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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 1, 2016

सुरा-आसव - मदिरा या वारुणी क्या ये सब शब्द हमारे नहीं है ?

उज्जैन मे हो रहे अर्ध कुम्भ मे आए अनेकों बाबाओ ने प्रदेश मे शराब बंदी की मांग की थी | परंतु मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने उनको यही कहा की "”आगे सुरा-आसव मदिरा या वारुणी क्या ये सब शब्द हमारे नहीं है ?
- आगे देखिये होता है क्या "”' | राजधानी पहुचने पर उन्होने स्थिति को साफ किया और कहा की राज्य मे शराब बंदी नहीं होगी | इस पर उज्जैन से एक सज्जन ने एक समाचार पत्र मे लिख मारा की की "”अमृत मंथन मे निकली शराब को दैत्यो को दे दिया गया था "”” इसीलिए यह त्याज्य है | उन महानुभाव ने कन्हा से अमृत मंथन का ज़िक्र कर दिया समझ मे नहीं आता | क्योंकि अगर यह इतनी ही त्याज्य है तो देवताओ द्वरा सुरापान किस कारण किया जाता था ? अनेक चक्रवर्ती संरतों द्वरा भी इसका लगातार सेवन किए जाने का उल्लेख है --फिर उसे किस प्रकार उचित थराया जाएगा ??

ऋग्वेद मे भी सोमरस का पान हमारे ऋषियों द्वारा किए जाने का उल्लेख है --फिर उसे भी दैत्य समान मानना होगा ? क्या हम अपने पूर्वजो का मूल्यांकन आज के आधार पर करेंगे ? क्या यह उचित होगा ? शीर्षक मे आए सभी नाम मादक पेय है जिनहे बनाने की विधि के कारण अलग - अलग नाम दिये गए है | आज भी सेब से बनाने वाला साइडर हो या जाऊ से बनाने वाली बीअर हो अथवा विभिन्न फलो से निर्मित वाइन हो या शैम्पेन हो ये सब हार्ड लिकर अर्थात रम --जिन - व्हिस्की से अलग है | उसी प्रकार आसव चिकित्सीय द्र्श्टि से अनुमान्य है | जिन धर्मो मे इन पदार्थो को त्याज्य बताया गया है ---उनके अनुयाई भी विभिन्न आयूर्वेद कंपनियो द्वारा निर्मित इस पेय को दवा के समान लेते है | अब अगर यह शराब की श्रेणी मे है तब तो वे धरम भ्रष्ट हो चुके है | वास्तव मे वाइन फलो को खमीर डाल कर नियत अवधि तक रखा जाता है | यूरोप मे ग्रामीण छेत्र मे किसान अपनी फसल या बाघ के उत्पाद से विभिन्न प्रकार की वाइन बनाते है |इसके लिए किसी यंत्र या बड़े तकनीकी उपकरण की ज़रूरत नहीं होती | शराब बंदी से ना तो अपराध बंद होते है ना ही परिवारों को उजड़ने से बचाया जा सकता है | हा चोर बाजारी ज़रूर शुरू हो जाती है | आज गुजरात मे जितनी गैर कानूनी रूप से शराब की खपत होती है – वह किसी अन्य प्रदेश से कम नहीं है |


इस लिए किसी भी खाद्य को या पेय को दैत्य या दानव के लिए बताना उचित नहीं है | जैसे शाकाहारी और मानशाहारी मे कोई बड़ा या छोटा नहीं है वैसे ही किसी पेय को पीने से कोई दानव नहीं होता और नहीं पीने वाला देव नहीं बन जाता है | खानपान से श्रेष्ठ होने का भ्रम छोड़ देना ही उचित है