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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 22, 2020


कोरोना भी भूख की भाति दिखाई ना देने वाला शत्रु -तब युद्ध कैसे
भाषणो में विज्ञापनो में बार -बार कोरोना के खिलाफ "”युद्ध"” की बात काही जाती हैं | पर क्या वास्तव में हम युद्ध लड़ सकते हैं ? अथवा क्या यह युद्ध हैं ,अथवा एक लड़ाई हैं ,उस अनदेखे शत्रु से जिसे हर व्यक्ति को खुद ही लड़ना हैं | ध्यान रखना हैं की नफरत की छूत की भांति यह दूसरों ओ न लगे | जैसे भूख् दिखाई नहीं पड़ती पर महसूस होती हैं | उसी प्रकार यह शत्रु बदन में अपनी उपस्थिती का एहसास करा देता हैं | क्यो यह युद्ध नहीं हैं -इस पर विचार करना होगा | पिछले कुछ समय से देश युद्ध के बुखार से ग्रश्त हैं | युद्ध सामने वाले से शत्रु से लड़ा जाता हैं | उसके लिए सैनिको के पास हथियार और बचाव के लिए उपाय होते हैं | पर कोरोना तो हवा में तैरता लोगो को पकड़ता हैं , जैसे भय | अब इस अनदेखे - अंजाने शत्रु से लड़ने के लिए सारा देश ही युद्ध छेत्र तो नहीं बन सकता ! ना ही इस शत्रु से लड़ने के लिए कोई निश्चित हथियार हैं | इसीलिए इसे लड़ाई ही कहना सही होगा | जैसे भूखे को भोजन ठीक करता हैं उसी प्रकार कोरोना के मरीज को दवा और इसका इलाज करने वालो के पास पर्याप्त हथियार ,यानि डाक्टरों -नर्सो मेडिकल स्टाफ के लिए बचाव की पोशाक और व्यवस्था जरूरी हैं | क्या हम युद्ध --युद्ध कह कर ही बिना साजो सामान के इससे लड़ने वालो को लड़ाई के मैदान में धकेल तो नहीं रहे हैं ?
न्युजीलैन्डके डाक्टर जो भारतीय हैं डॉ देवी प्रसाद उन्होने स्थिति को बेहतर तरीके से समझाया , उनके अनुसार युद्ध में सैनिक लड़ते मरते हैं , पर जो युद्ध घोषित करते हैं , लाभ उनको होता है | लड़ने वाले सैनिको को नहीं | उदाहरण से स्म्झई गयी बात में दम हैं | उन्होने कोरोना मरीजो के इलाज ए लिए ब्लड प्लसमा के प्रयोग को वाजिब बताते हुए कहा की , भले ही बिना क्लिनिकल ट्राइल के सार्वभौम तरीका नहीं कहा जा सकता परंतु अनुभव के आधार पर यह कारगर हैं | उनके अनुसार कोरोना के ठीक हुए मरीज का प्लाज्मा इस रोग से ग्रश्त रोगियो को ठीक करने के लिए अक्सीर उपाय हैं |
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अब यानहा एक सवाल हैं की सोशाल मीडिया पर अल्पसंख्यों के प्रति फैलाई जा रही नफरत के संदर्भ में देखना होगा | जमात में शामिल हुए बहुत से लोग तो कोरोना नेगेटिव निकले | पर कुछ पॉज़िटिव भी थे | उनमें से अधिलतर स्वास्थ्य होकर बाहर आ गए हैं | डॉ देवी प्रसाद के अनुसार इन लोगो का प्लाज्मा अक्सीर इलाज़ साबित हो सकता हैं | परंतु बीमारों में अधिकतर तो हिन्दू हैं हैं | हालांकि ठीक होने वालो में भी उनकी संख्या ज्यादा हैं | पर क्या इन तबलिगी जमात के प्लाज्मा को "” हिन्दू -हिन्दू "”करने वाले नकारेंगे ? अथवा जान बचाने के लिए मुसलमान का खून अपने बदन में मंजूर करेंगे ?
2----- दूसऋ घटना हैं पाल घर बनाम बीजापुर की :- पाल घर में मुंबई से सूरत जा रहे दो साधू और उनके दो सहायक तथा ड्राईवर की गाव्न वालो ने बच्चा चोर समझ कर पीट पीट कर मार डाला | जैसी उम्मीद थी भारतीय जनता पार्टी - तथा साधुओ की जमात ने इस घटना के लिए महाराष्ट्र सरकार को दोषी बताया | यानहा तक की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा की ऐसी घटना सरकार के लिए बुरी हैं | कुछ व्हाट्सअप्प यूनिवरसिटि के बहादुरों ने तो इस "”कांड "” के लिए सरकार को हटाये जाने और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की भी अफवाह फैला दी | जबकि मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे ने चैनल पर साफ -साफ कहा की इस मामले में 110 लोगो को गिरफ्तार किया गया हैं | पर राजनेता साध्वी उमा भारती इतनी व्यवथित हुई की गांधीवादी तरीके से उपवास करने की घोसणा की | साधु की संस्था ने लाक डाउन खुलने के बाद इस मुद्दे पर डाइरैक्ट एक्शन की बात कही | तब तक मामले को कोल्ड स्टोरेज में रखा
इसके मुक़ाबले छतीसगरह के बीजापुर जिले के ग्राम आदेड़ के आदिवासी परिवार की एकमात्र संतान 11 वर्षीय जमलों मडकाम , तेलंगाना में मिर्ची तोड़ने गयी थी | लाक डाउन होने के कारण वह 11 आँय लोगो के साथ 14 अप्रैल को जंगल के रास्ते भूखी -प्यासी 100 किलो मीटर की यतर पर निकाल पडी| परंतु भूख प्यास से बेहाल होकर गाव से 14 किलोमीटर पहले ही उसने दम तोड़ दिया !! इस नाबालिग को मजदूरी करनी पड़ी की भूख शांत करने के लिए कुछ पैसे कमा ले | उसके माता पिता बेहाल है , क्योंकि वही परिवार की स्वास्थ्य सदस्य थी , जो कमाती थी और परिवार का पेट भरती थी ! अब बताइये की खाये -पिये साधुओ की गलत फहमी से गाव वालो द्वरा की गयी हत्या से कम महत्व पूर्ण हैं ?? साधु लोग लाक डाउन में बिना परमिट के सूरत जा रहे थे , इसिलिए वे मुख्य मार्ग छोडकर गाव -गाव के रास्ते जा रहे थे जिससे की पुलिस की पकड़ में ना आ सके !!! आप खुद ही विचार करे कौन सी घटना मानवीय आधार पर शासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए महत्व पूर्ण हैं ?