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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 7, 2019


भय का वातावरण और नागरिक अधिकारो पर खतरा तो कैसा भरोसा !

भारत के मनोनीत प्रधान न्ययाधीश शरद बोवड़े ने एक चैनल को दिये गए इंटरव्यू में देश की जनता को संदेश दिया की "” वह अदालत पर भरोसा रखे "” वे ऐसे समय में देश की सर्वोच्च न्यायपालिका की ज़िम्मेदारी सम्हाल रहे हैं ---जब देश में "”अविश्वास और अनिश्चय से उत्पन्न भय का वातावरण हो !
दिल्ली के तीस हजारी अदालत में जिस प्रकार पुलिस और वकीलो में हिंसक झड़पे टीवी पर दिखाई पड़ी -----औए जिस प्रकार वकील जिनहे बार काउंसिल "”’ऑफिसर ऑफ ला "” कहती//बताती है , उनके व्यवहार को देख कर "”’आरक्षण समर्थको अथवा छात्रो के आंदोलनो की याद आती हैं | “” उधर पुलिस को पीटते देख कर उन लोगो को जरूर दिल में सकूँ पहुंचा होगा ,जो कभी "”इनके चंगुल मे फंस कर "”जांच और पूछताछ "” की कारवाई के शिकार हुए होंगे ! परंतु जिस प्रकार दोनों पकछो ने एक दूसरे पर दोषारोपण किया हैं --- और पुलिस ने आंदोलन किया और उससे यह तो साफ हैं की "””हालत ठीक -ठाक बिलकुल नहीं हैं "” और जिस प्रकार दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और जज हरीशंकर ने 3 नवम्बर को ही आदेश सुना दिया की की वकीलो के खिलाफ पुलिस कोई कारवाई नहीं करेगी !!! जब रिवियू पेटिसन लगाई गाय -तब पुनः मुख्य न्यायाधीश की खंड पीठ ने केंद्र सरकार {{दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन हैं }} को निर्देश दिया की -अदालत के विगत आदेश में स्थिति स्पश्स्त हैं | अर्थात तीस हजारी या साकेत स्थित अदालत में वकीलो और पुलिस की "”भिड़ंत "” में कोई दोषी नहीं हैं !!! अब एक महिला पुलिस अधिकारी और उसकी सहायक महिला पुलिस सिपाही के साथ हुई "”बद्सलूकी "” कोई अपराध नहीं हुआ !! टीवी चैनल द्वरा दिखाये गए फुटेज में साकेत में मोटर साइकल सवार को काला कोट पहने और गले में बैंड लगाए लोग पीट रहे थे -----वह "’अपराध '’’ नहीं हुआ !!!

अदालत के इस फैसले के बाद पुलिस मुख्यालय पर अदालत पर भेदभाव और पक्षपात का सारे आम नारा लगाया गया | अगर वर्दी धारियो की भीड़ में से ऐसे नारे लगे तब ----निश्चय ही स्थिति "’असमान्य "” ही कहा जाएगा | जब कानून के रखवाले और शांति व्यवस्था के जिम्मेदार के साथ "”ज़िंदगी और मौत की सज़ा सुनने वाले जज साहब और अदालत पर भी अविश्वास सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया जाये ----तब प्रधान न्यायधीश जी "”जनता किस प्रकार कानून और अदालतों की सच्चाई और निस्पक्श्च्ता पर भरोसा करे ???उच्च न्यायालय ने तो दो निरीक्षकों को निलंबित और दो संयुक्त पुलिस आयुक्तों का तबादला करने का भी आदेश दिया था | उच्च न्यायालय की इस कारवाई से आम लोगो के मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक हैं | यह तब किया गया जब की अदालत ने पहले छ सप्ताह में घटना की न्यायिक जांच करने का निर्देश दिया था ! उसके दरम्यान वकीलो को कानूनी कारवाई से "”सुरक्षा कवच "” देने का कारण यह हो सकता हैं की ----पुलिस निसपक्षता से कारवाई नहीं करे ! तब उन झगड़े और बदतमीजियों के जिम्मेदारों के वीरुध कौन कारवाई करेगा !!!! बार काउंसिल ऑफ इंडिया के बार बार आग्रह पर भी वकील साहेबन काम पर नहीं लौटे ! उधर अधकरियों के समझने से पुलिस अपनी ड्यूटि पर वापस आ गए और आंदोलन खतम किया | भले ही पुलिस को समाज में "””खलनायक "” के रूप में देखा जाये , पर बक़ौल हरिवंश रॉय बच्चन की कविता "”” बात अगर हो लाख टके की , इनकी पीड़ा मिलकर देखो बिना पुलिस के चल कर देखो "” !
अदालत की साख उसकी निसपक्षता पर निर्भर करती हैं , वरना सज़ा तो पुलिस की हिरासत में भी होती हैं ,कभी कभी तो पूछताछ के दौरान ही "”’आदमी दम तोड़ देता हैं | पुलिस हिरासत में होने वाली मौत हो अथवा पुलिस के गोली चालन की घटना हो ---- उसकी जांच भी "”अदालती "” ही होती हैं ! क्योंकि भारत के लोगो को न्यायालय में काले कोट में बैठे सज्जन की ईमानदारी पर भरोसा होता हैं | परंतु जब पुलिस वालो का भरोसा अदालत से उठ जाये तब क्या होगा ?

क्या जब नागरिकों की जासूसी के लिए बंदोबस्त हो रहा हो , जब काले धन के मामलो में "” सरकार " लोगो के नाम अदालत के आग्रह के बाद भी सार्वजनिक नहीं करे ? जब आम नागरिक से जुड़े मुद्दो पर सरकार की बेरुखी की अदालत अनदेखी कर दे ! चार नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में व्याप्त प्रदूषण पर जिस तरह स्वयं नोटिस लेकर हरियाणा – पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारो को फटकार लगाई ---वह जुडिसियल एकटीविज़्म का बेहतर नमूना हैं | परंतु वनही सुप्रीम कोर्ट को उत्तरा प्रदेश सरकार द्वरा मंदिरो की जमीन के मामले "” यह कहना पड़ा की की यू पी में क्या जंगल राज हैं ?”
दूसरी ओर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश का तबादला और हाइ कोर्ट में जजो की नियुक्ति को लेकर मीडिया में अनेक प्रकार की खबरे आती रही है | जैसे कलकता हाइ कोर्ट की महिला जज का तबादला और जस्टिस कुरेशी को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करना फिर उन्हे त्रिपुरा जैसे राज्य में नियुक्त करना !! अथवा पटना हाइ कोर्ट के जज द्वरा न्यायपलिका के अंतर्गत व्यापात "” अनुचित व्यव्स्था "” की सार्वजनिक शिकायत पर उन्हे तबादला भुगतना पड़ा – साथ ही मुख्य न्यायाधीश का भी तबादला हो गया !!! इलाहाबाद हाइ कोर्ट के भी एक जज साहब ने भी न्याय पालिका में "”भाई - भतीजा वाद "” का आरोप लगाया , उन्होने इसकी शिकायत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से की !! जबकि उन्हे अपनी तकलीफ देश के प्रधान न्यायाधीश को बतानी चाहिए !क्या इससे यह नहीं सामने आता हैं की सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट में भी '’’’सब ठीक ठाक शायद नहीं है ? जैसा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के फैसलो के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तीन जज धरणे पर बैठे थे !!

जब चुनाव आयोग के उस सदस्य को सरकार प्रताड़ित करे ---क्योंकि उसने अन्य दो सदस्यो के समान नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लोकसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन की आचार संहिता के उल्ल्ङ्घन का दोषी अपने फैसले में बताया था ! छपी हुई खबरों के अनुसार वित्त मंत्रालय ने उनके प्र्शसनिक कार्यकाल की जांच के लिए विजिलेन्स जांच करने की कारवाई शुरू कर दीहै ! उधर सीबीआई के निदेशक {अवकाश प्राप्त}] भी अपनी पेंशन और ग्रेचुटी पाने के लिए दफ्तरो के चक्कर लगा रहे हैं | क्योंकि उन्होने सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के कृपा पात्र के वीरुध जांच कराई थी |
अब इस संदर्भ में जज लोया की संदेह परिस्थितियो में मौत की जांच और गुजरात के आईपीएस अफसर भट्ट की गिरफ्तारी भी निसपक्ष न्याय का उदाहरण तो नहीं कहा जा सकता !

दूसरी ओर देखिये सीबीआई अदालत दिल्ली के जज साहेब ने पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम की जमानत की अर्जी खारिज करते हुए "”उन्हे इमेक्स कांड का किंग पिन "” बताया ! जबकि सीबीआई उनके वीरुध मात्र नौ लाख रुपये की हेरा फेरि की चार्ज शीट उच्च न्यायालय में दाखिल की है | मजे की बात यह है की – यह फैसला उन्होने अपने नौकरी के अंतिम दिन सुनाया --और दूसरे दिन ही उन्हे दिल्ली में भ्रस्ताचर निरोधक अधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया ! इस संदर्भ में भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश को अवकाश प्रापत करने के बाद केरल राज्य का राज्यपाल बन दिया गया ! अब इन सब कारवाइयों से जनता के मन में अदालत के प्रति भरोसा -तो डिगता ही हैं |

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प्रधान न्यायाधीश शरद बोवड़े ने न्यायपालिका और सरकार के मध्य "”मधुर संबंध "” होने की भी बात काही | शायद इधर कुछ समय में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कुछ फैसलो पर विपरीत टिप्पणी की थी | जिसमे आरक्षण कानून में गिरफ्तारी को लेकर मतभेद था सरकार ना तो दलितो को नाराज़ करना चाहती थी और नाही सवर्ण मतदाताओ को आशंतुष्ट करना छाती थी | इसीलिए अदालत के फैसले के बाद संबन्धित कानून को पुनः संशोधित कर पूर्व स्थिति को लाने का प्रयास किया | न्यायलय जनहा नागरिक के मौलिक अधिकारो को महत्ता दे रहा था ---वनही केंद्रीय सरकार चुनावी जमीन पर पकड़ बनाने पर ज़ोर दे रही थी |
अगर सरकार से मधुर संबंध होंगे --तब “”भीमा -कोरे गाव “” के आरोपियों सुधा और अन्य की जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट अभी तक एक खंड पीठ नहीं बना पाया हैं ! अभी तक पाँच जजो ने इन आरोपीय की जमानत याचिका सुनने से पहले ही अपने को अलग कर लिया ! यह बहुत असमंजस की स्थिति है ,की याचिका कर्ता की सुनवाई ही टलती जाये | सिर्फ तारीख पर तारीख पड़ती जाये , फिल्म दामिनी का यह डायलाग इस स्थिति में मौंजू लगता हैं |जबकि इन आरोपियों के पास से किसी प्रकार के हथियार अथवा आपतिजनक साहित्य नहीं बरमद हुआ हैं | सिर्फ तोलस्टोय की “”वार अँड पीस “” को महराष्ट्र की अदालत ने आपतिजनक “”निरूपित किया “” | क्या ऐसे फैसलो से न्यायपालिका की “” निसपक्षता “” रह पाएगी ? अदालत को जनहितकारी मामले में नागरिकों का पक्ष लेना चाहिए अथवा सरकार का --यह तो अदालत को ही सोचना होगा |

सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मौलिक अधिकारो का संवैधानिक संरक्षक हैं | नागरिको की निजता पर जब राज्य का हमला हो रहा हो --तब क्या मौलिक अधिकारो की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट आगे आयेगा ? भले ही उसे राज्य या सरकार के खिलाफ फैसला देना हो !!
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