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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 22, 2019


धर्म और नागरिकता को जोड़ने के खतरे --देश विभाजन !


जनगणना फिर मतदाता सूची और आधार के बाद भी --पहचान की मांग ?



आप दुपहिया अथवा चार पहिया वहाँ चलते हुए सड़क पर जा रहे हैं - अचानक सफ़ेद वर्दी में एक पुलिस वाला आपसे पहचान पत्र मांगता हैं ---तब आप उसे अपना ड्राइविंग लाइसेन्स दिखाते हैं वह आपकी शक्ल से फोटो का मिलान करता हैं --- यह हुई सड़क पर आपकी पहचान | आप किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए फोरम भरते हैं – उसमें अपनी फोटो और जनम प्रमाण पत्र तथा विगत क्लास का परीक्षा प्रमाण पत्र लगाते है ----यह हुआ स्कूल या कोलज में आपकी पहचान | परीक्षा हाल में भी आपका फोटो युक्त पहचान पत्र देख कर ही आपको प्रवेश दिया जाता हैं ---- यह भी हुई आपकी पहचान \| मोदी सरकार ने सभी भारतीय नागरिकों को आधार कार्ड बनवाना अनिवार्य कर दिया – उसमें भी नागरिक का फोटो और उसकी उँगलियो के निशान लिए जाते हैं --- यह हुआ नौकरी या सरकारी योजनाओ में लाभ पाने की जरूरी शर्त ---- यह भी नागरिक की की ही पहचान हैं | आप 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं – तब चुनावो के लिए मतदाता होने के लिए मतदाता सूची में आपकी फोटो युक्त पहचान पत्र आपकी --पहचान हैं | अब नए नियमो में आयकर का फॉर्म भर् ना जरूरी हैं ----उसके लिए भी आपको पैन नंबर मिलता हैं ---यह भी आपकी सरकारी पहचान हैं | इतनी सरकारी पहचानो के प्रमाण पत्र होने के बावजूद अमित शाह जी को ---- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स के लिए देश के नागरिकों से एक और पहचान पत्र साबित करने की क्या ज़रूरत हैं ?? अब या तो सरकार उपरयुक्त सभी पहचान पत्रो को गैर कानूनी करार दे --की अब से सिर्फ एनआरसी ही एक मात्र पहचान होगी ? क्या संसद में इन सवालो पर चर्चा हुई ? जी नहीं --- क्योंकि अमित शाह जी को अपना चुनाव का एजेंडा भर याद था --यह नहीं मालूम था -नागरिकों के इतने पहचान पत्र वर्तमान में चलन में हैं !!



सनातन धर्मियों में जाति को लेकर एक चुटकुला बहुत प्रचलित हैं -----कहते हैं की मुगल काल में एक समय किसी रियासत के एक क़िले पर घेराबंदी बहुत समय से जारी थी | बादशाह बेचैन हो रहे थे ----की क़िले के अंदर महीने भर से ज्यादा लोग कैसे रह रहे हैं ?? उन्होने एक मुस्लिम को जासूस बना कर क़िले के हाल चाल लेने के लिए एक सैनिक को तलाक लगा कर और धोती पहना कर क़िले के अंदर भेजा " क़िले के दरवाजे पर भेदिये से परिचाय पूछा गया तो तो उसने अपना नाम रामलाल और जाति ब्रामहन बताया | जब किलेदारों ने पूछा की कौन से ब्रामहन हो तो उसने कहा "”गौड़ " फिर पुच्छा गया गौड़ों में कौन शाखा – तब उसके मुंह से निकाल गया "”या खुदा गौड़ों में भी और ......”” यह चुटकुला हमारे सनातनी समाज की दुरूह संरचना का प्रमाण हैं | हालांकि आज मुसलमानो में भी भारत आने से पहले से भी भेद था | जैसे सुन्नी में शेख और सय्यद , फिर मूल रूप से कान्हा के आदि | इस संदर्भ में प्रस्तावित एनआरसी का उद्देश्य क्या हैं ? नागरिकों की पहचान या देश की आबादी का डाटा बेस बना कर व्यापारिक उपयोग ?

मोदी सरकार के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न्स की कवायद का मूल ही विषाक्त हैं --जी हाँ , क्योंकि जो सरकार अपनी ज़िम्मेदारी आम शहरी पर डाले उसकी नियत में ईमानदारी तो नहीं हो सकती ! क्योंकि प्रत्येक भारतीय की पहचान उपरोक्त योजनाओ के तहत एकत्र जानकारी में हैं | जनहा तक बायो मेट्रिक जानकारी की बात हैं --तो वह '’’आधार कार्ड "” में हैं | उसमें व्यक्ति का चित्र और अंगूठे का निशान होता है | मतदाता कार्ड में भी व्यक्ति का चित्र और निवास का पता पिता /पति का नाम भी दिया होता हैं ---- अब इसके अलावा कौन सी जानकारी अमित शह जी को चाहिए +
जैसा की आलेख के शीर्षक से साफ है की ---- ब्रिटिश राज से आरंभ जनगणना आज भी प्रति दस वर्ष में की जाती है | उसमें व्यक्ति और उसके परिवार के बारे में जानकारी होती दर्ज़ होती हैं | हाँ उसमें पाँच पीड़ी का ईतिहास नहीं दर्ज़ होता है ! परंतु यह स्वयंसिद्ध रहता हैं की दी गयी जानकारी सही हैं | असत्य जानकारी देना दंडनीय भी हैं | 1930 तक हुई जनगणना में धरम और जाति तथा मूल स्थान का ज़िक्र किया गया हैं | परंतु 1935 में ब्रिटिश छेत्र के प्रांतो में बनी काँग्रेस सरकारो ने वायस्रॉय इन काउंसिल से इस प्रथा को रोकने की मांग की थी | जिस पर ब्रिटिश राज ने धर्म को ऐछिक और जाति के उल्लेख को प्रतिबंधित कर दिया था ! फौज और नागरिक सेवाओ में भी यही नियम लागू होगया | अब 89 साल बाद धर्म बताने की "”अनिवार्यता"” लागू की जा रही हैं !घोर इस्लामी राष्ट्र सऊदी अरब ने भी डेढ हज़ार साल पुरानी अपनी रस्मों को खतम कर रहा हैं ---और भारत में धर्म और जाति को फिर लागू किउया जा रहा हैं ! छूआ छुत निवारण अधिनियम का पालन कैसे होगा जब लोग मोटर कार में "”ब्रामहन --चौहान - पांडे और राठौर लिखवा कर सार्वजनिक रूप से बताएँगे की वे सब कुछ हैं पर "”इंसान "” नहीं हैं !! बदते औड़ोगीकरण में जब इस पहचान का कोई अर्थ नहीं रह जाता तब इसकी शुरुआत के लिए फिर किसी राजा राम मोहन रॉय या महात्मा गांधी की ज़रूरत होगी !! क्योंकि इस कुप्रथा का परिणाम होगा अंतरजातीय विवाह करने वालो को उनके परिवार वाले '’’’ इज्ज़त के लिए हत्या करेंगे '’’’’ इस आनर किलिंग को सरकार के ये फैसले बड़वा देंगे | अभी धर्म के नाम पर राष्ट्र की आबादी को बांटेंगे फिर जाति में समाज विभाजित होगा | जैसे इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में शिया और अहमदिया लोगो को कत्ले -आम किया जाता हैं | बिहार और उत्तर प्रदेश में जाति आधारित हिंसक वारदातो का इतिहास रहा हैं |
अब बैंको को हिदायत देने के लिए एक कानून लाया जा रहा हैं की वे अपने "”ग्राहको से उनके धरम के बारे में जानकारी ले !!!!!””” क्यो भाई ---- क्या होगा क्या मुसलमानो को बैंक क़र्ज़ देना बंद कर देंगे अथवा उनके खाते खोलने से मना कर देंगे ? आम तौरपर किसी भी व्यक्ति के धर्म का अंदाज़ा उसके नाम से ही लग जाता हैं ----- अब कोई सनातनी अपना नाम मुहम्मद या अल्ल्हरख़ा तो नहीं रखेगा --और ना ही कोई मुसलमान अपना नाम ईश्वर या राम नहीं रखेगा !! हाँ कुछ कनफुयजन ईसाई मतावलंबियों में होता हैं -----उनके नाम अमित या अनिल होते हैं | परंतु फिलहाल वे अभी इस विवाद से दूर हैं | हालांकि मुसलमानो के पहले आरएसएस के आनुसंगिक संगठन जैसे बजरंग दल आदि ने ईसाई मिसनरियो पर पर गरीब आदिवासियो का धरम परिवर्तन करने का आरोप लगाया था | उड़ीसा में फादर माइकल स्टेंस की जलाकर हत्या किए जाने के अभियुक्त अब देश के मंत्री हैं |
जब नागरिक की पहचान के लिए पहले से ही इतने दस्तावेज़ मौजूद हैं फिर --ज़बरदस्ती की यह कवायद अहंकार भरी ज़िद्द ही हैं |की हम सरकार हैं !!!!