य विगत कुछ समय से सामने आ गया है | जिस प्रकार वैद्य जी ने आलेख का शुभरम्भ काँग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के उस वक्तव्य का हवाला देकर उन वामपंथियो और छुद्र राजनीतिक स्वार्थो के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध कर रहे लोगो की आलोचना की ,उससे ही उनके राजनीतिक पाखंड का पर्दा फ़ाश हो गया ----की ये सामाजिक संगठन नहीं राजनीतिक पार्टी तो नहीं लेकिन आउटफिट है | जो अधूरे सामाजिक मूल्यो और अधकचरे राष्ट्रवाद और हिन्दू एकता को लेकर यह संगठन नगरत का एजेंडा देश मे आगे बड़ा रहा है | जिन स्वामी विवेकानंद ने भारत मे सभी धर्मो के आगमन का स्वागत का वर्णन किया ---था उस देश मे उनका नाम लेकर तथकथित हिन्दू और मुसलमान मे नफरत का जहर बोने वाली ताकते ॥,, आदिगुरु शंकरा चार्य की समस्त भारत की आबादी को एक सूत्र मे बाधने के प्रयासो को असफल करने के इरादे भगवती सफल नहीं होने देगी | जिस प्रकार देवासूर संग्राम मे भी सत और असत के मध्य संघराश चल रहा था ---वैसा ही इस समय मे भी होगा | इस देश की समष्टि बनी रहेगी |

Sep 11, 2018


अंतराष्ट्रीय धर्म संसद के 125 वर्ष बाद शिकागो मे सम्पन्न विश्व हिन्दू सम्मेलन मे सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्गार स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के उद्देश्यों से काफी भटके हुए लगते है|| स्वामी जी ने जिस नगर से दुनिया को सह अस्तित्व – सर्वधरमसमभाव और अहिंसा की बात बताई थी ---उसी स्थान से _------ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दुनिया के दो अरब सनतान धर्मी स्त्री - पुरुषो को "”” कमजोर "” होने की घोषणा की !!! एवं कड़े लड्डू वितरित करके की यह उम्मीद भी जताई की "”” हिन्दु को कडा बनना है !!! अब सनातनी हजारो वर्षो से जैसे थे --वैसा समाज का स्वरूप संघ को नहीं मंजूर है ?? तो क्या ईसाई और इस्लाम के धरम युद्ध के लिए सन्नध होना है ?? क्या हिन्दुत्व की सेना बनानी है ??? यह सेना लड़ेगी किनसे ? ईसाई और इस्लाम से --अथवा सनातन धरम के उन लोगो को चुन - चुन कर खतम करेगी --- जैसा जर्मनी मे हिटलर ने "”” आर्य रक्त शुद्धता "” के सिधान्त का विरोध करने वाले हजारो लोगो श्रम शिविरो मे बंद कर दिया था ?? औद्युओगिक सभ्यता मे आज समाज "”व्यक्ति परक "” हो गया है अब उसे सदियो पूर्व के परिवार की इकाई के रूप मे नहीं देखा जा सकता |

हंसी तब लगती है जब भारतीय गणतन्त्र के उप राष्ट्रपति वेंकीया नायडू ने सम्मेलन मे भाषण दिया की समस्त विश्व भारत की ओर समस्याओ के लिए '’’’निहार रहा है "”” !!! अमेरिका ऐसे देश मे नायडू का यह कथन हास्यास्पद लगता है की "” जब सभी देश की विकास की गति धीमी पद गयी तब हमारी गति सबसे तेज है !!! शिकागो के समचरपत्रों के कोने मे उप राष्ट्रपति का भासन छपा !!! उन्हे पद के अनुसार प्रोटोकाल भी नहीं मिला --क्योंकि वे अमेरिकी सरकार के लिए "”बिन बुलाये मेहमान थे "” संघ का भारत के विश्व गुरु होने का दंभ भी आज की दुनिया मे नीरा छ्लवा है ---जैसे की अच्छे दिन का वादा !!

11 सितंबर 1893 को सर्व धर्म संसद मे स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की विशेषता बताते हुए कहा था की धार्मिक एकता किसी भी मत को मिटा कर या दबा कर नहीं हो सकती है ! उन्होने गीता का उदाहरण देते हुए कहा था की "””” विभिन्न रास्तो से होकर आने वाले सभी मनुष्य अंत मे मुझ तक ही पहुचते है "” ! उन्होने वेदिक धरम की समावेशी प्र्क्रती का उदाहरण देते हुए ---विभिन्न धर्मो को भारत मे समाहित किए जाने का वर्णन किया | उन्होने कहा जब यहूदियो के मंदिर को रोमन साम्राज्य द्वरा ध्वसत कर दिया गया तब वे भारत के उत्तरी भाग मे आकर बसे | इसी प्रकार जब पारसी धर्म के लोगो का उत्पीड़न ईरान मे आक्रांताओ द्वरा किया जाने लगा ----तब भारत ने उन्हे अपनाया ! हमने विभिन्न आस्थाओ और विश्वासों वाले मतो के साथ "”” सह अस्तित्व "” के साथ सदियो से रहते आए है | उन्होने कहा था की वेदिक संसक्राति मे विभिन्नताओ को साथ लेकर चलने की छमता है | इसी लिए भारत मे विभिन्न धरम और सन्स्क्रातियों का वास है |

ईसा से पूर्व इस देश मे वेदिक धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का उदय हो चुका था , वेदिक धर्म और इन दोनों धर्म के विचारो मे "” थोड़ा अंतर था ---परंतु फिर भी यानहा के अधिकान्श राजाओ ने सभी धर्मो को अपने - अपने अनुसार पालन करने की अनुमति दे रखी थी | अपवाद स्वरूप कुछ स्थानो पर ऐसा संभव नहीं था | लगभग नौ सौ साल तक इन तीनों का अस्तित्व बन रहा | परंतु समय बीतने के साथ सनातन परंपरा अनेक स्थानो पर अपने विचारो और उद्देश्यों से विचलित हो चुकी थी | ऐसे समय मे जब वेदिक धरम धीरे -धीरे कमजोर होता जा रह था -----तब ऐसे समय मे सुदूर दक्षिण मे त्रिवांकुर-कोचीन राज्य मे आचारी शंकर का जनम हुआ | जिनहे दुनिया आदिगुरु शंकरचार्य के नाम से जानती है | उन्होने केरल से काश्मीर तक और तक्षशिला से कामरूप तक की "”यात्रा की | जिनहे उनके शिस्यों द्वरा दिग्विजय यात्रा का नाम दिया गया | उन्होने हजारो छोटे -बड़े राज्यो मे विभाजित भारतवर्ष को सान्स्क्रतिक और धार्मिक रूप से एक सूत्र मे बांधने के लिए "”चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए | जो हजारो साल बाद भी आज वेदिक धरम की सनातन परंपरा को जीवंत बनाए हुए है |

इसके विपरीत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया ने "” हिन्दू धर्म "” को बिखरा हुआ और कमजोर बताया !! धरम संसद के 125 साल बाद उसी स्थान से कहा की "””हिन्दू पुनरुथान आज की आवश्यकता है ! “” वैसे उन्होने अपने उद्बोधन मे कनही भी यह नहीं बताया की किन स्थानो पर हिन्दू कमजोर हो रहा है ?? संघ अपने हिन्दुत्व के नारे को एक हुंकार मे बदलने का प्रयास कर रहा है ----क्योंकि उसके अनुसार जब तक सभी सनातन धर्म के लोग "”संघ '’ मे शामिल नहीं होते तब तक वे बिखरे हुए है ??? आज भारत मे विभिन्न मतो के वेदिक धर्म के मानने वाले लोग अस्सी प्रतिशत है ,, शेस बीस प्रतिशत मे इस्लाम और ईसाई या सिख धर्म के मानने वाले लोग है | तब क्या भागवत जी यह चाहते है की – इन अलपसंख्यकों को "” मिटा दिया जाए अथवा दबा दिया जाये "”? उनकी विचारधाराओ के लोग बार - बार मुगलो के आक्रमण और हिन्दुओ के धरम परिवर्तन की गुहार लगाते है | ऐसी घटनाए इतिहास मे हुई है --जैसे सोमनाथ मंदिर का ध्वंश !! परंतु मोहम्मद गोरी द्वारा इब्रहीम लोदी को पानीपत मे पराजित करने के बाद 1857 तक दिल्ली मे मुगलो का राज रहा | परंतु हिन्दू फिर भी बहुसंख्यक बने रहे !! कुछ मंदिर भी टूटे -परंतु मुगल शासको ने अनेक मंदिरो को ज़मीन और दान भी दिये | दोनों ही प्रकार की घटनाए इतिहास के पन्नो मे दर्ज़ है | महराणा प्रताप और अकबर मे एक को नायक और दूसरे को खलनायक बनाने की संघ की सोच यह भूल जाती है की प्रताप का सेनापति मुसलमान और अकबर का सेनापति हिन्दू राजा थे ! शिवाजी की सेना मे भी मुसलमान और उनकी नौसेना मे गुजरात के नीग्रो भी थे !

उन्होने यह भी कहा की जब परिवार टूटते है तो संसक्राति बिखरती है – अब भागवत जी को समझना होगा की खेती पर आधारित अर्थ व्यवस्था मे भी आजकल संयुक्त परिवार टूट रहे है | आज बैलो से खेती नहीं होती --मशीनी खेती मे कम लोगो से बड़े छेत्रफल को जोता -बोया जा सकता है | नगरो मे शिक्षा प्राप्त करने के बाद लड़के और लडकीया अब नौकरी की ओर भागते है | ना तो उन्हे परिवार के व्यवसाय की चिंता है और नाही अपनी परंपरा की | सहशिक्षा ने नारी को पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलने का हौसला प्रदान किया है | यह 21 वी सदी है संघ क्या समय की प्रगति की सुई को वापस 19वी सदी मे ले जाने की कोशिस कर रहा है ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की "”” हिन्दू '’’ अथवा हिन्दुत्व ' की परिभाषा अभी भी साफ नहीं है | कभी उनका बयान आता है की भरत्वर्ष मे रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू है ? इसका अर्थ मुसलमान और ईसाई या सिख सभी इसी श्रेणी मे आते है ?? तब संघ मे कोई मुसलमान या ईसाई क्यो नहीं है ?

इतना ही नहीं कर्नाटक --तमिलनाडू मे कई संप्रदाय ऐसे है जो है तो सनातनी पर उनके कर्मकांड वेदिक धर्म से थोड़ा अलग है ! परंपरा अनुसार सनातन धर्म मे शव का दाह संस्कार किया जाता है | परंतु तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जयललिता जो जन्म से ब्रामहन थी परंतु उन्होने :::द्रवीण मुनेत्र कडगम की सदस्यता ली थी | कडगम के स्थापना करने वाले रामस्वामी नायकर वेदिक धरम के विरोध मे 1930 से मुहिम चला रहे थे | इस संस्था को जो बाद मे राजनैतिक दल मे बादल गयी – उसके मानने वाले इस्लाम या ईसाई धरम की भांति ज़मीन मे दफनाये जाते है | वैसे अधिकतर कडगम कार्यकर्ता हिन्दू मंदिरो का बहिसकार और उनके संस्कारो को भी नहीं मानते | वे मुंडन - उपनयन आदि भी नहीं सनातनी परंपरा से नहीं करते है | इसके बावजूद जयललिता मंदिर भी जाती थी -वनहा चढावा भी देती थी | परंतु अंत मे उन्हे भी दफनाया ही गया ! इसी प्रकार प्रखर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी गोवा स्थित "”सनातन नमक संस्था से जुड़े लोगो पर गौरी तथा चार अन्य लोगो की हत्या का आरोप लगा है | गौरी को भी जब दफनाया गया तब संघ के कुछ '’’अति उत्साही लालों ने '’ उसे ईसाई होने का प्रचार सोशल मीडिया पर किया | अब देश के व्भिन्न भागो मे आस्था और विश्वास की विभिन्नता को वेदिक धर्म अभी भी समेटे हुए है | वह कनही से भी "””मुलायम '’ नहीं है और उसे "”कठोर '’ होने की भी आवश्यकता नहीं है | क्योंकि इसी कट्टरता के कारण देश के विभिन्न भागो मे "”भीड़ '’ अपने हिसाब से गाय की रक्षा करते हुए लोगो को पीट कर हत्या कर रहे है | अगर यह हिन्दुत्व है जिसकी बात डॉ मोहन भागवत जी कर रहे है तो ---इस देश मे अभी भी आदिगुरु की समवेशी द्रष्टि अधिसंख्य रूप मे विद्यमान है | हमे संघ का कठोर लड्डू नहीं बनना है ----जिसमे किसी के लिए भी नफरत हो | भागवत जी आपको आपका हिन्दुत्व मुबारक ,, जय श्री राम की उद्घोसणा अब कनही अशांति नहीं फैलाये | इस आशा के साथ की भारत की समष्टि बनी रहे !!!

Sep 10, 2018


अंतराष्ट्रीय धर्म संसद के 125 वर्ष बाद शिकागो मे सम्पन्न विश्व हिन्दू सम्मेलन मे आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्गार
स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के उद्देश्यों से काफी भटके हुए लगते है |

11 सितंबर 1893 को सर्व धर्म संसद मे स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की विशेषता बताते हुए कहा था की धार्मिक एकता किसी भी मत को मिटा कर या दबा कर नहीं हो सकती है ! उन्होने गीता का उदाहरण देते हुए कहा था की "””” विभिन्न रास्तो से होकर आने वाले सभी मनुष्य अंत मे मुझ तक ही पहुचते है "” ! उन्होने वेदिक धरम की समावेशी प्र्क्रती का उदाहरण देते हुए ---विभिन्न धर्मो को भारत मे समाहित किए जाने का वर्णन किया | उन्होने कहा जब यहूदियो के मंदिर को रोमन साम्राज्य द्वरा ध्वसत कर दिया गया तब वे भारत के उत्तरी भाग मे आकर बसे | इसी प्रकार जब पारसी धर्म के लोगो का उत्पीड़न ईरान मे आक्रांताओ द्वरा किया जाने लगा ----तब भारत ने उन्हे अपनाया ! हमने विभिन्न आस्थाओ और विश्वासों वाले मतो के साथ "”” सह अस्तित्व "” के साथ सदियो से रहते आए है | उन्होने कहा था की वेदिक संसक्राति मे विभिन्नताओ को साथ लेकर चलने की छमता है | इसी लिए भारत मे विभिन्न धरम और सन्स्क्रातियों का वास है |

ईसा से पूर्व इस देश मे वेदिक धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का उदय हो चुका था , वेदिक धर्म और इन दोनों धर्म के विचारो मे "” थोड़ा अंतर था ---परंतु फिर भी यानहा के अधिकान्श राजाओ ने सभी धर्मो को अपने - अपने अनुसार पालन करने की अनुमति दे रखी थी | अपवाद स्वरूप कुछ स्थानो पर ऐसा संभव नहीं था | लगभग नौ सौ साल तक इन तीनों का अस्तित्व बन रहा | परंतु समय बीतने के साथ सनातन परंपरा अनेक स्थानो पर अपने विचारो और उद्देश्यों से विचलित हो चुकी थी | ऐसे समय मे जब वेदिक धरम धीरे -धीरे कमजोर होता जा रह था -----तब ऐसे समय मे सुदूर दक्षिण मे त्रिवांकुर-कोचीन राज्य मे आचारी शंकर का जनम हुआ | जिनहे दुनिया आदिगुरु शंकरचार्य के नाम से जानती है | उन्होने केरल से काश्मीर तक और तक्षशिला से कामरूप तक की "”यात्रा की | जिनहे उनके शिस्यों द्वरा दिग्विजय यात्रा का नाम दिया गया | उन्होने हजारो छोटे -बड़े राज्यो मे विभाजित भारतवर्ष को सान्स्क्रतिक और धार्मिक रूप से एक सूत्र मे बांधने के लिए "”चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए | जो हजारो साल बाद भी आज वेदिक धरम की सनातन परंपरा को जीवंत बनाए हुए है |

इसके विपरीत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया ने "” हिन्दू धर्म "” को बिखरा हुआ और कमजोर बताया !! धरम संसद के 125 साल बाद उसी स्थान से कहा की "””हिन्दू पुनरुथान आज की आवश्यकता है ! “” वैसे उन्होने अपने उद्बोधन मे कनही भी यह नहीं बताया की किन स्थानो पर हिन्दू कमजोर हो रहा है ?? संघ अपने हिन्दुत्व के नारे को एक हुंकार मे बदलने का प्रयास कर रहा है ----क्योंकि उसके अनुसार जब तक सभी सनातन धर्म के लोग "”संघ '’ मे शामिल नहीं होते तब तक वे बिखरे हुए है ??? आज भारत मे विभिन्न मतो के वेदिक धर्म के मानने वाले लोग अस्सी प्रतिशत है ,, शेस बीस प्रतिशत मे इस्लाम और ईसाई या सिख धर्म के मानने वाले लोग है | तब क्या भागवत जी यह चाहते है की – इन अलपसंख्यकों को "” मिटा दिया जाए अथवा दबा दिया जाये "”? उनकी विचारधाराओ के लोग बार - बार मुगलो के आक्रमण और हिन्दुओ के धरम परिवर्तन की गुहार लगाते है | ऐसी घटनाए इतिहास मे हुई है --जैसे सोमनाथ मंदिर का ध्वंश !! परंतु मोहम्मद गोरी द्वारा इब्रहीम लोदी को पानीपत मे पराजित करने के बाद 1857 तक दिल्ली मे मुगलो का राज रहा | परंतु हिन्दू फिर भी बहुसंख्यक बने रहे !! कुछ मंदिर भी टूटे -परंतु मुगल शासको ने अनेक मंदिरो को ज़मीन और दान भी दिये | दोनों ही प्रकार की घटनाए इतिहास के पन्नो मे दर्ज़ है | महराणा प्रताप और अकबर मे एक को नायक और दूसरे को खलनायक बनाने की संघ की सोच यह भूल जाती है की प्रताप का सेनापति मुसलमान और अकबर का सेनापति हिन्दू राजा थे ! शिवाजी की सेना मे भी मुसलमान और उनकी नौसेना मे गुजरात के नीग्रो भी थे !

उन्होने यह भी कहा की जब परिवार टूटते है तो संसक्राति बिखरती है – अब भागवत जी को समझना होगा की खेती पर आधारित अर्थ व्यवस्था मे भी आजकल संयुक्त परिवार टूट रहे है | आज बैलो से खेती नहीं होती --मशीनी खेती मे कम लोगो से बड़े छेत्रफल को जोता -बोया जा सकता है | नगरो मे शिक्षा प्राप्त करने के बाद लड़के और लडकीया अब नौकरी की ओर भागते है | ना तो उन्हे परिवार के व्यवसाय की चिंता है और नाही अपनी परंपरा की | सहशिक्षा ने नारी को पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलने का हौसला प्रदान किया है | यह 21 वी सदी है संघ क्या समय की प्रगति की सुई को वापस 19वी सदी मे ले जाने की कोशिस कर रहा है ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की "”” हिन्दू '’’ अथवा हिन्दुत्व ' की परिभाषा अभी भी साफ नहीं है | कभी उनका बयान आता है की भरत्वर्ष मे रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू है ? इसका अर्थ मुसलमान और ईसाई या सिख सभी इसी श्रेणी मे आते है ?? तब संघ मे कोई मुसलमान या ईसाई क्यो नहीं है ?

इतना ही नहीं कर्नाटक --तमिलनाडू मे कई संप्रदाय ऐसे है जो है तो सनातनी पर उनके कर्मकांड वेदिक धर्म से थोड़ा अलग है ! परंपरा अनुसार सनातन धर्म मे शव का दाह संस्कार किया जाता है | परंतु तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जयललिता जो जन्म से ब्रामहन थी परंतु उन्होने :::द्रवीण मुनेत्र कडगम की सदस्यता ली थी | कडगम के स्थापना करने वाले रामस्वामी नायकर वेदिक धरम के विरोध मे 1930 से मुहिम चला रहे थे | इस संस्था को जो बाद मे राजनैतिक दल मे बादल गयी – उसके मानने वाले इस्लाम या ईसाई धरम की भांति ज़मीन मे दफनाये जाते है | वैसे अधिकतर कडगम कार्यकर्ता हिन्दू मंदिरो का बहिसकार और उनके संस्कारो को भी नहीं मानते | वे मुंडन - उपनयन आदि भी नहीं सनातनी परंपरा से नहीं करते है | इसके बावजूद जयललिता मंदिर भी जाती थी -वनहा चढावा भी देती थी | परंतु अंत मे उन्हे भी दफनाया ही गया ! इसी प्रकार प्रखर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी गोवा स्थित "”सनातन नमक संस्था से जुड़े लोगो पर गौरी तथा चार अन्य लोगो की हत्या का आरोप लगा है | गौरी को भी जब दफनाया गया तब संघ के कुछ '’’अति उत्साही लालों ने '’ उसे ईसाई होने का प्रचार सोशल मीडिया पर किया | अब देश के व्भिन्न भागो मे आस्था और विश्वास की विभिन्नता को वेदिक धर्म अभी भी समेटे हुए है | वह कनही से भी "””मुलायम '’ नहीं है और उसे "”कठोर '’ होने की भी आवश्यकता नहीं है | क्योंकि इसी कट्टरता के कारण देश के विभिन्न भागो मे "”भीड़ '’ अपने हिसाब से गाय की रक्षा करते हुए लोगो को पीट कर हत्या कर रहे है | अगर यह हिन्दुत्व है जिसकी बात डॉ मोहन भागवत जी कर रहे है तो ---इस देश मे अभी भी आदिगुरु की समवेशी द्रष्टि अधिसंख्य रूप मे विद्यमान है | हमे संघ का कठोर लड्डू नहीं बनना है ----जिसमे किसी के लिए भी नफरत हो | भागवत जी आपको आपका हिन्दुत्व मुबारक ,, जय श्री राम की उद्घोसणा अब कनही अशांति नहीं फैलाये | इस आशा के साथ की भारत की समष्टि बनी रहे !!!