आखिर
बसंतपंचमी भी अर्ध कुम्भ मे
बीत गयी
और
मंदिर की संघ -
परिषद
और बीजेपी की कवायद भी
मंदिर
निर्माण को लेकर राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू
परिषद को लेकर
तथा
सनातनियो के विभिन्न साधुओ
और धर्माचार्यो तथा अखाड़ो
के प्रमुखो द्व्ररा सरकार
के रुख से असहमत होने के कारण
ना तो ""
अखाड़ो
का अयोध्या कूच हुआ और नाही
संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत का
प्र्तीक्षित उद्बोधन हुआ !
इस
मुहिम को प्रच्छन रूप से सत्ता
का समर्थन भी था |
परंतु
इस सब प्रचार और -हुंकार
तथा अल्टिमेटम अंत में सब
विफल हुए |
अयोध्या
में एक बार फिर कल्याण सिंह
सरकार द्वरा किए गए "”कानूनी
पाप "”
की
आशंका से बच गया |
उत्तर
प्रदेश में तो भगवा धारी मुख्य
मंत्री आदित्यनाथ अर्ध कुम्भ
में अपने "”भगवा
सहयोगीयो से वह कुछ नहीं पा
सके -जिसकी
उन्हे उम्मीद थी !
अर्ध
कुम्भ को पूर्ण कुम्भ का प्रचार
सरकारी धन से देशी और विदेशी
मीडिया में करने के बावजूद
यह आयोजन भारतीयो के लिए
श्रद्धा का और विदेशियों में
कौतूहल का विषय ही रहा |
गोरे
लोगो को महा मण्ड्लेस्वर की
उपाधि बाँट कर भी ,
वे
राम मंदिर की मुहिम के लिए ना
तो उनका समर्थन जूता पाये और
ना ही सहयोग मिला |
इन
सब घटना क्रम से अयोध्या
निवासियों ,जिनमें
सनातनी और इस्लाम दोनों के
बंदे है -----उन्हे
भय की आशंका से मुक्ति मिली
| जिसकी
देश के विभिन्न भागो में कल्पना
की जा रही थी |
विश्व
हिन्दू परिषद की गर्जना की
मंदिर हमी बनाएँगे और मंदिर
वनही बनाएँगे की हवा निकाल
गयी |
मोदी
सरकार के मंत्रियो का रुख
मंदिर को लेकर अब अन्य राजनीतिक
दलो को इस मुद्दे पर इस बात को
लेकर घेरने का बचा है – की वे
साफ करे की मंदिर के बारे में
उनका क्या रुख क्या हैं ?
सवाल
यह हैं की सभी ने मंदिर निर्माण
का समर्थन किया है -----
परंतु
वे संघ समर्थित मुहिम के विरोध
में है |
जिसका
कारण है की सनातनी लोगो को
मंदिर के नाम पर मुस्लिम विरोध
मंजूर नहीं हैं |
भाजापा
और संघ के आनुषंगिक संगठनो
की मुस्लिमो से वैर भाव स्वीकार
नहीं है |
क्योंकि
बीजेपी में मुस्लिमो के प्रति
जिस प्रकार का बर्ताव है --वह
आँय दलो में बिलकुल नहीं है
| उत्तर
से लेकर दक्षिण तक के सभी दलो
में हिन्दुओ और मुस्लिमो का
प्रतिनिधित्व है ----उनका
समर्थन भी है |
जो
बीजेपी के लिए बिलकुल नहीं
है |
अब
धार्मिक श्रद्धा के ध्रुवीकरण
से देश और समाज में ना केवल
नफरत बदती हैं वरन अविश्वास
पैदा होता है ,
जो
देश और समाज की शांति और -विकास
के लिए बाधक हैं |
उत्तर
प्रदेस सरकार द्वरा इस्लामी
मदरसो में कम्प्युटर शिक्षा
को अनिवार्य किया जाना -प्रगतिशील
निर्णय है |
वनही
संसक्रट विद्यालयो को इस बंधन
से मुक्त रखना उचित नहीं है
| भगवा
मुख्या मंत्री के होते हुए
वेदिक कर्मकांडो की शिक्षा
का जरूरु प्रबंध नहीं करना
भी सवाल खड़े करता हैं |
केरल
की वामपंथी सरकार ने सभी जातियो
की कन्याओ को कर्मकांड की
शिक्षा का प्रबंध किया है |
यह
एक प्रगतिशील कदम हैं |
“” हिंदीवादी
कट्टर संगठनो "”
द्वरा
सबरीमाला मंदिर मे सुप्रीम
कोर्ट के फैसले का विरोध इन
संघ समर्थित संगठनो द्वरा
उनके दक़ियानूसी सोच को ही
प्रदर्शित करता हैं |
आखिर
में सबरीमाला देवस्थानम ने
स्वयं आगे आ कर सभी आयु की
महिलाओ को मंदिर में पूजा करने
की अनुमति देकर --उन
दकियानूसों को करारी चपत दी
है |
अब
अयोध्या मंदिर विवाद --जिसे
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया
है की की उसके सामने जो मामला
हैं "”
वह
मात्र राजस्व या ज़मीन के
मालिकाना हक़ है "”
उसका
मंदिर निर्माण से कोई लेना
-देना
नहीं हैं |
मज़े
की बात यह है की इलाहाबाद हाइ
कोर्ट के फैसले जो तीन पक्ष
है उनमें राम जनम भूमि न्यास
है और निर्मोही आखाडा है !!
फिर
किस आधार पर संघ अपनी अगुवाई
की भूमिका कर रहा है ?
क्योंकि
ये दोनों पूरी तरह से धार्मिक
संगठन हैं |
जबकि
संघ अपने को "””एक
सामाजिक संगठन बताता रहा हैं
"””?
अगर
गौर करे तो निर्मोही आखाडा
की ओर से जो व्यक्ति प्रतिनिध्त्व
कर रहे है ---
वे
भारतीय जनता पार्टी के लोक
सभा सांसद है !!!
साक्षी
महराज जिन पर कई बार आपराधिक
मुक्द्में भी चल चुके है |
जो
अपने विवादित बयानो --””जैसे
की हर हिन्दू को चार बच्चे
पैदा करना चाहिए -जिससे
की हम मुसलमानो से "”पिक्षड
ना जाये !!
“” आखिर
किस मामले में सनातनी {{जिसे
साक्षी महराज़ हिन्दू नाम देते
है जबकि ऐसा कोई धरम ग्रंथ या
पंथ नहीं है जनहा प्रामाणिक
तौर पर इस सम्बोधन का उपयोग
होता हो "”
| दूसरी
है ऋतंभरा जी है ---जो
है तो साध्वी और मस्जिद विखंडन
मामले की अभियुक्त भी है ---उनका
उपदेश भी यही हैं |
सवाल
है ---दोनों
अविवाहित लोग बच्चो को पैदा
करने और पालने का क्या अनुभव
है ?
क्या
वे भी आदि गुरु शंकाराचार्य
की भांति योग रूप से वैवाहिक
अनुभव ले चुके है |
कहा
जाता है की मंडन मिश्र की पत्नी
ने शास्त्रार्थ के समय उनसे
"”काम
संबंधी "”
प्रश्न
किए थे --जिसका
कोई अनुभव आदि गुरु को नहीं
था |
इसलिए
उन्होने समय मांगा था की वे
उसका उत्तर बाद में देंगे |
और
उन्होने योग रूप से परकाया
प्रवेश से एक मरे हुए राजा के
शरीर में प्रवेश कर के अनुभव
प्रापत कर फिर अपने शरीर मे
आकार मंडन मिश्रा की पत्नी
के सवालो का सही उत्तर दिया
| अब
दोनों ही भगवा धारी परकाया
प्रवेश की विद्या से तो पूरी
तरह अनभिज्ञ है !
फिर
भी ........|
इतना
तो निश्चित है है की सुप्रीम
कोर्ट के फैसले के बाद भी इस
विवाद का अंत नज़र नहीं आता |
क्योंकि
सुन्नी वक्फ बोर्ड और राम जनम
भूमि न्यास तो शायद एक बार
किसी शनि पूर्ण करार पर सहमत
भी हो जाये |
परंतु
निर्मोही अखड़ा -
जो
साक्षी महराज़ प्रतिनिधित्व
कर रहे वे निश्चित ही अपने
सहोगीयो कहे या आक़ाओ कहे ---
उनकी
मर्ज़ी के अनुसार ही चलेंगे |
और
उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता
तो साफ है |
जो
इस्लाम और उसके बंदो के लिए
सिर्फ नफरत का भाव रखता है |
उनसे
यह उम्मीद करना की वे इस मुद्दे
के शांतिपूर्ण समझौते के लिए
मानेंगे |
विगत
बीस वर्षो में हर लोक सभा चुनाव
के समय मंदिर का मुद्दा गरमाया
जाता है |
लगता
है अबकी आम लोगो ने इस बुझी आग
की राख़ को अनदेखा करने का मन
बना लिया है |
इसी
लिए अब यह कहा जाने लगा है की
विश्व हिन्दू परिषद ने "”अभी
मंदिर नहीं बनाने का फैसला
कर लिया है "”
| इस
संबंध में बद्रीनाथ और द्वारिका
पीठ के शंकराचाआर्य स्वामी
स्वरूपानन्द ने जब मस्जिद
विध्वंश के कई साल बाद उनसे
इस लेखक ने बात की थी ----तब
उन्होने कहा था की "”
इनका
नारा हैं "”मंदिर
हम बनाएँगे ---फिर
हुआ मंदिर कभी बनाएँगे और अब
लगता है की मंदिर नहीं बनाएँगे
!!
क्योंकि
अगर एक बार मंडी का निर्माण
हो गया तब इस धार्मिक मुद्दे
को लेकर ये चुनावो में जाएँगे
? वैसे
कुम्भ में उनकी अध्यक्षता
में हुई धर्म संसद मे धर्मचार्य
और अखाड़े अयोध्या में डेरा
डाल कर मंदिर निर्माण के लिए
धरने पर बैठेंगे |