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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 7, 2021

 

राजनीति लोगो को बांटती है - पर सतना में राजनीतिक मुहिम ----------------------------------------------------------------------------

गत 4 जुलाई को गाजियाबाद में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच में डॉ इफतिखार की पुस्तक विमोचन के अवसर पर आरएसएस प्रमुख डॉ भागवत ने जब कहा की सभी भारतीयो का डीएनए एक है चाहे वे हिन्दू हो अथवा मुस्लिम ,तब बीजेपी और उसके संगठनो द्वरा मुसलमानो के प्रति विष वमन पर रोक लग्ने की आशा जागी थी | उन्होने यह भी कहा था की वे यह विचार "” ना तो अपनी छवि के लिए कह रहे और ना ही इसका इस्तेमाल वोट के लिए कह रहे हैं "” तब लगा था की देश के सबसे बड़े सान्स्क्रतिक संगठन के मुखिया वास्तव में दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय सदभाव और एका के हामी और समर्थक हैं | परंतु तीन दिन बाद जब वे सतना ज़िले के चित्रकूट में नानाजी के राष्ट्रीय क्रशि विस्वविद्यालयवे में 10 जुलाई से अखिल भारत प्रांत प्रचारक की बैठक के लिए वे 6 जुलाई को पहुंचे , तब उनके बयान पर शंका होने लगी ! क्यूंकी यह बैठक 2022 में देश के पाँच राज्यो में होने वाले विधान सभा चुनावो में संघ की रूप रेखा तय होना हैं | संघ की इस सालाना बैठक बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है | क्यूंकी यह अपने सत्तर से ज्यादा आनुषंगिक संगठनो के अलावा बीजेपी की जमीनी पकड़ और उसके विरुद्ध अशन्तोष की खोज -खबर भी लेती हैं | वह मतदाताओ को बीजेपी के पक्ष में किए जाने वाले उपायो पर भी विचार मंथन करती हैं | संघ का बहुमुखी चेहरा अक्सर लोगो को भ्रम में डालता हैं | 1980 के लोकसभा चुनावो के पूर्व तत्कालीन जनता पार्टी अध्यछ चन्द्रशेखर ने संघ को अनेक मुखो वाले सर्प की संज्ञा दी थी | उनका कहाँ था की जनहा राजनीतिक पार्टियां अपने संगठन के साथ चुनाव लड़ती हैं | वनही जनसंघ जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में अवतरित हुई , उसको आरएसएस के सत्तर से अधिक इकाइयो के गैर राजनीतिक लोगो का साथ मिलता हैं| जो धरम से लेकर जाती या परंपरा के नाम पर मतदाता को प्रभावित करते हैं | गौर तलब हैं 1977 में जब उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव के नेत्रत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी , तब समाजवादी नेता राजनारायन ने "”” दोहरी सदस्यता "” का सवाल उठाया था | उन्होने जनसंघ के कोटे से बने विधायकों द्वरा अलग बैठक किए जाने पर आपति उठाई थी | उनके अनुसार आरएसएस का राजनीति से "”लेना -देना नहीं हैं " तब उससे जुड़े लोग जनता पार्टी के सदस्य हो कर "” अपने -आपनो की बात कैसे कर सकते हैं ?

यह इतिहास इसलिए लिखना जरूरी था की की संघ की आ'’राजनीतिक निर्लिप्तता "”” पहले भी विश्वसनीय नहीं रही हैं , इसलिए डॉ भागवत के कथन को भी पूरी तरह मान लेना संभव नहीं हैं | हमेशा चुनावो के पहले इसी प्रकार संघ अपने 44 प्रांतो में विभाजित देश के प्रमुखो से , अपने राजनीतिक संगठन की मदद के उपायो पर विचार हेतु विमर्श करता हैं | उत्तर प्रदेश समेत पाँच राज्यो में होने वाले विधान सभा चुनावो में यह तैयारी इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं ,क्यूंकी बंगाल में करोड़ो रुपये और हजारो बाहरी कार्यकर्ताओ तथा केंद्र की मशीनरी के अप्रत्यकश उपयोग तथा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की थियेतरीक्क और भीड़ जुटाओ प्रबंधन के बाव जूद भी बीजेपी दहाई में सिमट गयी | त्राणमूल में दल बदल कराने के बावजूद भी ममता बनेरजी की ताकत कम नहीं हुई | नरेंद्र मोदी के राजनीतिक यात्रा में पहले दिल्ली और अब बंगाल अब उनके लिए वाटर लू साबित हुआ हैं | संघ भी वनहा असफल रहा , लोगो का मूड पहचानने में |

जिससे देश में बीजेपी और मोदी की

अविजित छवि खंडित हो गयी हैं | जिस प्रकार संघ के जमीनी कार्यकर्ता या नेता "” अहंकार की भाषा और व्यवहार सार्वजनिक जीवन "”में करते हैं , वह भी लोगो को संघ और बीजेपी से विमुख कर रहा हैं | आम आदमी जो संघ की हिंदुवादी सोच का हामी हैं --------वह भी राम मंदिर के विवादो और अब मथुरा पर मंदिर बनाने के मांग को उचित नहीं मानता | वह शिक्षा ---स्वास्थ्य और व्यव्यसाय की चिंता करने लगा हैं | खास कर पहले लाक डाउन की त्रासदी और बाद में कोरोना काल में हुई मौतों पर केंद्र सरकार की और योगी सरकार की असफलता ने आबादी के बड़े भाग को प्रभावित किया हैं | उत्तर प्रदेश के सत्तर फीसदी गावों में कोरोना ने लाखो परिवारों दंश दिया हैं | जिस प्रकार लोग अपने परिजनो का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाये वह =उनमें एक धार्मिक अपराध बोध भरता हैं | और घाव पर नमक छिड़कने वाला काम हुआ हैं की जिन गाव वासियो के घर के लड़के कमाने के लिए मुंबई और दिल्ली गए थे , वे सब क़र्ज़दार हो कर लौटे हैं | क्यूंकी उनकी वापसी में भी बस और ट्रक वालो ने उनको खूब लूटा है |

इतना ही नहीं मुस्लिम आबादी को इन तकलीफ़ों के साथ पुलिस के अत्याचारो को भी भुगतना पड़ा हैं | इतना ही नहीं दलित वर्ग को भी बलात्कार और दबंगों के अत्याचार का खूब सामना करना पड़ा हैं | पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी से अलग नौजवानो का एक संगठन काम कर रहा हैं | जो मायावती से टूटा है | पर बीजेपी या संघ से दूर हैं

उत्तर प्रदेश में ब्रांहण और दलित आबादी का प्रतिशत क्र्म्सह 12 प्रतिशत और 22 प्रतिशत है | विगत चुनावो में ब्रांहनों ने बीजेपी का समर्थन किया था | परंतु योगी आदित्यनाथ के "” ठाकुरवाद "” ने उनको सरकार से विमुख होने पर मजबूर कर दिया हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा ब्रांहनों को संतुष्ट करने के लिए उन्होने अपने अवकाश प्रापत आईएएस अधिकारी को भेजा था की वे संभवतः उप मुख्यमंत्री बन कर योगी जी के ठाकुरवाद पर "”नकेल " कसेंगे | परंतु योगी के "”हठ "” ने मोदी जी को झुका दिया | जो आज की राजनीति में आश्चर्यजनक माना गया | की किसी मुख्य मंत्री ने उनके निर्देशों की अनदेखी की !

अब सतना की बैठक में भागवत जी को ब्रांहनों ---दलितो और मुसलमानो को रिझाने के प्रतान करने होंगे | वरना उत्तर प्रदेश में बीजेपी की गाड़ी पटरी से उतर सकती हैं |