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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 3, 2018


क्या वाकई सर्वोच्च न्यायालय इतना कमजोर हो गया है की अब उसके न्यायमूर्तियों को अपने आदेश का अनुपालन करवाने मे सरकार की अछमता
के आगे घुटने टेकने पड़ रहे है ? हरियाणा की खत्तर सरकार को लताड़ लगाते हुए कहना पड़ा की "” आप सब को बेवकूफ नहीं बना सकते "” ,और अब हिमाचल की भाजपा सरकार की महिला अधिकारी की पुलिस मौजूदगी मे कसौली मे हुई हत्या पर न्यायमूर्ति लोकुर को यह कहना पड़े --- “”अगर ऐसा ही हमारे आदेश के साथ होता रहा तो हम आदेश देना ही बंद कर देंगे "”!!
क्या इन हालातो मे इंसाफ के मंदिर की ध्वजा बरकरार रह सकेगी ? जब कालेजियम के फैसले को अमली जामा पहनाने मे असफल सुप्रीम कोर्ट सरकार के हुकुमनामे से चलेगी ? प्रधान न्यायाधीश क्या स्वयंभू होकर सरकार की सलाह को ही अंतिम मान लेंगे ?
क्या सरकार के सुझाए गए --मुद्दो पर हामी भर देंगे ? जिनमे विभिन्न राज्यो के और वर्गो के लोगो को प्रतिनिधित्व देने की बात कही गयी है ?
तब क्या उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी केन्द्रीय सेवाओ की भांति ---नाम के राष्ट्रपति के आधीन और वास्तव मे सरकार के !!
ऐसी हालत मे क्या नागरिक को सरकार के खिलाफ न्याया मिल सकेगा ?? भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश लोडा की आशंका - सवाल गंभीर है , और समय तथा हालत भी !
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देश की न्यायपालिका के सदस्य को सरकारो की ऐसी लापरवाही और अपने आदेश के पालन कराने गयी महिला सिटि प्लानर शैलबाला शर्मा की अतिक्रमण हटाने के दौरान की गयी हत्या पर इस टिप्पणी से उजागर है की अदालतों की कितनी इज्ज़त इन प्रदेश सरकारो के आकाओ को है | कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने खनिज के पट्टे के मामले मे हरियाणा सरकार के वकील को लताड़ लगाई थी ,””,की आप दस्तावेज़ो के सहारे हमको मूर्ख नहीं बना सकते !!”” !! दो दिन बाद ही हिमाचल के कसौली मे "” अवैध निर्माणों को गिराने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पालन करने के दौरान ही एक होटल मालिक द्वरा सैकड़ो पुलिस जनो की मौजूदगी मे गोली मारकर हत्या किए जाने ---और हत्यारे को पकड़ने मे पुलिस की नाकामी पर "”छोभ व्यक़्त करते हुए कहा था की अगर हमारे फैसले के पालन करने मे ऐसी ही हालत रही तब हम आदेश देना ही बंद कर देंगे !!! बाद मे जस्टिस लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इस प्रकरण को यथोचित कारवाई के लिए प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा को भेज दिया ,साथ ही उनसे आगराह किया की वे इस पर आवश्यक कारवाई करे !!!


हिमाचल की राजधानी ब्रिटिश शासन के जमाने से "” गरमियो की राजधानी थी "– स्वतन्त्रता के पश्चात यह शाही प्रथा बंद कर दी गयी | मैदानी इलाको की 40 डिग्री की गर्मी से निजात पाने के लिए सैलानियों की भीड़ यानहा आती रही है | पिछले साथ सालो मे शिमला मे दिल्ली वाली भीड़ और गाड़ियो की संख्या तथा फैशन की मारामारी ने इसके पर्वतीय सौंदर्य को खतम सा कर दिया था | नेचर लवर और पहाड़ो की साफ हवा के प्रेमी शिमला से कुछ ही दूर कसौली को अपना डेरा बनाते थे | यंहा पर शिमला की मंहगाई और भीड़ से पर्यटको को निजात मिलती थी | पर्यटको की संख्या के लिए यंहा के स्थानीय निवासियों ने आ'' बहुत से गेस्ट हाउस "” बना लिए थे | जनहा पर्यटको कम दामो मे सुकून मिलता था | लेकिन इन "” मेहमान खानो या अतिथि ग्रहो ने ''' सरकारी जमीनोपर कब्जा कर सड़क पर ही निर्माण कर लिया था | जिसको एक जनहित याचिका द्वारा सुप्रीम कोर्ट मे पेश किया गया था | जिसपर अदालत ने राजनेताओ और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहे इन निर्माणों को "”भूमिसात किए जाने का आदेश दिया था "” | जिसके अनुपालन के लिए सिटी प्लानर शैलबाला शर्मा , बुलडोजर और पुलिस बल लेकर मौके पर गयी थी | जंहा हमेशा की तरह पुलिस--- राज नेताओ द्वरा पाले गए इन गेस्ट हाउस के मालिको को "” डरानेके लिए गयी थी "”, परंतु अतिक्रमण को तोड़े जाने से कुपित हो कर विजय ठाकुर नामक व्यक्ति ने सरकारी अमले पर गोली चला दी ,जिससे शैलबला की घटनास्थल पर ही सांस खतम हो गयी ,और एक और मजदूर गंभीर रूप घायल हुआ | मीडिया की खबरों के अनुसार जिले के पुलिस कप्तान चावला से जब पूछा गया की 160 पुलिस बल के मौजूद होते हुए "”हत्यारा कैसे घटनास्थल से फरार हो गया ??” उनका जवाब था की जांच की जाएगी < जब यह पूच्छा गया की क्या हत्यारे की गिरफ्तारी हुई ? उनका उत्तर था की कारवाई की जा रही है --पुलिस की कई टीम बन दी गयी है ,परंतु गिरफ्तारी 2मई की रात तक नहीं हुई | संयोग है की हिमाचल मे भारतीय जनता पार्टी की सरकार है !!

हरियाणा सरकार को जिस मामले मे फटकार मिली वह भी वनहा के अफसरो की "”कारवाई और नीयत "” पर प्रकाश डालती है | सरकार ने खनिज का एक पट्टा आवंटित किया | जिसमे रकबा नियत था | पारा जब व्यापारी आवंटित स्थान पर गया तो उसे कहा गया की वह अलाट की गयी भूमि के एक हिस्से पर ही खुदाई कर सकता है | उसने इसी सरकारी रोक के वीरुध याचिका दायर की थी की सरकार से करार के अनुसार समस्त आवंटित भूमि पर खनन करने की रोयल्टी का भुगतान किया है " सरकारी दस्तावेज़ो से भी याचिका करता का दावा अदालत ने सही पाया | तब यह टिप्पणी की गयी की आप सबको मूर्ख नहीं बना सकते !

सुप्रीम कोर्ट पर सरकार के दबाव पर पूर्व प्रधान न्यायधीश लोडा की यह टिप्पणी काफी चिंतजनक है की "” मै आज के हालातो पर सर्वोच्च न्यायालय की स्वतन्त्रता के बारे चिंतित हूँ , अगर उत्तराखंड के मुख्य न्यायधीश जुस्टिस जोसेफ के बारे सही निर्णय नहीं लिया --- तब आम आदमी को इंसाफ देने का भरोसा नहीं दे सकते ''| उनके कहने का आशय शायद यह था की जब आप अपने साथी के संवैधानिक अधिकारो की रक्षा नहीं कर सकते -तब आम नागरिक को न्याय दिये जाने का भरोसा कैसे दिला सकते है !

सूत्रो के अनुसार इन्दु मल्होत्रा को जुस्टिस जोसेफ के नाम केंद्र को सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए भेजे गए थे | परंतु विधि मंत्रालय ने इन्दु मल्होत्रा के नाम को मंजूरी दी और जुस्टिस जोसेफ के बारे निम्न कारण बताए मंजूर नहीं करने के :-
1;- देश के उच्च न्यायालयों मे कार्यरत न्यायाधीशो की संख्या मे उनका नाम शिखर पर नहीं है | बहुत से जज उनसे भी सीनियर है |
हक़ीक़त :- मुख्य न्यायाधीश की सीनियारिटी अपने वर्ग के सहयोगीयो मे निर्धारित की जाती रही है | न्यायाधीशो से वारिष्ठता का आंकलन नहीं किया जा सकता |

2:- केरल से अनेक जज उच्च और सर्वोच्च न्यायालय मे है | उस राज्य का प्रतिनिधित्व न्यायपालिका मे अन्य राज्यो की तुलना मे अधिक है |

हक़ीक़त :- केरल शिक्षा के और संपन्नता के मान दंड से अन्य राज्यो की तुलना मे काफी आगे है | वहा 98% शिक्षा का प्रसार है | केरल से मेडिकल छेत्र मे वनहा की "नर्सो "” का बहुत बाद योगदान है | आंकड़ो के अनुसार यहा की नर्स विश्व के किसी भी भाग मे नौकरो के लिए जाती है | विदेशो से भारत को धन भेजे जाने के मामले मे भी केरल सबसे आगे है |
3:- विधि मंत्री रवि शंकर ने सुप्रीम कोर्ट को भेजे पत्र मे कहा की दलित वर्ग से किसी भी जज का न होना चिंता की बात है |

हक़ीक़त :- क्या उच्च और उच्चतम न्यायालय मे न्यायाधीशो का मनोनयन अब सरकार छेत्र और जाति के आधार पर करना चाहती है ? क्या न्याय के इन पहरूओ को भी अखिल भारतीय सेवाओ – और राज्य की सेवाओ के भांति "” आरक्षण"” के दायरे मे लाने की मंशा है ?
क्या छेत्र और जाति के आधार को संविधान मे मनोनीत किए जाने की आवश्यक शर्तो मे जोड़े जाने का प्रयास कर रहा है ? क्या बिना संविधान संशोधन के आइस करना संभव होगा अथवा मनोनयन मे ही इन कारणो को आधार बना जाएगा ? जिससे संविधान संशोधन नहीं करना पड़े ?

जुस्टिस लोडा की आशंकाए भाय पैदा कर रही है ,की अगर पिछले दरवाजे से ऐसा किया गया ----तब भारत के लोकतन्त्र का भविष्य कौन जाने क्या होगा .........