Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 23, 2021

 

परंपरा ---करमकांड किसकी ? राष्ट्र की या धरम की ?



क्या ऋषिकेश की गंगा को कानपुर की मैली गंगा


में भी शुद्ध रखा जा सकता हैं ? वर्षो से केंद्र की काँग्रेस और


अब मोदी सरकार कोशिस करती रही हैं , पर परिणाम वही


ढाक के तीन पात रहे | नदी किनारे की बस्तियो को सिवेज


को शुद्ध करने के लिए प्लांट लगाने के लिए पैसा सरकारो



द्वरा दिया गया हैं परंतु नौकरशाही और अफसर शाही ने "”नदी की सफाई के मूल काम "” से अधिक अपने कारकुनों के लिए आफिस - निवास और गाड़ी खरीदने में खर्च किया हैं | अब डॉ मोहन भागवत जी गंगा को निर्मल बनाने के लिए राम मंदिर जैसा अभियान चलाने का आवाहन कर रहे हैं | इसके पूर्व उन्हे पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती के बयानो को जान लेना चाहिए और केंद्र द्वरा इस कार्य हेतु दिये गए धन के आवंटन और उसके उपयोग का निरीक्षण करना चाहिए ! क्योंकि उनका उद्देश्य सर्वथा स्वागत योग्य हैं | लेकिन अफसरशाही ने इस मद में काफी खेल किया हैं , उसकी जांच होनी चाहिए |



राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने पाँच राज्यो में विधान सभा चुनावो के पूर्व अनेक मुद्दे सार्वजनिक छेत्र में डाल रहे हैं --जो बीजेपी के लिए हिन्दू मतदाताओ का चुनावी मुद्दा बनाने में सहायक हैं | ये मुद्दे ऐसे हैं जो उनके मन को छूते हैं |

1:- उन्होने बयान दिया की गंगा को साफ करने के लिए -राम मंदिर ऐसे अभियान की जरूरत हैं | जिस प्रकार राम मंदिर लिए बाबरी मस्जिद को धावश्ट किया गया , फिर उसके लिए जिस प्रकार अदालत में दावे और शोध प्रस्तुत किए गए – उन पर भी अब सवाल उठ खड़े हुए हैं | तब पुरातत्व विभाग के बड़े बड़े अफसरो ने खुदाई के समय इस्लामी वस्तुओ के अवशेस पाये जाने का दावा किया था | जो तत्कालिन मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के दावे को पुष्टि हेतु बताए गाये थे | परंतु अभी जब मंदिर निर्माण के लिए भारत सरकार ने टाटा और एल अँड टी को सौपा , तब नीव खुदाई के समय बीस फूट पर ही सरयू की जलधारा होने का प्रमाण मिला | जिससे यह सिद्ध हो गया की मस्जिद के नीचे किसी भी प्रकार की इमारत का होना संभव ही नहीं जब की मीडिया प्रचार में इस मुद्दे को पूरी तरह से नकार दिया गया | इससे जनहा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के दावे पर संदेह होता हैं वनही - तत्कालीन पुरातत्व वेत्ताओ के निष्कर्षो के तथ्यात्मक होने का भी संदेह होता हैं |

दूसरा मुद्दा हैं गंगा को साफ करने का ----- जब उमा भर्ती केंद्रीय मंत्री थी तब उन्होने खुद माना था की नदी की सफाई के लिए जितनी धनराशि सरकार द्वरा खर्च की गयी ----वह वास्तव में प्रबंधन के लिए सुविधा जुटाने में व्यय की गयी हैं | उनके अनुमान के अनुसार जितना धन का आवंटन गंगा की सफाई के लिए दस से अधिक वर्षो में ख़रच किया गया हैं , उसकी तुलना में नदी की सफाई "””नहीं हुई हैं "”| भागवत जी अगर चाहे तो वे केंद्र सरकार से हिसाब ले सकते हैं की विगत वर्षो में गंगा सफाई अभियान की मद में मोदी सरकार द्वरा कितना -कितना आवंटन किया गया | उमा भर्ती जी द्वरा हरिद्वार में की गयी एक पत्रकार वार्ता में कहा गया था की गंगा के ऊपरी हिस्से में उसकी सहायक नदियो में जल विद्युत बनाने के संयंत्र नहीं बनने चाहिए | क्योंकि यह नदी के स्वरूप और स्थिति को खतरनाक बनाएगा | उनका कहना अभी ऋषि गंगा पर हुए जल प्लावन से सिद्ध होता हैं | जब तक उत्तरा खंड में गंगा की सहायक नदियो पर संयंत्र लगते रहेंगे और सड़क निर्माण होता रहेगा तब तक गंगा के निर्मल होने की संभावना कम ही होगी |

फिर चाहे आप राम मंदिर जैसा अभियान चलाये कोई फल नहीं मिलने वाला हैं | क्यूंकी गंगा की सफाई के लिए नदी के किनारे की बस्तियो का सिवेज और गंदा पानी उसमें जाता रहेगा तब तक -----ऋषिकेश की गंगा कानपुर आते आते मैली हो ही जाएगी !

2:------ दूसरा बयान उन्होने हिन्दू परम्पराओ को हिकारत से देखे जाने की हरकत की निंदा की हैं | उन्होने कहा की आज भी शिक्षा संस्थाओ में "” कलावा "”पहनने या माथे पर तिलक लगाने को हेय निगाहों से देखा जाता हैं | सवाल यह हैं की सर में शिखा और माथे पर तिलक और कांधे पर यज्ञोपवीत और दूसरे कांधे पर अंगवस्त्रम तथा धोती पहने हुए को ही --राष्ट्रीय पहचान माना जाए ? अथवा कलाई पर कलावा को हेय द्र्श्ति से देखने वाले को क्या कहेंगे और उसका क्या करेंगे ?? क्या अरब मुल्को की भांति महिलाओ को अबाया या बुर्का नहीं पहनने पर कोड़े से मारा जाये ? क्योंकि इन देशो में लोकतन्त्र नहीं हैं | दूसरा राजतंत्र में धरम का पालन प्रजा से करवाना भी राज शाही का कर्तव्य होता हैं | परंतु भारत समाजवादी लोकतन्त्र देश हैं | यानहा सभी को अपनी आस्था के अनुरूप उपासना का अधिकार हैं | सरस्वती शिशु मंदिरो में प्रार्थना से लेकर राष्ट्र वंदना के गीत सभी गाते हैं फिर भले ही वे मूर्ति पूजक हो अथवा निराकार ईश्वर के उपासक हो | मिशनरी संस्थानो में प्रार्थना होती हैं जो उनके आस्था के अनुसार होती हैं | अङ्ग्रेज़ी संस्थानो में भी यज्ञोपवीत धारी बालक पड़ते हैं |मुझे मालूम हैं की एक विद्यार्थी तो शिखा रखा कर ऊंची गरदन कर के क्लास में जाता था | किसी ने अगर उसका मखौल उड़ाने की कोशिस की तो उसका उत्तर होता था --की आप नहीं शिखा रख सकते क्योंकि आप को इसकी महत्ता नहीं मालूम |

हाँ कुछ मिशन स्कूलो में लड़कियो के चूड़ी पहनने और मांग में सिंदूर डालने पर कालेज प्रबंधन ने एतराज़ जताया था , जिस पर अति हिन्दू वादी संगठनो विरोध किया | मुश्किल यह थी की कालेज में भर्ती के समय यह लिखित में देना होता हैं की वे प्रबंधन के नियमो का पालन करेंगे | अब सरकारी स्कूलो में तो यह प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता , परंतु निजी स्कूलो में तो उनके ही नियम मानी होंगे | अब ईसाई स्कूलो में कलावा और शिखा तथा तिलक पर एतराज़ को शैताननियत तो नहीं कह सकते हैं | हम सभी समुदायो के लोगो पर वे करमकांड नहीं लागू कर सकते------जिनहे हम हिन्दू मानते हैं |