Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 5, 2024

 

लोकतंत्र मे चुनाव शासन के लिए नहीं , होते अब वे सत्ता से मिलने वाले लाभ के लिए है !


दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सोक द्वरा राजनीतिक विरोध को दबाने के लिए मार्शल ला ऐसे निर्णय की घोषणा करना और वनहा की संसद और जनता के अप्रतिम विरोध को

के कारण , नया केवल उन्हे अपना फैसला छा घंटे मे वापस लेना पड़ा , बल्कि अब वे महा भियोग का सामना कर रहे है | बात इतनी सी थी की वे राष्ट्रपति चुनाव भी अत्यंत काम मतों से जीते थे | परंतु संसद में विपक्ष की पकड़ बहुमत समान थी | इतना ही नहीं राष्ट्रपति यून की पत्नी पर भ्रस्टाचार के भी आरोप लगे हैं | राष्ट्रपति अपने फैसले पर संसद की मुहर लगवाने में असफल रहे थे | परिणाम स्वरूप वे सत्ता का "”लाभ "” नहीं ले पा रहे थे | फलस्वरूप उन्होंने अपने विरोधियों पर "”उत्तर कोरिया "” के तानाशाही शाशक से मिले होने और देश के लोकतान्त्रिक ढांचे को खतम करने का आरोप लगाया ! परंतु छहः घंटे मे उन्हे देश् वासियों के विरोध का सामना करना पडा | अब वे चुने गए थे दक्षिणी कोरिया की उन्नति और वणः के लोगों के "”हित "” मे कार्य करने के लिए , परंतु उन्हे अपने उद्योगपति मित्रों के लाभ के लिए की गई कोशिस के असफल होने से वे राजनीतिक समझ भी भूल गए | अब परिणाम सर विश्व देखेगा |


राष्ट्रपति यून की तरह ही अमेरिकी निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी खुलमखुला शासन के लिए नहीं बल्कि "”सत्ता "”” से लाभ के अपने घोसीट इरादों पर ही चल रहे हैं | लोकतंत्र मे अपने विरोधी को भी गरिमा पूर्ण भाषा और व्यवहार से ही व्यवहार किया जाता हैं | परंतु ट्रम्प इस बात के अपवाद हैं | वे अपने विरोधी के लिए जिस प्रकार की अमर्यादित व्यवहार कर सकते है और जितनी अनुचित भाषा इस्तेमाल कर सकते हैं ----वे करते रहे हैं | अब उन्होंने तो राष्ट्रपति के पहले टर्म में ही ---इस सर्वोच्च पद की गरिमा और नैतिकता की परवाह नहीं की थी | उनकी नजरों मे उनका "”विरोध "” करने वाला नया केवल देश बल्कि मानवता का भी दुश्मन होता हैं | उन्हे नारी की गरिमा का तनिक भी विचार नहीं हैं ---- जिसका उद्धरण है , उनपर चल रहे मुकदमे ---- जिसमें अनेक महिलाओ ने उन पर "”अवांछित "” व्यवहार करने का आरोप लगाया है | यंहा तक की एक महिला का मुंह बंद करने के लिए उन्होंने अपने चुनाव फंड से उसको अपने वकील के द्वरा पैसे दिए | जिसका मुकदमा चल रहा हैं !! राष्ट्रपति के रूप मे "””ईमानदारी "” से फैसले लेने के लिए उन्होंने उन कंपनियों का खुलासा भी नहीं किया जिसमे उनकी हिस्सेदारी है , अथवा मालिकाना हक है ! जबकि राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर होने के कारण उनको अपने फैसलों की "”ईमानदारी "” पर ध्यान देना था | क्यूंकी सरकार के अनेक फैसले उन लोगों को लाभ पहुचने वाले हो गए थे --- जिनकी वफादारी ट्रम्प के प्रति थी | और ऐसा नहीं की उन्हे इस तथ्य का कोई पछतावा हुआ हो | बल्कि उन्होंने सीनेट की "”एथिकस कमेटी "” को जवाब देना भी उचित नहीं समझा | इसका तात्पर्य यह हुआ की अब मीडिया या उनके विरोधी यह आरोप नहीं लगा सकते ---की राष्ट्रपति ने ईमानदारी से अपना कर्तव्य पूरा नहीं नहीं किया हैं ! क्यूंकी वे तो खुले आम कह रहे थे की अपने वफ़ादारों को लाभ देना उनका दायित्व हैं |



यह तो हुआ उनके पहले टर्म के राष्ट्रपति के रूप किए गए काम | ट्रम्प होटल {जो की उनकी पारिवारिक संपाती है ||}} में ही सभी विदेशी मेहमानों को ठहरने का सरकार की ओर से इंटेजम किया जाता था } अब इससे बड़ा अनीतिक फैसला क्या हो सकता है | पर जब चुनाव जीतने का उद्देश्य ही अपने को और अपनों को "”सभी प्रकार के लाभ पहुचना हो तब इसे "””शासन करना या जनहित उद्देश्य नहीं हो सकता | तब सिर्फ एक मकसद होता है --अपने चारों ओर अपने समर्थकों - वफ़ादारों - चनदा देने वालों के हित का ध्यान रखना -----उसके लिए भले ही संसदीय नैतिकता ----- और राजनीतिक ईमानदारी की कुर्बानी न देनी पड़े !


अपने दूसरे टर्म मे ट्रम्प खुलकर अमेरिकी साधनों और खजाने का दोहन करने और अपने आलोचकों गरियाने का काम कर रहे हैं | उन्होंने रक्षा सचिव तथा संघीय जांच एजेंसी {एफ़बीआई } के निदेशक , तथा फ्रांस मे दूत की नियुक्ति मे उन्होंने अपने रिश्तेदारों को खूब उपकरत किया है | उनके गैर ईमानदार इरादे तब सामने आ गए ,जब उन्होंने नासा के लिए इलों मास्क के करीबी को नामित किया हैं | जबकि मास्क की कंपनी के खिलाफ नासा प्रबंधन द्वरा अनेकों मामले विचाराधीन हैं | मशक की कंपनी का विवाद अमेरिकी प्रशसन से अनेक वर्षों से चल रहा है | परंतु अब वही कहावत "”” सैंया भए कोतवाल तो फिर डर काहे का "” | अब अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र मे शासकीय ईमानदारी ----राजनैतिक शुचिता की यह दुर्गति है , तब लोकतंत्र और उसके चुनाव भी जनहित के लिए नहीं वर्ण धन्नासेठों के लिए होंगे | एसिया के लोकतान्त्रिक देशों मे राजनेताओ के भ्रस्टाचार की अनेकों कहानिया है | थायलैंड के राजा हो या मलेसिया के सुल्तान हो उनसे ईमानदारी की उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती क्यूंकी वे जनता द्वरा निर्वाचित नहीं होते है |