बोलने
और आवाहन करने मे बहुत बड़ा
अंतर है मोदी जी -
महात्मा
ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया
था -आप
भाषण दे रहे है
स्वतन्त्रता
आंदोलन मे महात्मा गांधी
द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो
का नारा दिया गया था --जो
उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र
सिद्धहुआ \
उस
आंदोलन की 75वी
वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी ने रेडियो के
अपने हफ्तावारी कार्यक्रम
''मन
की बात मे ''
गंदगी
- सांप्रदायिकता
-जातिवाद
- भ्र्ष्टाचार-गरीबी
और आतंकवाद को देश छोडने की
हुंकार भरी है !
उन्होने
अपने भासद मे महात्मा के आवाहन
का उल्लेख क्यो किया -यह
समझने की बात है |
आज़ादी
के बाद देश मे प्रजातांत्रिक
मूल्यो और आपसी सद्भाव को
शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी
दौर मे लग रहा है |
अंग्रेज़ो
को जाने के लिए आंदोलन हुए
-गिरफ्तारिया
हुई -जेल
गए पर सब कुछ कानून के डायरे
मे हुआ |
आन्दोलंकारियों
की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी
---और
बिन बुलाये लोगो की होती थी
पर हिंसक नहीं होती थी |
जैसी
आजकल एख़लक और जावेद की हत्या
के लिए हुई |
उस
समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो
का साथ दे रहे थे -लोगो
को उनकी पहचान भी मालूम थी
|परंतु
उनके साथ "”आंदोलंकारियों
"””
ने
ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी
कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार
हुआ |
जैसा
की आज कल हो रहा है |
आज
देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन
बंजर हो गयी है ---
आपसी
सद्भाव राजनीतिक विचारो की
बलि चढ गया है |
इसलिए
प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर
हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा
की ही फसल उग रही है |
जिन
पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों
को भागने के लिए आपने कहा है
-वह
देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा
|
अब
लोग "”भीड़
है "”
जो
नारे लगती हुई किसी को जान से
मार सक्ति है -किसी
का घर जला सकती है -परंतु
दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति
को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती
---मोबाइल
से उसका विडियो क्लिप बना सकती
है |
प्रधान
मंत्री जी आपकी सरकार केरल
मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या
पर संगयन ले कर देश का गृह
मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री
को तलब कर लेता है ---परंतु
वह संवेदना सरदार सरोवर के
दस हज़ार '''विस्थापितो
'''
के
लिए नहीं जागती ?
महात्मा
गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी
-चोरा
मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस
का आंदोलन स्थगित कर दिया था
--और
कहा था की अगर हिंसा हुई है तो
जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध
स्वीकार करना होगा |
फलस्वरूप
50
लोगो
पर मुकदमा चला और 19
लोगो
को सजाये हुई |
मूल्य
कहने से नहीं आत्मसात होते
-उनके
पीछे "”त्याग
और तपस्या "”
शुचिता
की शक्ति होती है --तब
वे जनमानस को झकझोरते है |
एक
पुराना उदाहरण है जिसमे एक
माता अपने पुत्र के मीठा खाने
के अवगुण की शिकायत लेकर एक
महात्मा के पास गयी |उन्होने
कुछ दिन बाद आने को कहा |
दुबारा
महात्मा ने बच्चे को मीठा मत
खाने को कहा |
माता
ने पूछा की अगर इतना ही कहना
था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया
था ?
महतमा
ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन
मई खुद भी मीठा खाता था |जब
मैंने छोड़ दिया -
तब
मई "”कहने
लायक बना "
वरना
मेरा कहना बेकार जाता "”
No comments:
Post a Comment