अनुयायियों और शिष्यो की ज्यादती -- आम आदमी को भगवान बना देते हैं
वैसे हमारी परंपरा मे समाज के उन लोगो को हम बहुत ज्यादा सम्मान देते हैं जो अपना जीवन समाज के लिए अर्पित करते हैं | उन्हे सम्मान देते समय अक्सर उनके वास्तविक नाम को नहीं दुहराया जाता हैं | वरन उनके लिए एक सम्मानजनक सम्बोधन दिया जाता हैं ,जिस से लोग समझ भी जाये और नाम ना लेना पड़े | त्रिदेव के सदस्यो को हम ब्रम्हा को कर्ता विष्णु को पालंकरता और शिव को भोले नाथ कहते हैं | इसी प्रकार राम को मर्यादा पुरुषोतम और कृष्ण को कानहा कहते हैं | इंद्रा को देवराज आदि ऐसी उपाधियों से अलंकरत करते हैं |
यही परंपरा हमने अपने समाज मे भी अपनाया हैं | आज़ादी की लड़ाई मे लाला लजपतरई को पंजाब केसरी , बल गंगाधर तिलक को लोकमान्य और मोहनदास करमचंद गांधी को बापू तथा बल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष टी प्रकाशम को आंध्र केसरी और जवाहर लाल नेहरू को पंडित जी की उपाधि से इस देश की जनता ने नवाजा था | यह परंपरा महाराष्ट्र मे कुछ अधिक हैं | अंबेडकर को बाबा साहब और पंजाब के नेता तारा सिंह को मास्टर कहा जाता था |
चाहने वालों की तीव्रता का परिणाम तमिलनाडू मे सबसे पहले देखने मे आया जंहा एमजीआर की मूर्ति बना कर एक मंदिर मे उसे स्थापित कर के उसकी पूजा भी करनी शुरू करदी | अब इस स्थिति को क्या कहा जाये ? यह तो निश्चित हैं की एमजीआर कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं थे , परंतु उनके चाहने वाले उन्हे '''अपना भगवान''' सरीखा ही मानते थे | अब इसे अंधश्रद्धा कहे अथवा ''चाहत की पराकस्ठा""" ? यह अब उनकी भावनाओ को ठेस लगाने का ''पाप'' तो नहीं करना चाहिए |आखिर ''प्रेम का आखर ही """पर्याप्त "" हैं | आखिर कबीर - सूरदास - तुलसीदास सभी ने तो प्रेम की महिमा गायी हैं |
परंतु आजकल जो ''मानवो''' को भगवान बनाकर पूजने की प्रथा सी चल पड़ी हैं | जिसका फायदा कुछ भगवा वस्त्रधारी अनुचित रूप से उठा रहे हैं |जिसका भंडाफोड़ अभी आशाराम के मामले मे हुआ हैं | 450 से अधिक आश्रम का रहस्य अब धीरे - धीरे खुल रहा हैं | कितनी सरकारी ज़मीन पर और बेचारे किसानो की ज़मीन पर जबरन कब्जा किया था | अब अफसर ज़ामिनो की नापती कर कर उन सभी आश्रमो को नोटिस दे रहे हैं | सवाल हैं की कल तक जो भगवान के समान पुजा जाता था उसकी वास्तविकता हक़ीक़त मे कितनी '''गंदी''' थी | इन भगवान बने सन्यासियों को हमेशा यह स्मरण कराते रहना चाहिए की वे मात्र ''मनुष्य''' हैं कोई ''''दैविक """ शक्ति नहीं हैं , उनमे भी मानवजनित कमियो और बुराइयों हैं | वे '''पुजा''' पाने योग्य नहीं हैं |
वैसे हमारी परंपरा मे समाज के उन लोगो को हम बहुत ज्यादा सम्मान देते हैं जो अपना जीवन समाज के लिए अर्पित करते हैं | उन्हे सम्मान देते समय अक्सर उनके वास्तविक नाम को नहीं दुहराया जाता हैं | वरन उनके लिए एक सम्मानजनक सम्बोधन दिया जाता हैं ,जिस से लोग समझ भी जाये और नाम ना लेना पड़े | त्रिदेव के सदस्यो को हम ब्रम्हा को कर्ता विष्णु को पालंकरता और शिव को भोले नाथ कहते हैं | इसी प्रकार राम को मर्यादा पुरुषोतम और कृष्ण को कानहा कहते हैं | इंद्रा को देवराज आदि ऐसी उपाधियों से अलंकरत करते हैं |
यही परंपरा हमने अपने समाज मे भी अपनाया हैं | आज़ादी की लड़ाई मे लाला लजपतरई को पंजाब केसरी , बल गंगाधर तिलक को लोकमान्य और मोहनदास करमचंद गांधी को बापू तथा बल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष टी प्रकाशम को आंध्र केसरी और जवाहर लाल नेहरू को पंडित जी की उपाधि से इस देश की जनता ने नवाजा था | यह परंपरा महाराष्ट्र मे कुछ अधिक हैं | अंबेडकर को बाबा साहब और पंजाब के नेता तारा सिंह को मास्टर कहा जाता था |
चाहने वालों की तीव्रता का परिणाम तमिलनाडू मे सबसे पहले देखने मे आया जंहा एमजीआर की मूर्ति बना कर एक मंदिर मे उसे स्थापित कर के उसकी पूजा भी करनी शुरू करदी | अब इस स्थिति को क्या कहा जाये ? यह तो निश्चित हैं की एमजीआर कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं थे , परंतु उनके चाहने वाले उन्हे '''अपना भगवान''' सरीखा ही मानते थे | अब इसे अंधश्रद्धा कहे अथवा ''चाहत की पराकस्ठा""" ? यह अब उनकी भावनाओ को ठेस लगाने का ''पाप'' तो नहीं करना चाहिए |आखिर ''प्रेम का आखर ही """पर्याप्त "" हैं | आखिर कबीर - सूरदास - तुलसीदास सभी ने तो प्रेम की महिमा गायी हैं |
परंतु आजकल जो ''मानवो''' को भगवान बनाकर पूजने की प्रथा सी चल पड़ी हैं | जिसका फायदा कुछ भगवा वस्त्रधारी अनुचित रूप से उठा रहे हैं |जिसका भंडाफोड़ अभी आशाराम के मामले मे हुआ हैं | 450 से अधिक आश्रम का रहस्य अब धीरे - धीरे खुल रहा हैं | कितनी सरकारी ज़मीन पर और बेचारे किसानो की ज़मीन पर जबरन कब्जा किया था | अब अफसर ज़ामिनो की नापती कर कर उन सभी आश्रमो को नोटिस दे रहे हैं | सवाल हैं की कल तक जो भगवान के समान पुजा जाता था उसकी वास्तविकता हक़ीक़त मे कितनी '''गंदी''' थी | इन भगवान बने सन्यासियों को हमेशा यह स्मरण कराते रहना चाहिए की वे मात्र ''मनुष्य''' हैं कोई ''''दैविक """ शक्ति नहीं हैं , उनमे भी मानवजनित कमियो और बुराइयों हैं | वे '''पुजा''' पाने योग्य नहीं हैं |