आरक्षण
पर संघ की बालिंग -
बैटिंग
और फील्डिंग
- राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत जी ने संविधान मे प्रदत्त जातीय आरक्षण का पुनरीक्षिण के सुझाव ने ,, बिहार विधान सभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी के विरोधियो को अनायास ही एक हथियार थमा दिया था | भगवत के बयान से संभावित चुनावी नुकसान को देखते हुए केंद्रीय सरकार के मंत्री रविशंकर ने चौबीस घंटे के अंदर ही बयान दिया की बीजेपी और सरकार भगवत जी के बयान से "”सहमत "” नहीं है | शायद यह पहली बार था की भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मात् संस्था को अलग -थलग कर दिया | परंतु दूसरी ओर राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने गुज़रो द्वारा आरक्षण की मांग को स्वीकार करते हुए उन्हे भी शिक्षा और सरकारी सेवाओ मे आरक्षण मे दिया जाना मंजूर कर लिया | एक सप्ताह के अंदर हुई इन दो घटनाओ ने यह साबित कर दिया की भले ही संघ के सर्वोच्च नेता की बात की किरकिरी करनी पड़े --तो करेंगे पर ,चुनाव जीतने के लिए हर जतन करेंगे | मजे की बात यह है की संघ और सरकार के मिले जुले चेहरे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी नहीं तोड़ी | बस इसी बात ने साफ कर दिया की सत्तारूड गठबंधन इस मुद्दे पर "”भ्रम "”
- फैलाये रखना चाहता है | क्योंकि इधर हाल ही मे सोशल मीडिया मे आरक्षण के विरोध मे लहर चल रही थी | यह आंदोलन वस्तुतः सवर्ण जातियो के नौजवानो द्वारा चालय जा रहा था | क्योंकि मेडिकल मे भर्ती और सरकारी नौकरियों मे प्रतियोगिता मे काफी अधिक् नंबर पाने के बाद भी जब असफल घोशित किए जाते है तब ''अपार अशंतोष "” होता है | संघ और बीजेपी ने "”युवाओ''' के इस आशंतोष को भुनाने के लिए भगवत जी का बयान दिला दिया | इस प्रकार इस मुद्दे पर बाल फेंक दी | पर जैसे ही बिहार मे इस मुद्दे ने बीजेपी उम्मीदवारों के जातीय आधार पर "”चोट "” पाहुचाना शुरू किया वैसे ही केंद्र सरकार ने फ़िल्डिंग करते हुए भागवत जी की गुगली को "'नो बाल"” करार दे दिया |
- परंतु अब गलत समय पर बाल फेंके जाने के नुकसान को कम करने के लिए ,, कुछ ऐसा करना था की जिस से यह लोगो को यह लगे की ''संघ और बीजेपी "”” की प्रतिबद्धताये अलग -अलग है | इसलिए फौरन से पेश्तर राजस्थान के गुजरो की आरक्षण की मांग पर बैटिंग करते हुए उन्हे आरक्षण दिये जाने की आधिकारिक घोसणा कर दी | जिससे लोगो मे यह बात जाये की बीजेपी भी पिछड़े वर्गो को आरक्षण दिये
- जाने की ''पक्षधर "”” है | वैसे संघ और बीजेपी इस खेल मे काफी माहिर है | राम मंदिर आंदोलन के दौरान राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी तथा विश्व हिन्दू परिषद - बजरंग दल और मजदूर संघ आदि सब अलग - अलग भाषा बोलते थे | परंतु उसके निशाने पर काँग्रेस और सरकार ही होती थी | इस रणनीति से फायदा यह होता था की एक से असहमत वोटर किसी ना किसी के "”तर्क के जाल "मे फंस जाता था | जबकि हक़ीक़त मे जाल तो एक ही था --जिसे अलग -अलग किनारो पर अलग लोग "”पकड़े हुए थे "”” |इस तर्क को पुष्ट करने के लिए आप देखे की भूमि अधिग्रहण संशोधन पर इतना
- हल्ला मचाने के बाद आखिर मे उसे वापस लिया | सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए "”” किसी ने इन्हे अभूतपूर्व सुझाव दे दिया जिसे सरकार ने तुरंत निगल लिया | परंतु जन प्रतिरोध का ताप इतना अधिक था की वह ड्राफ्ट चौबीस घंटे के अंदर ही सरकार द्वरा वापस लिए जाने का फैसला हुआ | लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर इस द्रविड़ प्राणायाम से भारतीय जनता पार्टी को मनचाहा परिणाम मिलेगा --इसमे काफी संदेह है |क्योंकि जातीय बंधनो मे जकड़ा बिहार का समाज इस उलट बांसी से संतुष्ट नहीं होगा |जिस सवर्ण युवा वर्ग का सपोर्ट लेने के लिए गेंद फेकी थी वह इस पैतरे से शंकित हो गया है |और जिस महादलित का समर्थन लेने के लिए जीतन राम मांझी को साथ लिया उन्हे भी भरोसा नहीं होगा |क्योंकि उन्हे लगेगा की यहा भी तो बीजेपी ने नए - नए उम्मीदवार उतरे है जो सब के सब पिछड़े वर्ग से है | अब बिहार मे चुनाव भगवा यादव या भगवा कुर्मी अथवा मूल यादव और कुर्मी के मध्य ही होगा \
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