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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 16, 2013

cमहाकुंभ मे महारथियो की पीठ मिलेगी या मुंह ?

cमहाकुंभ मे महारथियो की पीठ मिलेगी या मुंह ?
आगामी 25 सितंबर को भारतीय जनता पार्टी के कार्य कर्ताओ के प्रदेशव्यापी सम्मेलन की जंगी तैयारियो के साथ एक प्रश्न हवा मे तैर रहा हैं ,की क्या मंच पर लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी तथा शिवराज सिंह के मध्य व्याप्त खटास ‘’कुछ’’दूर होगी ?  हालांकि सत्तारूढ पार्टी के नेताओ का मानना है की तीनों के मुह त्रिमूर्ति की भांति अलग – अलग दिशाओ मे ही रहेंगे | इसके कई कारण हैं , पहला जिस ढग से 13 सितंबर को पार्टी द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोसित किया गया , उस से खिन्न आडवाणी जी तो नरेंद्र मोदी से बात भी नहीं करना चाहेंगे |  बीजेपी संसद जेठमलानी की जन्मदिन की पार्टी मे भी आडवाणी और मोदी पहुंचे थे ,परंतु कोई बात नहीं हुई | दूसरे यानहा ‘’मेजबान’’ भी उन्हे ‘’बिन बुलाये’’’ मेहमान की तरह ही मानते हैं | क्योंकि पार्टी नेत्रत्व को बार – बार स्पष्ट किए जाने के बाद ,की मोदी मध्य प्रदेश मे”” वोट बढाने “” वाले  नहीं वरन “”कटाने””वाले सिद्ध होंगे , उनपर गुजरात के मुख्य मंत्री को थोपा जा रहा हैं | तुलनात्मक दृष्टि से शिवराज चुनाव की अपनी लड़ाई ‘’खुद’’ लड़ने मे सक्षम हैं ,परंतु राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के दबाव से शिवराज को इस बिन बुलाये मेहमान को माला पहनने के लिए मजबूर किया ज़ा रहा हैं | यह कोई ‘’प्रिय’’’एवं सुखद स्थिति न तो पार्टी के लिए हैं ना ही उस व्यक्ति के लिए जो चुनावी युद्ध का सेनापति हैं | वैसे ही कुछ शिवराज विरोधियो ने एक नारा तैरा दिया हैं की  ''अगर विधान बभ चुनाव जीते तो मोदी के फैसले पर मोहर लगेगी ,और अगर पराजित हुए तो शिवराज सरकार की हार होगी | 

                     इस स्थिति से काँग्रेस मे होने वाला वाकया याद आता हैं की चुनाव मे जीत हुई तो हाइ कमान  की और हार ही तो मुख्य मंत्री की | इस लिहाज से अब भारतीय जनता पार्टी भी वैसी ही केन्द्रीकरण की पार्टी बन गयी हैं जैसा की वे काँग्रेस के बारे मे आरोप लगते हैं | कुछ अजीब सा लगता हैं ,परन्न्तु सत्य हैं ,की दोनों ही दलो का शीर्ष नेत्रत्व को कोई चुनौती नहीं दे सकता | अगर काँग्रेस मे गांधी परिवार सर्वोच  शिखर पर हैं तो भारतीय जनता पार्टी मे राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के मोहन भगवत , ये लोग जो कह दे वह बिना न - नुकुर के मानना ही होता हैं | एक का काम 10 जनपथ से अगर चलने का दावा किया जाता हैं तब दूसरे की कमान  नागपूर का संघ कार्यालय हैं | अब कोई पूछे की दोनों ही ''व्यक्तियों ''की मनमर्जी पर चलने वाले हैं तो '''अंतर''' कहा हैं ? कुछ तो नारो मे हैं और कुछ सोच मे हैं | वैसे काँग्रेस ने स्वतन्त्रता  के संग्राम की अगुवाई की और भारत को आज़ाद कराया | इस लड़ाई मे जिन वल्लभ भाई पटेल को नरेंद्र मोदी अपना ''आदर्श ''' मानते हैं उन्हे भी सरदार की उपाधि गुजरात  मे ही जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने प्रदान की थी , उसे नरेंद्र मोदी भूल गए जिसे सारी दुनिया ''महात्मा "" के नाम से जानती हैं |  पर मोदी को पटेल पसंद आए गांधी नहीं ,क्योंकि उनको लगता हैं की गांधी को तो कांग्रेस अपना चुकी हैं , और दुनिया भी उन्हे मानती हैं ,ऐसे मे किसी दूसरे को अपना आदर्श बनाया जाये | वैसे यानहा एक बात का उल्लेख करना गलत नहीं होगा की मोदी भी उसी वर्ग से आते हैं जिससे पटेल थे | यानि पिछड़े वर्ग से | अब वैसे हमारे शिवराज सिंह भी इसी वर्ग के हैं | अब चुनावी हिसाब से देखे तो इस वर्ग का वोट बैंक सबसे बड़ा हैं |                 अब एक बिन बुलाये मेहमान और एक पार्टी से उपेक्षित नेता तथा तीसरा चुनावी तैयारी मे जूझ रहे हैं , ऐसे मे क्या कार्यकर्ताओ को सही """संदेश""" मिल सकेगा ? कल तक़ जिन आडवाणी जी को सम्पूर्ण पार्टी ""पित्र"" पुरुष मान के सम्मान करती थी क्या वही सम्मान मोदी के सामने प्रदेश के पदाधिकारी दे पाएंगे ?यह भी एक प्रश्न हैं की मोदी भोपाल मे आडवाणी को मिलने वाले सम्मान को क्या ''पचा '' पाएंगे ? क्योंकि नरेंद्र मोदी ऐसे व्यक्ति हैं जो ""तनिक भी असहमति'"" बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं |गुजरात की भारतीय जनता पार्टी और वनहा के संघ के नेता इस बात का ठीक और सही जवाब दे पाएंगे |
                            वैसे नरेंद्र मोदी मे चुनाव की जीतने की संभावना का आंकलन शिवराज सिंह ने जबलपुर की चुनावी सभा मे ही स्पष्ट कर दिया था | जब नरेंद्र मोदी ने विधान सभा आद्यकश  ईस्वर दास रोहानी को  फोन कर के हाल - चाल पूछा | सवाल हैं की उन्हे रोहणी को फोन क्यो किया ? मुख्य मंत्री को क्यो नहीं किया ? क्या इस लिए की उनसे मिलने वाले व्यवहार के बारे मे अंदाज़ था ?  फिर क्यों यह फोन किया ? 
                       
              इस अबोलेपन से यह तो साफ हो गया की मोदी जी मध्य प्रदेश के चुनावो के लिए  सहायक नहीं होंगे फिर आखिर बार - बार यहा  आने की ''ज़िद्द'' क्यो ? क्या इसलिए की यहा  से संगठन मंत्री के रूप मे भारतीय जनता पार्टी की सरकार का पत्ता साफ करने की ज़िम्मेदारी भी उनही के सिर -माथे पर आई थी , और वे बड़े - बे आबरू हो कर यहा  से गए थे | अब वे यहा से """सुर्ख़ृ """ हो कर जाना चाहते हैं की जिस से की उनके ऊपर पटवा जी की सरकार को गिरवाने का कलंक समाप्त हो सके | 
          
             खैर वास्तव मे मोदी के मन मे क्या हैं यह तो वे ही जाने परंतु इतना तो स्पष्ट हैं की ""शुभ -लाभ''' की कामना करना संदेहास्पद होगा | अनचाहे  साथी और सहयोगी कभी भी ''मोर्चे'' पर मददगार नहीं होते हैं | विश्वाश और साहस माफिक वातावरण से मिलती हैं , शिवराज सिंह जी को क्या वह वातावरण मिलेगा ? उम्मीद करनी चाहिए |