नर्मदा
यात्रा के समापन के अवसर पर
एक आलेख ने ध्यान आकर्षित
किया -----
जिसमे
दावा किया गया था की सरकार और
सत्ता समाज सुधार के लिए
प्रयासरत है ?
इस
दावे ने विगत मे हुए समाज सुधारो
के इतिहास मे झाकने को मजबूर
किया |
इस
कथन का परीक्षण करने का प्रयास
करने का प्रयास इस आलेख के
माध्यम से किया है |
समाज
सुधार और राष्ट्र को एक साथ
जोड़कर अगर देखे तो
हमे
देश और सत्ता के दायित्व को
भी समझना होगा |
लोकतन्त्र
मे सत्ता ही राजनीतिक दलो का
अभीष्ट होता है |
एवं
सत्ता और सरकार का दायित्व
भी समाज सुधार समाज सुधार
नहीं होता वरन शांति और व्यवस्था
कायम करना होता है |
कानून
का राज्य बनाना होता है |
सबके
लिए शांति स्थापित करना होता
है ---क्योंकि
ऐसा नहीं होने पर शांति नहीं
होती है |
विभिन्न
देशो मे आंतरिक अशांति का
कारण सबके साथ न्याय नहीं होना
है |
वंही
समाज सुधार व्यक्तिगत तौर
पर लिया गया एक प्रयास है |
भारत
मे समाज सुधार निषेध के रूप
मे ही किए गए |
जब
समाज गलतिया कर रहा था या अन्याय
कर रहा था तब इन समाज सुधारको
ने उन कुरीतियो को खतम करने
का प्रयास किया |
समाज
सुधार बुराइयों को खतम करने
और बराबरी का दर्जा हर इंसान
को देने का प्रयास हुआ है |
सती
प्रथा ऐसी ही एक बुरी परंपरा
थी जिसमे स्त्री को /पत्नी
को उसकी मर्ज़ी के वीरुध पति
की चिता पर उसे जलना होता था
| बंगाल
मे राजा राम मोहन रॉय ने इस
बुराई के खिलाफ ज़ंग शुरू कर
दी |
उन्होने
छेत्र के लोगो को समझाया की
यह गलत प्रथा है |
इंसान
की आज़ादी और महिलाओ के सम्मान
के विपरीत है |
इसमे
सत्ता का कोई योगदान नहीं था
| परंतु
बंगाल के बुद्धिजीवियों के
समाज सुधार के इस आंदोलन का
बहुसंख्यक परंपरावादियों
ने बहुत विरोध किया |
परंतु
तत्कालीन गवर्नर जेनरल विलियम
बेंटिक ने सती प्रथा को गैर
कानूनी घोषित करते हुए इसे
अपराध करार दिया |
यह
सुधार भी व्यक्तिगत था सत्ता
का नहीं |
ईश्वर
चंद्र विद्यासागर ने शिक्षा
को सभी मनुष्यो का अधिकार
बताया और जाति का भेद को अमान्य
किया |
उनका
भी तत्कालीन समय मे विरोध हुआ
|
उन्होने
स्त्री -
पुरुष
सभी केशिक्षा के अधिकार की
शुरुआत की |
महाराष्ट्र
मे ज्योतिबा फुले ने भी स्त्री
शिक्षा और छूआछूत के वीरुध
ज़ंग छेड़ी |
यह
भी निजी तौर का ही प्रयास था
|महात्मा
गांधी ने भी अछूत आंदोलन शुरू
कर दलितो को अपने बराबर बैठाया
|
बाद
मे इन प्रयासो की सारथकता को
सरकार //
राज्य
//देश
की सत्ता ने स्वीकार किया |
वेदिक
धर्म के मानने वालो मे स्त्री
की स्थिति गैरबराबरी की थी
|
विरासत
और अधिकारो को लेकर लड़के और
लड़की की स्थिति बराबर नहीं
थी |
पंडित
जवाहर लाल नेहरू ने काँग्रेस
पार्टी के अनेक सांसदो और
नेताओ के विरोध के बावजूद
हिन्दू कोड अधिनियम बनवाया
|
परंतु
यह भी निजी प्रयासो पर सत्ता
द्वरा लगाई गयी मुहर ही थी |
तत्कालीन
स्वामी करपात्रि जी ने आईएसडी
कानून को धर्म मे राज्य का
हस्तछेप बताया था |
आठ
प्रकार के वेदिक विवाहो को
हटा कर विवाह की एक ही परंपरा
को कानूनी मान्य किया |
इस
प्रयास मे नेहरू और तत्कालीन
राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र
प्रसाद जी मे भी मतभेद था
उन्होने बिल को एक बार वापस
कर दिया था |
बाद
मे उन्हे समझबूझा कर राज़ी किया
गया |
स्त्री
-पुरुष
अनुपात मे असंतुलन से उपजी
स्थिति के लिए देश मे बेटी
बचाओ आंदोलन और लिंग निर्धारण
को अपराध घोषित करना भी समाज
सुधार माना जाएगा |
संविधान
मे आरक्षण भी इसी दिशा मे एक
कदम है |
जिसका
विरोध आज भी सवर्णो द्वारा
किया जा रहा है |
सरकार
के इन सुधारो मे सत्ता की शक्ति
है ---जबकि
सुधार नितांत स्वतंत्र प्रयास
होता है |
उसमे
जन और धन दोनों स्वेक्षा से
आते है |जबकि
सरकार धन और सत्ता के बल पर
कानून बनाती है |
इसलिए
सुधार समाज के द्वारा किया
गया प्रयास है और सरकार द्वारा
किए गए प्रयास सरकारी योजनाओ
की भांति '''बोझिल
दायित्व होते है '””””
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