दवे
की वसीयत-----
भाजपा
की भावी पीढी के लिए छोड़ी गयीसत
अनिल
माधव दवे ,
राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ की ""स्वस्थय
"” परम्पराओ
मे रचा -बसा
व्यक्तित्व जो लोकतन्त्र
की संसदीय मर्यादाओ का सम्मान
करना जानते थे |
उनके
द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंदीयों
के लिए लिए कभी भी आपतिजनक और
अमर्यादित बयान नहीं दिया |
इसके
लिए उनके राजनीतिक विरोधी
भी उनकी तारीफ करते है |
स्वच्छ
राजनीति के लिए रणनीति बनाने
के लिए उनकी योग्यता को प्रदेश
के जन "”जावली
"”
के
चुनावी वार रूम को आज भी याद
करते है |
यह
प्रयोग संसदीय चुनाव प्रणाली
मे नया था ,जो
सफल रहा |
उन्होने
राजनीति की आम राह नहीं पकड़ी
---वरन
पर्यावरण और जल – स्त्रोतो
की रक्षा की मुहिम शुरू की
जो ना केवल समाज --देश
--वरन
मानव सभ्यता की भी जरूरत है
|
वे
राजनीति मे विरोधी को परास्त
करने के लिए भले ही निर्मम
रहे हो परंतु मर्यादाओ का
उल्लंघन नहीं किया\
प्रदेश
की राजनीति हो अथवा देश की
उन्होने हमेशा "”निर्विवाद
"”
छवि
बनाए रखी |
खेमो
मे बनती सत्तारूद पार्टी मे
भी वे साइडव संघ का ही चेहरा
रहे |
स्वदेशी
आंदोलन ऐसी मुहिम मे वे लगे
रहे -
शिक्षा
भारती के भी कार्य कलापों मे
रुचि लेते थे |
वे
पति की गुटीय राजनीति से दूर
केंद्र की रुचि और आदेशो को
ही पूरा करने वाले स्वयंसेवक
थे |
जिनहे
संघ ने भारतीय जनता पार्टी
मे भेजा था ----की
पार्टी मे नारेबाजी और पोस्टर
बाजी तथा भाषण और बयानवीरों
को कुछ रचनातमक गतिविधियो
मे लगाया जा सके |
जिस
से की शिक्षित युवा समाज के
लिए कुछ सार्थक करने का संतोष
प्रापत कर सके |
परंतु
काडर बेस पार्टी जिसे चुनावी
राजनीति के लिए भीड़ भरी बनाया
गया था ---उसमे
चंद लोगो को ही उनकी बात समझ
मे आई |
उन्होने
प्रदेश को जीवन और जलदायिनी
नर्मदा को साफ करने और उसे
प्रदूषण मुक्त करने के लिए
उन्होने अनेक गैर सरकारी
संगठनो को बनाने मे मदद की |
जिस
से की शिक्षित युवाओ को एक
रचनातामक कार्य करने का संतोष
कर सके |
की
उन्होने दलगत राजनीति से उठकर
देश और समाज को के लिए कुछ ठोश
कार्य किया है |
इतना
ही नहीं उन्होने इस संगठनो
को विभिन्न छेत्रों मे मे भी
कार्य करने को प्रेरित किया
|
उनकी
इस मुहिम को अब कौन सम्हालेगा
यह अभी --अनुतरित
ही है |
जीवन
की सार्थकता और मौत की निश्चितता
का उन्हे अछि त्राह से ज्ञान
था |
उनकी
चार लाइन की वसीयत मे उन्होने
जो भाव व्यक्त किए है ---वे
उन्हे वेदिक धर्म का सच्चा
अनुयाई सिद्ध करते है |
जो
उन्हे "”हिंदु
"” धर्म
के उद्घोष से बिलकुल अलग करते
है | जीस
सादगी से वे जिये लाल बाती
और हुटर से उन्हे कभी प्रेम
नहीं रहा |
वे
एक सामान्य यही सादगी व्यक्ति
की ही तरह रहे |
आम
आदमियो की भांति उन्हे काफी
हाउस मे परिवार जनो के साथ
अक्सर देखा जाता था |
चेहरे
पर स्मित और तनाव रहित चेहरे
पर चिंता और द्व्न्द्य की
रेखाए उनके चेहरे पर तब आई जब
वे केंद्र मे पर्यावरण मंत्री
बने | दिल्ली
की राजनीति मे थैली शाहों का
दबाव और राजनीतिक फैसलो मे
नियमो और जन कल्याण की अनदेखी
उन्हे चिंतित करती थी +|
कहा
जाता है है की जीएम बीज और बी
टी कोट्टन बीजो के मामलो मे
उनका राजनीतिक मतभेद था |
उनके
अनुसार भारत वर्ष की क्रशि
के लिए ये बीज "”घातक
"” है
| परंतु
बीज लाबी की पहुँच शिखर तक थी
| जब
उन पर बहुत दबाव पड़ा की इस
प्रस्ताव को वे मंजूर करे ,तब
उन्हे स्वदेशी विचार मंच मे
अपने दिये गए भासनों और वादो
की याद आती थी |
इसी
कश्मकश मे ही उन्हे हर्द्यघात
हुआ | और
वे इस राजनीति को ही छोड़ गए |
परंतु
अपने कर्म छेत्र और नर्मदा
की गोद मे ही उन्होने चिरनिद्रा
का निश्चय जो उन्होने पाँच
वर्ष पूर्व लिया था ,उसे
अपनी वसीयत के रूप मे छोड़ गए
| उन्होने
किसी भी प्रकार के स्मारक आदि
के लिए निषेध किया था |
उनकी
इच्छा थी की जो उन्हे चाहते
है वे एक पौधा लगा कर उसे व्रक्ष
बनाने तक सेवा करे |
जिस
प्रकार उन्होने नर्मदा संकलप
को छोटे से स्तर से एक महान
मुहिम मे परिवर्तित किया वह
ही उनके जीवन की सफलता है |
मुख्य
मंत्री शिवराज सिंह की नर्मदा
यात्रा उसी का प्रतिफल है |
ऐसे
सच्चे पर्यावरण के सेवक को
श्रंधंजली यही होगी की नदियो
और जल श्रोतों को हम पुनः जीवन
दान दे |
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