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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 7, 2013

उत्तम खेती माध्यम बान निषिद्ध चाकरी भीख निदान --कितना सही ?

उत्तम खेती माध्यम बान निषिद्ध  चाकरी  भीख निदान --कितना सही ? 
                                                            सौ साल पहले यह कहावत कितनी सही लगती थी , परंतु आज  दो हज़ार तेरह  साल मे यह कहावत बिलकुल गलत सिद्ध हो चुकी हैं | यद्यपि आज भी देश और प्रदेश  का शासन चलाने  वालो  मे आधे से अधिक  नेताओ का   पेशा  कृषि ही हैं | परंतु  फिर भी उनकी आय का मुख्य श्रोत्र  किसानी नहीं हैं | 

                                          हालांकि देश के किसानो की भलाई  के  लिए विगत समय मे  सरकारो द्वारा अनेक कदम उठाए गए , परंतु  औद्योगिक  राष्ट्र  बनने की दौड़ मे किसानी  का काम ''''हेय''' हो गया | कहने को सहकारी आंदोलन - उर्वर्को  पर अनुदान आदि के कदम उठाए गए | सभी कृषि उत्पादो के न्यूनतम  मूल्य निर्धारित किए गए | परंतु बात बनी नहीं | 

                      कृषि की दुर्दशा का उदाहरण पंजाब के  किसानो का आंदोलन हैं जिसमे उन्होने अपने क़र्ज़ चुकाने के लिए  अपने ''अंग''' बेचने की अनुमति प्रधान मंत्री से मांगी हैं |  पंजाब और हरियाणा  गेंहू और तिलहन तथा कपास  के उत्पादन के लिए देश मे सबसे आगे हैं | दोनों ही परदेशो मे केमिकल खाद का उपयोग इतना ज्यादा किया गया की , ना केवल खेतो की उर्वरता  बहुत कम हो गयी वरन उत्पादन  बड़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओ के दामो के कारण किसान कर्ज़ दर हो गया | उम्मीद के सहारे अगली फसल के ठीक होने पर ''क़र्ज़ '' चुकाने की उम्मीद भी झूठी  पड़ती  गयी | और   बैंको का कर्जा चक्रवृद्धि  ब्याज की दर के कारण तीन सालो मे मूल का दोगुना होता गया | पहले तो ज़मीन बेच कर  बैंको  की उधारी चुकाने की कोशिस  की परंतु वह भी व्यर्थ सिद्ध हुई | 

                  जब कर्जा साल दर साल बदता ही गया तब इन लोगो ने अपने ''अंग'' बेच कर उधर पटाने का प्रयास किया | परंतु कानून की उलझन के कारण वे सफल नहीं हुए | 
                                 परंतु पंजाब के किसानो के इस आंदोलन ने एक सवाल खड़ा कर दिया हैं की  कृषि छेत्र मे दिये जाने वाले कर्ज़  से पचासों गुना अधिक धनराशि उद्योग के छेत्र मे दी जाती हैं |  उद्योग के छेत्र मे बड़े - बड़े बक़ायादारों  के खिलाफ बंकों द्वारा कोई कारवाई नहीं की जाती | क्योंकि इन  बैंको पर इनहि उद्योगपतियों का नियंत्रण होता हैं |  उदाहरण के तौर पर सूती मिलो - शक्कर  कारखानो - शराब उत्पादको -- हवाई जहाज कोंपनियों पर अरबों -अरब रुपये का बकाया हैं , परंतु नहीं सत्यम के मालिको ने न किंग फिशर  हवाई कंपनी के मालिको  की संपातीय कुर्क की गयी |  कृषि और उद्योग छेत्र के बीच इस  दो तरह के पैमानो से यह साफ हो गया की सरकार को भी कृषि और कीससनों की परवाह नहीं हैं | 

सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा कदिलपुर गाँव मे मस्जिद की दीवार ढहने के मामले मे दुर्गा शक्ति को क्लीन चिट

सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा  कदिलपुर गाँव मे मस्जिद की दीवार ढहने के मामले मे दुर्गा शक्ति को क्लीन चिट 
                                                      नोएडा के कदिल पुर ग्राम मे मस्जिद की दीवाल के गिराए जाने को लेकर  निलंबित की गयी आइ एएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल  को समाजवादी पार्टी के नेताओ द्वारा अशांति  फैलाने का प्रयास करने के आरोप को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने करारा झटका दिया हैं | वक्फ बोर्ड ने अपनी विज्ञप्ति मे साफ कहा की दुर्गा वंहा       पर दीवाल गिरने नहीं गयी थी , वरन उन्होने लोगो को समझाया की उनका निर्माण ''गैर कानूनी''' हैं | 

                                            दुर्गा नागपाल के समझने पर  ग्राम  वालों ने खुद ही  उस विवादास्पद दीवाल को गिरा दिया , जिस समय दीवाल गिराई गयी थी उस वक़्त मौके पर दुर्गा मौजूद ही नहीं थी | दीवाल  गिराने की घटना की रिपोर्ट  तहसीलदार ने बनाई थी | उसकी रिपोर्ट मे भी साफ लिखा हैं की दुर्गा के समझने पर गाव वालों ने खुद ही आगे आकार गिराया , इस करवाइमे कोई सरकारी  आमला नहीं था | 

                                                  लखनऊ मे बैठे सीनियर अफसर और सरकार को चला रहे मंत्री और मुख्य मंत्री अखिलेश यादव  को अब कुछ नए कारण ''केंद्र'' को बताने होंगे दुर्गा शक्ति नागपाल के ........ 

मनचाहा हो तो अच्छा ना हो तो और भी अच्छा, बालू खनन पर पर्यावरण ट्राईबुनल द्वारा प्रतिबंध

मनचाहा  हो तो अच्छा  ना हो  तो और भी अच्छा  
                                                                    उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव  का  दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित करने का फैसला बरकरार रख कर अपने  ही पैरो पर कुल्हाड़ी मार लिया है | नरेंद्र भाटी की ज़िद पूरा करके वास्तव मे भाटी की  आमदनी को ज़ीरो  कर दिया हैं |  इतना ही नहीं  प्रदेशो  मे सत्तारूद  दल के  नेताओ  की आमदनी  का जरिया भी खतम कर दिया हैं | 

                                         यमुना अथवा गंगा के  कछार  से बालू की खुदाई का मामला हो अथवा बेल्लारी मे आइरन ओर  अथवा  छतीसगढ मे स्टोन या मगनीज की खुदाई हो सभी मे सत्तारूद दल के लोग ''सहयोगी''' रहते ही हैं | जो सहयोग की कीमत भरपूर वसूलते ही हैं |, अब इसे सेवा का प्रतिदान कहे या साझेदारी , कुछ भी नाम आप दे सकते हैं | परंतु तथ्य यही हैं , अब इसमे पार्टी कौन हैं ? यह महत्वपूर्ण नहीं हैं | 

                                       वैसे खनन   के मुखिया लोगो  को तो मेजर मिनेरल्स  का ठेके से नवाजा जाता हैं , ज़िला और नगर स्तर के ''पार्टी''' के स्थानीय नेताओ को  पत्थर  और बालू  ही मिलती हैं | जिस का एक  पट्टा बना दिया जाता हैं , फिर उसकी आड़ मे साल दर साल  हजारो ट्रक  ''माल''' बाज़ार मे भेज दिया जाता हैं | इन  जमीनी  """फलो"" से  लाखो  पॉलिटिकल  व्यक्तित्व  और परिवारों का ''भला''' हुआ हैं | इसी कारण  बालू - मुरम - पत्धर  से संपन्नता का रहस्य अब तिलस्मी राज़ नहीं रहा |  
                                        परंतु समाजवादी पार्टी की सरकार ने दुर्गा शक्ति का निलंबन करके  ''राजनेताओ''' के चमचो का घर भरने के रास्ते को ''मूँद दिया हैं |  राष्ट्रिय पर्यावरण ट्रिबूनल ने '''तत्काल प्रभाव '''से  देश की नदियो से बालू - मुरम  की खुदाई पर रोक लगा दी हैं | इस कदम से देश के सभी राज्यो मे सत्तारूद दल के समर्थको पर ''गाज़'''' गिरि हैं | अब देखना यह हैं की क्या पर्यावरण प्राधिकरण  अब अपने हुकुम को लागू करवा पाएगा ?  अगली कारवाई तक  इंतज़ार ............