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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 15, 2017

सरकार से समाज सुधार कितना वास्तविक अथवा एक और दावा !!

नर्मदा यात्रा के समापन के अवसर पर एक आलेख ने ध्यान आकर्षित किया ----- जिसमे दावा किया गया था की सरकार और सत्ता समाज सुधार के लिए प्रयासरत है ? इस दावे ने विगत मे हुए समाज सुधारो के इतिहास मे झाकने को मजबूर किया | इस कथन का परीक्षण करने का प्रयास करने का प्रयास इस आलेख के माध्यम से किया है |

समाज सुधार और राष्ट्र को एक साथ जोड़कर अगर देखे तो
हमे देश और सत्ता के दायित्व को भी समझना होगा | लोकतन्त्र मे सत्ता ही राजनीतिक दलो का अभीष्ट होता है | एवं सत्ता और सरकार का दायित्व भी समाज सुधार समाज सुधार नहीं होता वरन शांति और व्यवस्था कायम करना होता है | कानून का राज्य बनाना होता है | सबके लिए शांति स्थापित करना होता है ---क्योंकि ऐसा नहीं होने पर शांति नहीं होती है | विभिन्न देशो मे आंतरिक अशांति का कारण सबके साथ न्याय नहीं होना है | वंही समाज सुधार व्यक्तिगत तौर पर लिया गया एक प्रयास है | भारत मे समाज सुधार निषेध के रूप मे ही किए गए | जब समाज गलतिया कर रहा था या अन्याय कर रहा था तब इन समाज सुधारको ने उन कुरीतियो को खतम करने का प्रयास किया | समाज सुधार बुराइयों को खतम करने और बराबरी का दर्जा हर इंसान को देने का प्रयास हुआ है |

सती प्रथा ऐसी ही एक बुरी परंपरा थी जिसमे स्त्री को /पत्नी को उसकी मर्ज़ी के वीरुध पति की चिता पर उसे जलना होता था | बंगाल मे राजा राम मोहन रॉय ने इस बुराई के खिलाफ ज़ंग शुरू कर दी | उन्होने छेत्र के लोगो को समझाया की यह गलत प्रथा है | इंसान की आज़ादी और महिलाओ के सम्मान के विपरीत है | इसमे सत्ता का कोई योगदान नहीं था | परंतु बंगाल के बुद्धिजीवियों के समाज सुधार के इस आंदोलन का बहुसंख्यक परंपरावादियों ने बहुत विरोध किया | परंतु तत्कालीन गवर्नर जेनरल विलियम बेंटिक ने सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित करते हुए इसे अपराध करार दिया | यह सुधार भी व्यक्तिगत था सत्ता का नहीं |

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने शिक्षा को सभी मनुष्यो का अधिकार बताया और जाति का भेद को अमान्य किया | उनका भी तत्कालीन समय मे विरोध हुआ | उन्होने स्त्री - पुरुष सभी केशिक्षा के अधिकार की शुरुआत की | महाराष्ट्र मे ज्योतिबा फुले ने भी स्त्री शिक्षा और छूआछूत के वीरुध ज़ंग छेड़ी | यह भी निजी तौर का ही प्रयास था |महात्मा गांधी ने भी अछूत आंदोलन शुरू कर दलितो को अपने बराबर बैठाया | बाद मे इन प्रयासो की सारथकता को सरकार // राज्य //देश की सत्ता ने स्वीकार किया | वेदिक धर्म के मानने वालो मे स्त्री की स्थिति गैरबराबरी की थी | विरासत और अधिकारो को लेकर लड़के और लड़की की स्थिति बराबर नहीं थी | पंडित जवाहर लाल नेहरू ने काँग्रेस पार्टी के अनेक सांसदो और नेताओ के विरोध के बावजूद हिन्दू कोड अधिनियम बनवाया | परंतु यह भी निजी प्रयासो पर सत्ता द्वरा लगाई गयी मुहर ही थी | तत्कालीन स्वामी करपात्रि जी ने आईएसडी कानून को धर्म मे राज्य का हस्तछेप बताया था | आठ प्रकार के वेदिक विवाहो को हटा कर विवाह की एक ही परंपरा को कानूनी मान्य किया | इस प्रयास मे नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी मे भी मतभेद था उन्होने बिल को एक बार वापस कर दिया था | बाद मे उन्हे समझबूझा कर राज़ी किया गया |

स्त्री -पुरुष अनुपात मे असंतुलन से उपजी स्थिति के लिए देश मे बेटी बचाओ आंदोलन और लिंग निर्धारण को अपराध घोषित करना भी समाज सुधार माना जाएगा | संविधान मे आरक्षण भी इसी दिशा मे एक कदम है | जिसका विरोध आज भी सवर्णो द्वारा किया जा रहा है |

सरकार के इन सुधारो मे सत्ता की शक्ति है ---जबकि सुधार नितांत स्वतंत्र प्रयास होता है | उसमे जन और धन दोनों स्वेक्षा से आते है |जबकि सरकार धन और सत्ता के बल पर कानून बनाती है | इसलिए सुधार समाज के द्वारा किया गया प्रयास है और सरकार द्वारा किए गए प्रयास सरकारी योजनाओ की भांति '''बोझिल दायित्व होते है '””””

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