एनडीए
तो आगामी लोकसभा के लिए तैयार
-पर
यूपीए
की
एकता का क्या होगा ?
नेशनल
डेमोक्रेटिक एलायन्स ने तो
बैठक कर के आगामी लोकसभा 2019
के
चुनाव के लिए प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी के नेत्रत्व
को मंजूर किया है |
परंतु
यूपीए की एकता अभी दूर -दूर
तक नहीं दिखाई पड़ती है |
नितीश
कुमार ने एक बयान मे काँग्रेस
से आग्रह किया है की वह गैर
भाजपा डालो को लेकर एक मोर्चा
बनाने की कवायद शुरू करे |
परंतु
काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया
गांधी द्वरा इस ओर अभी तक कोई
पहल नहीं की गयी है |
परंतु
काँग्रेस पार्टी अपने संगठन
को लेकर ही व्यस्त है |
गोवा
मे और मणिपुर मे भाजपा से अधिक
सीट पाने के बावजूद भी सरकार
नहीं बना पाना काँग्रेस के
सिपहसालारो की असफलता का
"”कीर्तिमान
"”
ही
तो है |
इसके
अलावा पार्टी मे अभी तक यही
ऊहापोह बना हुआ है की दल की
कमान अभी भी सोनिया गांधी के
हाथो मे रहे अथवा राहुल गांधी
को सौप डी जाये |
कुछ
"”:बड़े
"”
नेता
जनहा राहुल गांधी को कमान देने
की वकालत करते हुए सार्वजनिक
बयान देते है --वनही
राज्यो के छत्रप सोनिया
गांधी के नेत्रत्व मे ही 2019
का
चुनाव लड़ने के लिए लाबिंग कर
रहे है |
अभी
हाल ही मे सोनिया गांधी ने
सांसदो को रात्रि भोज के लिए
आमंत्रित किया था -की
आगामी रणनीति बनाई जा सके |
परंतु
विभिन्न दलो के सांसदो ने इस
प्रयास को गंभीरता से नहीं
लिया |
वनही
बंगाल की मुख्य मंत्री ममता
बनर्जी के विपक्षी एकता प्रयासो
मे वाम दलो का ठंडा रुख भी
समस्या बन रहा है
|
जिसका
कारण उनका यह सोच है की ममता
आगे चल कर बंगाल मे वाम दलो को
खतम करने के लिए भाजपा से हाथ
मिला सकती है |
उनको
नोटबंदी का ममता द्वरा विरोध
और केंद्र द्वारा बंगाल और
सीमांत राज्यो के मार्ग पर
सेना की नियुक्ति भी उनके
संदेह को समाप्त नहीं कर पाये
है |
इन
गुथियों के मध्य गैर भाजपा
दलो की एकता जल्दी सुलझती
नहीं नज़र आती |
अब
सवाल यह है की क्या मौजूदा
केन्द्रीय सरकार के विरोध मे
कोई मोर्चा बन सकता है ?
इस
प्रश्न का उत्तर यही हो सकता
है की जिस प्रकार उत्तर प्रदेश
मे समाजवादी और बहुजन पार्टी
के साथ काँग्रेस का सफाया हुआ
है ,
उसके
चलते इन पार्टियो को अपनी
राष्ट्रीय पहचान बचाने के
लिए एक साझा मोर्चा जरूरी है
|
अन्यथा
वे एक -
एक
कर के राजनीतिक भूमिका खो
देंगे |
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