जी
हाँ -यह
राम मंदिर या बाबरी मस्जिद
का मसला नहीं है
यह
फकत ज़मीन के मालिकाना हक़ के
निस्तारण का मुकदमा है सुप्रीम
कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने
सुनवाई के पहले दिन ही
धरम
के नाम पर माहौल गरमाने वालो
के मंसूबो पर पानी छिड़क दिया
अयोध्या
मे बाबरी मस्जिद मे 23
दिसम्बर
1949
शुरू
हुई अखंड रामायण से शांति
-व्यवस्था
भंग होने से शुरू हुआ विवाद
– ने तब ज़ोर पकड़ लिया जब विश्व
हिन्दू परिषद ने 1
फरवरी
1986
को
मंदिर पर लगे ताला के खोले
जाने के अदालती आदेश के बाद
इसे राम मंदिर आंदोलन का रूप
दे दिया |
तत्कालीन
मुख्य मंत्री मुलायम सिंह की
सरकार ने मस्जिद के लिए जाते
हुजूम को रोकने के लिए गोली
चलन का आदेश दिया |
जिसमे
दो लोगो की मौत हो गयी |
1989 मे
भारतीय जनता पार्टी ने विश्व
हिन्दू परिषद के आंदोलन को
समर्थन दिया|
1990 मे
लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा
निकाली |
सांप्रदायिक
दंगे हुए |
की
सुनवाई लोकसभा चुनाव मे बीजेपी
ने संघ और उसके अनेकों आनुषंगिक
संगठनो के साथ माहौल को गरमाया
--फलस्वरूप
काँग्रेस को राजीव गांधी के
नेत्रत्व मे पराजय का मुख
देखना पड़ा |
उनकी
हत्या के बाद जब केंद्र मे
नरसिंगम्हा राव की सरकार बनी
|
तब
उत्तर प्रदेश मे बीजेपी के
मुख्य मंत्री कल्याण सिंह
बने {{जो
वर्तमान मे राजस्थान मे राज्यपाल
है }}
तब
तनातनी के माहौल मे सुप्रीम
कोर्ट मे कल्याण सिंह ने शपथ
पत्र दिया था की मस्जिद को
किसी भी प्रकार की हानी नहीं
होने दी जाएगी |
सरकार
इसकी सुरक्षा की गारंटी देती
है |
परंतु
6
दिसंबर
1992
हुआ
इसके विपरीत और शासन की लाचारगी
कहे अथवा षड्यंत्र मस्जिद
को गिरा दिया गया |
जांच
के लिए लिब्रहान न्यायिक आयोग
बना |
मस्जिद
की भूमि के मालिकाना हक़ को
लेकर हाशिम अंसारी द्वरा दायर
की गयी उच्च न्यायालय मे अपील
की सुनवाई
अप्रैल 2002
मे
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के
तीन जजो ने शुरू की |
| परंतु
इन जजो को मामले मे फैसला देने
से रोकने की अदालती आदेश ने
मामले को वनही रोक दिया |
28 सेप्टेम्बर
2010 को
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनने
पर लगी रोक को रद्द कर दिया |
और
30 सितंबर
2010 को
ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया
|
जिसके
द्वारा सम्पूर्ण 2.77
एकड़
भूमि को तीन भागो मे विभाजित
कर दिया |
रामलला
की मूर्ति को उनके स्थान की
भूमि और सीता रसोई और राम
चबूतरा
निर्मोही आखाडा को और शेस
भूमि मस्जिद निर्माण के लिए
सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गयी
|
अब
सुप्रीम कोर्ट ने अपने शुरुआती
सुनवाई मे ही यह स्पष्ट कर
दिया की वे कोई
धार्मिक या ऐतिहासिक मुद्दो
को नहीं सुनेंगे |
वे
इसे मात्र एक भूमि विवाद के
रूप मे देखते है |
एवं
उसी प्रकार इसके मालिकाना हक़
की सुनवाई की जाएगी |
इस
टिप्पणी से उन भक्तो को भारी
असंतोष है की "””
जय
-जय
श्री राम की भूमि के बारे
आस्था से फैसला हो ||
कानून
से नहीं |
विश्व
हिन्दू परिषद -
बजरंग
दल और संघ के सत्तर आनुषंगिक
संगठन जो इस आंदोलन से जुड़े
हुए थे उनको बहुत धक्का लगा
है |
अगर
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद
उच्च न्यायालय के फैसले को
सही माना तब – योगी जी का भव्य
मंदिर तो नहीं बन पाएगा |
जिसका
चित्र सालो से दिखा कर लोगो
को बरगलाया जा रहा था |