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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 20, 2020


राज्यो के संघ को एकात्मक बनाती मोदी सरकार !


संसद का बहुमत क्या राज्यो के अधिकारो को सीमित करेगा ?


संविधान के प्रथम अनुछेद में ही साफ साफ लिखा हैं की भारत "राज्यो का एक संघ है जो 30 राज्यो और 2 संघ शशित छेत्रों से मिल कर बना हैं | परंतु जिस प्रकार नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता रजिस्टर को लेकर सम्पूर्ण देश में जन विरोध हो रहा हैं --क्या उसे सिर्फ इसी आधार पर मोदी और शाह खारिज कर सकते हैं की उनके "उद्देश्य को संसद की सहमति प्राप्त है ! आज देश में उत्तर प्रदेश हो दिल्ली हो बिहार हो बंगाल या केरल अथवा राजस्थान एवं पंजाब अथवा करहो मुंबई हो लखनऊ सभी जगह सार्वजनिक रूप से पुलिस के दमन के बावजूद लोगो का आक्रोश किसी लाठी -डंडे से शांत नहीं कराया जा सकता | इसके लिए ईमानदार संवाद की जरूरत हैं | यह नहीं की अमित शाह सभा में कुछ बोले और उसके विपरीत केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की वेब साइट कुछ और ही बया करे ! मोदी जी सभाओ में कुछ और कहे तथा आधिकारिक स्तर पर बिलकुल उल्टी तस्वीर दिखयी दे !
इस संदर्भ में बंगला देश की प्राधान मंत्री शेख हसीना का बयान मौंजू हैं की नागरिकता संशोधन विधेयक एक गैर जरूरी फैसला है , पर यह भारत का अंदरूनी मसला हैं | एनआरसी की शुरुआत आसाम में बंगला देशी घुशपाइठीयो पर रोक लगाने के लिए की गयी थी | बंगला देश के विदेश मंत्री ने अमित शाह को संभोधित करते हुए कहा था की वे उन्हे इन घुसपाईठियों की सूची मुहैया करा दे हम उन्हे ले लेंगे ! पर इस पर अमित शाह जी की कोई प्रतिकृया नहीं आई !!!! सी ए ए का उद्देश्य बताया जा रहा हैं की बाहर से आने वाले गैर मुसलमानो को भारत में शरण देना हैं – परंतु देश की वित्त मंत्री श्रीमति सीता रमन ने एक बयान में कहा हैं की व्गत 6 छ वर्षो में केवल 3924 विदेशियों को भारत की नागरिकता दी गयी हैं !! अब इतनी 150 करोड़ की आबादी के देश में यह संख्या कितनी हैं !!!! जबकि मोदी सरकार विदेशियों की नागरिकता देने के मामले में 30 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने वाली हैं !!! इसे ही शेख हसीना ने गैर ज़रूरी बताया था | कुछ जाने माने मुसलमानो को भी नागरिकता दी गयी जैसे गायक अदनान सामी और विवादो में रहने वाली लेखिका नसरीन !
मोदी सरकार की नियत इस मामले में कभी भी ईमानदार नहीं रही ---उन्होने कहा की देश में एक भी "”डिटन्शन सेंटर नहीं '’’ हैं उनके बोलने के दूसरे दिन ही आसाम के छ और महा राष्ट्र में बन रहे एक ऐसे केंद्र की पुष्टि हो गयी ! अब अगर देश का मुखिया असत्य और बर्गलने वाली बात सार्वजनिक रूप से करता हैं ----- की वे कुछ भी कहे अथवा करे उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता क्योंकि उन्हे लोकसभा में बहुमत प्रापत है ! शायद इसे ही सत्ता का नशा कहते हैं जो शासक के सर पर चाड जाता हैं ---तब वह नागरिकों की जरूरतों से ज्यादा अपनी महत्वाकांछा को महत्व देता हैं , फिर उसके लिए चाहे उसे नियम तोड़ने - मरोड़ने पड़े अथवा संवैधानिक निकायो को भयभीत करना पड़े |

आखिर तो मोदी सरकार को यह समझना होगा की की संसद में 303 सांसदो के बहुमत से वे केंद्र में सरकार तो बना सके है --परंतु अभी भी उनके विरोध में 377 सांसद हैं ! इसी प्रकार संघ गणराजय के 30 परदेशो और यूनियन छेत्र के कुल 4625 विधायकों में से भारतीय जनता पार्टी के मात्र 1547 ही विधायक हैं !! इसलिए यह समझना की मोदी सरकार ही देश की बहुसंख्यक जनता की आवाज़ है -भूल होगी | जिस प्रकार सी ए ए और एनआरसी का जन विरोध देश के बड़े हिस्से में हो रहा वह इस बात की निशानी हैं की मोदी सरकार "” देश के सभी नागरिकों की आवाज़ नहीं हैं "” | दिल्ली में जन विरोध को दबाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाले धरना - जुलूस और -प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाना , तथा लखनऊ में योगी सरकार द्वरा 144 लगा कर किसी भी प्रकार के सरकार के विरोध को कुचलने की तरकीब लोकतान्त्रिक तो बिलकुल नहीं हैं | सुप्रीम कोर्ट ने एवम हाइ कोर्ट ने अनेकों बार फैसलो में यह साफ कर दिया हैं की सरकार का विरोध "”” देश द्रोह नहीं हैं "” | संघ और बीजेपी द्वरा विगत में जब इस प्रकार मंदिर या गाय रक्षा के नाम पर प्रदर्शन किए जाते थे , तब तो सरकारो ने इन्हे "”देश द्रोही "” नहीं कहा !!
लखनऊ में जिस बेदर्दी से आंदोलनकारी महिलाओ को पुलिस ने लाठी के बल पर सर्द रात में घंटाघर से हटाया हैं वह निंदनीय हैं | ऐसा इसलिए हुआ चूंकि वनहा बीजेपी की योगी सरकार थी | जब मध्य प्रदेश में राजगड में का के समर्थन में बीजेपी को रैली निकालने की अनुमति नहीं मिलने के बाद – बीजेपीविधायक ने महिला जिलाधिकारी से झूमाझटकी की -उसके जवाब में जब उन्होने प्रति रोधक कारवाई की तब पूर्व मुख्य मंत्री शिवराज सिंह समेत समस्त पार्टी नेता अफसर को जन प्रतिनिधि से व्यवहार का पाठ सीखने लगे !! नेता प्रति पक्ष गोपाल भार्गव ने तो कह दिया "” अधिकारी वेश्या के समान होते हैं -जो सरकार के अनुसार कपड़े उतारते है "” ! क्या यह राजनीतिक रूप से उचित नहीं होगा की अगर बीजेपी शासित राज्यो में दूसरे राजनीतिक दलो के आंदोलन के साथ जैसा व्यवहार ज़िला प्रशासन करता हैं वैसा ही व्यव हर भारतीय जनता पार्टी के आंदोलनो के साथ होना चाहिए !!! मध्य प्रदेश में बीजेपी और संघ समर्थक का के समर्थन में रैली निकलते हैं -प्रशासन उन्हे भी अनुमति देता हैं , फिर भी झूमा झटकी पुलिस से की जाती हैं , |
अब अगर काँग्रेस शासित राज्यो में मध्य प्रदेश -छतीस गड -पंजाब में का समर्थन रैलियो पर प्रतिबंध लगा दिया जाये तब बीजेपी रोना रोएगी की न्याया नहीं हो रहा हैं !!!!
बॉक्स ----------------------------------------------------------------------------------------------------
मोदी सरकार के राजय में राज्यपालों के व्यवहार में संयमित और
संवैधानिक गरिमा के अनुरूप भाषा का उपयोग नहीं हो रहा हैं | राज्यपाल
का पद केंद्र के प्रतिनिधि के रूप होता हैं | जबकि राज्य सरकारे जनता
द्वरा सीधे चुनी गयी होती हैं | परंतु केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद
ने केरल को भी संघ शासित छेत्र समझ लिया हैं | केरल सरकार द्वरा
सी ए ए और एनआरसी के वीरुध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की , तब
उन्होने राज्य सरकार के फैसले पर सख्त एतराज जताया | जैसे की सरकार
को उनसे अनुमति लेकर फैसले लेना चाहिए | अलीगड़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के स्नातक को संविधान की सीमाओ का ज्ञान ना हो ऐसा नहीं माना
जा सकता , बस यही कहा जा सकता हैं , नए नए संघम शरनम गच्छमी
हुए है | इसलिए आगे आगे बड कर स्वामिभक्ति जाता रहे लगते हैं |
परंतु मिज़ोरम के राज्यपाल तथागत रॉय
द्वरा जिस प्रकार गैर बीजेपी दलो और खासकर काँग्रेस को राजनीतिक
निशाना बनाया था --उसकी कड़ी आलोचना हुई | परंतु केंद्र ने उनका अन्य
राज्य में तबादला किया | दिल्ली के उप राज्यपाल और वनहा की
केजरीवाल सरकार के बीच रस्साकशी जग ज़ाहिर थी | कुछ इसी प्रकार
देश की प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी का व्यवहार पॉण्डिचेरी
के मुख्य मंत्री के साथ किया -जब वे सरकार के फैसलो की फाइल मांगने
लगी | चूंकि उप राज्यपाल को वैधानिक अधिकार होते हैं जिनके आधार
पर वह राज्य के काम में दाखल दे सकता हैं |