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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 29, 2014

मुस्लिम देशो मे इस्लामी कट्टर पंथियो पर होते प्रहार --एक सुखद संकेत


मुस्लिम देशो मे इस्लामी कट्टर पंथियो पर होते प्रहार --एक सुखद संकेत

दशको पूर्व फ्रांस से मिली आज़ादी के बाद अल्जेरिया मे हुए चुनावो मे ''मुस्लिम ब्रदर हूड़"" नामक संगठन
ने धर्म के नाम पर बहुमत प्राप्त किया | सरकार बनाने के बाद इस संगठन ने वर्ग विशेस को तरजीह देते हुए दूसरे वर्ग के लोगो को
प्रताड़ित करना प्रारम्भ किया | सैनिक राष्ट्रपति कर्नल बौमेडीन ने सरकार को बर्खास्त कर इस संगठन को गैर कानूनी करार दिया | ब्रदरहूड़ के
लोगो ने कुछ अशांति फैलाई ---हिंसक घटनाए हुई सैकड़ो लोग गोली बारी मे मारे गए | मतलब ब्रदरहूड़ द्वारा आतंक का माहौल
बना दिया | शांति प्रिय लोग जो बहू संख्यक थे निरुपाय हो गए | तब सेना ने ब्रदर हूड़ के समर्थको का सफाया करना शुरू किया |
कुछ ही माह मे व्यसथा बरकरार हुई | प्रजातांत्रिक रू से सरकार का गठन हुआ | काफी समय बाद मिश्र मे मुहम्मद मुरसी के नेत्रत्व
मे ब्रदरहूड़ ने चुनावो मे भाग लिया , एक गठबंधन की सरकार बनी |मुरसी प्रधान मंत्री बने | शुरू मे तो उन्होने सबको साथ लेकर
चलने की घोसना की | परंतु उनके फैसलो मे कट्टरता की झलक थी | रोज - रोज आलोचना सुनने के बाद उन्होने संविधान मे
संशोधन की योजना बनाई , जिसके तहत केवल वर्ग विशेस को ही सरक्षण दिया गया | कानून के सामने सबको समानता का अधिकार
को कुछ वर्गो तक ही सीमित करने का प्रविधान था | लोगो की रॉय जानने के नाम पर एक बार फिर देश मे खूनी माहौल पनपा |
दुनिया के देशो मे खलबली मची | आखिर मे सेना प्रमुख ने मुरसी को क़ैद करके तदर्थ सरकार का गठन किया , जिसमे मुख्य
न्यायाधीश समेत लोगो शामिल थे | मुस्लिम ब्रदरहूड़ के लोगो पर देश द्रोह और हिंसा फैलाने -निर्दोषों की हत्या करने के आरोप
मे सैकड़ो लोगो पर मुकदमा चला , और मोहम्मद बादेई समेत 683 लोगो को सज़ा-ए -मौत दी गयी | इस घटना ने एशिया के मुल्को | मे इस्लामी कट्टर पंथी ताकतों जैसे अल - कायदा या अन्य आतंकी संगठनो को बड़ा झटका लगा हैं |

अभी कुछ माह पूर्व बंगला देश मे विशेष सैनिक अदालत ने बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर कर
सरकार पलटने के आरोप मे तीन सौ लोगो को मौत की सज़ा दी थी | कुछ कट्टर पंथियो ने हो हल्ला मचाया परंतु बंग बंधु की पुत्री
प्रधान मंत्री शेख हसीना ने सख्ती से विरोध को दबा दिया | बाद मे हुए चुनवो मे इन नफरत फैलाने वाली ताकतों ने हिन्दू और बौदध
मंदिरो को जला दिया | चुनाव कार्यक्रम कुछ व्यधान से सम्पन्न हुए | परंतु लोगो ने कट्टर पंथी ताकतों के मुक़ाबले उदार नेत्रत्व को ही
दुबारा चुना |







Apr 21, 2014

धार्मिक कुरीतियों पर कुठराघात के लिए खुद लोग आगे आ रहे है ना कोई नेता नाही संगठन है तैयार



धार्मिक कुरीतियों पर कुठराघात के लिए खुद लोग आगे आ रहे है ना कोई नेता नाही संगठन है तैयार

जैसे उन्नीसवी सदी मे बाल -विवाह ,सती प्रथा आदि कुरीतियो को राजा राम मोहन राय ने एक आंदोलन
चला कर तत्कालीन शासको को इन समस्याओ को हल करने पर विवश किया था | अंग्रेज़ो के समय मे दोनों ही बुराइयों पर रोक लगी
शारदा विवाह कानून बना कर उन्होने केवल ''ब्रामह विवाह''' को ही मान्यता दी | वेदिक धर्म मे बताए गए विवाह के अन्य तरीको
को कानूनी मान्यता नहीं दी | वरन""राक्षस"" और ""पैशाच"" प्रकारो को गैर कानूनी ठहराया | "राक्षस"" विवाह मे कन्या
खिला --पिला कर उसे बलपूर्वक उठा लाना ""पैशाच"" विवाह मे तो धोखे से नशा करा कर बलात्कार करने को भी विवाह की
मान्यता दे दी थी |मनु संहिता मे भी इन्हे स्वीकार किया गया हैं | जिनहे आज भारतीय दंड संहिता मे इन्हे ''भगाने'' और ''
बलात्कार का अपराध माना है | एवं उसे गर्हित अपराध माना गया है |

देश मे विधवा -विवाह को कानूनी मंजूरी मिल जाने के बाद भी एक -दो -
प्रकरण ही देखने को मिलते है | जबकि वेदिक - जैन धर्म के मानने वालों मे ""तलाक"" की काफी घटनाए सुनने मे आती है |जबकि
इस ""स्थिति"""का कोई हवाला नहीं मिलता है | राम चरित मानस मे सुग्रीवा की पत्नी को बल पूर्वक बाली द्वारा अपन्बे रनिवास मे
रखने का ज़िक्र आता है \हालांकि इस क्र्रतया को पाप बताते हुए बालि -वध को वैधानिकता दी गयी | 21स्वी सदी मे भी विधवा को
""हेय" द्रष्टि से देखा जाता है |परंतु अंध -विश्वास और रुडियो से ग्रष्त समाज मे भी कुछ ऐसी पहल देखने को मिलती है जो यह
सिद्ध करती है की वेदिक धर्म की सनातन परंपरा को मानने वाला हिन्दू के नाम से जाने जाना वाला समूह मे भी परिवर्तन की चेतना
है , एवं कुछ बेहतर करने की ओर ""समाज के अंजाने लोग ही इस परिवर्तन के वाहक बने है |ना की कोई अपने को सामाजिक
संगठन कहने वालों की भीड़ स्वे निकाल -कर आता है ना ही कोई राज नेता इस ओर कोई पहल करता है|

कन्या पक्ष को हेय और छोटा मानने वाले समाज की धारणा तथा दहेज की "कुप्रथा"के विरुद्ध ऐसी ही एक
पहल उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के घानापुर गाँव के भूट्पुर्व ग्राम प्रधान महेंद्र यादव के घर मे उनके बेटे अरुण को ब्याहने के लिए
फूलपुर कलाँ की कुमारी निशा ""बारात"" ले कर आई | विवाह की सारी रष्मे लड़के के घर पर ही सम्पन्न हुई , फेरे भी लड़के के घर
पर लिए गए , और "बारात""की विदाई हुई जो बिना दुल्हन के वापस चली गयी |बरतियों की खातिरदारी लड़के वालों द्वारा की गयी ,
""विदाई""रशम को खतम कर दिया गय | विवाह मे यादव समाज के लोग कागी संख्या मे शामिल हुए |कोई दहेज भी नहीं लिया गया || यह तो एक शुभ अवसर पर होने वाली कुरीतियो को खतम करने वाली पहल थी | दूसरी घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर की है ,
जनहा बलदेव बाग मे रहने वाली श्रीमती अरुणा अवस्थी का देहावसान हो गया | उनके पुत्र का कुछ समय पूर्वा देहांत हो चुका था | घर
मे विधवा बहू प्राची ही थी | सबकी सहमति से प्राची ने अपनी सास को मुखाग्नि दी | प्राची वन विभाग मे कार्यरत हैं |

इन घटनाओ मे यादव जिनहे वर्णाश्रम मे पिछड़ा माना जाता हैं उन्होने दहेज का बहिसकार करके और कन्या पक्ष को
प्रतिष्ठा देते हुए वधू को बारात की अगुवाई करने का श्रेय दिया |दूसरी ओर रुदीवादिता और अनवस्यक रीति -रिवाजो से ग्रसत ब्रामहन
जाति ने भी स्त्री को बराबरी का दर्जा देने की पहल की | ऐसे ही प्रयासो से हम यह बता सकेंगे की अब दोनों ही बराबर है --क्या
लड़की या क्या लड़का |







Apr 11, 2014

चुनाव से गायब होते मुद्दे और बयान बनते प्रचार के मुद्दे



यूं तो हर चुनाव मे कुछ प्रमुख मुद्दे होते हैं जिनके बारे मे प्रत्येक पार्टी की कुछ राय होती है | परंतु इस बार [2014] के
लोकसभा चुनावो मे ऐसा नहीं है | चूंकि भारतीय जनता पार्टी ने इस बार अपनी स्थापित परम्पराओ से हट कर --संगठन आधारित प्रचार
की जगह ,व्यक्ति को अपने संग्राम के केंद्र मे रखा|एक एक काडर बेस पार्टी का यह परिवर्तन थोड़ा सा अटपटा जरूर लगा | फिर यह समझ
आया की चुनावी संग्राम मे विजय की यह रणनीति ही शायद सफलता दिला सकती हो ? इसलिए इस संसदीय चुनवो मे प्रचार इस प्रकार हुआ
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव मे प्रतायशी को केंद्र बिन्दु रख कर सारी नीतिया और मुद्दे पर उसके विचारो से चुनाव लड़ा जाता हैं |यानि वाहा
उम्मीदवार ही अपनी पार्टी का भावी चेहरा होता हैं |क्योंकि वह '''अकेला'''ही सरकार होता हैं | पर संसदीय चुनवो मे पार्टी फोरम पर

लिए गए फैसले ही --चुनावी घोसणा पत्र बनता हैं , जो एक तरह से मतदाताओ से किए गए वादे का दस्तावेज़ होता हैं | जिसकी सिर्फ
''नैतिक'''महता होती है | अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव मे सिर्फ उस उम्मीदवार के कुछ वादे होते है अपनेदेश की जनता से -बस |
उन पर ही उसकी ''जय - पराजय''सुनिश्चित हो जाती है | वनहा अक्सर दो - एक ही मुद्दे राष्ट्रिय मुद्दे होते है ,अधिकतर तो राज्यो की
समस्याओ पर ''आसवासन''' होते हैं | परंतु इस बार बीजेपी ने अपनी रन नीति को अमेरिकी राष्ट्रपति की चुनाव की भांति ही इलाकाई
मुद्दो पर मोदी के बयान कराये |जिनहे एक तरह से चुनावी वादे कहे जा सकते हैं | हालांकि जब लोकसभा के लिए मतदान का पहला चरण
प्रारम्भ हुआ तब इस राष्ट्रिय पार्टी का ''''चुनाव घोसणा पत्र '''सार्वजनिक किया गया | जबकि उनके प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र
'''अपना''' प्रचार तीन माह पूर्वा ही शुरू कर चुके थे -वह भी काफी धूम -धड़ाके से बिलकुल राष्ट्रपति चुनाव की तर्ज़ पर |

जिस अमेरिकी कंपनी को चुनाव प्राचार की ज़िम्मेदारी दी गयी थी उसने ''भावी प्र्तयाशी '''के बयानो को ही चुनावी
वादे मान कर टीवी चैनलो और अखबारो रेडियो पर ऐसी विज्ञापनो की बाद लगाई की जैसी आज के पूर्व कभी नहीं देखी गयी थी |वजह
चुनावी लड़ाई की रणनीति मे आमूल - कूल बदलाव था | जिसके लिए दूसरे राजनीतिक दल तैयार नहीं थे | इससे पहले चुनाव प्रचार
निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान की तारीखों की घोसणा के बाद ही प्रचार के अखाड़े मे कूदते थे | पर इस बार वे पीछे रह गए | बीजेपी नेता ने
चुनाव के चार माह पहले से ही 3 डी के माध्यमों से एक साथ काँग्रेस और गांधी परिवार तथा प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पर हमला शुरू
कर के ''इरादा''' साफ कर दिया था | करोड़ो रुपये खर्च कर के रेल गाड़ियो से बसो से लाखो की भीड़ जुटाई गयी | लाल किला या संसद
भवन की नकल पर मंच से भासण कर के यह साबित करने की कोशिस की यह कोई मुश्किल काम नहीं है | मतलब देश को चलाना कठिन
नहीं है | तभी उन्होने काला धन ---आतंकवाद --विदेशो से संबंध जैसे महत्वपूर्ण मसलो को सड़क पर उतार दिया इतना ही नहीं लोगो
के दिमाग मे यह भी प्रचार माध्यमों से बैठाने की कोशिस की उनके पास तो ''देश की सभी समस्याओ '''' का हल है | इतना ही नहीं
उन्होने देश के इतिहास पर भी प्रश्न चिन्ह लगाए ,और आज़ादी के बाद के विकाश और शिक्षा तथा इतिहास को धिकारने लगे |

परंतु चुनाव प्रचार भी अपने विरोधियो को नाटकीय प्रकार से भासण द्वारा नीचा दिखने तक ही सीमित रहा|भ्रस्ताचार का
सवाल और विकास की बात धीरे -धीरे पीछे छूट गयी | व्यंग और आरोपात्मक शैली मे जन्म और जीवन शैली ज्यादा चर्चा के मुद्दे बन
गए , | ऐसे सवाल जिनका राष्ट्रिय राजनीति से कोई मतलब नहीं , जिन पर कोई बहस नहीं हो सकती वो बाते चटखारे ले कर
सोशल मीडिया पर मुहिम सी बन गयी | दो दो लाइन की फबतिया और भद्दी टिप्पणिया चटखारे ले कर चाय और पान की दूकानों पर दावो
की भांति गीता के सत्य की तरह चर्चित होने लगी | ये कथन अधिकतर चरित्र और भरास्ताचर के बारे मे पर्चे बाजी और बयानो के आधार
पर की जाती थी |

किस्सा -कोताह यह की देश की राजनीति के मुद्दे प्रचार से गायब हो गए | चूंकि अधिक प्रचार टीवी के जरिये हो
रहा था , इसलिए कुछ भी कहा सुना रेकॉर्ड बन के दस्तावेजी प्रमाण बन जाता है |इस लिए सभी पर्टिया एक दूसरे के लिए प्रश्नकर्ता बन गयी
और सवालो के जवाब देने की फुर्सत भी किसी दल मे नहीं दिखाई पड़ी |आलम यह हुआ की तुमने तब यह किया--- हमने ऐसा किया -आदि
के साथ आरोप - प्रत्यारोप लगने शुरू हो गए |, उनके जवाब और सफाई मे ही विकास और बेईमानी का सवाल दब गया जैसे गरीब
की अर्जी अदालत और अफसर के यंहा फाइलों के नीचे गुम हो जाती है , वैसे ही असली मुद्दे भी चुनाव के छितिज से गायब हो गए
उनके स्थान पर ''हल्के-फुल्के'''बयान विकल्प के रूप मे सामने आए | अब मतदाता मुद्दो पर तो वोट दे नहीं सकता , अतः पार्टी
ज़ाती - धर्म --इलाका ही निर्णायक बन गए ----जैसा पिछले चुनावो मे होता आया हैं | भारतेन्दु हरिश्चंद्र के शब्दो मे दुर्भाग्य -
हत भारत देश .................









Apr 10, 2014

चुनाव प्रचार के दौरान कहे गए कुछ दिलचस्प बयान और असंभव कथन


चुनाव प्रचार के दौरान कहे गए कुछ दिलचस्प बयान और असंभव कथन !


चुनाव प्रचार की गर्मी मे अक्सर नेता बहुत कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिसको अगर धरातल की सच्चाई पर परखा जाये तो
वे निहायत मिथ्या लगते हैं | यह सही है की सभी नेता अपने - अपने दल की ओर से सत्ता के बाद की जो तस्वीर पेश करते है वह
अतिशयोक्ति और विशेषणो का अंबार लगा देते है | जो अनेक मानो मे यथार्थ से बहुत दूर होता है|कुछ ऐसे ही बयान और कथन यहा
प्रस्तुत है , जो यह स्पष्ट करेगा की वे ''सत्य'''से कितने दूर होते है जब वे मंच पर होते है| कुछ लोग तो मर्यादा की सीमा भी पार
कर जाते हैं | योग शिक्षक राम देव ने उत्तर प्रदेश की एक सभा मे "'सोनिया देश की लुटेरी बहू है और जवाहर लाल नेहरू देश के
खलनायक है" अब इस बयान को मान हानि ही मानना होगा |क्योंकि इस बयान द्वारा एक ओर एक महिला का अपमान किया गया है ,
दूसरी ओर देश के दिवंगत प्रधान मंत्री का अपमान किया है| परंतु वे तो चुनाव प्रचार कर रहे थे !

छतरपुर मे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा की """ काँग्रेस ने साठ साल तक देश मे सरकार
चलायी है --शासन नहीं किया हैं ? अब इसका क्या अर्थ है आखिर शासन तो सरकार ही चलाती हैं , कोई अन्य नहीं | पर बात चुनावी
मंच से की गयी थी |मुख्यमंत्री शिव राज सिंह ने एक सभा मे कहा की काँग्रेस ने देश की ''अस्मिता' को बेच दिया हैं | अब इसका क्या
अर्थ निकाला जाये ??आखिर कर देश की अस्मिता किन तत्वो मे होती है ? जिसके कारण अस्मिता बनती है ? यह कथन अनुतरित है |
काँग्रेस ने देश को साठ सालो मे देश को ""तबाह""कर दिया हैं ? अब तबाह की परिभाषा क्या होगी ? मंहगाई वृद्धि हुई --परंतु
साइकल से आज बड़ी बड़ी कारो का काफिला जो सदको पर दिखाई पड़ता हैं क्या वह विकास नहीं हैं ?खाद्यान्न उपज मे वृद्धि देश मे
औद्योगिक सामानो का उत्पादन कितना बड़ा है यह किसी से छुपा नहीं हैं |
पर यह सब कुछ चलता है क्योंकि बात चुनाव की हैं |और इस मौसम मे सब कुछ चलता है |

एक नारा यह भी दिया गया है भाजपा जीतेगी तो देश जीतेगा , अर्थात अभी तक """देश हर चुनाव मे हारता रहा हैं '''क्योंकि
भारतीय जनता पार्टी तो जीती नहीं !





Apr 9, 2014

संवैधानिक संस्थाओ को चुनौती देते राजनीतिक दल



संवैधानिक संस्थाओ को चुनौती देते राजनीतिक दल

बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के उन निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया की वे जिसमे उन्होने
सात अधिकारियों के तबादले करने को कहा था| बंगाल की शेरनी जब दहाड़ी तब लगा की कोई संवैधानिक संकट खड़ा होगा | परंतु जब
चुनाव आयोग ने सम्पूर्ण प्रदेश के चुनाव स्थगित करने का निश्चय किया , तब मुख्य मंत्री को लगा की उनकी ज़िद्द उनकी पार्टी और सरकार
पर भारी पड़ेगा | तब उन्होने मजबूरी मे सर झुका कर मंजूर किया | दिन भर चली रस्साकशी के बाद सब कुछ वापस सामान्य हो गया |
परंतु ममता का आरोप की आयोग छोटे डालो के साथ भेदभाव करता हैं और काँग्रेस और बीजेपी के कहने पर चलता हैं | साथ ही उन्होने यह भी
स्पष्ट कर दिया की चुनाव के बाद हटाये गए अधिकारियों को पुनः उनही स्थानो पर पदस्थ करेंगी | कुछ ऐसी ही गुत्थी मध्य परदेश मे भी फंस
गयी | जब चुनाव आयोग ने तीन जिलाधिकारियों को बदलने का निर्देश दिया | राज्य सरकार ने विरोध जताया और कहा की विधान सभा
चुनाव मे इनहि अधिकारियों को आयोग ने अच्छे होने का प्रमाण पत्र दिया | परंतु बाद मे मामले की नज़ाकत को समझते हुए राज्य सरकार ने
आयोग के निर्देशों के अनुसार उन सभी अधिकारियों को पद मुक्त कर दिया |

उत्तर प्रदेश मे भी आयोग को भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करना पड़ा ,जहा
बीजेपी नेता के विवादास्पद बयान की सीडी के बाद उन्हे कारण बताओ नोटिस दिया था जिस पर पार्टी का कहना था की चुनाव आयोग द्वारा
भेजी गयी सीडी ''सही;; नहीं है|पार्टी की ओर से प्रवक्ता राम कृष्ण ने कहा की प्रदेश सरकार ने अमित शाह के विरुद्ध भड़काऊ भासण
देने के आरोप मे आपराधिक मुकदमा दर्ज़ किया हैं | अतः बीजेपी का कहना था की अगर आयोग को सुनवाई करना है तो उसे दुबारा
नोटिस भेजना चाहिए | काँग्रेस शाह की गिरफ्तारी की मांग कर रही है , बीजेपी भी स्थिति को उस हालत मे ले जाना चाहती हैं जनहा
गिरफ्तारी हो --और चुनावी माहौल मे गर्मी आए | देखना होगा की आगे क्या होता हैं

उधर काँग्रेस भी इस मामले मे पीछे नहीं रहना चाहती हैं --उसके नेता दिग्विजय सिंह ने
कहा अदलते न्याय नहीं स्टे दे रही हैं | यह बयान सीधे तौर पर अवमानना की श्रेणी मे आता हैं | हालांकि उन्होने किस संबंध मे ऐसा कहा
यह साफ नहीं हैं , लेकिन भ्रष्ट आचरण के लिए उन्होने प्रदेश की सरकार और मुख्य मंत्री पर आरोप लगाए | उन्होने कहा की वे अपनी बात
पर कायम है भले ही इसके लिए उन्हे जैल ही क्यो न जाना पड़े |चुनाव की गर्मी मे संवैधानिक संस्थानो को पहली बार ऐसी समस्याओ से
जूझना पद रहा हैं |



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विश्वास और भरोसा टूटने का परिणाम --क्या थप्पड़ और जूता है - तब चुनाव परिणाम ?


विश्वास और भरोसा टूटने का परिणाम --क्या थप्पड़ और जूता है - तब चुनाव परिणाम ?

केजरीवाल को थपप्ड और घूंसा मारे जाने के बाद अनेक तरह की प्रतिकृया सामने आई है , अधिकांश ने
इन घटनाओ को उनके द्वारा इस्तीफा दिये जाने के फैसले से जोड़ कर , बयान दिया है | जिसमे उनकी भर्त्स्ना ही की गयी हैं | घटना
को विद्रुप बना कर राजनीति का हथियार बना कर भी टिप्पणिया की गयी हैं | बयान बाज़ी की इस भीड़ मे ''समझ और संयम " का तो
अभाव ही हैं | परंतु अति उत्साही इन नेताओ और ''समर्थको''' को इस घटना के दूरगामी परिणाम की कोई जान करी नहीं हैं | वे
समझ रहे हैं की इस चुनावी संग्राम मे वे जितना आगे"" बढ """ कर हमले की मुद्रा का ''प्रदर्शन'' करेंगे उतना ही वे अपने नेता की
"" नजरों """ मे आ जाएंगे |परंतु वे भूल जाते है की ''लाभ के साथ हानि "" भी आती है |क्या होगा जब वायदे की झाड़ी के
आश्वासन पूरे नहीं हो पाये ? तब वही हालत होगी जो चिट फंड कंपनी के उन अधिकारियों की होती हैं , जो लोगो से रोज बचत की रकम
एकत्र करते हैं -- गुस्साये लोगो की भीड़ , जिसे वह उनका पैसा लौटाने मे असमर्थ होता हैं | यह अंडे स्याही और घूंसा की घटनाए उसी
का परिणाम अगर है तब तो भगवान ही मालिक है |

इसलिए आज जो लोग बयान देकर आगे बड़ रहे है ,वे भावी की पदचाप
को पहचान नहीं रहे है | यह समय '' संयम ''का हैं , चुनावी प्रति स्पर्धा को महा भारत बनाने का नहीं | और अगर बिना महाभारत
के राजनीतिक आकांछा नहीं पूरी हो रही हैं ---तब यह भी स्पष्ट है की उसका परिणाम भी कनही वैसा ही ना हो जाये जैसे पोहले हुआ था
अर्थात हिंसा का दावानल |नफरत और नापसंदगी को वैमनस्य मे परिवर्तित करने से परिणाम भी स्पर्धा ''जैसा''नहीं होता है |


17 मई को चुनाव परिणाम आने को है ---संभावना गैर कांग्रेस सरकार की है , अब वह पूर्ण बहुमत की होगी
तब तो देश को एक स्पष्ट दिशा मिलेगी | भले ही कुछ लोगो को वह ना पसंद हो , परंतु यथार्थ को झुठलाया नहीं जा सकता परंतु
उसे सच्चे मन से मंजूर करना चाहिए |



Apr 8, 2014

मंहगाई को कम करने और विकास गति को बदने का दावा -एक मिथक ?भाग दो



मंहगाई को कम करने और विकास गति को बदने का दावा -एक मिथक ?भाग दो

मंहगाई और विकास दोनों ही साथ -साथ चलने वाली विधाए हैं , एक ऊपर जाएगा तभी दूसरा भी ऊपर जाएगा , मतलब
यह है की अगर देश मे राज्य द्वारा विकास के लिए घाटे की बजेट व्यवस्था करने से विभिन्न विकास की योजनाओ मे किए जाने वाले व्यय
से बाज़ार मे मुद्रा का ''परिमाण"" बढ जाता है | फलस्वरूप बाज़ार मे क्रय शक्ति मे व्रद्धि होती हैं | परंतु बाज़ार मे वस्तुओ की तुलना
मे मुद्रा की अधिकता तात्कालिक रूप से वस्तुओ के दामो को बड़ा देती हैं | क्योंकि मांग- आपूर्ति के सिद्धांत से ही बाज़ार मे संतुलन होता हैं |
यद्यापि यह संतुलन आने मे ""समय""" लगता हैं ---जिसको आम आदमी मंहगाई के रूप मे परिभासित करता हैं | यह कहना की साठ
साल मे देश मे कोई विकास नहीं हुआ और मंहगाई दावानल की तरह बदती रही |
अब इस मंहगाई को विकास के साथ मे समझने के लिए
उस स्थिति को समझना होगा जो साल दर साल मंहगाई मे व्रद्धि होती रही , वनही लोगो मे सुख सुविधा की वस्तुओ मे बदोतरी भी होती रही |
साइकल से लेकर एसयूवी - ऑडी और सड़क पर दौड़ती विदेशी गाड़ियो की भरमार ---अगर विकाश नहीं हैं तो फिर विकास का कौन सा मोडेल
हैं ? पिछले पचास सालो मे दहाई और सैकड़े के वेतन ने आज हज़ार और दस हज़ार का स्थान ले लिया हैं |आज़ादी के समय सिपाही का
वेतन दहाई मे होता हैं आज उसे दस हज़ार से कुछ थोड़ा ही कम मिलता हैं |किसान की पूरी फसल जो कुछ सैकड़े मे बनिया खरीद लेता था , आज हजारो रुपये का भुगतान शासकीय खरीद केंद्र से होता हैं | पहले कोई नकद फसल नहीं के बराबर थी , आज अधिकान्स छेत्रों मे
किसान नक़द फसलों द्वारा अतिरिक्त कमाई करता हैं | जिसकी बदौलत वह अपने बच्चो को नगर मे ऊंची शिक्षा दिलाने मे सक्षम हैं |गावों
मे मोटर साइकल और जीप या एसयूवी की उपस्थिती क्या ग्रामीण संपन्नता का पैमाना नहीं हैं ? शहरो मे सड्को से पिछले चालीस सालो मे
साइकल की जगह भांति - भांति के दुपहिया वाहनो को देखा जा सकता हैं--यह दस पंद्रह सालो मे तो नहीं हुआ हैं , इसकी शुरुआत तो 1950 से हो चुकी थी |गावों अब लोग शिक्षित और सुविधा सम्पन्न हो गए हैं | दातौन की जगह टूट पासते ने ले ली हैं , अब बिसकुट
बच्चो के लिए आम बात हैं | रेडियो और ट्रंजिस्टर के युग को छोड़ कर अब टीवी युग मे गावों का प्रवेश हो चुका हैं | मोबाइल तो लगभग
सभी के हाथो मे देखा जा सकता हैं | खत लिखना मनी ऑर्डर का इंतजार अब बीते दशको की बात हो चुकी हैं | अब बैंक और डेबिट कार्ड
ने इन का विकल्प दे दिया हैं | क्या यह सब विकास नहीं हैं तो फिर विकास क्या हैं ? हाँ पेट्रोल के दाम 1970 मे वेसपा दुपहिया से
मधायम वर्ग की जानकारी मे आए | इसके पहले पेट्रोल पम्प मुट्ठी भर लोगो की गाड़ियो का स्थान हुआ करता था , परंतु अब लंबी लाइन
ने इस वस्तु को भी आम आदमी की ज़िंदगी के इस्तेमाल की वस्तु बना दिया हैं | तब चार सादे चार रुपये लिटर का पेट्रोल आज सत्तर रुपय
से अधिक का हो गया हैं | परंतु पेट्रोल की खपत बदती ही जा रही हैं | साथ ही नए - नए मोडेल की बाइकों की बिक्री मे भी अभूतपुरवा
बदोतरी हुई हैं | यह सब गुजरात मे ही ही नहीं हुआ सारे देश मे हुआ हैं | फिर मंहगाई को क्यो रोना ?क्या औसत आय मे व्रद्धि
नहीं हुई हैं ? अगर बदोतरी नहीं हुई होती तो कार और दुपहिया वाहनो की बिक्री मे इतना इजाफा कैसे हुआ ? कान्हा से पैसा आया ?बंकों
की शाखाओ मे जमा की व्रद्धि का आधार क्या हैं ? इन उदाहरणो से साफ हैं कि अगर विकाश की गति बदेगी तो मंहगाई भी बदेगी |
इसलिए यह कहना की मंहगाई को नियंत्रित करेंगे कहना गलत होगा | क्योंकि अगर नियंत्रित किया तो किस वर्ष के दामो को आधार मानेगे ?
और उस वर्ष के विकास की स्थिति को देखना क्या उचित नहीं होगा | इसलिए यह चुनावी वादा भर ही हैं जमीनी धरातल का सत्य नहीं |



Apr 7, 2014

मंहगाई को कम करने और विकास की गति को बड़ाने का दावा ---कितना बड़ा मिथक !


मंहगाई को कम करने और विकास की गति को बड़ाने का दावा ---कितना बड़ा मिथक !

विकास और मंहगाई अर्थशास्त्र के नियमो के अनुसार दोनों एक दूसरे की दिशा के विपरीत चलने वाली अवधारनाए हैं | किसी

भी छेत्र अथवा देश की आर्थिक उन्नति होने के साथ ही उस देश मे मंहगाई का बदना अवश्यंभावी होता हैं | इसलिए विकास के पथ
पर अग्रसर होने का प्रयास मंहगाई का सूचक होता हैं | चलिये इसको अपने देश के परिप्रेक्ष्य मे देखते हैं | स्वयं के अनुभव के अनुसार
सोलाह आने के रुपये को जब दशमलव प्रणाली मे परिवर्तित किए जाने के पूर्व तौल मे भी छांटक -सेर और - मन मे ही सभी जिंसों के
भाव हुआ करते थे | पांचवे दशक के अंत मे यह सब बदलाव हुआ | इसका कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मे अपनी मुद्रा और -तौल के मानको
समानता लाने का प्रयास था | इतना सब संदर्भ देने का तात्पर्य उस समय की जींसों की दरे और तत्कालीन विकास की स्थिति मे
अनुपात को परखने का है| उस समय '''विभाजित'''भारत की आबादी लगभग 64 करोड़ थी | मेरा स्वयं का अनुभव हैं की उस वक़्त
शक्कर या चीनी का भाव छह आने सेर [अर्थात आज की मुद्रा और तौल मे 37 पैसे मे लगभग 900 ग्राम ] था | अब आज एक अरब की
आबादी के देश मे 26 से30 रुपये प्रति किलोग्राम का भाव है | गेंहू और सारसो के भाव भी कुछ इसी अनुपात मे थे | 1957 मे जब इस
मुद्रा - माप -तौल का दशमलव करण हुआ , उस समय भी 1947 के पूर्व के भारत के दामो और बाज़ार की मंहगाई की शिकायत नगर
और गावों की चौपाल मे होती थी | तब इंग्लैंड से आयातित रैले साइकल रखना इज्ज़त की बात हुआ करती थी | तब आज की कार को
'मोटर' कहा जाता था , और यह राजे - महराजे या जमींदारो के इस्तेमाल की वस्तु हुआ करती थी | आम आदमी किसी भी स्थान की

दूरी का अंदाज़ ''कोस'' और ''दिन'' मे लगता था |यह देश की 98 प्रतिशत आबादी की हालत थी | दूसरी वस्तुओ के दाम भी
सकते हैं , परंतु वह गैर ज़रूरी ही होगा | उस समय दैनिक मजदूरी ''आने ''[सोलह आने के रुपये] मे और वेतन दहाई मे और बिरले
लोगो को सैकड़े रुपये मे ''दरमाहा ''या तलब'' मिलता था |जिसका अर्थ मासिक वेतन हुआ करता था |

उस हालत मे भी मंहगाई थी , पर विकास नहीं था | स्कूल -अस्पताल ज़िला मुख्यालयों या बड़े नगरो मे ही
सुलभ हुआ करती थी |बिहार -उत्तर प्रदेश के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा कलकत्ता - बेनारस -अलीगड़ विस्वविद्यालय हुआ करते थे |
तब विकास के नाम पर गाँव मे नहर और ग्रामवासियों की मदद से भाषा और गणित का प्रारम्भिक ज्ञान देने के लिए गुरु जी ही हुआ करते
थे , मस्जिदों मे कुरान पड़ने की व्यसथा हुआ करती थी | ऐसे मे कृषि ही एक मात्र आय का साधन हुआ करता था | अधिकान्स लोग
तब भी रोजगार के लिए शहरो की ओर भागते थे | महात्मा गांधी द्वारा चरखा आंदोलन के बाद ब्रिटिश प्रदेशो के गाँव मे कुछ नौजवानो ने
ग्रामीण विकास के लिए इसे ही आधार बनाया | परंतु तब भी लोग रुपये मे दस सेर गेंहू को भी मंहगाई मानते थे |

आज़ादी के पूर्व 1935 मे जिन राज्यो मे गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत चुनाव हुए और वंहा सरकारे बनी उन
राज्यो मे प्रांतीय सरकारो को केवल शिक्षा और कृषि के ही अधिकार प्राप्त थे , पंजाब -बिहार - उत्तर प्रदेश और प्रेसेडेन्सी नगरो मे इन दोनों
ही छेत्रों मे स्कूल खुले और और श्रमदान से सरकारो ने नहरों का निर्माण कराया | आज़ादी के बाद भी इसी छेत्र मे उन्नति हुई चालीस के दशक
मे गन्ना उत्पादन को बड़ावा देकर चीनी मिलो की स्थापना देशी सेठो द्वारा की गयी | क्योंकि तब तक देश मे स्थानीय तौर पर खांड या गुड
का ही निर्माण हुआ करता था | मिलो के आने से किसानो को पहली बार ''कैश क्रॉप '' का अवसर मिला | उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर
प्रदेश मे चीनी मिलो की बाद जैसी आ गयी | आज यह इलाका ''बीमार''चीनी मिलो का हो गया हैं | इससे कृषि आधारित उद्योग पनपा
इसी लिए अन्य इलाको की तुलना मे शिक्षा और कुटीर उद्योगो मे बड़े --हाथ करघा ने लाखो परिवारों को रोज़ी प्रदान की , जिस से वे अपने
लड़को को शीशा के लिए बाहर भेजने लगे |

लेकिन इसी प्रगति के साथ ही गेंहू के दाम भी बदने लगे ,हालांकि सिंचाई सुलभ होने के कारण
उत्पादन मे भी बदोतरी भी हुई |गावों मे साइकल दिखयी देने लगी देश मे पहली स्वदेशी किले हिन्द का निर्माण हुआ और इंग्लैंड से रैले
साइकल का आयात खतम हुआ , यह सब पांचवे दशक मे हुआ | 1950 के उस भारत की तुलना मे आज का भारत कान्हा पर खड़ा हैं ?

Apr 3, 2014

हैंडरशन रिपोर्ट और कुछ तथ्य उसको झुठलाते हुए


हैंडरशन रिपोर्ट और कुछ तथ्य उसको झुठलाते हुए

ऑस्ट्रेलियन पत्रकार ने 59 साल बाद एक रहस्योद्घाटन किया की तत्कालीन प्रधान मंत्री ने चीन को हमले के
लिए उकसाया था | मैंने उनकी किताब को नहीं पड़ा हैं , केवल अखबारो मे उस किताब के बारे मे जो कुछ छपा है उसी के आधार पर एक
रॉय बनाई हैं , जिसके बारे मे कुछ तथ्य हैं जो मैं सार्वजनिक करना चाहता हूँ | इसलिए नहीं की जो लिखा गया हैं वह कल्पना हैं , वरन
सत्य तो नहीं कह सकता |

जंहा तक भारत - चाइना विवाद का प्रश्न हैं , उसकी शुरुआत 21 ओक्टोबर 1959 को लद्दाख मे भारतीय पुलिस
के दस जवानो को चाइना की सेना ने धोखे से हॉट स्प्रिंग चांग चेनपो नदी पर हत्या कर दी थी |शहीद हुए जवानो के नाम है 1- सिपाही
पूरन सिंह , 2- सिपाही धरम सिंह 3-सिपाही नरबी लामा , 4- सिपाही शेर सिंह ,5-सिपाही हांजित सूबा , 6- सिपाही सरबन दास
7-सिपाही शिवनाथ प्रसाद , 8- सिपाही बेगराज 9-सिपाही इमाम सिंह 10- सिपाही माखन लाल | इस घटना के समय जवाहर लाल नेहरू
लंदन मे राष्ट्र मण्डल सम्मेलन मे भाग लेने गए हुए थे |इन शहीद सिपाहियो के शव चीनी अधिकारियों द्वारा 13 नवम्बर 1959 को भारतीय
अधिकारियों को सौपे | 14 नवम्बर को हॉट स्प्रिंग मे ही वीरगति प्राप्त इन जवानो का अंतिम संस्कार किया गया |

इस घटना पर पंचशील के प्रणेता ने स्पष्ट किया की "" जिस स्थान पर यह घटना हुई है , वह भारत का हिस्सा हैं चीन का नहीं , ज़ाहिर है हमारा देश संसार के किसी भी देश के आगे दर या धमकी से नहीं झुकेगा , यह हमारी इज्ज़त और शान के के खिलाफ की हम अपना रास्ता छोड़ दे ""
अब यहा यह बताना भी जरूरी हैं की 21 अक्तूबर को आज भ सारे भारतवर्ष मे सभी प्रदेशों की पुलिस '''स्म्रती" दिवस के रूप मे मनाती है | इसलिए यह कहना की नेहरू ने चीन पर हमले के लिए उकसाया कहना गलत है |