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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 15, 2023

 

 अभागी दिल्ली को अपनी  मनपसंद सरकार  बनाने का भी हक़ नहीं हैं !

 

 

                                सुप्रीम कोर्ट  की पाँच सदस्यीय पीठ जिसके मुखिया प्रधान न्यायाधीश  चंद्रचूड़  थे , उन्होने  कहा की अगर दिल्ली सरकार के अफसरो और करम्चरियों  पर  केंद्र सरकार का नियंत्रण है  तब आखिर  यानहा पर एक चुनी हुई सरकार क्यू ?   भारत सरकार के सलिसीटर जनरल  तुषार मेहता  का इस सवाल पर जवाब ---- मोदी सरकार की नियत उजागर कर देती हैं , उन्होने कहा की दिल्ली एक केंद्र शासित राज्य हाइन्न ,जो “संघ” का विस्तारित रूप हैं !!   जिसके अनुसार  यदि कोई अफसर अपनी “”” भूमिका को इच्छानुसार नहीं निभा पता है तो दिल्ली सरकार के पास उस अफसर का तबादला करने और उसकी जगह पर किसी अन्य को नियुक्त करने का अधिकार नहीं होगा !!

                                       मोदी सरकार के इस रुख से यह तो साफ हो गया की  वे जिन राज्यो या स्थानो में उनकी पार्टी की सरकार नहीं हैं  -----वनहा  वे अपने  “”प्रतिनिधि  गवर्नर  या लेफ्टिनेंट गवर्नर  “” के जरिये उस सरकार को “”पंगु करने “” के लिए  सभी जा और बेज़ा  तरीके इस्तेमाल करेंगे !!  अब दिल्ली के 1 करोड़ से ज्यादा मतदाताओ की आवाज को  उलटने की  मोदी सरकार की कोशिस  अरविंद केजरीवाल  की आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद शुरू हुई हैं |  क्यूंकी 2013 के विधान सभा चुनावो में  नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने   संघ और देश के बीजेपी कार्यकर्ताओ मंत्रियो ,सांसदो , मुख्य मंत्रियो  के साथ  धुवा  धार   साम – दाम – दंड और भेद की तरकीब अपनाते हुए  चुनावी रैलिया की भरमार कर दी थी |  यानहा तक की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चार राइलिया  निकली थी | परंतु परिणाम  प्रधान मंत्री और उनकी पार्टी  के लिए घोर निराशाजनक रहे , बीजेपी के कुल  चार ही विधायक चुने गए ! करोड़ो रुपये  चुनाव प्रचार  में ख़रच करके  भी बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी |  दुबारा 2015 में केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री बने ,  जबकि केंद्र सरकार की सत्तारूद पार्टी  ने पूरा ज़ोर लगा लिया था की उनको  गद्दी तक नहीं पाहुचने दिया जाये | 16 अगस्त 2017 को उन्होने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली , तब वे   सत्ता रुड  पार्टी और उसके नेताओ  के “”दुश्मन नमबर वन बन गए “” |  तीसरी बार हुए चुनाव में  बीजेपी शासित राज्यो के आधा दर्जन मुख्या मंत्री और  दर्जनो मंत्रियो ने दिल्ली की गलियाओ और बाजारो में  रोड शो  किए ---घर घर जा कर पर्चे बांटे और चैनलो  पर  सोशल  मीडिया में भी घटाटोप  पब्लिसिटी  हुई ---- पर नतीजा वही धाक के तीन पात  बीजेपी विधान सभा में  दहाई की संख्या ही जुटा पायी |                                                  दिल्ली के नगर निगम के चुनाव में एक बार फिर  उनके हाथ से सत्ता की कमान केजरीवाल ने छीन ली | अब इतनी पराजय की कुंठा  ही दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर  द्वरा केजरीवाल सरकार  के काम में लंगड़ी  लगाने की हैं | जो केंद्र सरकार के इशारे पर की जाती हैं | जिस पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने  ने 17 जनवरी तक जवाब मांगा हैं |

 

 

गैर बीजेपी शासित राज्यो के राज्यपाल  और उनके फैसले :-  दिल्ली   अकेला  राज्य नहीं हैं , जनहा केंद्र की बीजेपी की सरकार  अपने “”प्रतिनिधियों  - राज्यपालों “” के से अपनी इच्छा  व्यक्त करती हैं |  केंद्र को  संविधान में  राज्यो को “”सलाह या किसी स्थिति विशेस  में निर्देश देने का अधिकार हैं “” , परंतु किसी भी परिस्थिति में  उन राज्यो की चुनी हुई सरकारो को  परेशान करने और निचा  दिखाने का हक़ नहीं हैं |  नीचे कुछ उदाहरण  हैं जो मोदी सरकार द्वरा नियुक्त  इन लोगो ने किया | 

                                       महाराष्ट्र  के राज्यपाल  कोशियारी जी द्वारा  फदनविस और अजित पवार को मुख्य मंत्री और उप मुख्य मंत्री  पद की शपथ  भोर के धुंधलके  मे सम्पन्न कराई ! न कोई  राज घोसना -न कोई लिखित  गज़ट , जो की शपथ  को संवैधानिक बनाते हैं |  फिर  शिवसेना की ठाकरे सरकार  द्वारा  विधान परिषद में सदस्यो के मनोनयन  की  फाइल  को दबा कर बैठे रहे | मुख्यमंत्री  ठाकरे द्वारा  आग्रह करने के बाद भी !

                                दूसरा उदाहरण बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल और वर्तमान उप राष्ट्रपति  धनखड़ जी का हैं , जो हमेशा अपने बयानो से  मुख्यमंत्री  ममता बैनर्जी  को लांछित करते रहते थे | वनहा  कानून और व्यवस्था  को लेकर  हमेशा  सरकार को कटघरे  में खड़ा करते रहते थे | सरकार की सिफ़ारिशों को लटकाने के भी आरोप ममता जी ने कई बार लगाए |  शायद उनकी इनहि  फैसलो के लिए मोदी सरकार ने उन्हे उप राष्ट्रपति के पद से नवाजा हैं |

                              तीसरा उदाहरण केरल का है , जनहा गवर्नर  आरिफ़ मुहम्मद जी अखबारो में सुखियों के लिए  विजयन सरकार के फैसलो को  “”अनुचित “” बताते हैं | यानहा तक की उन्होने केरल के विश्व विद्यालयो  के कुलपतियों  को एक साथ  इस्तीफा तक देने का  हुकुम  सुना दिया था , बिना यह समझे की यह फैसला शिक्षा छेत्र  में कितनी  परेषानिया करेगा | एक आयोजन में उन्होने इतिहासकर  इरफान हबीब  पर हमला करने का आरोप लगा दिया | दोनों ही अलीगढ विश्वविद्यालय  से परिचित है | फिर भी | हिन्दू – मुसलमान  विषय पर वे  बिलकुल “”हिन्दुत्व “”पर  भासण दे देते हैं | जिससे  की राज्य में अनावश्यक तनाव हो जाता हैं |

                           राजस्थान  के राज्यपाल  कालराज मिश्रा  ने भी गहलौत सरकार को  विश्वास मत सिद्ध करने के लिए विधान सभा सत्र  आहूत करने की मंत्रिमंडल की मांग  को नहीं माना था | फलस्वरूप  मुख्य मंत्री गहलौत  को राज भवन पर मंत्रियो समेत धारणा देना पड़ा | क्यूंकी तब तक बीजेपी को आशा थी की महाराष्ट्र की भांति  यानहा भी काँग्रेस को तोड़कर बीजेपी के नेत्रत्व में सरकार बनाई जा सकती हैं |

 तो यह तथा -कथा  मोदी सरकार के संवैधानिक  प्रतिनिधियों की !!!!!!