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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2017

चीनी राष्ट्रपति जिंपिंग ---ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दुखती रग

जुलाई माह के आखिरी दिनो मे चीन से तकलीफ का दर्द अमेरिकी और भारतीय नेता के स्वर मे फूट पड़ा | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आदत के अनुसार ट्वीट कर के कहा की "”पहले के प्रशासनों की गलती से चीन ने हमारे देश से खरबो डालर कमाए पर वह कोई मदद नहीं कर रहा है "” | उनकी तकलीफ उत्तर कोरिया द्वरा "”इंटर कॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल " द्वारा सफल प्रक्षेपणकिए जाने की घटना पर था | इस मिसाइल द्वारा उत्तर कोरिया अमेरिका के अलास्का सहित अनेक नगरो पर परमाणु बम से हमला करने मे समर्थ हो गया है | यह एक प्रकार से ट्रम्प के प्रभुत्व को खुली चुनौती है |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 30 जुलाई को "”हफ्तावारी कार्यक्रम "” मन की बात मे आपण दर्द कुछ यू बयान किया ---हमे स्वदेशी समान ही खरीदना चाहिए गणेश की मूर्ति हमारी मिट्टी से ही बनी हुई हो | गौर करने की बात है की डोकलम सीमा विवाद के बाद चीन ने भारत को चेतावनी दी है | चीन के राष्ट्रपति जिंपिंग ने पहली बार सेना की वर्दी मे मशहूर लाल सेना की परेड की सलामी मंगोलिया से सटे सैनिक अड्डे मे ली | उन्होने कहा की हमारी सेनाए अपने शत्रुओ का नाश करने मे समर्थ है |
ट्रम्प ने जिंपिंग दंपति की अमेरिका यात्रा के समय खूब आवभगत की थी | उन्हे अपने निजी रिज़ॉर्ट मरलगो मे गोल्फ भी खेलने को आमंत्रित किया था | तब उन्होने चीन के राष्ट्रपति की तारीफ मे राजनयिक तौर तरीके से कनही अधिक उन्हे "”अपना भरोसे का दोस्त बताया था "” | जी -20 के शिखर सम्मेलन मे भी उन्होने जिंपिंग पर भरोसा जताया था की "वे कोरिया मसले पर अपने प्रभाव का प्रयोग करेंगे " | परंतु कोरिया उसके बाद भी मिसाइल पर मिसाइल जापान के समुद्री इलाके मे दागता रहा | उनका गुस्सा इस बात पर है की जिंपिंग ने कोई मदद नहीं की |
वनही मोदी जी ने भी जिंपिंग दंपति की अहमदाबाद मे अगवानी कर के साबरमती किनारे झूला झुलाया था | परंतु उसके बावजूद भी भूटान सीमा डोकलम को लेकर तनातनी बनी हुई है | अनेकों बार दोनों ओर के सैनिको की "”हाथापाई "” की तस्वीरे मीडियामे आई है | बस गनीमत हथियारो सहित मुठभेड़ नहीं हुई | अन्यथा 1962 दुहराया जा सकता है | कहा गया की अमेरिका चीन के मुक़ाबले हमारे साथ खड़ा रहेगा | परंतु जब खुद ट्रम्प चीन से परेशान हो तब वे हमारी कितनी मदद करेंगे ??
ट्रम्प जिस कारोबारी प्रष्ट भूमि से आए है --उसमे "” समर्थ व्यक्ति "” खुद फैसले लेता है | जैसे कारपोरेट जगत मे होता है | वे भूल गए की राजनीति मे "”अकेला आदमी निर्णायक नहीं होता "” जैसा की सीनेट ने उनके प्रस्ताव को "”अमान्य कर दिया "” | राष्ट्र की राजनीति मे देश हिट प्रथम होता है | फिर आप चाहे जितनी आवभगत करो उस पर समझौता नहीं होता | अब चीन से भारत का नेत्रत्व निवेश चाहता है | और उन्होने किया भी है | संचार के छेत्र मे टावर लगाने से लेकर कम्प्युटर हार्डवेयर या मोबाइल मे तो भारतीय कंपनिया भी चीन से ही अधिकाधिक पुर्जे आयात करती है | स्वास्थ्य के छेत्र मे भी यही हाल है | सरदार पटेल और शिवाजी की मूर्तिया भी चीन मे ही बन रही है | यह बात और है की एक भारतीय कंपनी देश मे उनका काम देख रही है | इससे उसे भारतीय ठेका नहीं कहा जा सकता |
बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”







बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”







बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”