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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 10, 2018


अंतराष्ट्रीय धर्म संसद के 125 वर्ष बाद शिकागो मे सम्पन्न विश्व हिन्दू सम्मेलन मे आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्गार
स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के उद्देश्यों से काफी भटके हुए लगते है |

11 सितंबर 1893 को सर्व धर्म संसद मे स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की विशेषता बताते हुए कहा था की धार्मिक एकता किसी भी मत को मिटा कर या दबा कर नहीं हो सकती है ! उन्होने गीता का उदाहरण देते हुए कहा था की "””” विभिन्न रास्तो से होकर आने वाले सभी मनुष्य अंत मे मुझ तक ही पहुचते है "” ! उन्होने वेदिक धरम की समावेशी प्र्क्रती का उदाहरण देते हुए ---विभिन्न धर्मो को भारत मे समाहित किए जाने का वर्णन किया | उन्होने कहा जब यहूदियो के मंदिर को रोमन साम्राज्य द्वरा ध्वसत कर दिया गया तब वे भारत के उत्तरी भाग मे आकर बसे | इसी प्रकार जब पारसी धर्म के लोगो का उत्पीड़न ईरान मे आक्रांताओ द्वरा किया जाने लगा ----तब भारत ने उन्हे अपनाया ! हमने विभिन्न आस्थाओ और विश्वासों वाले मतो के साथ "”” सह अस्तित्व "” के साथ सदियो से रहते आए है | उन्होने कहा था की वेदिक संसक्राति मे विभिन्नताओ को साथ लेकर चलने की छमता है | इसी लिए भारत मे विभिन्न धरम और सन्स्क्रातियों का वास है |

ईसा से पूर्व इस देश मे वेदिक धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का उदय हो चुका था , वेदिक धर्म और इन दोनों धर्म के विचारो मे "” थोड़ा अंतर था ---परंतु फिर भी यानहा के अधिकान्श राजाओ ने सभी धर्मो को अपने - अपने अनुसार पालन करने की अनुमति दे रखी थी | अपवाद स्वरूप कुछ स्थानो पर ऐसा संभव नहीं था | लगभग नौ सौ साल तक इन तीनों का अस्तित्व बन रहा | परंतु समय बीतने के साथ सनातन परंपरा अनेक स्थानो पर अपने विचारो और उद्देश्यों से विचलित हो चुकी थी | ऐसे समय मे जब वेदिक धरम धीरे -धीरे कमजोर होता जा रह था -----तब ऐसे समय मे सुदूर दक्षिण मे त्रिवांकुर-कोचीन राज्य मे आचारी शंकर का जनम हुआ | जिनहे दुनिया आदिगुरु शंकरचार्य के नाम से जानती है | उन्होने केरल से काश्मीर तक और तक्षशिला से कामरूप तक की "”यात्रा की | जिनहे उनके शिस्यों द्वरा दिग्विजय यात्रा का नाम दिया गया | उन्होने हजारो छोटे -बड़े राज्यो मे विभाजित भारतवर्ष को सान्स्क्रतिक और धार्मिक रूप से एक सूत्र मे बांधने के लिए "”चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए | जो हजारो साल बाद भी आज वेदिक धरम की सनातन परंपरा को जीवंत बनाए हुए है |

इसके विपरीत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया ने "” हिन्दू धर्म "” को बिखरा हुआ और कमजोर बताया !! धरम संसद के 125 साल बाद उसी स्थान से कहा की "””हिन्दू पुनरुथान आज की आवश्यकता है ! “” वैसे उन्होने अपने उद्बोधन मे कनही भी यह नहीं बताया की किन स्थानो पर हिन्दू कमजोर हो रहा है ?? संघ अपने हिन्दुत्व के नारे को एक हुंकार मे बदलने का प्रयास कर रहा है ----क्योंकि उसके अनुसार जब तक सभी सनातन धर्म के लोग "”संघ '’ मे शामिल नहीं होते तब तक वे बिखरे हुए है ??? आज भारत मे विभिन्न मतो के वेदिक धर्म के मानने वाले लोग अस्सी प्रतिशत है ,, शेस बीस प्रतिशत मे इस्लाम और ईसाई या सिख धर्म के मानने वाले लोग है | तब क्या भागवत जी यह चाहते है की – इन अलपसंख्यकों को "” मिटा दिया जाए अथवा दबा दिया जाये "”? उनकी विचारधाराओ के लोग बार - बार मुगलो के आक्रमण और हिन्दुओ के धरम परिवर्तन की गुहार लगाते है | ऐसी घटनाए इतिहास मे हुई है --जैसे सोमनाथ मंदिर का ध्वंश !! परंतु मोहम्मद गोरी द्वारा इब्रहीम लोदी को पानीपत मे पराजित करने के बाद 1857 तक दिल्ली मे मुगलो का राज रहा | परंतु हिन्दू फिर भी बहुसंख्यक बने रहे !! कुछ मंदिर भी टूटे -परंतु मुगल शासको ने अनेक मंदिरो को ज़मीन और दान भी दिये | दोनों ही प्रकार की घटनाए इतिहास के पन्नो मे दर्ज़ है | महराणा प्रताप और अकबर मे एक को नायक और दूसरे को खलनायक बनाने की संघ की सोच यह भूल जाती है की प्रताप का सेनापति मुसलमान और अकबर का सेनापति हिन्दू राजा थे ! शिवाजी की सेना मे भी मुसलमान और उनकी नौसेना मे गुजरात के नीग्रो भी थे !

उन्होने यह भी कहा की जब परिवार टूटते है तो संसक्राति बिखरती है – अब भागवत जी को समझना होगा की खेती पर आधारित अर्थ व्यवस्था मे भी आजकल संयुक्त परिवार टूट रहे है | आज बैलो से खेती नहीं होती --मशीनी खेती मे कम लोगो से बड़े छेत्रफल को जोता -बोया जा सकता है | नगरो मे शिक्षा प्राप्त करने के बाद लड़के और लडकीया अब नौकरी की ओर भागते है | ना तो उन्हे परिवार के व्यवसाय की चिंता है और नाही अपनी परंपरा की | सहशिक्षा ने नारी को पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलने का हौसला प्रदान किया है | यह 21 वी सदी है संघ क्या समय की प्रगति की सुई को वापस 19वी सदी मे ले जाने की कोशिस कर रहा है ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की "”” हिन्दू '’’ अथवा हिन्दुत्व ' की परिभाषा अभी भी साफ नहीं है | कभी उनका बयान आता है की भरत्वर्ष मे रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू है ? इसका अर्थ मुसलमान और ईसाई या सिख सभी इसी श्रेणी मे आते है ?? तब संघ मे कोई मुसलमान या ईसाई क्यो नहीं है ?

इतना ही नहीं कर्नाटक --तमिलनाडू मे कई संप्रदाय ऐसे है जो है तो सनातनी पर उनके कर्मकांड वेदिक धर्म से थोड़ा अलग है ! परंपरा अनुसार सनातन धर्म मे शव का दाह संस्कार किया जाता है | परंतु तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जयललिता जो जन्म से ब्रामहन थी परंतु उन्होने :::द्रवीण मुनेत्र कडगम की सदस्यता ली थी | कडगम के स्थापना करने वाले रामस्वामी नायकर वेदिक धरम के विरोध मे 1930 से मुहिम चला रहे थे | इस संस्था को जो बाद मे राजनैतिक दल मे बादल गयी – उसके मानने वाले इस्लाम या ईसाई धरम की भांति ज़मीन मे दफनाये जाते है | वैसे अधिकतर कडगम कार्यकर्ता हिन्दू मंदिरो का बहिसकार और उनके संस्कारो को भी नहीं मानते | वे मुंडन - उपनयन आदि भी नहीं सनातनी परंपरा से नहीं करते है | इसके बावजूद जयललिता मंदिर भी जाती थी -वनहा चढावा भी देती थी | परंतु अंत मे उन्हे भी दफनाया ही गया ! इसी प्रकार प्रखर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी गोवा स्थित "”सनातन नमक संस्था से जुड़े लोगो पर गौरी तथा चार अन्य लोगो की हत्या का आरोप लगा है | गौरी को भी जब दफनाया गया तब संघ के कुछ '’’अति उत्साही लालों ने '’ उसे ईसाई होने का प्रचार सोशल मीडिया पर किया | अब देश के व्भिन्न भागो मे आस्था और विश्वास की विभिन्नता को वेदिक धर्म अभी भी समेटे हुए है | वह कनही से भी "””मुलायम '’ नहीं है और उसे "”कठोर '’ होने की भी आवश्यकता नहीं है | क्योंकि इसी कट्टरता के कारण देश के विभिन्न भागो मे "”भीड़ '’ अपने हिसाब से गाय की रक्षा करते हुए लोगो को पीट कर हत्या कर रहे है | अगर यह हिन्दुत्व है जिसकी बात डॉ मोहन भागवत जी कर रहे है तो ---इस देश मे अभी भी आदिगुरु की समवेशी द्रष्टि अधिसंख्य रूप मे विद्यमान है | हमे संघ का कठोर लड्डू नहीं बनना है ----जिसमे किसी के लिए भी नफरत हो | भागवत जी आपको आपका हिन्दुत्व मुबारक ,, जय श्री राम की उद्घोसणा अब कनही अशांति नहीं फैलाये | इस आशा के साथ की भारत की समष्टि बनी रहे !!!



अजेय भारत :अटल भारतीय जनता पार्टी के मोदी जी नारे के साथ
अमित शाह का कहना की 2019 के बाद भी 50 साल तक पार्टी चुनाव नहीं हारेगी !! कुछ ऐसी ही उद्घोषणा 5 मार्च 1933 को जर्मनी के एडोल्फ हिटलर ने नाजी पार्टी के सम्मेलन मे कही थी --- 1000 वर्ष का राज !!!!


9सितंबर 2018 को दिल्ली मे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री और पार्टी प्रमुख का कार्यकर्ताओ यह आश्वशन कम और संकेत ज्यादा है | क्योंकि शाह का कथन,, मोदी जी की कठिन विरोधी श्रीमति इन्दिरा गांधी के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष देवकान्त बरुआ के उस कुख्यात बयान की याद दिलाता है "”” इन्दिरा ही भारत हैं और भारत ही इन्दिरा है "” !!! लोकतन्त्र मे चुनावी प्रतिद्वंदीता आवश्यक है --- परंतु चुनाव को "””युद्ध "”” बनाना ,निश्चय ही जनमत की स्वाभाविक अभिव्यक्ति की अवहेलना ही होगी | हिटलर ने भी चुनाव को हिंसात्मक रूप देकर ही सत्ता पायी थी | क्या आज हमको इस बात का संकेत नहीं मिलता की "””भीडतंत्र द्वरा जिस प्रकार संदेह और शंका के आधार पर लोगो की हत्या की जा रही है ----उस पर तो देश का सर्वोच्च न्यायालय ने भी चिंता व्यक्त की है “””| प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा ने केंद्र और राज्य सरकारो को इस प्रशासनिक ---राजनीतिक और सामाजिक कैंसर से निपटने के लिए , लंबा -चौड़े निर्देश दिये है | परंतु विगत चार वर्षो का अनुभव बताता है की सरकार उनही न्यायिक फैसलो के अनुपालन मे तत्परता दिखती है -----जो उसके लिए "””राजनीतिक रूप से लाभदायक होते है "”” | शेष मे वह फाइस्ल्प को लटकाए रखती है | उदाहरण के तौर पर विश्वविद्यालयो की शिक्षा और परीक्षा तथा छात्रों के साथ हो रहे अन्याय के लिए जब सरकार के कान उमेठे गए तो --मामला '’’’दाखिल दफ्तर कर दिया गया '’’ !! ऐसा ही सरकारी सेवाओ मे खाली पड़े पदो की संख्या अगर '’सुरसा '’ की भाति है तो बेरोजगारो की लाइन तो बजरंग बाली के आकार की तरह है ! परंतु 50 लाख से अधिक शिक्षको के पद रिक्त है ---परंतु उन्हे नियत समय सीमा मे भरने के फैसलो पर सरकार का '’’’टकसाली जवाब होता है ----प्रक्रिया चल रही है ,कुछ समय लगेगा !! “”” सरकार किसी भी दल की हो कोई भी "””किसी भी काम को निश्चित समय सीमा मे पूरा करने की तारीख नहीं देता "” शायद नेताओ से ज्यादा इस के दोषी नौकरशाह है ---जिनहे मंत्रियो के कमजोर हाथ लगाम नहीं लगा पा रहे है !!

अभी तक आम चुनावो के लिए राजनीतिक पार्टिया पाँच साल के कार्यक्रम की रूप रेखा ही जनता के सामने अपने चुनावी घोषणा पत्र मे करती थी | परंतु ऐसा पहली बार देखने मे आ रहा है की कोई पार्टी "” संसद या सदन की आयु से अधिक के बारे मे वादे करती जा रही है !!! भले ही आप को विजय की आशंका हो परंतु जब आप पाँच साल के आगे का वादा करते है -----तब लगता है की आप "”””हैसियत से ज्यादा अथवा क्रडिट वर्दिनेस्स से अधिक क़र्ज़ की बात कर रहे है !! इसलिए ऐसे वादो और घोसनाओ --का हाल "”नान पेरफरमिंग असेट '’ की भांति ही होने उम्मीद रहती है | अभी तक का अनुभव तो यही बताता है | मोदी जी का कार्य काल 2019 तक ही है ---- जब वे मंगल यान और बुलेट ट्रेन की बात 2025 तक की करते है ---- तब लगता है की वे "”” अपने बाद आने वाले प्रधान मंत्री का एजेंडा सेट कर रहे है !! जैसा की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मे होता है | परंतु ऐसा उसी संस्था मे संभव है ,, जिसका कोई वैधानिक अर्थात किसी समूह द्वरा निर्वाचित --जिसका कोई लिखित संविधान हो ---सदस्यता सूची हो --और उनके आय - व्यय की निगरानी हो !! संघ के मामले मे ऐसा नहीं होता !! चीन और रूस की सत्ताधारी पार्टियो मे भी संघ ऐसी ही प्रणाली है | रूसी नेता पुतिन जब चाहते है प्रधान मंत्री बन जाते है ---जब लगता है की राष्ट्रपति बनना ज्यादा सम्मानजनक है तब संविधान मे संशोधन कर के राष्ट्रपति पद को प्रशासनिक ताकत से लैस कर दिया जाता है | फिर वे एक ऐसा चुनाव लड़ते है -जिसमे "””वे खुद विरोधी उम्मीदवार को चुनते दिखायो पड़ते है !!! चीन मे भी ऐसा ही हुआ चार साल के लिए चुने गए श्रीमन ची ने संविधान मे संसोधन करा कर '’’’स्वयं को आजीवन राष्ट्रपति निर्वाचित करा लिया "”” | अक्सर आजीवन पदासीन रहने की वारदाते दक्षिण अमेरिकी देशो मे ज्यदा हुई है | परंतु क्यूबा मे कास्त्रो और स्पेन मे द्वतीय विश्व युद्ध के समय स्पेन मे सैनिक तानाशाह काफी दिनो तक बिना चुनाव के शासन पर क़ाबिज़ रहे ----पर आखिरकार पुनः शाही परिवार को सत्ता सौपनी पड़ी ----जिससे उन्होने गद्दी छीनी थी !

जब कोई राजनीतिक दल अपने क्रिया कलापों के लिए अपने देश के कानूनों और जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा -----तब वह लोकतान्त्रिक संगठन नहीं रहता वरन --एक '’’जुनटा'’ यानि एक गिरोह मे परिवर्तित हो जाता है | जैसा पड़ोसी देश म्यांमार मे है ! वनहा नागरिक अधिकारो की लड़ाई के लिए सैनिक शासन की क़ैद मे सालो रहने के बाद भी श्रीमति आंग सान सु ची आज अपने देश के रोहिङ्ग्य मुस्लिमो का सेना द्वारा नर संहार किए जाने की --- सर्व विदित घटना की निंदा नहीं का रही है | क्योंकि सेना के जनरलो ने उन्हे '’’ देश का सर्वोच्च काउन्सलर '’’बनाया हुआ है | आज संयुक्त राष्ट्र संघ भी रोहिङ्ग्य नर संहार की निंदा कर चुका है |परंतु अंग सान सु ची चुप है !!!


इसी प्रकार अगर आज देश के प्रबुध वर्ग और राजनीतिक दल सचेत नहीं हुए -----तो जैसे हिटलर के राष्ट्रवाद और आर्य जाति की सर्वोच्ता '’’ के नारे ने वनहा युवा लोगो को भरमा दिया ------ और पाँच साल तक दुनिया को भाय और आतंक के साये मे रहने को मजबूर किया ---------परंतु उस गलती का दुष्परिणाम जर्मनी को 40 साल तक भुगतना पड़ा !! देश का विभाजन विजेताओ ने किया --और 1000 साल तक राज की तमन्ना लिए हिटलर को बनकर मे आतंहत्या करनी पड़ी ||